Author: Twinkle

  • Floppy Disk Drives Kya Hai?

    हार्ड डिस्क ड्राइव (hard disk driver) की तरह ही कुछ वर्षों पहले तक फ्लॉपी डिस्क को पौसी (PC) के ‘डाटा सेन्टर (data center) की तरह उल्लेख किया जाता था।

    दरअसल, पूर्व के पीसो (PC) में हार्ड डिस्क नहीं होती थी। उनका तमाम डाटा स्टोरेज फ्लॉपियों में हुआ करता था।

    एक वक्त था जब फ्लॉपी डिस्क दाइ उच्च तकनीकी हुआ करती थी और कीमत भी बहुत हुआ करती थी।

    हार्ड डिस्क (hard disk) के आविष्कार ने फ्लॉपी डिस्क का स्तर गिराकर इसे डाटा स्थानांतरण (data transfer) तथा सॉफ्टवेयर स्थापन (software installation) की द्वितीयक भूमिका में ला दिया।

    सौडी रोम (CD-ROM) तथा इंटरनेट के आविष्कार के साथ ही सॉफ्टवेयर के आकार में बढ़ोतरी ने द्वितीयक भूमिका के रूप में भी फ्लॉपी डिस्क को खतरे में डाल दिया है।

    फ़्लॉपी डिस्क विश्वव्यापी होने के कारण यह अभी भी अपने मूल रूप में दस से अधिक वर्षों से अपरिवर्तित है।

    3.5 इंच के 1.44 एम. बी. का फ्लॉपी पिछले दस वर्षों में बने प्रत्येक पीसी (PC) पर वास्तविक रूप से मौजूद है जिस कारण यह अभी भी एक उपयोगी उपकरण की तरह है।

    फ्लॉपी डिस्क की भूमिका (Role of a floppy disk )

    आइए इस खण्ड में हम यह जानते हैं कि फ्लॉपी डिस्क की कम्प्यूटर सिस्टम में क्या भूमिका है ? फ्लॉपी डिस्क को भूमिका निम्न क्षेत्रों में है-

    1)डाटा स्थानांतरण (Data Transfer) – फ्लॉपी डिस्क अभी भी एक पीसी (PC) से दूसरे पोसी पर फाइलों के स्थानांतरण का एक विश्वव्यापी साधन है।

    कम्प्रेशन यूटीलिटोज (Compression utilities) के इस्तेमाल से, यहाँ तक की बड़े आकार के फाइलों को भी फ्लॉपी डिस्क में समाया जा सकता है

    तथा कोई व्यक्ति किसी को भी डिस्क भेज सकता है और पूरी तरह आश्वस्त हो सकता है कि दूसरे छोर का कंप्यूटर भी इसे पढ़ लगा।

    पीसी पर 35” फ्लॉपी एक मानक (standard) है। दरअसल, कई एपल और यहाँ तक कि यूनिक्स (umix) मशीन भी इन डिस्क को पढ़ सकते हैं।

    2) छोटी फाइल स्टोरेज तथा बैकअप (Small file storage and backup) – कम मात्रा के डाटा का बैकअप लेने तथा स्टार करने हेतु फ्लॉपी डिस्क का इस्तेमाल अभी भी आपकी सोच से कहीं अधिक होता है

    3) सॉफ्टवेयर इन्स्टॉल करना तथा ड्राइवर को अपडेट करना (Software installation and Driver updates) हार्डवेयर के ढेर सारे ड्राइवर सॉफ्टवेयर के वितरण हेतु अभी भी पलापिन का इस्तमाल करते हैं और कुछ सॉफ्टवयर के लिए फ्लॉप का इस्तेमाल अब भी होता है।

    यद्यपि जैसे जैसे सॉफ्टवेयर बड़े होते जा रहे हैं यह कम सामान्य होता जा रहा है तथा सीडी-रोम ड्राइव्ज ज्यादा विश्वव्यापी बनती जा रही है।

    आधुनिक पी.सी. (PC) में फ्लॉपी ड्राइव्ज़ की भूमिका के बावजूद उनके महत्व में आयी कमी को नकारा नहीं जा सकता।

    फ्लॉपी की परफॉरमेंस पर अब बहुत कम ध्यान दिया जाता है। यहाँ तक की कम्प्यूटर खरीदते समय बाकी के भागों के मुकाबले में आंशिक रूप से भी इस पर चर्चा नहीं की जाती है|

    संक्षेप में, आज फ्लॉपी ड्राइव एक उत्पादित वस्तु (commodity item) है। इसी कारण इस अध्याय में मैंने फ्लॉपी ड्राइव पर चर्चा तो की है

    लेकिन ज्यादा गहराई तक नहीं गये हैं। इसके अलाव, चूंकि फ्लॉपी डिस्क की बनावट तथा लॉजिकल कार्य के कई पहलू हार्ड डिस्को के पहलुओं के समान है |

    इसलिए मैंने हार्ड डिस्क का विस्तार से वर्णन किया है ताकि उसी से फ्लॉपी के बारे में भी बातें हो जाये।

  • Hard Disk Formatting Kya Hai?

