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  • Primary Storage Kya Hai?

    मेमोरी कम्प्यूटर को कार्यकारी संग्रहण है। यह कम्प्यूटर का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है जहाँ डाटा, सूचना और प्रोग्राम प्रोसेसिंग के दौरान स्थित रहते हैं और आवश्यकता पड़ने पर तत्काल उपलब्ध रहते हैं।

    इस प्राइमरी ममारी अथवा मेन मेमोरी भी कहते हैं। मेमोरी में स्टोरेज के लिए कुछ स्थान होते हैं जिनको संख्या निश्चित होती है।

    यह मेमोरी क्षमता अथवा मेमोरी का आकार कहलाता है। मात्रक जो कि मेमोरी की मापन क्षमता है, बाइट (byte) कहलाती है।

    उदाहरणार्थ एक सामान्य पर्सनल कम्प्यूटर की मेमोरी एक मेगाबाइट (1 MB) होती है, इसका अर्थ है कि यह लगभग 1048576 कैरेक्टर्स (characters) को स्टोर कर सकती है। कम्प्यूटर की मेमोरी मुख्यतः दो प्रकार की होती है

    1) रैम अथवा रेण्डम एक्सेस मेमोरी (Random Access Memory)

    2) रोम अथवा रोड ऑनली मेमोरी (Read Only Memory)

    इसके अतिरिक्त कैशे मेमोरी (cache memory) भी होती है जिसको चर्चा इस अध्याय में आगे की गयी है।

    1) रैण्डम एक्सेस मेमोरी (Random Access Memory)

    रैम या रैण्डम एक्सेस मेमोरी (Random Access Memory) कम्प्यूटर की अस्थाई मेमोरी होती है।

    को बोर्ड या अन्य किसी इनपुट डिवाइस से इनपुट किया गया डाटा, प्रोसेसिंग से पहले रैम (RAM) में ही स्टोर किया जाता है

    और सी. पी. यू. द्वारा आवश्यकतानुसार वहाँ से एक्सेस किया जाता है। रैम में डाटा वा प्रोग्राम अस्थाई रूप से स्टोर रहते हैं।

    कम्प्यूटर बन्द हो जाने या विद्युत बाधित हो जाने पर रैम (RAM) में स्टोर डाटा मिट जाता है। इसलिये रैम को वालेटाइल (Volatile) या अस्थाई मेमोरी भी कहते हैं।

    रैम (RAM) की क्षमता या आकार (Size) विभिन्न प्रकार के होते हैं। जैसे 4 MB, 8 MB. 16 MB, 32 MB, 64 MB, 128 MB, 256 MB आदि।

    पर्सनल कम्प्यूटर में कई प्रकार के रैम प्रयुक्त किए जाते हैं। ये निम्न प्रकार हैं

    1) डायनैमिक रैम (Dynamic RAM)

    2) सिन्क्रोनस डीरैम (Synchronous DRAM)

    3) स्टैटिक रैम (Static RAM)

    2) रीड ऑनली मेमोरी (Read Only Memory)

    ROM का पूरा नाम रोड ऑनलो मेमोरी (Read Only Memory) है। यह स्थाई (Permanent) मेमोरी होती है

    जिसमें कम्प्यूटर के निर्माण के समय प्रोग्राम स्टोर कर दिये जाते हैं। इस मेमोरी में स्टोर किये गये प्रोग्राम परिवर्तित और नष्ट नहीं किये जा सकते हैं|

    उन्हें केवल पड़ा (read) जा सकता है। इसलिये यह मेमोरी, रोड ऑनली मेमोरी (Read Only Memory) कहलाती है।

    कम्प्यूटर का स्विच ऑफ (OF) करने के बाद भी रोम (ROM) में स्टोर किये गये अवयव (contents) नष्ट नहीं होते हैं।

    अतः रोम नॉन-वोलेटाइल (Non- Volatile) या स्थाई स्टोरेज माध्यम कहलाता है।

    इसमें कम्प्यूटर को बनावट के अनुसार प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर स्टोर रहते हैं। रोम के विभिन्न प्रकार होते हैं जो निम्नलिखित है|

    1) प्रोम (PROM Programmable Read Only Memory)

    2) इप्रोम (EPROM-Erasable Programmable Read Only Memory )

    3) इ-इप्रोम (EEPROM Electrical Erasable Programmable Read Only Memory)

  • Data Access Karne Ki Vidhi Kya Hai?

    डाटा को हम स्टोरेज डिवाइसेज में स्टार इसलिए करते हैं ताकि इस आवश्यकता पड़ने पर एक्सेस किया जा सके। इसका कई विधियाँ हैं।

    आइए हम इस खण्ड में यह जानते हैं कि डाटा एक्सेस करने की विभिन्न विधियाँ क्या हूँ ?

