Author: Ram

  • Relationship Based Smart Cards kya hai?

    संबंध आधारित स्मार्ट कार्ड (Relationship Based Smart Cards)

    पूरी दुनिया की वित्तीय संस्थायें अधिक सुविज्ञ और तकनीकी रूप से स्मार्ट ग्राहकों की ज इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स की बढ़ती भुगतान संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी सेवाओं क हेतु नयी प्रणालियों का विकास कर रही हैं।

    परंपरागत क्रेडिट कार्ड अत्यंत शीघ्रतापूर्वक स्मार्टकार्डों में तब्दील हो रही है क्योंकि ग्राहक ऐसी भुगतान एवं वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने वाले उत्पादों की माँग करते हैं

    जो उपयोगकर्त्ता मित्रवत् (user-friendly), सुविधाजनक तथा भरोसेमंद हो।

    संबंध आधारित स्मार्टकार्ड वर्तमान कार्ड सेवाओं में अभिवृद्धि और/या उन नयी सेवाओं का योग है जिसे एक वित्तीय संस्थान एक चिप आधारित कार्ड या किसी अन्य उपकरण के जरिये अपने ग्राहकों को प्रदान करता है।

    इन नयी सेवाओं में बहुलवित्तीय अकाउण्टों का एक्सेस, वैल्यू ऐडेड मार्केटिंग प्रोग्राम (value added marketing programs) या फिर अन्य सूचनाएँ शामिल हो सकती हैं जिसे कार्ड धारक अपने कार्ड में संगृहित करना चाहते हैं।

    चिप आधारित कार्ड और कुछ नहीं बल्कि एक ऐसा टूल है जो व्यापक मार्केटिंग तकनीक को बदलकर प्रत्येक व्यक्ति के निजी वित्तीय और व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करेगी।

    इन्हान्स्ड क्रेडिट कार्ड (enhanced credit card) कार्डधारक की सूचनाओं यथा नाम, जन्म दिन, व्यक्तिगत खरीदारी प्राथमिकताएँ, और वास्तविक खरीदारी आँकड़े को धारण करता है।

    ये सूचना, व्यापारियों को उपभोक्ता के व्यवहार को ठीक-ठीक पता लगा पाने तथा खरीदारों की निष्ठा को बढ़ाने के लिए डिजाइन किए गए प्रोमोशनल प्रोग्राम को विकसित करने में प्रयुक्त होती है।

    संबंध आधारित उत्पाद से ये आशा की जाती है कि ये उपभोक्ताओं को अधिक बड़े विकल्प जिनमें निम्न शामिल हैं, प्रस्तावित करते हैं

    • एक से अधिक अकाउण्ट का एक्सेस उपलब्ध कराना, जैसे एक कार्ड या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पर डेबिट, क्रेडिट,

    • इन्वेस्टमेंट या इलेक्ट्रॉनिक नकदी के लिए संगृहित मान / मूल्य |

    • विविध प्रकार के फंक्शन (function), जैसे नकद एक्सेस, बिल भुगतान, बैलेंस संबंधी पूछताछ या चुनिंदा अकाउण्ट के लिए फण्ड हस्तान्तरण |

    • कई प्रकार के उपकरण का प्रयोग करते हुए बहुत से जगहों पर बहुल अभिगम विकल्प जैसे एक ऑटोमेटेड टेलर मशीन, एक स्क्रीनफोन, एक पर्सलन कम्प्यूटर, एक पर्सनल डिजिटल सहायक (PDA), या इंटरएक्टिव टेलिविज़न ।

    कंपनियाँ इन सेवाओं को प्रत्येक ग्राहक के लिए व्यक्तिगत बैंकिंग संबंध में समाहित करना चाह रही हैं।

    वे वित्तीय और अवित्तीय सेवाओं को मूल्य वर्द्धित प्रोग्रामों के साथ सुविधा वृद्धि के लिए, निष्ठा और अवधारणा पैदा करने के लिए और नये ग्राहकों को आकर्षित करने लिए पैकेज (Package) कर सकती हैं।

    बैंक ए.टी.एम. स्क्रीन पर आने वाली सेवाओं के ठीक समान सेवाओं की सूची प्रस्तावित करते हुए, स्मार्ट कार्ड पर सेवाएँ कस्टमाइज करने की कोशिश कर रहीं हैं।

    जैसा कि क्रेडिट कार्डों के साथ होता है, बैंक अक्सर की जा सकने वाली खरीदारी,हवाई यात्रा कार्यक्रम और अन्य सेवाएँ प्रस्तावित करने के लिए स्वास्थ्य संबंधी देखभाल प्रदान करने वालों, टेलिफोन कम्पनियों, खुदरा विक्रेताओं और हवाईयात्रा कम्पनियों के साथ लिंक बना सकती हैं

  • Smart Cards And Electronic Payment System kya hai?

    स्मार्टकार्ड और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली (Smart Cards And Electronic Payment System)

    इलेक्ट्रॉनिक टोकन की विशाल संभावना का विकास पैसे के ऑन-लाइन हस्तांतरण संबंधी सर्वस्वीकृत और सुरक्षित साथ नों के अभाव में अवरूद्ध है।

    बहुत सारे प्रारूपों (prototypes) के विकसित किये जाने के बावजूद हम एक सर्वस्वीकृत भुगतान प्रणाली से कोसों दूर हैं क्योंकि इसके लिए व्यापारियों और बैंकों की बड़ी संख्या जोड़ने और पैसे के हस्तांतरण के साथ न को विकसित करने की आवश्यकता है।

    इसके अलावा ऐसी प्रणाली को इतना सुदृढ होना चाहिए कि बड़ी संख्या में विडिय आदान-प्रदान कर सके और सारे त्रुटियों (bugs) को निकाल फेंकने हेतु एक मजबूत तथा विशाल परीक्षण तंत्र हो

    इसी बीच इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्यिक सेवाओं के हजारों भावी विक्रेताओं को एक-दूसरे को भुगतान करने की आवश्यकता पड़ेगी जिसके लिए वे बहुत ही सक्रियता से भुगतान के विकल्पों की तलाश में हैं।