    अधिकतर पी0 सी0 यूजर इस परिकल्पना से परिचित हैं कि हार्ड डिस्क के साथ ही सभी स्टोरेज मीडिया को उपयोग में लाने से पहले फॉरमेंट किया जाता है।

    आमतौर पर फॉरमेटिंग के अर्थ तथा इसके कार्य के सम्बन्ध में कुछ भ्रम होता है। यह तथ्य और पेंचीदा (complicated) इस बात से हो जाता है

    कि आधुनिक हार्ड डिस्क पुराने हार्ड डिस्क की भाँति फॉरमेंट नहीं की जाती हैं तथा इस तथ्य से भी भ्रम को स्थिति मजबूत हो जाती है

    कि फॉरमेटिंग के लिए प्रयुक्त होने वाली यूटिलिटिज (utilities) हार्ड डिस्क और फ्लॉपी डिस्क दोनों के लिए अलग- अलग तरह से व्यवहार करती हैं। इस खण्ड में हम फॉरमेटिंग से संबंधित चर्चा करेंगे।

    फॉरमेटिंग स्टेप्स (Formatting Steps )

    कई पौ. सी. यूजर यह नहीं समझते कि हार्ड डिस्क को फॉरमेटिंग एक स्टेप में पूरी नहीं होती है। वस्तुतः इसमें तीन स्टेप्स प्रयुक्त होते हैं।

    निम्नस्तरीय फॉरमेटिंग (Low Level Formatting)

    यह डिस्क की मुख्य फॉरमेटिंग प्रक्रिया है। यह हार्ड डिस्क पर फिजीकल स्ट्रक्चर (ट्रैक्स, सेक्टर्स, कंट्रोल सूचना) का निर्माण करती है।

    सामान्यतः यह स्टेप हार्ड डिस्क प्लेटर्स को बिल्कुल साफ एवं सूचना रहित करने की प्रक्रिया से शुरू होता है।

    पार्टिनिंग (Partitioning)

    यह प्रक्रिया डिस्क को लॉजीकल टुकड़ों (fragments) में विभक्त करती है जो अलग-अलग हार्ड डिस्क वॉल्यूम (volume) बनते हैं

    जिसे हम ड्राइव लैटर (D.E.F इत्यादि) के नाम से जानते हैं। यह एक ऑपरेटिंग सिस्टम फंक्शन होता है।

    उच्च स्तरीय फॉरमेटिंग (High Level Formatting)

    यह अंतिम स्टेप भी ऑपरेटिंग सिस्टम स्तर का ही निर्देश (instruction) है। यह पार्टिशन्स पर लॉजिकल स्ट्रक्चर (Logical Structure) को परिभाषित करता है

    तथा आवश्यक ऑपरेटिंग सिस्टम फाइलों को डिस्क के शुरू में स्थित करता है । जैसा कि आप देख सकते हैं

    तीन पदों में से दो फॉरमेटिंग हैं तथा शब्द का दोहरा प्रयोग ही भ्रम पैदा करता है जब भी फॉरमेटिंग शब्द का प्रयोग होता है।

    इसमें एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जब डॉस की Format कमाण्ड का प्रयोग हार्ड डिस्क पर करते हैं

    तो यह फ्लॉपी डिस्क से बिल्कुल अलग होती है। फ्लॉपी डिस्क की बिल्कुल सामान्य तथा स्टैण्डर्ड ज्यायमिति (geometry) होती है

    तथा इसे बाँटा नहीं जा सकता है। इसलिए FORMAT कमाण्ड फ्लॉपी डिस्क के स्वतः निम्न स्तरीय तथा उच्च स्तरीय फॉर्मेट के लिए प्रोग्राम की हुई होती है।

    हार्ड डिस्क के लिए FORMAT केवल उच्च स्तरीय फॉरमेट करती है। निम्नस्तरीय फॉर्मेटिंग नयो हार्ड डिस्क में कम्पनी से होकर आती है।

    निम्न स्तरीय फॉरमेटिंग (Low Level Formatting)

    निम्न स्तरीय फॉरमेटिंग हार्ड डिस्क पर ट्रैक्स तथा सेक्टरस के स्थान की रूपरेखा बनाने तथा कंट्रोल स्ट्रक्चर जो ट्रैक्स तथा सेक्टर्स कहाँ है को परिभाषित करता है के लिखने की प्रक्रिया है।

    यह अक्सर वास्तविक फॉरमेटिंग परिचालन कहा जाता है क्योंकि यही फिजीकल फॉरमेट को निर्मित करता है जो यह परिभाषित करता है

    कि डिस्क में डाटा कहाँ स्टार है। पहली चार जब निम्नस्तरीय फॉरमेट हार्ड डिस्क पर निष्पादित किया जाता है

    तब डिस्क प्लेटर खाली होना शुरू होता है। यदि उस डिस्क पर जिसमें पहले से डाटा उपलब्ध है निम्नस्तरीय फॉरमेटिंग किया जाये तो उस पर का डाटा मिट जाता है

    उच्च स्तरीय फॉरमेटिंग (High Level Formatting)

    निम्न स्तरीय फॉरमेटिंग के पूरा हो जाने के बाद हमें बिल्कुल ट्रैक्स तथा सेक्टरस में व्यवस्थित डिस्क प्राप्त होती हैं।

    उच्च स्तरीय फॉरमेटिंग डिस्क पर फाइल सिस्टम स्ट्रक्चर लिखे जाने की प्रक्रिया होता है जो डाटा व प्रोग्राम को डिस्क पर संगृहीत होने देता है।

    यदि आप इस काम के लिए डॉस के FORMAT कमाण्ड का प्रयोग कर रहे हो तो यह डिस्क मास्टर बूट रिकॉर्ड (Master Boot Record)

    तथा फाइल एलोकेशन टेबल्स (File Allocation Tables) जैसी स्ट्रक्चर लिखने का कार्य करता है।