    (What are various methods of data access ? ) डाटा एक्सेस की तीन विधियों डायरेक्ट सिक्वेन्शियल तथा इंडस सिंक्वेन्शियल है

    डायरेक्ट एक्सेस (Direct Access )

    डायरेक्ट एक्सेस में डाटा को किसी भी क्रम में एक्सेस किया जा सकता है। डाटा को चाहे किसी भी क्रम में स्टोर किप गया हो. हम उसे डायरेक्ट एक्प्रेस द्वारा किसी भी क्रम में एक्सेस द्वारा किसी भी क्रम में एक्सेस कर सकते हैं।

    डायरेक्ट एक्सेस तथा सिंक्वेन्शियल एक्सेस में अन्तर स्पष्ट करने के लिए आप स्टीरियो सिस्टम में आने वाली कैसे और ग्रामोफोन के रिकॉर्ड का उदाहरण ले सकते हैं।

    डायरेक्ट एक्सेस की आवश्यकता वहाँ होती है, जहाँ डाटा को किसी भी क्रम में एक्सम करना पड़ता है।

    सिंक्वेन्शियल एक्सेस (Sequential Access )

    सिक्वेन्शियल एक्सस में फाइल में उपस्थित डाटा को उसी क्रम में एक्सेस किया जा सकता है जिस क्रम उसे स्टार किया गया है।

    उदाहरणार्थ माना छात्रों (students) का डाटा फाइल में बिना किसी क्रम के स्टोर है, जब कम्प्यूटर से इसे एक्सेस किया जायेगा तो यह नाम के वर्णमाला क्रमानुसार या रोल नम्बर के बढ़ते क्रम में प्राप्त नहीं होगा, बल्कि जिस क्रम में स्टोर है,

    उसी क्रम में प्राप्त होगा। इस प्रकार डाटा का एक्सेस सिक्वेन्शियल एक्स कहलाता है। इसका उपयोग वहाँ किया जाता है, जहाँ डाटा को क्रमानुसार एक्सेस करना होता है।

    इंडेक्स सिक्वेन्शियल एक्सेस (Index Sequential Access )

    इण्डेक्स सिक्वेन्शियल एक्सेस, डायरेक्ट एक्सेस तथा सिक्वेंशियल एक्सेस के मध्य अनुरूपता (compromise) वाली विधि है।

    इसमें डाटा कम में ही व्यवस्थित होते हैं परन्तु जहाँ डाटा स्टोर किया जाता है यहाँ एक इंडेक्स होता है।

    इंडेक्स में प्रत्येक रिकॉर्ड तथा उसका उपयुक्त पता मौजूद होता है। इसका कार्य पुस्तक के पोछे दिये गए इंडेक्स (Index) की तरह होता है।

    उदाहरण के रूप में डाक्टर शर्मा का कमरा पता करने के लिये उनके बिल्डिंग की डायरेक्ट्री या इन्डेक्स (Index) देखी तथा उनकी मंजिल और कमरे का नम्बर ज्ञात करेंगे।

    इस तरीके में सारे रिकार्ड क्रम (sequence) से लगे होते हैं तथा इन्डेक्स टेबल (Index Table) का प्रयोग सारे रिकार्ड्स जल्दी प्राप्त करने के लिये किया जाता है।

    इस तरीके में रिकार्ड तो किसी भी प्रकार से स्टोर कराया जा सकता है परन्तु सारे रिकार्ड इन्डेक्स टेबल में क्रमानुसार लगे होते हैं।

  • Brain VS Memory Mein Antar

    आइये इस खंड में हम जानते हैं कि मानव तथा कम्प्यूटर एक दूसरे से कैसे मिलते-जुलते हैं ? मानव कम्प्यूटर का जनक है।

    लेकिन क्या कम्प्यूटर मानव मस्तिष्क से ज्यादा तेज और विश्वसनीय (reliable) है? जब हम मानवीय शरीर की संरचना को समझते हैं

    तब हम यह पाते हैं कि मानव शरीर तथा कम्प्यूटर सिस्टम में कोई अंतर नहीं है। मानव शरीर में रक्त दौड़ता है

    जबकि कम्प्यूटर सिस्टम की शिराओं (तारों) में इलेक्ट्रॉन दौड़ते हैं। शरीर के विभिन्न भाग होते हैं तथा प्रत्येक भाग के अलग-अलग कार्य होते हैं।

    यदि आप इनके विभिन्न भागों को ध्यान से देखें तो आप इन दोनों की संरचना में कोई भी अंतर मुश्किल से हो पाएँगे।

    वस्तुत: यह संरचना पूरी तरह से हमारी शारीरिक संरचना पर आधारित है। इसी प्रकार, कम्प्यूटर मेमोरी भी हमारे मानवीय समोरी सिस्टम पर ही आधारित है।

    आपने कभी-कभी यह महसूस किया होगा कि कुछ दूरभाष संख्या (telephone number) तथा पते आप आसानी से समझ (grasp) लेते हैं

    उन्हें मुश्किल से भूल पाते हैं जबकि उनमें से कुछ तो शायद ही याद हो पाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि हमारे पास भी कम्प्यूटर की भाँति चीजों को अस्थायी तथा स्थायी तौर पर याद करने के विकल्प होते हैं।