    स्मार्ट कार्ड (Smart card) एक ऐसा ही विकल्प है। स्मार्ट कार्ड 1980 के आरंभ से ही अस्तित्व में है और वर्तमान ढाँचें का प्रयोग करते हुए सुरक्षित वित्तिय लेन-देन का वादा करता है।

    स्मार्ट कार्ड क्रेडिट और डेबिट कार्ड तथा माइक्रोप्रोसेसर आधारित अन्य कार्ड होते हैं जो पारंपरिक चुबंकीय स्ट्राइप की अपेक्षाकृत अधिक सूचना धारण कर सकने में समर्थ होते हैं।

    माइक्रोप्रोसेसर चिप (chip) अपने विकास की वर्तमान अवस्था में बहुत बड़ी मात्रा में डेटा संग्रहित कर सकता है, जो एक पारंपरिक चुबंकीय स्ट्राइप (Mangetic stripe) से करीब 80 गुना अधिक होती है।

    उद्योग क्षेत्र के आकलन के अनुसार वर्ष 2010 तक दुनिया में जारी किए गए भुगतान कार्यों के आधे के अधिक में सामान्य चुम्बकीय स्ट्राइप के बजाय इम्बेडेड माइक्रोप्रोसेसर (embedded microprocessor) होंगे।

    स्मार्ट कार्ड तकनीक का प्रयोग व्यापक रूप से फ्रांस, जर्मनी, जापान और सिंगापुर जैसे देशों में सार्वजनिक फोन बिल, परिवहन और शॉपर्स लॉयल्टि (shoppers loyalty) के लिए भुगतान करने में होता है

    अमेरिका में इस विचार को जड पकड़ने में कुछ अधिक ही लम्बा समय लग गया क्योंकि अत्यन्त भरोसेमंद और अत्यन्त सस्ती दूरसंचार प्रणाली क्रेडिट और डेबिट कार्ड के पक्ष में काम कर रही थी।

    स्मार्ट कार्ड मुख्यतः संबंध आधारित स्मार्ट क्रेडिट कार्ड (relationship based smart credit cards ) और इलेक्ट्रॉनिक पसेंज (electronic purses) होते हैं

    जिनका व्यवहार पैसे के बदले में होता है, डेबिट कार्ड तथा इलेक्ट्रॉनिक मुद्रा (electronic money) के रूप में भी जाना जाता है।

  • Electronic Cash system kya hai?

    इलेक्ट्रॉनिक नकद (Electronic Cash)

    इलेक्ट्रॉनिक नकद (ई-नकद) ऑनलाइन भुगतान प्रणाली में नयी अवधारणा है क्योंकि इसमें सुरक्षा तथा प्राइवेसी के साथ कम्प्यूटरीकृत सहूलत भी होता है जो कागजी मुद्रा से बेहतर है।

    इसका सार्वभौमिकता (versatility) नये बाजारों तथा अनुप्रयोगों को परिचित कराता है। ई-नकद में कई रोचक लक्षण होते हैं जो इंटरनेट पर भुगतान के आकर्षक विकल्प के रूप में विकसित हो सकते हैं।

    ई-नकद उपभोक्ता प्रदत्त इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली में मुख्य भुगतान वाहक के रूप में नकदी भुगतान का स्थान लेने पर फोकस करता है।

    यद्यपि यह कुछ के लिए आश्चर्यजनक हो सकता है, नकद आज भी सबसे अधिक प्रचलित उपभोक्ता भुगतान उपकरण है।

    यह स्थिति 30 वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली में लगातार विकास होने के बाद भी है। नकद निम्नलिखित कारणों से आज भी भुगतान का सबसे प्रभावी रूप है-

    नकदरहित व्यापार का अक्षम निपटारा (settlement) तथा क्लियरिंग (clearing) प्रणाली

    बैंकिंग प्रणाली में विश्वास की कमी

    बैंक जमा में नकारात्मक वास्तविक ब्याज दर

    उपरोक्त कारण विकासशील देशों में प्राथमिक मुद्दों के रूप में देखा जाता है। यहाँ तक कि अधिकतर औद्योगीकृत दशा में, रुपये तथा सिक्कों का अनुपात सर्कुलेशन (circulation) में प्रति कैपिटा (per capita) से अधिक है।

    अनुमानतः यह $446 से $2748 तक है। दुनिया के दो अत्यधिक औद्योगिकृत देशों यूनाइटेड स्टेटस तथा यूनाइटेड किंगडम की स्थिति पर विचार करते हैं। यूनाइटेड स्टेट्स में 1992 में 300 अरब डॉलर रुपये तथा सिक्के सर्कुलेशन (circulation) में थे।

    मजेदार बात यह है कि यह संख्या कम नहीं हो रहा है बल्कि 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है। चेक के द्वारा धन जमा करने की प्रक्रिया 6 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ रहे हैं।

    नकद का प्रधानता (predominance) नवीन (innovative) व्यापार तरीके के अवसर की ओर इंगित करता है जो खरीददारी प्रक्रिया को स्मार्ट बनाता है जहाँ उपभोक्ता मूलतः नकद को माध्यम के रूप में प्रयोग करते हैं।

    नकद को प्रतिस्थापित (displace) करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली में नकद (cash) के कुछ गुणों को समाहित करना होगा जो आज के क्रेडिट तथा डेबिट कार्ड में सम्भवतः नहीं है।

    उदाहरण के लिए नकद विनिमेय (negotiable) होता है अर्थात् यह किसी और को भी दिया जा सकता है। नकद कानूनी प्रस्ताव (legal tender) होता है अर्थात् लेने वाला लेने के लिए कृतज्ञ (obligated) होता है।

    नकद धारक उपकरण (bearer instrument) होता है अर्थात् इसका अधिकार मालिकाना सबूत का प्रथम आधार होता है। अर्थात् यदि आपके पास नकद है तो इसके मालिक उस समय आप हैं।