    उच्च स्तरीय फॉरमेटिंग तभी पूर्ण होती है जब हार्ड डिस्क का पार्टिशन हुआ हो यहाँ तक कि एक ही पार्टिशन का प्रयोग क्यों न हो उच्च स्तरीय फॉरमेटिंग तथा निम्न स्तरीय फॉरमेटिंग के बीच का अंतर जानना आवश्यक है।

    मिटाने के लिए निम्न स्तरीय फॉरमेंट का करना आवश्यक नहीं है। अधिकतर उद्देश्यों के लिए उच्च स्तरीय फॉरमेट ही काफी है।

    अलग-अलग ऑपरेटिंग सिस्टम अलग-अलग उच्च स्तरीय फॉरमेट प्रोग्राम का प्रयोग करते हैं क्योंकि वे अलग-अलग फाइल सिस्टम का प्रयोग करते हैं ।

    किन्तु निम्न स्तरीय फॉरमेट वास्तविक स्थान है जहाँ ट्रेक्स तथा सेक्टरस का रिकार्ड किया जाता है, सभी एक हो जैसा होता है ।

  • Sector Format & Structure Kya Hai?

    सेक्टर फॉरमेट और स्ट्रक्चर (Sector Format and Structure) किसी हार्डडिस्क पर डाटा स्टोरेज की आधारभूत इकाई सेक्टर ही होता है।

    सेक्टर नाम एक गणितीय शब्द से आता है, जो किसी वृत्त के आकार के पाई रूपों (pie-shaped) कोणीय संक्शन को संदर्भित करता है

    जो दो और से किन्याओं और एक और से वृत्त की परिमिति (parameter) से घिरा होता है । एक हार्डडिस्क पर जिसमें एक ही केन्द्र वाल वृत्ताकार ट्रैक्स होते हैं

    यह प्लैटर को सतह के प्रत्येक ट्रैक के एक सेक्टर को जिसे यह काटता (intersect) है परिभाषित (define) करेग ।

    इसे हार्डडिस्क जगत में सेक्टर कहा जाता है जो ट्रैक की लंबाई के सापेक्ष एक छोटा हिस्सा (segment) होता है।

    कभी सारे हार्ड डिस्क के प्रति सेक्टर में सेक्टरों की संख्या समान होती थी और वस्तुतः प्रत्येक ट्रैक में सेक्टरों का संख्या महिला (models) के बीच काफी हद तक स्टैण्डर्ड होती थी।

    आज को प्रगति ने, जैसा कि यहाँ चर्चा की गई है, प्रति ट्रैक सेक्टरों की संख्या (sector per track) को अलग-अलग हो सकने की क्षमता प्रदान की है।

    हार्डडिस्क का प्रत्येक सेक्टर 512 बाइट यूजर डाटा स्टोर कर सकता है। कुछ ऐसी भी डिस्क होती हैं, जहाँ यह संख्या संशोधि त की जा सकती है|

    किन्तु 512 एक मानक (standard) है जो स्वत: ही सारी हार्डडिस्क में पायी ही जाती है। प्रत्येक सेक्टर में 512 बाइट से कहाँ अधिक सूचना समाहित रहती है ।

    अतिरिक्त बाइट (bytes) की आवश्यकता कन्ट्रोल स्ट्रक्चर तथा ड्राइव को प्रबंधित करने, डाटा को लोकेट करने तथा अन्य सपोर्ट फक्शनज का करने जैसी अन्य आवश्यक सूचना के लिए होती है।

    किसी सेक्टर की स्ट्रक्चर किस प्रकार की है, इसका ठीक ठीक ब्योरा ड्राइव मॉडल तथा निर्माता पर निर्भर करता है। किसी एक सेक्टर के कन्टेंट्स में निम्न सामान्य अवयव (elements) शामिल रहते हैं।

    आई. डी. सूचना (ID) Information)

    परंपरागत रूप से प्रत्येक सेक्टर में रिक्त स्थान को सेक्टर की संख्या और लोकेशन (location) की पहचान के लिए छोड़ा जाता है।

    इसका प्रयोग डिस्क पर सेक्टर का पता लगाने में होता है। इस क्षेत्र में सेक्टर के स्टेटस के बारे में सूचना भी शामिल होता है।

    उदाहरण के लिए एक बिट का प्रयोग आमतौर पर इस बात का संकेत देने के लिए होता है कि कहीं सेक्टर को डिफेक्टिव या रिमेन्ड (remapped) तो नहीं पाया गया।

    सिंक्रोनाइजेशन फील्ड (Synchronization Fields)

    इसे ड्राइव कन्ट्रोलर द्वारा रोड प्रोसेस को गाइड करने के लिए, आन्तरिक रूप से प्रयुक्त किया जाता है।

    डाटा (Data)

    इसस तात्पय सेक्टर में वास्तविक डाटा से है।

    ई. सी. सी. (ECC)

    ई. सी. सी. का पूर्ण रूप ऐरर करेक्टिंग कोड (error correcting code) है। इसका प्रयोग डाटा की इंटिग्रिटी को सुनिश्चित करने के लिए होता है।

    गैप्स (Gaps)

    आवश्यक होने पर एक या अधिक खाली स्थान (blank space) को जोड़ा जाता है जो सेक्टर के अन्य क्षेत्र (fields) को अलग करने के लिये तथा कन्ट्रोलर को इस बात के लिए समय उपलब्ध कराने के लिए कि वह और अधिक बिट्स को पढ़ने से पूर्व पढ़े हुए बिट्स को प्रोसेस कर सके