    यह अनुमान है कि एक मानवीय मस्तिष्क में चालीस मेगा पुस्तकालयों (libraries) का समावेश हो सकता है तथा प्रत्येक मेगा पुस्तकालय की औसत क्षमता अस्सी हजार पुस्तकों को रखने की होती है।

    यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि मानव मस्तिष्क में डाटा स्टोरेज की क्षमता एक सुपर कम्प्यूटर भी अधिक होती है। मानवीय तंत्रिका तंत्र के बारे में कुछ तथ्य इस प्रकार हैं-

    1) रेटिना (ratina) केवल एक सेकण्ड में मस्तिष्क को दस एक मिलियन प्वाइन्ट इमेजों को भेजती है।

    2) मस्तिष्क की प्रोसेसिंग क्षमता एक अनुमान के अनुसार 100 मिलियन एम.आई.पी.एस. (MIPS) होती है। जबकि हाल के सुपर कम्प्यूटरों की प्रोसेसर स्पीड कुछ मिलियन एम.आई.पी.एस. (MIPS) ही होती है।

    3) एक औसत मस्तिष्क में 100 मिलियन मेगाबाइट मेमोरी होती है।

    4) यद्यपि मस्तिष्क की क्षमता अधिक होती है इसे कम्प्यूटर के अपेक्षित कार्यों से अधिक कार्य सम्पन्न करने होते हैं।

    मस्तिष्क को लगातार पूरे जीवन मानवीय शरीर के कार्यों को सम्भालना पड़ता आंखें फड़कना, के सभी हिस्सों को समन्वित करने जैसे कार्यों को हमारा मस्तिष्क अचेत अवस्था में भी करता रहता है।

    5) आपके कान के परदे (ear drums) ध्वनियुक्त सूचना को सी.डी. से अधिक गुणवत्ता के साथ वास्तविक समय पर भेजते हैं।

    6) सिद्धांततः मस्तिष्क कम्प्यूटर की भाँति ही तेजी के साथ परिकलन (computation) तथा अभिलेखन कार्यों को सम्पन्न कर सकता है।

    7) अपवाद में (exceptional) कुछ लोग ऐसे भी हैं जो एक घंटे से कम समय में ही 500 पृष्ठ की पुस्तक को पढ़ सकते हैं तथा उसकी विषय-वस्तु (contents) को याद कर सकते हैं।

    साथ ही कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अंकगणितीय गणना को चुटकियों में कर सकते हैं। ये दुर्लभ उदाहरण हैं, परन्तु ये मानवीय मस्तिष्क में छिपी हुई शक्ति को उदघाटित करते हैं।

  • Storage Devices Kya Hai?

    परिचय (Introduction)

    स्टोरेज डिवाइस कम्प्यूटर के प्रमुख तीन भागों में एक है। कम्प्यूटर में प्राइमरी तथा सेकण्डरी दो प्रकार के स्टोरेज होते हैं।

    कम्प्यूठा में दो प्रकार के स्टोरेज होते हैं- प्राइमरी तथा सेकण्डरी प्राइमरी स्टारज अस्थिर (volatile) तथा सेकण्डरी स्टोरेज स्थिर (non-volatile) होता है।

    अस्थिर (volatile) मेमोरी डाटा को अस्थायी रूप से कम्प्यूटर ऑन होने से बंद होने तक स्टोर करती है।

    बिज (electricity) जाने पर या कम्प्यूटर के रिस्टॉट (restart) होने पर यह डाटा कम्यूटर से नष्ट (lost) हो जाता है।

    स्थिर (non-volatile) प्राइमरी स्टोरेज कम्प्यूटर को स्टार्ट करने में सहायता करता है। इसमें कुछ अति उपयोगी फर्मवेयर (firmware) हैं

    जो कम्प्यूटर को बूट करने में मदद करते हैं। बूटिंग कम्यूटर को शुरू करने को प्रक्रिया को कहा जाता है।

    इस प्रकार के स्टोरेज को मेन मेमोरी कहते हैं। स्टोरेज डिवाइस वह है जो हमारे डाटा का लम्बे समय तक रखता है।

    हम सामान्यतः इस प्रकर के डाटा को रखते हैं जो बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं तथा उन्हें उपयोग के लिए स्थानांतरित भी किया जा सकता है।

    सेकण्डरी स्टोरेज विभिन्न रूपों में आते हैं। फ्लॉपी डिस्क, हार्ड डिस्क तथा प्रकाशीय डिस्क कुछ इस तरह के नाम इस अध्याय में स्टोरेज डिवाइसेज पर स्पष्ट रूप से प्रकाश डाला गया है।

    स्टोरेज डिवाइस और इसकी आवश्यकता (Storage Device and its Need)

    जब आप अपनी परीक्षा की तैयारी कर रहे होते हैं तो सबसे पहली चीज जो आप चाहते हैं, वह यह है कि आप जा कुछ पढ़ते हैं