    इसके साथ ही, नकद किसी के द्वारा रखा तथा प्रयोग किया जा सकता है यहाँ तक कि उनके पास भी यह हो सकता है जिनका कोई बैंक खाता नहीं है।

    तथा प्राप्तकर्ता की ओर से नकद प्राप्त करने में कोई खतरा नहीं है अर्थात् इसमें माध्यम के अच्छे या बुरे होने का कोई खतरा नहीं है।

    अब क्रेडिट तथा डेबिट कार्ड की तुलना नकद से करते हैं। पहला, ये आपके पास होने चाहिए क्योंकि ये निर्गतकर्ता (issuer), जोकि कार्ड मालिक होता है का पहचान पत्र होता है।

    साथ ही एक विशेष प्रयोक्ता तक ही सीमित होता है। क्रेडिट तथा डेबिट कार्ड कानूनी प्रस्ताव नहीं होते हैं। अतः व्यापारियों को अधिकार होता है कि वे इसे स्वीकार करने से इंकार कर दें।

  • Types of Electronic Payment System kya hai?

    इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली के प्रकार (Types of Electronic Payment System)

    इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली का प्रयोग आज छोटे मोटे दुकान से लेकर सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं, शिक्षण संस्थानों से लेकर प्रायः सभी ऑन-लाइन व्यापर में हो रहा है।

    संगठनों को आज के प्रतिस्पर्धा के इस दौर में ग्राहकों को सस्ते (cost-effective) तथा उच्च क्वालिटी की सेवाएँ देने की आवश्यकता महसूस हो रही है। इस खण्ड में इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली में किन-किन विधियों का प्रयोग हो रहा है, पर चर्चा करेंगे।

    डिजीटल टोकन आधारित इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली (Disital Token Based Electronic Payment Sytem)

    कोई भी बैंकिंग या रिटेलिंग भुगतान प्रणाली आज के स्वरूप में उपभोक्ता प्रदत्त वातावरण के लिए पर्याप्त नहीं है।

    इसका मूल कारण यह मान्यता है कि पार्टियाँ भुगतान के समय शारीरिक रूप से आमने सामने हों तथा इसके अन्तर्गत जालसाजी, ओवरड्राफ्टस (overdrafts) के भय समाप्त करने में किये जाने वाली प्रक्रिया में होने वाली देरी है।

    ये मान्यताएँ ई-कॉमर्स के लिए अच्छे नहीं है तथा इस प्रकार के विधियों में सुधार नेटवर्क पर किये जा रहे व्यापार के लिए नयी विधियाँ इसके अनुरूप विकसित की जा रही हैं।

    अब वित्तीय उपकरणें (instruments) के पूरी तरह से नये रूपों का विकास किया जा रहा है। इनमें एक नया वित्तीय उपकरण इलेक्ट्रॉनिक नकद/पैसा या चैक के रूप में इलेक्ट्रॉनिक टोकन्स हैं।

    इलेक्ट्रॉनिक टोकन को बैंक अथवा वित्तीय संस्थान द्वारा प्रोत्साहित भुगतान के कई तरीकों के इलेक्ट्रॉनिक विकल्प के रूप में डिजाइन किया गया है। साधारणतः इलेक्ट्रॉनिक टोकन्स बैंक के द्वारा दिये गये नकद का समानार्थक है।

    नकद, डेविट तथा क्रेडिट तीन प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक टोकन्स हैं-

    नकद या रिअल टाइप (Cash or real-type) –

    व्यापार इलेक्ट्रॉनिक मुद्रा के विनिमय (exchange) से निबटारा ( settle) किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक नगद (Electronic cash) या ई-नगद (e-cash) ऑनलाइन मुद्रा विनिमय का एक उदाहरण है।

    डेबिट अथवा प्रीपेड (Debit or prepaid) – प्रयोक्ता सूचना पाने की सुविधा के लिए अग्रिम भुगतान कर देते हैं। स्मार्ट कार्ड, इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट्स/पर्सेज (Wallets/purses), इत्यादि प्रिपेड भुगतान कार्यप्रणाली के उदाहरण हैं।

    क्रेडिट कार्ड अथवा पोस्टपेड (Credit or Postpaid ) –

    इस विधि में सर्वर ग्राहकों का सत्यापन करता है तथा किसी भी खरीददारी से पहले बैंक में यह पता लगाता है कि खरीददार के पास पर्याप्त फंड है अथवा नहीं। पोस्टपेड कार्यविधि उदाहरण क्रेडिट/डेबिट कार्ड तथा इलेक्ट्रॉनिक चेक हैं।

    ऑन-लाइन भुगतान के इन विधियों का परीक्षण करेंगे। परन्तु पहले इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य (electronic commerce) के इन भुगतान उपकरणों के बारे में समझ लें। यहाँ विभिन्न प्रकार के पहलों (initiatives) का विश्लेषण करने के लिए उपयोगी चार आयाम (dimensions) हैं।

    क्रेडिट कार्ड अथवा पोस्टपेड (Credit or Postpaid) –

    इस विधि में सर्वर ग्राहकों का सत्यापन करता है तथा किसी भी खरीददारी से पहले बैंक में यह पता लगाता है कि खरीददार के पास पर्याप्त फंड है अथवा नहीं। पोस्टपेड कार्यविधि के उदाहरण क्रेडिट/डेबिट कार्ड तथा इलेक्ट्रॉनिक चेक हैं।

    निम्नलिखित खण्डों में ऑन-लाइन भुगतान के इन विधियों का परीक्षण करेंगे। परन्तु पहले इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य (electronic commerce) के इन भुगतान उपकरणों के बारे में समझ लें। यहाँ विभिन्न प्रकार के पहलों (initiatives) का विश्लेषण करने के लिए उपयोगी चार आयाम (dimensions) हैं।