    प्रयुक्त होता है सेक्टरों के अतिरिक्त जिसमें प्रत्येक में उपरोक्त अवयव (elements) शामिल हैं

    प्रत्येक ट्रैक के खाली स्थान का प्रयोग इम्बेडेड सर्वो ड्राइव पर (जो ऐसा डिजाइन है जिसे सारी आधुनिक इकाइयों (modern units) के द्वारा प्रयोग में लाया जाता है

    सर्वो सूचना (servo information) के लिए किया जाता है प्रत्येक सेक्टर के द्वारा परिचालन लागत (ovderhead) के लिए लिया गया स्पेस महत्वपूर्ण होता है

    क्योंकि मैनेजमेन्ट के लिए जितनी अधिक बिट्स (bits) का प्रयोग होगा डाटा के लिए कुल मिलाकर प्रयुक्त किए जाने वाली बिट्स उतनी ही कम होंगी।

    इसलिये, हार्ड डिस्क निर्माता डिस्क पर आवश्यक रूप से स्टोर किये जाने वाले नन्- यूजर डाटा सूचना की मात्रा को घटाने का भरपूर प्रयास करते हैं।

    फॉरमेट प्रभावशीलता (format efficiency) प्रत्येक डिस्क पर बिट्स की उस प्रतिशतता को निरूपित करती है

    जो अन्य चीजों के बजाय डाटा के लिए प्रयुक्त होती हैं। किसी ड्राइव की फॉरमेट प्रभावशीलता जितनी अधिक होगी, उतनी ही अच्छी होगी।

    आई. बी. एम. के द्वारा बनाया गया 1990 के दशक के मध्य में आई. डी. रहित फॉरमेट (No ID Format) सेक्टर फॉरमेट के महत्वपूर्ण सुधारों में एक है।

    इस नवपरिवर्तन के पीछे की योजना इसके नाम से उजागर होती है कि सेक्टर फॉरमेट से आई. डी. फील्ड को हटा दिया गया।

    प्रत्येक सेक्टर को सेक्टर हेडर में लेबल करने के बजाय मेमोरी में एक फॉरमेट मैप स्टोर किया जाता है तथा तब रिफ्रेन्स किया जाता है जब सेक्टर को लोकेट किया जाना चाहिए।

    इस मैप में कौन से सेक्टर खराब चिहिन्त एवं पुनः लोकेट किये गये हैं, सेक्टर सर्वो सूचना की लोकशेन के सापेक्ष में कहाँ हैं|

    इत्यादि सूचना भी शामिल होती हैं। यह केवल फॉरमेट की क्षमता ही को नहीं सुधारता बल्कि इसके कारण प्रत्येक प्लैटर पर 10 प्रतिशत अधिक डाटा के स्टोरेज के कारण परफॉरमेन्स भी बेहतर होती है।

    चूँकि यह डेलीकेट पोजीशनिंग सूचना उच्च गति वाली मेमोरी में उपलब्ध होती है। अतः इसे बहुत तेजी के साथ एक्सेस किया जा सकता है ।

  • Track Ghanatv & Areal Ghanatv Kya Hai?

    बिल्कुल सामान्य रूप से ट्रैक घनत्व का संबंध इस बात से है कि ट्रैक्स प्रत्येक प्लेटर की सतह पर कितने ठोस रूप में कसे हुए हैं।

    प्रत्येक एलेटर का ट्रैक घनत्व समान होता है। एक डिस्क का ट्रैक घनत्व जितना अधिक होगा, हार्डडिस्क में उतनी ही अधिक सूचना रखी जा सकती।

    ट्रैक घनत्व ऐरियल घनत्व का एक घटक (component) है, जो बिट्स की उस संख्या के बारे में बताता है जो डिस्क की सतह पर क्षेत्र की प्रत्येक इकाई में पैक की जा सकती है।

    पहले के पर्सनल कम्प्यूटर की सडडिस्क में सिर्फ कुछ सो ट्रैक्स थ और से 5.25 बड़े फॉर्म फैक्टर का प्रयोग करते थे|

    जिसके परिणामस्वरूप ट्रैक घनत्व कुछ सौ ट्रक्स प्रति इंच (inch) हो हाता था। आधुनिक हार्ड डिस्क अधिक ट्रैक्स होते हैं

    इनका प्रति इंच 30,000 या अधिक ट्रैक्स का घनत्व हो सकता है। ट्रैक घनत्व बढ़ाने की राह में मुख्य बाधा यह सुनिश्चित करना है

    कि ट्रैक्स इतने पास नहीं आ जायें कि एक ट्रैक की रोडिंग में हेड कहीं बगल वाले ट्रैक्स से डाटा न उठा लें।

    इस समस्या से बचने के लिए, मैग्नेटिक क्षेत्रों (magnetic fields) को कमजोर कर दिया जाता है ताकि खाजी से बचा जा सके|

    जो अन्य डिजायन इम्पेक्ट (Impacts) जैसे बेहतर रोड राइट हेड तकनीक और या सिग्नल डायरेक्शन और प्रोसेसिंग को आसान बनाने के लिये PRMI विधियों के प्रयोग की तरफ ले जाती है ।

  • Tracks & Cylinders Mein Antar Kya Hai?

