AI मैकैनिज्म (AI Mechanisms)
AI सिस्टम आटोमेटिड इन्टरफीयरेंस इंजिनों के फलस्वरूप बने हैं। यह कुछ स्थितियों (ii) तथा कारकों (then) पर आधारित हैं। परिणामों के आधार पर AI एप्लिकेशनों को दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है :
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क्लासिफायर (“यदि चमक है तो हीरा है”) तथा नियंत्रक (“यदि चमक है तो उठा लो “)। नियंत्रक कार्यों में हस्तक्षेप करने से पहले, कंडीशन देते हैं इसलिए AI सिस्टम में बंटबारा इसका केन्द्र है।
क्लासिफायर पैटर्न की पहचान कंडीशन को मैच करने के लिए करते हैं। अधिकतर स्थितियों में पूरी तरह मैच नहीं बल्कि काफी मिलता-जुलता होता है। इस सोच को तकनीक दो रूपों में बाँटती है: कनवेंशनल AI तथा कम्प्यूटेशनल बुद्धिमत्ता (CT)
क्लासीफायर्स (Classifiers)
क्लासीफायरों का प्रयोग AI में उदाहरणों को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए किया जाता है। इन्हें पैटर्न या ऑब्जरवेशन कहा जाता है।
हर पैटर्न किसी पहले से ही डिफाइन्ड क्लास का भाग होता है। एक क्लास को किसी निर्णय के रूप में देखा जा सकता है, जो कि अभी लेना है। सारी ऑब्जरवेशनों को इकट्ठा करके क्लास लेबल दिए जाते हैं तो एक डाटा सेट बनता है।
जब कोई नई ऑब्जरवेशन बनती है, उसका वर्गीकरण पिछले अनुभव पर आधारित होता है। एक क्लासीफायर सांख्यिकी व मशीनों द्वारा सीखता है।
बहुत सारे क्लासीफायर अपनी शक्ति व कमजोरी के साथ उपलब्ध हैं। इनके कार्य डाटा की विशेषताओं पर निर्भर करते हैं। अपने आप में ही पूरक कोई एक क्लासीफायर नहीं है।
इसे ‘नो फ्री लंच’ थ्योरम भी कहते हैं। क्लासीफायर के कार्यों को मापने व तुलना करने हेतु तथा डाटा की विशेषताएँ ढूँढ़ने के लिए कई एंपीरिकल टेस्ट किए जाते हैं जिससे क्लासीफायर की परफॉरमेंस पता चलती है।
एक अच्छा क्लासीफायर ढूँढ़ना एक विज्ञान नहीं बल्कि कला है। अत्यधिक प्रयुक्त होने वाले क्लासीफायर हैं : न्यूरल नेटवर्क, सपोर्ट वेक्टर मशीन, के-नियरेस्ट नेबरऐलगोरिद्म, गॉसिअन मिक्सचर मॉडल, नेव बेज क्लासीफायर तथा डिसीजन ट्री।
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