    व्यापार की प्रकृति जिसके लिए उस उपकरण को डिजाइन किया जाता है।

    कुछ टोकन्स विशेष रूप से माइक्रोभुगतान (micropayments) अर्थात सूचना के छोटे टुकड़ों (snippets) के लिए डिजाइन किया जाता है। अन्य विधियाँ पारम्परिक उत्पादों के लिए डिजाइन किया जाता है।

    कुछ प्रणालियाँ विशिष्ट क्षेत्रों के व्यापारों को लक्ष्य बनाकर डिजाइन होते हैं तथा अन्य सामान्य व्यापारिक लेन-देन के लिए होते हैं। इसमें संलग्न पक्षों (parties) की पहचान, औसत राशि तथा खरीददारी बातचीत (interaction) शामिल हैं।

    • निपटारे में प्रयुक्त होने वाली विधियों (The means of settlement used)

    टोकन्स नगद, उधार (credit), – इलेक्ट्रॉनिक बिल भुगतान (electronic bill payment), कैशिर के चेक, तार स्थानांतरण (wire transfers) इत्यादि द्वारा सपोर्टेड होना चाहिए।

    प्रत्येक विकल्प व्यापार गति (transaction speed), खतरे (risk) तथा लागत (cost) के मध्य संतुलन बनाते हैं। अधिकतर व्यापार निपटारे (settlement) विधियों में क्रेडिट कार्ड का प्रयोग होता है

    जबकि अन्य में मूल्य (value) क लिए अन्य प्रॉक्सीज (proxies) का प्रयोग होता है, जो अनिश्चित द्रवता (dubious liquidity) के मुद्राओं का निर्माण करता है तथा यह ब्याज कर खतरे तथा फ्लोट आशय के साथ होता है।

    सुरक्षा, गुमनामी तथा प्रमाणीकरण मुद्दे (Security, anonymity and authentication concepts)

    – इलेक्ट्रॉनिक टोकन्स व्यापार के गोपनीयता (privacy) तथा विश्वसनीयता (confidentiality) की सुरक्षा के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं। कुछ संभावित पैनी दृष्टि वाले प्रतिभागियों (participants) के लिए बिल्कुल स्पष्ट हो सकते हैं।

    इनक्रिप्शन (encryption) प्रमाणीकरण (anthentication) स्वीकृति तथा सम्पत्ति प्रबंधन (asset management) में मदद कर सकता है।

    खतरा मुद्दा (Risk factor)

    कौन सा खतरा किस समय प्रकट हो सकता है जानना अत्यंत मुश्किल कार्य है। कुछ – स्थिति में टोकन्स अचानक व्यर्थ साबित हो सकता है तथा ग्राहक ऐसा मुद्रा (currencies) पेश कर सकते हैं

    जो किसी के द्वारा स्वीकार्य न हो। यदि कोई प्रणाली मूल्य (value) को स्मार्ट कार्ड में संग्रहित करता है, तो उपभोक्ताओं का सामना खतरे से हो सकता है, क्योंकि वे स्थिर सम्पत्ति (assets) रखते हैं।

    इलेक्ट्रॉनिक टोकन्स छूट (discounts) अथवा विवाचन (arbitrage) का भी विषय हो सकता है। खतरे तब भी सामने आ सकते हैं जब व्यापार के उत्पाद डिलिवरी (delivery) तथा व्यापारियों को भुगतान करने के मध्य लम्बा समय लगता है।

    इसमें व्यापारी के संदर्भ में यह खतरा हो सकता है कि खरीददार इसका भुगतान न करें या फिर विक्रेता (vendor) माल की डिलीवरी न दें।

  • Electronic Payment System kya hai?

    परिचय (Introduction

    आप अक्सर वेबसाइट को जब लॉग-ऑन करते हैं तब आपने साइट पर कई विज्ञापन देखा होगा तथा सम्भवतः सामान भी खरीदा होगा।

    सामान का ऑर्डर देते समय आपको सामान का भुगतान करने के लिए कई विकल्प मिलते होंगे उनमें अधि कतर विकल्प नकद के अतिरिक्त होते हैं। अर्थात् जो विकल्प होते हैं उनमें आपको भौतिक रूप से भुगतान नहीं करना होता है।

    आपको इस भुगतान के लिए क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड का प्रयोग करना होता है। यह वस्तुतः वर्चुअल भुगतान का तरीका है जिसे इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली कहा जा सकता है।

    इसके अन्तर्गत क्रेडिट-डेबिट कार्ड के अतिरिक्त और कई विधियाँ हैं तथा आज ये विपणन तथा विक्रय का अभिन्न अंग है। इस अध्याय में हम इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली तथा इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

    इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली (Electronic Payment System)

    इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली आज ऑन-लाइन व्यापार प्रक्रिया का मुख्या हिस्सा है। इसका कारण यह है कि आधुनिक कम्पनियाँ अपने ग्राहकों को सेवाएँ ऑन डिमाण्ड तथा सस्ते दर पर देना चाहते हैं।

    आजके व्यापार में इलेक्ट्रॉनिक रूप से सामानों तथा सेवाओं का भुगतान आधुनिक व्यापार को नये आयाम प्रदान करते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक रूप से भुगतान विधि ने व्यापार के विकास में वृद्धि करने के अतिरिक्त ग्राहक की आवश्यकताओं की पूर्ति को जादुई रूप से सम्पन्न करने में भरपूर सहयोग दिया है।

    उदाहरण के लिए आपकी कम्पनी वेबसाइट विकास के व्यापार में संलग्न है। आपको अपने ग्राहक के एक साइट को अमेरिका के किसी होस्ट कम्पनी से सेवा खरीदनी है। आप यह कार्य सेकण्डों में इसका भुगतान कर कर सकते हैं।

    ठीक इसी प्रकार आप बिट्रेन में बैठकर इलेक्ट्रॉनिक रूप से अपने माँ के लिए खरीदे गये एक महँगे उपहार का भुगतान कर अपनी माँ के जन्मदिन को खुशियों से भर सकते हैं। यह तो स्पष्ट है कि किसी भी व्यापार में भुगतान एक अभिन्न भाग है।