    हार्डडिस्क बहुत सारे प्लैटर्स की बनी होती है, जिनमें से प्रत्येक प्लेटर डाटा को रिकॉर्ड करने तथा डाटा को पढ़ने (read) के लिए दो हेड्स (heads) का प्रयोग करता है।

    एक हेड प्लैटर के शीर्ष (top) और दूसरा हेड उसके तल (bottom) के लिए होता है। वे हेड्स जो प्लैटर को एक्सेस करते हैं

    हेडआमंजू को असेम्बली पर एक साथ जुड़े होते हैं । इसका अर्थ यह है कि सारे हेंड्स साथ-साथ अंदर और बाहर गति करते हैं|

    इसलिए प्रत्येक हेड हमेशा एक ही ट्रैक नम्बर पर भौतिक रूप से स्थित होते हैं। यह बिल्कुल संभव नहीं है कि एक हेड ट्रैक सं0 0 पर और दूसरा हेड ट्रैक सं0 1000 पर हो।

    इस व्यवस्था के कारण, हैंड्स की ट्रैक लोकेशन (location) ट्रैक संख्या ने कहला कर सिलिण्डर संख्या कहलाती है।

    एक सिलिण्डर मूल रूप से सारे ट्रैक्स का एक समुच्चय (set) होता है जहां सारे हेड्स अवस्थित (located) होते हैं।

    इसलिय यदि एक डिस्क में चार प्लैटर हो तो सामान्यतः इसमें आठ हेड होते हैं और सिलिण्डर संख्या 720 (उदाहरण के लिये) आठ ट्रैक्स के सेट का बना होगा

    जो ट्रैक संख्या 720 पर प्रति प्लेटर सतह पर एक की दर से स्थित होगा। यह नाम इस तथ्य से निकलता है कि यदि आप इन ट्रैक्स को मानसिक रूप से विजुअलाइज करें तो वे एक स्केलेटल सिलिण्डर का निर्माण करते हैं

    क्योंकि वे समान आकार के वृत्त होते हैं जो उसी जगह में एक पर एक के हिसाब से स्थित रहते हैं। अधिकतर व्यवहारिक उद्देश्यों के लिए ट्रैक्स तथा सिलिण्डर्स के मध्य बहुत अंतर नहीं होता है।

    यह एक ही चीज को अलग तरीके से सोचना हुआ। अलग अलग सेक्टर की एंडुसिंग (addressing) पारम्परिक रूप से सिलिण्डर, हेड तथा सेक्टर का संदर्भ देखकर के की जाती है।

    चूँकि सिलिण्डर डिस्क के सभी हेंड पर स्थित ट्रैक संख्याओं का एक संकलन (collection) है|

    स्पेसिफिकेशन ट्रैक संख्या और हेड संख्या का जोड़ सिलिण्डर संख्या और हेड संख्या के जोड़ के बराबर होता है जो ट्रैक संख्या तथा हेड संख्या के समान ही है।

  • Hard Disk Tracks Cylinders & Sectors Kya Hai?

    हार्डडिस्क पर स्टोर की गई सूचना को ट्रैक्स में रिकॉर्ड किया जाता है जो कि सकेंद्रित वृत (concentre circles) होते हैं।

    पेड़ के वार्षिक छल्लों की तरह संकेंद्रित वृत्त प्रत्येक प्लैटर को सतह पर स्थित रहता है। ट्रैक्स को संख्या प्रदान की जाती है

    जो शून्य (Zero) से आरंभ होती है तथा प्लेटर के बाहरी हिस्से से आरंभ होती हुई और अंदर का और बढ़ती है।

    एक आधुनिक हार्डडिस्क में प्रत्येक प्लेटर पर लाखों ट्रैक्स होते हैं। हेड ऐक्यूएटर द्वारा चालित हैड्स को डिस्क के आन्तरिक से बाह्य भाग की और मूव करा कर डाटा भाग किया जाता है।

    डाटा को यह व्यवस्था डिस्क के किसी भी भाग तक आसान एक्सेस सुनिश्चित करती है। इसीलिए डिस्क (disks) को रैण्डम एक्सेस स्टोरेज डिवाइस ( random access storage device) कहा जाता है ।

    प्रत्येक ट्रैक्स में हजारों बाइट डाटा हो सकते हैं। ट्रैक को डिस्क पर स्टोरेज को सबसे छोटी इकाई (यूनिट) बनाना गलत है

    इसके कारण छोटी फाइलें भी ज्यादा स्पेस लगी। इसलिए प्रत्येक ट्रैक को अपेक्षाकृत छोटी इकाइयों में जिन्हें सेक्टर कहा जाता है

    में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक सेक्टर में 512 वाइट डाटा होता है, साथ-साथ कुछ दर्जन और अतिरिक्त बाइट्स भी सेक्टर में होते हैं

    जिनका उपयोग आन्तरिक ड्राइव कन्ट्रोल, त्रुटियों का पता लगाने और उनके सुधार में होता है।

  • Magnetic Media Kya Hai?

    आज की हार्डडिस्क थिन फिल्म मीडिया (Thin Film Media) का प्रयोग करती है। जैसा कि नाम से हो पता चलता है|

    चिन फिल्म मीडिया में मैग्नेटिक मैटीरियल की अत्यंत पतली परत होती है जो प्लैटर्स की सतह पर लगायी जाती है।

    बिन फिल्म मीडिया इसका नाम सम्भवतः पड़ा क्योंकि यह ऑक्साइड मोडिया की अपेक्षाकृत पतला (thin) होता है।

    प्लेट पर मीडिया मैटीरियल को जमा करने के लिये विशेष उत्पादन तकनीक काम में लायो जाती है।

    इसी तरह की एक पद्धति इलेक्ट्रोप्लेटिंग (electroplating) है जो इलेक्ट्रोप्लेटिंग आभूषण में प्रयुक्त प्रक्रिया के समान प्रॉसेस का प्रयोग कर प्लेटर्स पर मैटीरियल जमा करती है।

