VR Rendering Process kya hai?

VR रैन्डरिंग प्रोसेस (Rendering Process)

एक VR प्रोग्राम के रैन्डरिंग प्रोसेस वे हैं जो अनुभूतियों (sensations) को बनाते हैं जो आउटपुट हैं। नेटवर्क VR प्रोग्राम अन्य नेटवर्क प्रोसेस में डाटा आउटपुट करेगा।

विजुअल, आडीटरी, हैपटिक (touch/force) तथा अन्य सेन्सरी यूजर के लिये सिस्टम के लिये पृथक् रैन्डरिंग प्रोसेस होंगी।

प्रत्येक रैन्डरर वर्ल्ड स्टेट का वर्णन सिमुलेशन प्रोसेस से लेगा अथवा प्रत्येक समय-चरण के लिये वर्ल्ड डाटाबेस से सीधा प्राप्त करेगा।

•विजुअल रैन्डरर :यह अत्यन्त सामान्य प्रोसेस है और कम्प्यूटर ग्राफिक तथा एनीमेशन की दुनिया में इसका लम्बा इतिहास है। पाठक को उत्साहित किया जाता है कि इस टैक्नालाजी के विभिन्न पहलुओं से वह परिचित हो जाये।

VR एप्लिकेशन्स के लिये ग्राफिक रैन्डरर का मुख्य ध्यान फ्रेम जैनरेशन रेट (frame generation rate) पर होता है।

यह आवश्यक है कि प्रत्येक सैकण्ड के 1/20 वे भाग में या इससे अधिक तेजी से एक नया फ्रेम बनना चाहिये। क्योंकि मानव के दिमाग में इतनी तेजी से चलने वाले फ्रेम आपस में मिलकर एक पूरी तस्वीर बनायेंगे और एनीमेशन देखने में सुन्दर लगेगा।

फिल्मों के लिये 24 फ्रेम प्रति सेकंड (fps) स्टैण्डर्ड रेट है, 25 fps रेट PAL TV का है; 30 fps NISC TV का है और 60 fps show scam फिल्म का रेट है। ये तकनीक बहुत वास्तविक इमेज बना सकती हैं किन्तु एक फ्रेम को बनाने में बहुधा घण्टों लग जाते हैं।

VR के लिये विजुअल रैन्डरर अन्य विधियाँ इस्तेमाल करते हैं; जैसे ‘painter’s algorithm’, Z-buffer या अन्य Scanline ओरियेन्टैड एल्गोरिद्म ( algorithm ) | Painter’s algorithm, अनेक लो एण्ड (low end) वी आर सिस्टमों का पसंदीदा है

क्योंकि यह तुलना में तेज है, आसानी से इम्प्लीमेंट किया जा सकता है और मेमोरी संसाधन पर भारी नहीं है। तथापि इसमें अनेक विजिबिलिटी समस्याएँ हैं।

विजुअल रैन्डरिंग प्रोसेस को बहुधा रैन्डरिंग पाइप लाइन भी कहते हैं। साधारणतः रैन्डरिंग पाइप लाइन दुनिया, वस्तुओं लाइटिंग (lighting) तथा वर्ल्ड स्पेस में कैमरे (eye) की स्थिति के वर्णन के साथ शुरू होती है।

पहला कदम होगा कि उन सभी वस्तुओं को हटा दिया जाये जो कैमरे में नहीं दिखती हैं। यह object bounding box या कैमरे के viewing pyramid के विरुद्ध sphere की वस्तुओं को जल्दी से क्लिपिंग कर किया जाता है।

तब बाकी बचे ऑब्जेक्ट (वस्तुएँ) अपनी geometry को eye cordinate system (eye point at origin) में transform कर लेते हैं। तत्पश्चात् छुपे हुए surface algorithm और actual pixel rendering की जाती हैं।

Pixel rendering को ‘lighting’ या ‘shading’ algorithm भी कहते हैं। रियलिज्म (realism) और उपलब्ध गति के आकलन के आधार पर अनेक विभिन्न विधियाँ संभव हैं। सरलतम विधि को ‘flat shading’ कहते हैं जिसमें समस्त क्षेत्र को एक ही रंग से भर दिया जाता है।