    जिसके बगैर कोई भी व्यापारिक प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है। इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली तथा इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स जटिल रूप से एक-दूसरे से जुड़े हैं जिसके कारण ही उपभोक्ता सामानों तथा सेवाओं का भुगतान कर पाते हैं।

    सब के बावजूद ऑन-लाइन विक्रेताओं की एक अहम समस्या यह है कि क्रेता (buyers) सामानों तथा सेवाओं का भुगतान कैसे करें। इस भुगतान में वे अलग-अलग बाजार में कौनसी मुद्रा (currency) का प्रयोग करेंगे।

    आज के ऑन-लाइन इलेक्ट्रॉनिक भुगतान की अवस्था कई स्थितियों में मध्यकालिन युगों के समान हैं। एशिया तथा यूरोप के व्यापारी बाजार विस्तार के व्यापारिक संभावनाओं पर काबू पाने की कोशिश में एक ही तरह की समस्या से दो चार होते थे।

    उस काल के व्यापारी कई प्रकार की बाधाओं जैसे स्थानीय कानून, व्यापारिक प्रचलन (Practices) से सम्बन्धित रिवाज (customs), परस्पर विरोधी (incompatible) तथा अपरिवर्तनीय (nonconvertible) मुद्रा व्यापार करने से रोकते थे।

    इन समस्याओं को सुलझाने के लिए उस समय के व्यापारियों में प्रोमिसरी नोट्स (Promissory Notes), बिल्ज ऑफ एक्सचेंज (Bills of Exchanges), सोने के सिक्के तथा अदला-बदली विधि (barter system) जैसे उपाय प्रचलित थे।

    व्यापारियों ने उन भुगतान उपायों के प्रयोग हेतु वाणिज्यिक कानून भी विकसित किये थे जो व्यापार तथा वाणिज्य के इतिहास के लिए एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु था। आज हम उसी प्रकार के विकास के कगार पर हैं।

  • IT ACT 2000 आई. टी. एक्ट 2000 kya hai?

    आई. टी. एक्ट 2000 (IT ACT 2000)

    भारत में इण्टरनेट तथा इसके माध्यम से हो रहे व्यापार को सुचारू रूप से नियंत्रित करने के उद्देश्य से मई 2000 में भारतीय संसद के दोनों सदनों ने सूचना प्रौद्योगिकी कानून (Information Technology Bill) पारित किया। इस कानून पर तत्कालिन राष्ट्रपति ने अगस्त 2000 में अपने सहमति की मुहर लगायी।

    इस अधिनियम (act) का उद्देश्य भारत में इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स को कानूनी इन्फ्रास्ट्रक्चर (legal infrastructure) प्रदान करना था।

    आई.टी. एक्ट 2000 के विभिन्न पक्ष (perspectives) तथा इसके द्वारा दिये गये सुरक्षा का सारांश इस प्रकार है- इस एक्ट अध्याय 1 में ई-कॉमर्स से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण शाब्दिक परिभाषाएँ दी गई हैं।

    एक्ट का अध्याय 2 विशेषकर अनुबंध (stipulate) करता है कि कोई भी सब्सक्राइबर किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड को प्रमाणित (authenticate) कर सकता है।

    इसके लिये उसे अपना डिजीटल हस्ताक्षर (digital signature) जोड़ना होता है। साथ ही इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि कोई भी व्यक्ति उस इलैक्ट्रोनिक रिकार्ड का परीक्षण सब्स्क्राइबर के पब्लिक की (Public key) का प्रयोग कर कर सकता है।

    • अधिनियम का तीसरा अध्याय इलेक्ट्रोनिक शासन (electronic governance) का ब्योरा प्रस्तुत करता है। इस अध्याय में डिजीटल हस्ताक्षर के कानूनी पहचान का भी ब्योरा दिया गया है।

    • इस एक्ट के अध्याय 4 में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के अधिकार, प्राप्ति सूचना तथा प्रेषण से संबंधित सूचना प्रस्तुत है। • इस एक्ट के अध्याय 5 में सुरक्षित इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड तथा डिजिटल हस्ताक्षर की चर्चा की गयी है।

    • इस एक्ट के अध्याय 6 में सर्टिफाईंग ऑथरटीज (certifying authorities) के संचालन की व्याख्या की गयी है। इस एक्ट के अध्याय 7 में डिजीटल हस्ताक्षर प्रमाण-पत्र (Digital Signature Certificate) पर प्रकाश डाला गया है।

    इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति डिजीटल हस्ताक्षर प्रमाण-पत्र के लिए सर्टिफाईंग ऑथरटी (Certifying authority) को सरकार के द्वारा अनुशंसित (Prescribed) फार्म के साथ आवेदन कर सकता है। जिसके लिए शुल्क 25,000 तक हो सकता है। सर्टिफिकेट निर्गत करने तथा इसे न करने की पूरी जिम्मेदारी सर्टिफाईंग ऑथरटी (Certifying Authority) के हाथ में है।

    इस एक्ट के अध्याय 8 में सब्सक्राइबरों (subscribers) के कर्तव्यों की चर्चा की गयी है।

    • इस एक्ट के सबसे महत्त्वपूर्ण अध्याओं में एक अध्याय 9 में जुर्माने (penalties) तथा निर्णय (adjudication) की बात की गयी है।

    कोई व्यक्ति कम्प्यूटर, कम्प्यूटर सिस्टम या कम्प्यूटर नेटवर्क के मालिक तथा प्रभारी की आज्ञा के बगैर इन्हें एक्सेस नहीं कर सकता, इससे डेटा प्राप्त नहीं कर सकता, कम्प्यूटर को वायरस संक्रमण के अतिरिक्त अन्य विधियों से भी नुकसान नहीं पहुँचा सकता तथा कम्प्यूटर नेटवर्क के कार्य में किसी प्रकार का कोई अवरोध नहीं पहुंचा सकता।