    वह आपको याद हो जाय अर्थात् उन चीजों का रिकॉर्ड रखना चाहते हैं जिन्हें आपने पूर्व में पढ़ा है। अब प्रश्न या है कि यह कितना महत्त्वपूर्ण है।

    उत्तर आपके ही पास है। यह उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना आपके लिए अपने दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को याद करना।

    वास्तविक दुनिया में एक आदमी मस्तिष्क को घातक बीमारी से ग्रस्त समझा जाता है, यदि वह चीजों को याद रखने में सक्षम न हो।

    इसी प्रकार यदि कम्प्यूटर में स्टोरेज क्षमता न होती तो सम्भवतः इसने इस प्रकार से मानव जाति को प्रभावित न किया होता।

    ममारी कम्प्यूटर के अत्यन्त अदभुत गुणों में एक है। तो आइए हम जानते है कि स्टोरेज डिवाइस क्या है ?

    स्टोरेज डिवाइस कम्प्यूटर का वह हार्डवेयर पार्ट है जिसका प्रयोग डाटा को इसमें स्टोर करने तथा स्टोर किये गये डाटा को कम्प्यूटरों में एक से अधिक ममारी (storage device) होती है।

    हम उनका सामान्यतः प्राइमरी और सेकण्डरी मेमोरी के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं। प्राइमरी मेमोरी का अस्थायी मेमोरी के रूप में प्रयोग होता है

    जिसका कार्य गणना संक्रियाओं (calculation processes) तथा अस्थायी मानों (values) को जिन्हें तेजी के साथ एक्सेस तथा अपडेट करने की आवश्यकता होती है, को स्टार करना है।

    प्राइमरी मेमारी की विषय-वस्तु (contents) बिजली के चले जाने के पश्चात समाप्त हो जाती है। प्राइमरी मेमोरी प्रोग्राम के एक्जिक्यूशन के दौरान महत्त्वपूर्ण होती है।

    बड़े प्रोग्रामों को अधिक प्राइमरी मेमोरी को आवश्यकता होती है। रैम (रेण्डम एक्सेस मेमारी), कॅश (caches) तथा बफर (buffers) प्राइमरी मेमोरी के कुछ उदाहरण हैं।

    सेकण्डरी मेमोरी अक्सर हार्ड डिस्क, टेप ड्राइव तथा रिमूवेबल डिस्क ड्राइव्ज़ के रूप में आती है। सेकण्डरी मेमोरी का प्रयोग अधिकतर सिस्टम के डाटा, प्रोग्राम तथा अन्य स्थायी (permanent) डाटा को स्टोर करने के लिए किया जाता है

    जो पॉवर के जाने पर भी नष्ट (lost) नहीं होता है। कम्प्यूटर में बड़े प्रोग्राम तथा डाटा को प्रविष्ट (Fed) होते हैं, जिन्हें स्टोर करने के लिए सेकण्डरी मेमोरी की आवश्यकता होती है।

  • Projectors Kya Hai?

    प्रोजेक्टर्स का प्रयोग चित्र (image) को एक प्रोजेक्शन स्क्रीन (Projection Screen) या इसी प्रकार की सतह (surface) पर प्रदर्शित करने के लिए श्रोता (audience) को दिखाने के उद्देश्य से होता है। प्रोजेक्टर निम्नलिखित प्रकार के होते हैं|

    विडियो प्रोजेक्टर (Video Projectors)

    विडियो प्रोजेक्टर एक विडियो संकेत (video signal) लेता है तथा लेस प्रणाली (lens system) का प्रयोग कर प्रोजेक्शन स्कॉन पर उसके अनुरूप इमेज को प्रोजेक्ट करता है।

    सभी विडियो प्रोजेक्टर बहुत हो तेन रोशनी का प्रयोग इमेज को प्रोजेक्ट करने में करते हैं तथा सभी आधुनिक प्रोजेक्टर्स में मानवीय सेटिंग्स (manual settings) के माध्यम से वनों (curves), अस्पष्टताओं (blurs) तथा अन्य अनियमितताओं को सुधारने की क्षमता होती है।

    विडियो प्रोजेक्टर्स का प्रयोग व्यापक रूप से कान्फ्रेन्स रूम प्रस्तुति (conference room presentations), क्लास रूम प्रशिक्षण (classroom training) तथा होम चिबेटर अनुप्रयोगों (home theatre applications) में होता है।

    विडियो प्रोजक्टर एक कैबिनेट (cabinet) में रिअर प्रोजेक्शन स्कोन ( rear-projection screen) के साथ भी बनाया जा सकता है

    जो एक यूनीफाइड (unified) डिस्प्ले डिवाइस का निर्माण करता है तथा परत थियेटर अनुप्रयोगों के लिए लोकप्रिय है

    पोर्टेबल (portable) प्रोजेक्टर के लिए सामान्य डिस्प्ले रिजालूशन में एस.वी.जी.ए. (8002600 पिक्सेल), एक्स.जी.ए. (1024×768 पिक्सेल) तथा 720 पी. (1280×720 पिक्सल) सम्मिलित हैं।