अगला चरण एक ही धरातल पर रंगों में कुछ विविधता लाना है। इसके बाहर सफेंस बाउन्डरि के पार स्मूद शेडिंग, हाईलाइट्स को जोडने, रिफ्लेक्शन इत्यादि की आवश्यकता होती है।

विजुअल रैन्डररिंग के लिये एक प्रभावशाली शार्ट-कट “टैक्सचर” (texture) अथवा “इमेज” (image) का प्रयोग होता है। ये वो तस्वीरें होती हैं जो वर्चुअल वर्ड में आब्जेक्ट्स पर मेप्ड (mapped) होती हैं।

आब्जेक्ट्स के लिये लाइटिंग और शेडिंग की गणना के बजाय रेन्डरर को यह बताना चाहिये कि ऑब्जेक्ट के प्रत्येक विजिबल प्वाइंट पर टैक्सचर का कौन सा भाग प्रदर्शित होता है।

परिणामिक इमेज औरों से ज्यादा विस्तारक दिखायी देती है। कुछ VR सिस्टमों में विशेष ‘bill board’ objects होते हैं जो यूजर के सामने face करते हैं। बिलबोर्ड में विभिन्न images

की एक सीरीज की mapping कर यूजर वस्तु के चारों ओर घूमती क्रिया को दर्शा सकता है

ऑडिटरी रैन्डरिंग (Auditory Rendering) : एक वी आर सिस्टम आडियो कम्पोनेन्ट (audio component) के मिल जाने से अधिक शक्तिशाली हो जाता है। यह मोनो, स्टीरियो या 3D आडियो प्रोड्यूस कर सकता है,

जबकि 3D आडियो प्रोड्यूस करना काफी कठिन है। 3D आडियो में होने वाले अनुसंधान दर्शाते हैं कि हमारे सिर और कान के आकार के अनेक पहलू हैं जो 3D sounds को पहचानने में प्रभावकारी साबित हुए हैं।

यह संभव है कि एक sound को एक कदाचित जटिल mathematical function (जिसको Head Related Transfer Function या HRTF कहते हैं) apply करने से यह प्रभाव उत्पन्न होता है। HRTF एक बहुत निजी फंक्शन है जो व्यक्ति के कान के आकार इत्यादि पर निर्भर करता है।

तथापि सामान्य HRTF को बनाने में महत्त्वपूर्ण सफलता मिली है जो अधिकतर लोगों के लिये काम करता है तथा अधिक आडियो प्लेसमैन्ट के लिये भी। फिर भी अनेक समस्याएँ रह जाती हैं, जैसे ‘cone of confusion’ जिसमें सर के पीछे की ध्वनि को perceive किया जाता है कि वह सिर के सामने है।

ध्वनि को अन्य सूचना देने का माध्यम सुझाया जाता है, जैसे surface roughness रेत पर अपना वर्चुअल हाथ फिराने से जो ध्वनि होगी वह पत्थरों पर हाथ फिराने से भिन्न होगी।

• हैप्टिक रेन्डरिंग (Haptic Rendering) : Haptics touch और force feedback सूचना को पैदा करना होता है। यह क्षेत्र नया विज्ञान है और अभी इस संबंध में बहुत कुछ जानना है।

True touch sense (जैसे द्रव्य, लोम (fur) इत्यादि) के rendering पर बहुत कम अध्ययन हुए हैं। आज तक लगभग सभी सिस्टम्स का लक्ष्य force feedback तथा kinesthetic (काईनेसथेटिक) sensces था। ये systems touch sense के बारे में शरीर को अच्छे सूत्र उपलब्ध करा सकते हैं।

किन्तु उससे अलग समझे जाते हैं। अनेक haptic systems अभी तक exo-skeletons रह चुके हैं जिनका sensing position कि लिए इस्तेमाल हो सकता है तथा movement को resistence उपलब्ध कराने के लिये भी अथवा active force एप्लीकेशन के हेतु भी उपयोग हो सकता है।

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