    कम्प्यूटर, कम्प्यूटर सिस्टम या किसी कम्प्यूटर नेटवर्क पर इस तरह किये गये किसी भी जुर्म का जुर्माना 1 करोड़ रुपया तक हो सकता है। इस अध्याय के पहले खण्ड में कम्प्यूटर डेटाबेस, कम्प्यूटर वायरस, नुकसान (Damage) इत्यादि की परिभाषा भी प्रस्तुत की गयी है। इस अध्याय के अगले खण्ड में यह भी बताया गया है कि इस स्थिति में फैसला सुनाने की योग्यता किस को दी गयी है जो निम्न हैं-

    निर्णय अधिकारी (Adjudicating officer) भारत सरकार के निर्देशक या फिर राज्य सरकार के इसी स्तर का कोई अधिकारी होगा तथा केन्द्र सरकार के द्वारा बनाये नियमों के अनुसार इसकी जाँच करेगा ।

    निर्णायक इस मामले का वही होगा जो सूचना प्रोद्योगिकी क्षेत्र का तथा न्यायपालिका (Judicial) का अनुभव रखता है। इसमें यह भी बताया गया है कि किस प्रकार निर्णायक फैसला करेगा। तथा एक से अधिक निर्णायक की नियुक्ति होने पर कौन क्या करेगा। तथा जुर्माना का निर्धारण कैसे होगा।

    • इस अधिनियम का 10 वां अध्याय सायबर रेग्यूलेशनस् अपिलेट ट्रिब्यूनल (Cyber Regulations Appellate Tribunal) पर आधारित है। इसमें इस ट्रिब्यूनल के स्थापना की बात कही गयी है।

    इसमें यह बताय गया है कि केन्द्र सरकार एक से अधिक ट्रिब्यूनल की स्थापना कर सकता है तथा किस ट्रिब्यूनल का अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) क्या होगा, यह भी सम्मिलित है।

    इस ट्रिब्यूनल का प्रिज़ाइडिंग ऑफिसर (Presiding officer) वही हो सकता है जिसने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने की योग्यता प्राप्त की हो या फिर वह भारतीय लीगल सिस्टम (Indian Legal System) का सदस्य

    हो या रहा हो या फिर इस सेवा में प्रथम श्रेणी के पद पर तीन वर्षों तक रहा हो। प्रिजाइडिंग ऑफिसर का कार्यकाल पाँच वर्षों का होगा तथा प्रिजाइडिंग ऑफिसर की अधिकतम कार्यकाल की आयु 65 वर्ष की होगी।

    यह बॉडी मुख्य रूप से इसलिये गठन किया गया है ताकि न्यायाधीश के द्वारा किये गये फैसले के विरुद्ध अपील की जा सके। इस अधिनियम के अध्याय 11 में अपराधों (offences) की चर्चा की गयी है। इसमें निम्न बातें हैं-

    २ कम्प्यूटर मुख्य डॉक्यूमेंटस के साथ छेड-छाड (Tampering with Computer Source Documents) – कोई भी व्यक्ति जो कानूनी रूप से सुरक्षित कम्प्यूटर सोर्स कोड, कम्प्यूटर प्रोग्राम, कम्प्यूटर सिस्टम, कम्प्यूटर नेटवर्क के साथ जान बूझकर छेड़-छाड़ करता है तो वह दो लाख रुपये तथा तीन साल तक की जेल का भागी होगा।

    कम्प्यूटर सिस्टम को हैक करना (Hacking Computer System) – यहां हैकिंग की परिभाषा दी गयी है। कोई भी व्यक्ति कम्प्यूटर रिसोर्स में किसी नुकसान के उद्देश्य से सेंध लगाता है, वह हैक करता है। हैकिंग की सजा तीन साल कैद, 2 लाख तक का जुर्माना या दोनों भी हो सकता है।

    इसी प्रकार इस अध्याय में इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में किसी भी आपत्तीजनक सूचना के प्रकाशन से संबंधित अपराध तथा सजा का वर्णन है। इसके लिए दो प्रकार की सजा है।

    यदि कोई व्यक्ति इस तरह की सामग्री का प्रकाशन पहली बार करता है तो उसे पाँच साल की सजा तथा एक लाख रुपया तक का जुर्माना हो सकता है। तथा वही व्यक्ति इस अपराध की पुनरावृत्ती करता है तो दस साल की जेल और दो लाख रुपये तक के जुर्माने का भागी हो सकता है।

    इस अध्याय में गोपनीयता भंग करने, डिजीटल हस्ताक्षर सर्टिफिकेट गलत प्रकाशित करने, गलत उद्देश्य के लिए प्रकाशन करने इत्यादि जैसे अपराधों के लिए अनुशंसित सजा की चर्चा है। इस तरह के अपराध की जाँच डिप्टी पुलिस अधीक्षक के नीचे के पद का कोई पुलिस अधिकारी नहीं कर सकता इसका भी वर्णन है।

  • Impact of E-Commerce ई-कॉमर्स के प्रभाव kya hai?

    ई-कॉमर्स के प्रभाव (Impact of E-Commerce)

    ई-कॉमर्स के आर्थिक प्रभाव

    आमतौर पर, जब दो या दो से अधिक लोगों के बीच वस्तुओं या सेवाओं के लिए पैसे का आदान-प्रदान एक दुकान (store) के भीतर या एक सौदे (transaction) के रूप में होता है तो कॉमर्स कहलाता है। सदियों से, यह या तो एक वास्तविक

    दुकान (store) में व्यक्तिगत सौदे बनाने के कारोबार (businesses) के माध्यम से किया गया था, या अन्य साधनों के माध्यम से लेन-देन (Transaction) हैंड-ऑन किये गये थे।

    लेकिन 1990 के दशक के मध्य में, इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स या ई-कॉमर्स के रूप में व्यापक रूप से जाना जाता है, अचानक अधिक सामान्य बन गया। घर छोड़ बिना एक खरीद (purchase) केवल ऑनलाइन करने की क्षमता एक नया, नावेल ऑडियो था जो बाद में व्यापार का चेहरा बदल दिया है।