    मूवी प्रोजेक्टर (Movie Projector)

    मूवी प्रोजेक्टर एक ऑप्टो मेकनिकल (optomechanical) डिवाइस होती है जो चलचित्रों (moving-pictures) को प्रोजेक्शन स्क्रीन पर प्रोजेक्ट कर प्रदर्शित करती है।

    अधिकतर ऑप्टिकल तथा मेकनिकल तत्व (elements) इल्यूमिनेशन् (illurnination) तथा नियंत्रको छोड़कर कैमरों में उपलब्ध है।

    स्लाइड प्रोजेक्टर (Slide Projector)

    स्लाइड प्रोजेक्टर फोटोग्राफिक स्लाइस (photographic slides) को देखने के लिए एक ऑप्टी मेकनिकल (opto- mechanical) डिवाइस होती है।

    इसमें विद्युत प्रकाश बल एक परावर्तक लेन्स, एक स्लाइड होल्डर तथा फोकस करने वाला एक लेन्स होता है।

    स्लाइड को क्षतिग्रस्त होने में बचाने के लिए उष्मा को अवशोषित करने वाले शोश (heat absorbing glass) का समतल टुकड़ा प्रकाश मार्ग से परावर्तक सेन्स तथा स्लाइड के बीच लगा होता है।

    शीशा (glass) दृश्य तरंगदेव्यं (visible wavelengths) का संचारित करता है। लेकिन इन्फ्रारेड को अवशोषित कर लेता है।

    प्रकाश पारदर्शी स्लाइड तथा लेन्स से होकर गुजरता है तथा परिणाम (resulting) आकृति को बंद करके एक लम्बवत (perpendicular) समतल स्क्रीन पर प्रोजेक्ट किया जाता है

    ताकि श्रोतागण (audience) इसके परावर्तन (reflection) को देख पायें। विकल्प के रूप में, आकृति (image) को एक पारभासी (translucent) रिअर प्रोजेक्शन स्क्रीन पर प्रोजेक्ट किया जाता है

    जो अक्सर निकट दर्शी (close viewing) के लगातार स्वचालित प्रदर्शन के लिए प्रयोग किया जाता है।

    इस प्रकार का प्रोजेक्शन ओता के द्वारा प्रकाश किरण (stream) में बाधा को अथवा प्रोजेक्टर के झटके (bumping with the projector) को भी नजरअंदाज करता है।

    स्लाइड प्रोजेक्टर्स 1950 तथा 1960 के दशकों में मनोरंजन के रूप में सामान्य रूप से प्रचलित थे।

  • Output Device Ke Vishesh Uddeshy Kya Hai?

    इस भाग में हम ऐसी आउटपुट डिवाइसेज का अध्ययन करेंगे जिनका उपयोग विशेष उद्देश्यों के लिये होता है।

    यहाँ हम कम्प्यूटर आउटपुट माइक्रोफिल्म (Computer Output Microfilm), फिल्म रिकॉर्डर (Film Recorder) और बॉबस आउटपुट डिवाइसेज (Voice Output Devices) की तकनीक का वर्णन करेंगे।

    कम्प्यूटर आउटपुट माइक्रोफिल्म (Computer Output Microfilm)

    यह कम्प्यूटर आउटपुट को माइक्रोफिल्म मीडिया (Microfilm Media) द्वारा उत्पन्न (produce) करने की तकनीक है।

    माइक्रोफिल्म मीडिया एक माइक्रोफिल्म रील या एक माइक्रोफिश्च कार्ड (Microfitche Card) होता है।

    माइक्रोफिल्म तकनीक के प्रयोग से कागज की लागत और स्टोरेज स्पेस (Storage Space) की बचत होती है।

    उदाहरणार्थ, एक 4×6 इंच के आकार के माइक्रोफिश्च कार्ड में लगभग 270 छपे हुए पृष्ठ (pages) के बराबर डाटा स्टोर कर सकता है।

    COM तकनीक उन कार्यालयों में अधिक उपयोगी होती है जहाँ डाटा और सूचना की फाइलों में संशोधन नहीं होता है

    और फाइलों की संख्या बहुत अधिक होती है। माइक्रोफिल्म या माइक्रोफिश्च तैयार करने की तकनीक ऑफ लाइन (Off line) होती है।

    पहले कम्प्यूटर आउटपुट को एक स्टोरेज मीडियम मैग्नेटिक टेप (Magnetic Tape ) पर स्टोर करता है। इसके बाद कॉम (COM) यूनिट प्रत्येक पृष्ठ का प्रतिविम्ब स्क्रीन पर दिखाती है

    और माइक्रोफिल्म के फोटोग्राफ तैयार करती है। कॉम (COM) यूनिट को कम्प्यूटर में जोड़कर ऑन लाइन (On line) भी किया जा सकता है।

    माइक्रोफिल्म व माइक्रोफिश्च को पढ़ने के लिए मिनी कम्प्यूटर में एक अलग डिवाइस होती है जो आउटपुट को अलग-अलग फ्रेम्स (frames) में दिखाती है।