    दूसरी पद्धति स्पटरिंग (sputtering) है जो सतह पर मैग्नेटिक मैटोरियल की अत्यंत पतली परत जमा करने के लिए अर्द्धचालकों के निर्माण से लिये गये वाष्प डिपोजिशन (vapour deposition) प्रक्रिया का प्रयोग करती है।

    स्पटर्ड प्लेटर्स (Sputtered platters) में प्लेटिंग के मुकाबले सतह अधिक समान तथा सपाट होती है।

    नये (अपेक्षाकृत) मॉडिया वाला 5.25″ प्लैटर (ऊपर) तथा ऑक्साइड मीडिया वाला 5.25″ प्लैटर (नीचे) दाइज पर उच्च गुणवत्ता को बढ़ती हुई जरूरत के कारण स्पटरिंग एक प्राथमिक पद्धति है

    जिसे इसकी ऊँची कीमतों के बावजूद नये डिस्क ड्राइव्ज पर प्रयुक्त किया जाता है। ऑक्साइड मीडिया के मुकाबले चिन फिल्म मीडिया कहीं बहुत अधिक समरूप (uniform) और चिकना (smooth) होता है।

    इसमें बहुत ही उम्दा मैग्नेटिक गुण (magnetic properties) है, जो उतने ही स्थान में बहुत अधिक डाटा स्टोर करने योग्य बनाते हैं।

    अन्ततः, यह आँक्साइड के मुकाबले अधिक सख्त और टिकाऊ पदार्थ है और इसीलिये इसके नुकसान की संभावना भी कम होती है ।

    मैग्नेटिक मीडिया को अप्लाई करने के बाद प्रत्येक प्लैटर की सतह को कार्बन से बनी एक पतलो सुरक्षात्मक परत से टुका जाता है।

    इन सबके ऊपर एक अत्यंत पतली चिकनाईयुक्त परत चढ़ायी जाता है। इस परत का प्रयोग डिस्क को हेड्स या अन्य बाह्य पदार्थ जो ड्राइव में घुस सकते हैं

    से अचानक होने वाले संपर्क के नुकसान से बचाने के लिये किया जाता है। IBM के शोधकर्ता एक लुभावन प्रयोगशील (fascinating) नये पदार्थ पर काम कर रहे हैं

    जो आनेवाले सालों में थिन फिल्म मीडिया की जगह ले लेगी । इसमें सतह पर किसी धात्विक फिल्म को स्पटर करने की अपेक्षा एक रसायनिक घोल जिसमें कार्बनिक अणु (organic molucules) और लोहे तथा प्लेटिनम के कणों का समावेश रहता है|

    उसे प्लेटर्स पर चढ़ाया जाता है। फिर इस घोल को फैला कर गर्म किया जाता है। इतना होने के बाद स्वतः लोह और प्लेटिनम के कण स्वयं को क्रिस्टलों (crystals) के ग्रिड में अरंज कर लेते हैं

    जिसमें प्रत्येक का क्रिस्टल मैग्नेटिक चार्ज को धारण करने में समर्थ होता है । IBM इस स्ट्रक्चर को “ननोक्रिस्टल सुपरलैटिम (Nanocrystal superlattice)” का नाम दे रहा है ।

    इस तकनीक में हार्ड डिस्क के रिकॉर्डिंग मीडिया की एरियल सघनता (density) क्षमता में 10 या यहाँ तक कि 100 गुना वृद्धि कर सकने की क्षमता है।

    बेशक अभी इसमें सालों लगंगे तथा इसे हार्डडिस्क के अन्य क्षेत्रों खासकर रोड राइड हेड की क्षमताओं में हो रही उन्नति से तालमेल रखना होगा।

    किन्तु अब भी यह बहुत आश्चर्यजनक है और यह दर्शाती है कि मैग्नेटिक स्टोरेज में बहुत कुछ सुधार होना बाकी है

  • Platter Size Kya Hai & Platter ki Sankhya Kitni Hai?

    प्लैटर साइज (Platter Size)

    हार्ड डिस्क के प्लेटर्स का साइज इसके संपूर्ण फिजीकल साइज का प्राथमिक निर्धारक होता है। इसे ड्राइव का फॉर्म फैक्टर (form factor) भी कहा जाता है।

    अधिकतर ड्राइव विभिन्न स्टैण्डर्ड हार्ट डिस्क फॉर्म फैक्टर्स में से किसी एक में बनाये जाते हैं। डिस्क को कभी-कभी साइज स्पेसिफिकेशन द्वारा संदर्भित किया जाता है।

    उदाहरण के तौर पर कुछ लोग 3.5 इंच हाई डिस्क के बारे में बात करते मिल जायेंगे। जब इस टर्मिनोलॉजी का प्रयोग होता है तो यह सामान्यतः डिस्क के फॉर्म फैक्टर को संदर्भित करता है

    सामान्यतः फॉर्म फैक्टर प्लेटर्स के साइज पर आधारित होता है। डिस्क के प्लैटर्स का साइज सामान्यतः दिये गये फॉर्म फैक्टर की सभी ड्राइव के लिए समान होता है

    हालांकि ऐसा हमेशा नहीं होता है। विशेष रूप से नयी ड्राइव में ऐसा नहीं होता है। किसी खास हार्ड डिस्क का प्रत्येक प्लैटर एक ही व्यास (diameter) का होता है।

    प्लैटर्स की संख्या (Number of Platters)