    वेबसाइट जैसे कि- Amazon.com और Ebay.com इस क्षेत्र में अग्रणी थे।

    आज ई-कॉमर्स के हजारों वेबसाइट है, जहाँ से लोग वस्तुओं को खरीद सकते हैं। पुस्तकों और कपड़ों से फर्नीचर और किराने के सामान तक सभी कुछ अब एक वेबसाइट के माध्यम से खरीदा जा सकता है और इन सबसे हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है।

    यहाँ तक कि एक कार सर्विसिंग या एक डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट इंटरनेट के माध्यम से किया जा सकता है। ऐसा लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स और अधिक तेजी से प्रतिदिन बढ़ रही है और यह सिर्फ संयुक्त राज्य अमेरिका तक सीमित नहीं है; दुनियाभर में ई-कॉमर्स के विकास करने के लिए संभावना चौंका देने वाला है।

    इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स न केवल अर्थव्यवस्था (Economy) को प्रभावित करता है, बल्कि यह जॉब मार्केट पर भी अच्छी तरह से अधिक प्रभावित किया है। यह डाटा इंट्री, वेबसाइट निर्माण और रखरखाव, क्रेडिट कार्ड प्रोसेसिंग, इंटरनेट सुरक्षा और सूची प्रबंधन (Inventory Managum) में नये पदों को बनाता है, ये बस कुछ ही नाम हैं।

    तथ्य यह है कि यह नया जगह इतना लोकप्रिय हो गया है कि सभी प्रकार के बैकग्राउण्ड के लोगों के लिए अच्छी खबर है।

    ई-कॉमर्स से समाज पर एक गहरा प्रभाव पड़ा है। लोग अब अपने घरों की गोपनीयता में, बिना इसे कभी छोड़े ऑनलाइन खरीदारी कर सकते हैं।

    यह बड़े ईंट और चूना (mortar) रीटेलर को एक ऑनलाइन प्रभाग खोलने के लिए मजबूर कर सकते हैं। कुछ केसेज में, यह छोटे व्यवसायों के लिए अपने दरवाजे बंद करने के लिए मजबूर भी कर सकते हैं, या पूरी तरह से ऑनलाइन करने के लिए बदले जा सकते हैं।

    यह लोगों के खरीदारी करने तथा पैसा खर्च करने के तरीकों को भी बदलता है। इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स रिटेल और अन्य चीजें जो हमारी इकोनॉमी वर्क को बनाती है का फेस बदल दिया है।

    निःसंदेह, यह प्रभावित करता रहेगा कि कैसे कम्पनियाँ अपने प्रोडेक्ट को बेचती और प्रचार करती है, उसी तरह से जैसे आने वाले कई वर्षों में लोग कैसे खरीदारी करने के लिए चुनते हैं।

    ई-कॉमर्स के प्रभाव अब ब्रॉडबैंड और डाटा स्थानान्तरण दर के लिए अधिक तेजी से और कार्यात्मक मजबूत कम्प्यूटर की आवश्यकता है। जैसे कि स्ट्रीमिंग मीडिया के जरूरतों को पूरा करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ता है

    तो नये सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और घटक (components) आधुनिक सर्फिंग डिमाण्ड को पूरा करने के लिए आवश्यक है। यह होम कम्प्यूटर यूजर जो अब नए और अधिक उन्नत मशीनों एक अभूतपूर्व (unprecedented) गति में तेजी के लिए बनाया गया है, को खोजने जीवन छोटा कर दिया है। को

  • Constraints To E-Commerce ई-कॉमर्स की बाधाएँ kya hai?

    ई-कॉमर्स की बाधाएँ (Constraints To E-Commerce)

    ई-कॉमर्स के लिए पोर्टल या साइट बना लेना ही सम्पूर्ण ई-कॉमर्स नहीं हैं। ई-कॉमर्स में कौन-कौन से संघटक आवश्यक हैं इसके बारे में पिछले खण्ड में पढ़ चुके हैं।

    इस सफलता के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ लोगों की मानसिकता भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। आज भी लोग हमारे भारतीय महाद्वीप में स्वयं जाकर शॉपिंग मॉल्स में सामान खरीदने को प्राथमिकता देते हैं।

    इसके कारण भी हैं। इसमें सामान स्वयं जाँच लेने की संतुष्टि, तत्काल डिलीवरी तथा मनोरंजन जैसे महत्वपूर्ण कारक शामिल हैं।

    साथ ही, भारत के बहुमत के पास इण्टरनेट एक्सेस नहीं है तथा जो लोग इण्टरनेट एक्सेस करते हैं उनके पास क्रेडिट कार्ड जैसे भुगतान के साधन उपलब्ध नहीं है। किसी भी देश में ई-कॉमर्स को लागू करने में निम्नलिखित बाधाएँ होती हैं-

    खराब टेलिकम्यूनिकेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर (Poor telecommunication infrastructure) आज ई-कॉमर्स व्यापक – रूप में लागू होने में यह सबसे बड़ी बाधा है, क्योंकि इण्टरनेट की रीढ़ टेलिफोन लाइन है।

    हमारे देश में ब्रॉडबैण्ड तथा अन्य उच्च गति वाली इण्टरनेट सेवाएँ हमसे आमतौर पर अभी-भी कोसों मील दूर है। यह सब टेलिकम्यूनिकेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर की अच्छी व्यवस्था न होने के कारण है।

    कम्प्यूटर तथा हार्डवेयर उपकरणों की अधिक कीमत (Expensive computer and hardware parts) यद्यपि कम्प्यूटर तथा हार्डवेयर पिछले दशक के अपेक्षाकृत बहुत अधिक महंगे अब नहीं रहे। परन्तु कम कैपिटा इनकम वाले देशों में आज भी कम्प्यूटर खरीदना मुश्किल कार्य है।