    फिल्म रिकॉर्डर (Film Recorder)

    फिल्म रिकॉर्डर एक कैमरा (camera) के समान डिवाइस है जो कम्प्यूटर) से उत्पन्न उच्च रिजोलुशन के चित्रों का सीधे 35 एम. एम. की ग्लाइड, फिल्म या ट्रासपरेन्सी (Transparencies) पर स्थानान्तरित कर देता है।

    कुछ वर्षों पहले यह तकनीक वह कम्प्यूटरों में ही संभव थी लेकिन अब यह माइक्राकम्प्यूटर्स में भी उपलब्ध है।

    विभिन्न कम्पनियाँ अपने उत्पादों की जानकारी देने के लिए प्रस्तुतीकरण । (Presentation) तैयार करती हैं।

    इन प्रस्तुतियां (presentations) को बनाने के लिए फिल्म रिकॉर्डिंग तकनीक का हो प्रयोग किया जाता है।

    वॉयस-आउटपुट डिवाइसेज (Voice Output Devices)

    कभी-कभी टेलीफॉन पर नम्बर मिलाने पर जब लाइन व्यस्त होती है तो एक आवाज सुनाई देती है इस मार्ग की सभी लाइनें व्यस्त हैं।

    कृपया थोड़ी देर बाद डायल करें। यह संदेश वॉयस आउटपुट डिवाइसेज (Voice Output devices) को सहायता में हमें टेलीफोन पर सुनाई देता है।

    पूर्व संग्रहीत (pre-recorded) शब्दों को एक फाइल में से प्राप्त कर कम्प्यूटर इन संदेशों का निर्माण करता है।

    कम्प्यूटरीकृत आवाज का उपयोग हवाई अड्डे या रेलवे स्टेशन पर यात्रियों तक आवश्यक सूचना पहुंचाने के लिए भी किया जाता है।

    कम्प्यूटर में सैकड़ों शब्दों के उच्चारण कर शब्द भण्डार (Vocabulary) संग्रहीत (Store) किया जाता है

    जिन्हें कम्प्यूटर प्रोग्राम्स के निर्देशों के आधार पर संयोजित कर संदेश बनाता है और वायस आउटपुट डिवाइस (Voice Output Device) इन संदेशों का स्पीकरों (Speakers) के द्वारा आवश्यकतानुसार उच्चारण करती है।

    साउन्ड कार्ड एवं स्पीकर (Sound Card and Speaker)

    साउन्ड कार्ड एक प्रकार का विस्तारण (expansion) बोर्ड होता है जिसका प्रयोग साउन्ड को संपादित (record) करने तथा निर्गत (output) करने में होता है।

    कम्प्यूटर पर गाना सुनने, फिल्म देखने या फिर गम्म (games) खेलन के लिए माउन्ट कार्ड का आपके कम्प्यूटर में लगा होना आवश्यक है।

    आधुनिक पर्सनल कम्प्यूटर का मुख्य बोर्ड जिसे मदर बोर्ड कहते हैं, में साउन्ड कार्ड पूर्व-निर्मित (in-bult) होता है।

    साउन्ड कार्ड तथा स्पीकर कम्प्यूटर में एक दूसरे के पूरक होते हैं। साउन्ड कार्ड की सहायता से ही स्वीकर ध्वनि उत्पन्न करता है

    माइक्रोफोन की सहायता से इनपुट किये गये साउन्ड को संग्रहीत (स्टार) करता है तथा डिस्क पर उपलब्ध साउन्ड को संपादित करता है।

    प्रायः सभी साउन्ड कार्ड मोडो (MIDI) का सपोर्ट करते हैं। मीडी संगीत (music) का इलेक्ट्रॉनिक रूप (form) में व्यक्त करने के लिए एक मानक (Standard) है।

    इसके अतिरिक्त, अधिकतर साउन्ड कार्ड साउन्ड ब्लास्टर संगत (sound blaster compatible) होते हैं|

    अर्थात् ये साउन्ड ब्लास्टर कार्ड के लिए लिखे गये निर्देशों (commands) पर प्रक्रिया कर सकते हैं जो पर्सनल कम्प्यूटर साउन्ड के लिए वास्तविक मानक (standard) है।

    साउन्ड कार्ड दो बुनियादी विधियों से डिजिटल डाटा को एनालॉग ध्वनि (sound) में रूपांतरित करते हैं

    1) फ्रीक्वेन्सी मॉडयूलेशन (Frequency Modulation) सिन्थेसिस (synthesis) पूर्व निर्मित फॉर्मुला के अनुसार विभिन्न वाद्य यंत्रों (musical instruments) की नकल (mimic) करते हैं।

    2) वेवटेबल सिन्थेसिस (wavetable synthesis) वास्तविक यंत्रों को रिकॉर्डिंग पर निर्भर कर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। वेवटेबल सिन्थेसिस अधिक शुद्ध ध्वनि उत्पन्न करते हैं परन्तु यह महंगे होते हैं।

    इयरफोन (Earphones)