    किसी हार्ड डिस्क में डिजायन के हिसाब से एक या एक से अधिक प्लैटर हो सकते हैं। स्टैण्डर्ड यूजर हार्ड डिस्क संभवतः जो आपके पी0 सी0 में अभी है|

    मुख्यतः एक से लेकर पाँच प्लैटर का इस्तेमाल करती हैं। कुछ उच्च क्षमता वाली ड्राइव जो कि ज्यादातर सर्वर में लगी होती हैं में लगभग एक दर्जन तक प्लैटर्स प्रयुक्त किये जा सकते हैं।

    कुछ पुराने ड्राइव्स में और भी ज्यादा प्लैटर्स प्रयुक्त होते थे। प्रत्येक ड्राइव में सभी प्लैटर्स भौतिक रूप से सिंगल असेम्बली बनाने के लिए एक ही केन्द्रीय धुरी पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं

    जो एक इकाई के रूप में घुमते हैं। जिन्हें धुरी मोटर (spindle motor) के द्वारा घुमाया जाता है। प्लेटर्स को स्पेसर रिंग का इस्तेमाल कर अलग रखा जाता है

    जो स्पिन्डल के ऊपर लगा होता है। पूरी असेम्बली कुछ पंच तथा कैंप या ढक्कन का इस्तेमाल कर ऊपर से सुरक्षित होती है।

    प्रत्येक प्लैटर की दो सतह (surface) होती हैं जिनमें डाटा को स्टोर करने की क्षमता होती है । प्रत्येक सतह के पास डराइट हेड होता है।

    सामान्यतः प्लैटर को दोनों सतहों का इस्तेमाल किया जाता है मगर हमेशा ऐसा नहीं होता है। कुछ पुराने ड्राइव्स जो समर्पित सर्वो पोजिशनिंग (dedicated servo positioning) का इस्तेमाल करते हैं|

    एक सतह को सर्वो सूचना के लिए सुरक्षित रखते हैं। नये ड्राइव्स को सर्वो सूचना के लिए एक सतह को सुरक्षित रखने की जरूरत नहीं होती है।

    मगर कभी-कभी मार्केटिंग की वजह से एक सतह को बिना इस्तेमाल के छोड़ दिया जाता है ।

  • Hard Disk Platters & Media Kya Hai?

    प्रत्येक हार्ड डिस्क में एक या अधिक सपाट (flat) डिस्क होती हैं जो ड्राइव में डाटा स्टोर करने के लिए होती हैं।

    इस डिस्क को प्लैटर्स कहा जाता है। ये दो मुख्य पदार्थ से बनी होती हैं। पहला सबस्ट्रेट (substrate) पदार्थ जिससे प्लेटर्स का अधिकतम भाग बना होता है

    जो प्लैटर को संरचना तथा कठोरता प्रदान करता है । दूसरा इसमें चुम्बकीय मीडिया (magnetic media) लेप होता है जो मैग्नेटिक तरंग (impulse) को रखता है

    जो डाटा को निरूपित करती है। हा मोदिया का नाम वस्तुतः प्रयुक्त प्लैटर्स की कठोरता के कारण पड़ा है

    जो फ्लॉपी डिस्क तथा मीडिया जो लचीले (flexible) प्लैटर्स का प्रयोग करते हैं, के विपरीत है। वस्तुतः जब पदार्थ लचीला होता है

    तो हम उन्हें प्लैटर्स कह भी नहीं सकते हैं। प्लेटर्स का मतलब ही कुछ ठोस से होता है। प्लैटर्स में ही डाटा रिकॉर्ड होता है ।

    इसी कारण प्लैटर्स को क्वालिटी तथा विशेषकर उनका मोडिया लैप (coating) सोफ्ट होता है।

    प्रत्येक प्लैटर की सतह तथा हार्ड डिस्क को भी एक बिल्कुल साफ-सुथरे कमरे में असेम्बल किया जाता है

    ताकि प्लैटर्स पर पड़ने वाली गंदगी या किसी प्रकार के जमाव को कम से कम किया जा सके ।

  • Hard Disk Operations Kya Hai?

    हार्ड डिस्क में गोल तथा सपाट (mound and flat) डिस्क का प्रयोग होता है। इस गोल तथा सपाट डिस्क को प्लेटर (platter) कहते है।

    इसके दोनों ओर एक विशेष मीडिया पदार्थ का लेप होता है जिसे चुम्बकीय (Magnetic) पेटने के रूप में स्टोर करने के लिए डिजायन किया जाता है।

    प्लेटर्स को बीच में एक छेद काटकर चढ़ाया जाता उन्हें पुरो (gundle) पर स्थित तरीके से लगाया जाता है। प्लैटर्स बहुत तेजी से घूमता है

    जिसे घरी (spindle) से जुड़े विशेष पुरी मोटर (pindle mitor) द्वारा चलाया जाता है। इसमें विशेष मैग्नेटिक रोडराइट डिवाइस होती है|

    जिन्हें हड्स (head) कहते हैं। इन्हें स्लाइडर्स पर रखा जाता है तथा सूचना का रिकॉर्ड करने या रोड करने के लिए प्रयोग किया जाता काम्स (arms) पर रखा जाता है

    जो एक link (लिंक) है। यह डिवाइस एक्ट्यूएटर (actuator) कहलाती है। इसमें लॉजिक बोर्ड अन्य भागों की गतिविधि को नियंत्रित (control) करता है

