थर्मल प्रिन्टर्स दो तरह की तकनीक डायरेक्ट थर्मल और थर्मल ट्रांसफर प्रिन्टिंग का इस्तेमाल करते हैं।
पारम्परिक धर्मल प्रिन्टर डायरेक्ट थर्मल विधि का इस्तेमाल करते हैं। इस विधि में बिजली के द्वारा गर्म किये गये पिन को ताप संवेदी (heat sensitive) कागज या थर्मल कागज पर लगाया जाता है।
गर्म होने पर थर्मल कागज की कोटिंग (coating) काली हो जाती है जिससे कैरेक्टर व आकृति बनता है।
डायरेक्ट थर्मल प्रिन्टर में किसी इंक, टोनर या रिबन का इस्तेमाल नहीं होता है। ये प्रिन्टर टिकाऊ होते हैं।
इन्हें इस्तेमाल करना आसान होता है और प्रिंटिंग करने का खर्च भी दूसरे प्रिन्टर के मुकाबले कम होता है।
किन्तु धर्मल पेपर गर्मी, रोशनी तथा पानी से ज्यादा प्रभावित होता है। इसलिए टेक्स्ट और इमेज समय के साथ मिट जाता है या धुंधला हो जाता है।
थर्मल ट्रांस्फर प्रिंटिंग में थर्मल प्रिंट हेड एक ताप संवेदी (heat sensitive) रिबन को ताप देकर गर्म करता जिससे कागज पर वह स्याही पिघलाता है तथा टेक्स्ट एवं आकृति तैयार होती है।
इसके प्रिन्ट आउट अत्यंत टिकाऊ होते हैं तथा लम्बे समय तक के लिए इन्हें संग्रहित (store) करके रखा जा सकता है।
कैश रजिस्टर्स, ए.टी.एम. तथा प्वाइंट ऑफ सेल्स टर्मिनल में धर्मल प्रिन्टर का अक्सर इस्तेमाल किया जाता है।
इक्कीसवीं सदी के पहले कुछ पुरानी फैक्स मशीनों में भी डायरेक्ट थर्मल प्रिन्टिंग का इस्तेमाल किया जाता था।
इन पुराने प्रिन्टर की जगह अब लेजर और इंकजेट प्रिन्टर्स ने ले ली है। थर्मल प्रिन्टिंग को तकनीक बार कोड प्रिन्टिंग के लिए अभी भी सबसे अच्छी मानी जाती है
क्योंकि यह बार की ठीक-ठीक चौड़ाई के साथ सटीक तथा अच्छे क्वालिटी को इमेज बनाता है।
कुछ पोर्टेबल प्रिन्टर तथा ज्यादातर लेवल प्रिन्टर अभी भी थर्मल प्रिन्टिंग विधि का इस्तेमाल करते हैं।
थर्मल प्रिन्टर थर्मल इंकजेट प्रिन्टर की तरह नहीं होता है। थर्मल इंकजेट प्रिंटर में इंकजेट प्रिंट प्रौद्योगिकी (technology) का प्रयोग होता है।
यह लिक्विड़ स्याही को गर्म कर वाप्पीय बुलबुला बनाता है जिससे नोजल से कागज पर स्याही की बूंदों का छिड़काव होता है।
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