    इयरफोन को हेडफोन, इयर बड इत्यादि नामों से जाना जाता है। इसमें कान में लगाने हेतु ट्रांस्डयूसर (transducers) के एक जोड़े होते हैं

    तथा कानों के नजदीक में ही स्पोकर होते हैं। ट्रांस्डयूसर के जोड़े मीडिया प्लेअर से इलेक्ट्रीक संकेत (signal) प्राप्त करते हैं

    तथा स्पीकर उस संकेत को सुनाई देने वाली ध्वनि तरंगों (waves) में बदलते हैं। इसका प्रयोग अक्सर हम इन्टरनेट पर वॉयस चैटिंग, टेलिफोन कॉल करने या संगीत सुनने में करते हैं।

    प्रोजेक्टर (Projectors)

    प्रोजेक्टर्स का प्रयोग चित्र (image) को एक प्रोजेक्शन स्क्रॉन (Projection Screen) या इसी प्रकार की सतह ( surface) पर प्रदर्शित करने के लिए श्रोता (audience) को दिखाने के उद्देश्य से होता है। प्रोजेक्टर निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  • Electrostatic Technique Kye Hai?

    इलेक्ट्रोस्टेटिक तकनीक प्लॉटर के कार्य करने की एक तकनीक है। इसमें पेन (Pen) के स्थान पर एक टोनर बेड (Toner Bed) होता है।

    यह टोनर बेड (Toner Bed) फोटोकॉपी मशीन की ट्रे (Tray) के समान कार्य करता है, लेकिन यहाँ प्रकाश के स्थान पर कागज आवेशित (Charged) करने के लिए छोटे-छोटे तारों (Wires) का एक जाल (Matrix) होता है।

    जब आवेशित कागज टोनर (Toner) से गुजारा जाता है तो टोनर कागज के आवेशित (charged) बिन्दुओं पर चिपक जाता है

    जिससे चित्र (Image) उभर आता है। फ्लैट बेड इलेक्ट्रोस्टैटिक प्लॉटर (Flat bed Electrostatic Plotter) की गति तो तीव्र होती है

    लेकिन इसके आउटपुट की स्पष्टता पेन प्लॉटर (Pen Plotter ) से कम होती है। ड्रम प्लॉटर (Drum Plotter) और फ्लैटबंड प्लॉटर (Flat bed Plotter), दोनों प्रकार के प्लॉटर्स में पेन तकनीक या इलेक्ट्रोस्टैटिक (Electrostatic) तकनीक का प्रयोग हो सकता है।

  • Plotter Kya Hai?

    आइए इस खण्ड में हम यह जानें कि प्लॉटर क्या है ? यह कैसे कार्य करता है ? प्लॉटर एक आउटपुट डिवाइस है

    जो चार्ट (Charts), चित्र (Drawings) नक्शे (Maps), त्रिविमीय रेखाचित्र (Three dimensional illustrations) और अन्य प्रकार को हार्डकॉपी (Hard Copy) प्रस्तुत करने का कार्य करता है।

    प्लॉटर सामान्यतया दो प्रकार इम पेन प्लॉटर (Drum Pen Plotter) और फ्लैट बेड प्लॉटर (Fiat bed Plotter) के होते हैं ।

    ड्रम पेन प्लॉटर (Drum Pen Plotter)

    ड्रम पेन प्लॉटर एक ऐसी आउटपुट डिवाइस है, जिसमें पेन ( Pen) प्रयुक्त होते हैं, जो गतिशील होकर कागज की सतह पर आकृति तैयार करते हैं।

    कागज एक ड्रम पर चढ़ा रहता है, जो आगे खिसकता जाता है। पेन (Pen) कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित होता है। यह प्लॉटर एक यांत्रिक कलाकार (Mechanical Artist) की तरह कार्य करता नजर आता है।

    जैसे ही इसमें रंगों का चुनाव होता है तो यह मनमोहक लगता है। कई पेन प्लॉटर्स में फाइबर टिप्ड पेन (Fiber tipped pen) होते हैं।

    यदि उच्च क्वालिटी की आवश्यकता हो तो तकनीकी ड्राफ्टिंग पेन (Technical Drafting Pen) प्रयोग किया जाता है।

    यह पन एक इंच के हजारवें हिस्से के बराबर लाइन (रेखा) खींचने की क्षमता रखता है। कई रंगीन प्लॉटर्स में चार या चार से अधिक पेन (Pen) होते हैं।

    प्लॉटर एक सम्पूर्ण चित्र (Drawing) को कुछ इंच प्रति सेकण्ड की दर से प्लाट करता है।

    फ्लैट बेड प्लॉटर (Flat bed Plotter)

    फ्लैट बेड प्लॉटर में कागज को स्थिर अवस्था में एक बेड (Bed) या ट्रे (Tray) में रखा जाता है। एक भुजा (Arm) पर पेन ( Pen) लगा होता है

    जो मोटर से कागज पर ऊपर-नीचे (Y-अक्ष) और दायें-बायें (X- अक्ष) गतिशील होता है। कम्प्यूटर पेन को X-Y अक्ष की दिशाओं में नियंत्रित करता है और कागज पर आकृति चित्रित करता है।

  • Drum Printer, Chain Printer Or Band Printer Kya Hai?