    तथा पी०सी० के शेष भाग के साथ कम्यूनिकेट करता है। डिस्क के प्रत्येक प्लैटर को प्रत्येक सतह दस अरब अलग-अलग बिट्स डाटा रख सकती है।

    ये बड़े टुकड़ों (chunks) में सुविधा हेतु व्यवस्थित होते हैं तथा सूचना के सहज तथा तेज एक्सेस की अनुमति देते हैं ।

    प्रत्येक प्लैटर के दो हेड होते हैं जिनमें से एक प्लैटर के सबसे ऊपर तथा एक इसके सबसे नीचे होता है

    इसलिए तीन प्लेटर वाले हार्ड डिस्क में सामान्यतः छ: सतह (surface) तथा छ: हेड होते हैं। प्रत्येक प्लैटर की सूचना सकेन्द्रिक (concentric) वृत्तों (circles) में रिकॉर्ड होतो है।

    इन सकेन्द्रिक (concentric) वृत्तों का ट्रैक्स (tracks) कहते हैं । प्रत्येक ट्रैक आग छोटे छोटे टुकड़ों में बंटाना होता है बिनी सेक्टर (sector) कहते हैं।

    प्रत्येक सेक्टर में लगभग 512 बाइट सूचना होती है। पूरा डिस्क इसके कम्पोनेन्टस के मिनिएचराइजेशन (miniaturization) तथा पी0 सी0 में हार्ड डिस्क की महत्वपूर्ण भूमिका होने के कारण उच्च डिग्री की स्पष्टता के साथ (precision) बनाया जाता है।

    डिस्क का मुख्य भाग बाहर की हवा से बचाकर रखा जाता है ताकि प्लैटर्स पर कोई प्रदूषक (contaminants) न रहे तथा रोड राइड हेड्स के नष्ट होने का कारण न बने।

    डिस्क को एक्सेस करने का पहला कदम यह पता लगाना है कि डिस्क के किस हिस्से में आवश्यक सूचना को देखा जाये।

    उनके मध्य, एप्लीकेशेन, ऑपरेटिंग सिस्टम, सिस्टम वॉयस तथा संभवतः डिस्क का कोई विशेष ड्राइवर सॉफ्टवेयर यह निध प्रेरित करने का कार्य करता है कि डिस्क का कौन सा हिस्सा (part) पढ़ा जाय।

    डिस्क पर लोकेशन एक या एक से अधि क translation steps से तब तक गुजरती है, जब तक कि उस ज्यामिती (geometry) द्वारा प्रदर्शित ऐड्स के साथ ड्राइव पर अंतिम रिक्वेस्ट नहीं की जाती है।

    ड्राइव की ज्यामिती सामान्यतः सिलिण्डर, हेड्स तथा सेक्टर के संदर्भ में व्यक्त की जाती है, जिन्हें सिस्टम, ड्राइव से पढ़वाना चाहता है।

    एडुसिंग के लिए सिलिण्डर, ट्रैक के बराबर होता है। डिस्क ड्राइव इंटरफेस पर डिस्क को सेक्टर का ऐड्स देते हुए पढ़ने के लिए भेजा जाता है।

    हार्ड डिस्क का कन्ट्रोल प्रोग्राम पहले यह देखता है कि आग्रह की गयी सूचना पहले से हार्ड डिस्क के अपने आंतरिक बफर (या कैशे) में है या नहीं।

    यदि है तो कंट्रोलर इस सूचना को तत्काल ही डिस्क के सतह पर देखे बगैर सप्लाई कर देता है । अधिकतर मामलों में डिस्क ड्राइव पहले से ही घुम रही होती है ।

    यदि ऐसा नहीं होता है तो ड्राइव का कंट्रोलर बोई धुरी मोटर को ड्राइव को ऑपरेटिंग गति पर घुमाने के लिए सक्रिय करता है ।

    कंट्रोलर बोर्ड एंड्स को इंटरप्रेट करता है जो इसने रोड (read) करने के लिए प्राप्त किया है तथा प्रत्येक आवश्यक अतिरिक्त ट्रान्सलेशन स्टेप्स (translatiojn steps) को निष्पादित करता है

    जो ड्राइव के विशेष लक्षण (characteristics) के अकाउण्ट में जाता है । हार्ड डिस्क का लॉजिक प्रोग्राम फिर आग्रह की गयी अंतिम सिलिण्डर संख्या पर देखता है ।

    सिलिण्डर संख्या डिस्क को डिस्क के सतह के किस ट्रैक को देखना है यह बताता है।

    बोर्ड एक्यूएटर रीड/राइट हेड्स को उपयुक्त ट्रैक की ओर मूव करने का निर्देश देता है। जब हेड्स ठोक पोजीशन में होता है

    तब कंट्रोलर उपयुक्त रोड लोकेशन में निर्दिष्ट हेड को सक्रिय (activate) करता है। हेड ट्रैक को पढ़ना (read) शुरू कर उस सेक्टर की तलाश करता है

    जिसके लिए उसे कहा गया है। यह डिस्क को उस सेक्टर संख्या तक पहुँचने की प्रतीक्षा करता है तथा पहुँचने पर सेक्टर के विषय वस्तु (contents) को पढ़ता है।

    कंट्रोलर बोर्ड हार्ड डिस्क से सूचना के प्रवाह को एक अस्थायी स्टोरेज एरिया (बफर) में समन्वित (combines) करता है।

    फिर यह सूचना हार्ड डिस्क इंटरफेस पर सिस्टम मेमोरी को सिस्टम द्वारा डाटा के लिए किये गये आग्रह को संतुष्ट करने के लिए भेजता है।