    ड्रम प्रिंटर (Drum Printer)

    इस प्रिंटर में तेज घूमने वाला एक इम (Drum बेलनाकार आकृति) होता है जिसको सतह पर अक्षर (कैरेक्टर) उभरे रहते हैं। एक बैण्ड (Band) पर सभी का एक समूह (Set) होता है, ऐसे अनेक बैण्ड सम्पूर्ण इस पर होते हैं जिससे कागज पर लाइन को प्रत्येक स्थिति में कैरेक्टर छापे जा सकते हैं। इस तेजी से घूमता है और एक घूर्णन (Rotation) में एक लाइन पता है। एक तेज गति का हैमर (Hammer) प्रत्येक बैण्ड के उचित कैरेक्टर पर कागज के विरुद्ध टकराता है। और एक पूर्णन पूरा होने पर एक लाइन छप जाती है।

    चेन प्रिंटर (Chain Printer)

    चेन प्रिंटर में तेज घूमने वाली एक चेन (Chain) होती है जिस प्रिंट चेन (Print-Chain) कहते हैं। चन में कैरेक्टर होते हैं। प्रत्येक कड़ी (Link) में एक कैरेक्टर का फॉन्ट (Font) होता है। प्रत्येक प्रिंट पोजीशन (Print Position) पर हैमर्स (Hammers) लगे रहते हैं। प्रिंटर, कम्प्यूटर से लाइन के सभी छपने वाले कॅरेक्टर प्राप्त कर लेता है। हैमर (Hammer) कागज और उचित कैरेक्टर से टकराता है और एक बार में एक लाइन छप जाता है।

    बैण्ड प्रिंटर (Band Printer)

    बैण्ड प्रिंटर, चेन प्रिंटर (Chatn Printer) के समान कार्य करता है। इसमें चेन (Chain) के स्थान पर स्टॉल का एक प्रिंट बैण्ड (Print Band) होता है। हैमर (Hammer) के बल से छपने वाला उचित कॅरेक्टर कागज पर छप जाता है।

  • Daisy Wheel Printer Or Line Printer Kya Hai?

    डेजी व्हील प्रिंटर (Daisy wheel Printer)

    डेजी व्हील सॉलिड फॉन्ट (Solid Font) वाला इंपैक्ट प्रिंटर है। इसका नाम डेजी व्होल (Daisy Wheel) इसलिये दिया गया है

    क्योंकि इसके प्रिंट हेड को आकृति एक पुष्प (flower) डेजी (Daisy ) से मिलती है। डेजो व्होल प्रिंटर धीमी गति का प्रिंटर है लेकिन इसके आउटपुट को स्पष्टता उच्च होती है।

    इसलिए इसका उपयोग पत्र (letter) आदि छापने में होता है और यह लेटर क्वालिटी प्रिंटर (Letter Quality Printer) कहलाता है।

    इसके प्रिंट हैड में एक चक्र या व्होल (Wheel) होता है जिसको प्रत्येक तान (Spoke) में एक करेक्टर का सॉलिड फॉन्ट उभरा रहता है।

    व्हील, कागज की क्षैतिज दिशा में गति करता है और छपने योग्य कैरेक्टर का स्पोक (Spoke), व्हील के घूमने से प्रिंट पोजीशन (Position) पर आता है।

    एक छोटा हमर (Hammer) स्पांक रिवन (Ribbon) और कागज पर टकराता है जिससे अक्षर कागज पर छप जाता है। इस प्रकार के प्रिन्टर अब बहुत कम उपयोग में हैं।

    लाइन प्रिंटर (Line Printer)

    बड़े कम्प्यूटरों के लिये उच्च गति के प्रिंटर्स की आवश्यकता होती है। उच्च गति के प्रिंटर एक बार में एक कैरेक्टर छापने की बजाय एक लाइन या पृष्ठ को एक बार में छाप सकते हैं।

    उच्च गति के प्रिंटर्स की दो श्रेणियाँ होती हैं। लाइन प्रिंटर (Line Printer) और पेज प्रिंटर (Page Printer)। लाइन प्रिंटर में आउटपुट की सम्पूर्ण लाइन एक बार में छपती है।

    अधिकतर लाइन प्रिंटस में इपेक्ट प्रिंटिंग (Impact Printing) तकनीक का प्रयोग होता है। इनकी छापने की गति 300 से 3000 लाइन प्रति मिनट (Line per minuite – Lpm) होती है।

    ये मिनी कम्प्यूटर और मेनफ्रेम कम्प्यूटरों में बड़े कार्यों हेतु प्रयोग किये जाते हैं। इमप्रिंटर (Drum Printer) चेन प्रिंटर (Chain Printer) और बैण्ड प्रिंटर (Band Printer) लाइन प्रिंटर के उदाहरण हैं।