    तकनीकी रूप से दक्ष कर्मचारियों की कमी (Lack of technically efficient personnel) किसी भी देश में ई-कॉमर्स को चलाने के लिए दक्ष कर्मचारी चाहिए जो ई-कॉमर्स पर होने वाली सभी गतिविधियों को ठीक ढंग से व्यवस्थित कर सके।

    बैंकिंग इन्फ्रॉस्ट्रक्चर की कमी (Poor Banking Infrastructure) जैसाकि आपने पढ़ा कि कॉमर्स और भुगतान का चोली-दामन का रिश्ता है। आप सामान बेचेंगे तो आपको पैसा चाहिए।

    जिस देश में बैंकिंग इन्फ्रॉस्ट्रक्चर खराब हो वहाँ ई-कॉमर्स को लागू कर पाना अत्यंत मुश्किल कार्य है। उदाहरणस्वरूप हमारे भारत में ही बहुत बड़ी आबादी के पास तो बैंक अकाउण्ट नहीं हैं तथा जिनके पास है

    उनके पास क्रेडिट कार्ड या भुगतान करने के उपयुक्त साधन उपलब्ध नहीं हैं। बैंक आज भी क्रेडिट कार्ड व्यापक स्तर पर निर्गत करने की स्थिति में नहीं है। स्थानीय बैंकों में तो क्रेडिट कार्ड सिस्टम ही नहीं है तथा बहुत कम बैंक हैं

    जो क्रेडिट कार्ड से किये गये भुगतान को स्वीकार करते हैं। दो बैंक के बीच चेक क्लियरेंस (clearance) सिस्टम भी बहुत अच्छा नहीं है।

    क्रेडिट कार्ड उपयोगकर्ता की कमी (Lack of Credit Card Users) – जब आपके पास सामान या सेवा खरीदने के बदले भुगतान करने का कोई साधन नहीं होगा तो यह स्वाभाविक है कि आप ई-कॉमर्स के साथ नहीं जुड़ सकते हैं। अतः यह अत्यंत शक्तिशाली बाधा है जो ई-कॉमर्स को बढ़ने में रूकावट पैदा करती है।

  • Types of E-Commerce ई-कॉमर्स के प्रकार kya hai?

    ई-कॉमर्स के प्रकार (Types of E-Commerce)

    लेन-देन की प्रकृति तथा पक्षों (parties) की संलिप्तता के आधार पर कई प्रकार के ई-कॉमर्स अस्तित्व में हैं। मुख्य प्रकार के ई-कॉमर्स हैं-

    ■ व्यापार-व्यापार ई-कॉमर्स (Business to Business E-Commerce) : व्यापार-व्यापार ई-कॉमर्स कम्पनियों के मध्य किये जाने वाले ई-कामर्स को कहते हैं।

    यह ई-कॉमर्स का वह प्रकार है जो दो व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बीच या व्यापारिक प्रतिष्ठानों के मध्य संबंध को दर्शाता है।

    अधिकतर विशेषज्ञों का अनुमान है कि व्यापार-व्यापार ई-कॉमर्स व्यापार-उपभोक्ता ई-कॉमर्स की अपेक्षाकृत तेजी से उन्नति करेगा।

    व्यापार-उपभोक्ता ई-कॉमर्स (Business to Consumer E-Commerce) : व्यापार-उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स का वह रूप है जिसमें उत्पाद या सेवाएँ किसी प्रतिष्ठान या कम्पनी से किसी उपभोक्ता को बेची जाती है।

    व्यापार- उपभोक्ता ई-कॉमर्स अथवा कम्पनियों और उपभोक्ताओं के बीच के वाणिज्य में निम्नलिखित प्रकार के ग्राहक आते हैं-

    सूचना एकत्र करता हुआ (gathering information)

    भौतिक रूप अर्थात् ठोस या स्पृश्य सामान जैसे पुस्तकें या अन्य उपभोक्ता वस्तु की खरीदारी करता हुआ। यह ई-कॉमर्स का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे पुराना रूप है।

    ऑनलाइन रिटेलिंग (या-ई-टेलिंग) को इसका शुरुआत कहा जा सकता है। इस प्रकार, व्यापार-उपभोक्ता व्यापार मॉडल का अधिक साधारण मॉडल ऑनलाइन रिटेलिंग कम्पनियाँ जैसे अमेजन.कॉम, ईबे.कॉम (ebay.com) हैं।

  • Internet and E-Commerceइण्टरनेट तथा ई-कॉमर्स kya hai?

    इण्टरनेट तथा ई-कॉमर्स (Internet and E-Commerce)

    इण्टरनेट की सहायता पूरी दुनिया के लोग एक दूसरे से बगैर बहुत अधिक खर्च के तथा विश्वसनीय रूप से जुड़ते हैं।

    टेक्नीकल इन्फ्रास्ट्रक्चर के रूप में यह वैश्विक नेटवर्क (global network) का एक संकलन है जो एक ही तरह के प्रोटोकॉल के आधार पर इससे जुड़कर सूचना का साझा करता है।

    इण्टरनेट लोगों तथा सूचना का एक विशाल नेटवर्क होने के कारण ई-कॉमर्स का मुख्य घटक है। इसकी सहायता से लोग अपने व्यापार का प्रदर्शन कर सकते हैं, अपने उत्पादों तथा सेवाओं को ऑनलाइन बेच सकते हैं।

    साथ ही, इण्टरनेट इन व्यापार तथा व्यापारिक उत्पादों तथा सेवाओं के बार में संभावित ग्राहकों, व्यापारिक साझेदारों (Business Partners) को सूचना एक्सेस प्रदान करता है जो अंततः खरीदारी तक ले जाता है।

    व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए जब इण्टरनेट का प्रयोग नहीं होता था, तब कम्पनियाँ इलेक्ट्रॉनिक डेटा इंटरचेंज (Electronic Data Interchange) जैसी निजी नेटवर्क, का प्रयोग कर एक दूसरे के साथ व्यवसाय करती थी।

    उस समय यह ई-कॉमर्स का रूप था, किन्तु निजी नेटवर्क को स्थापित करना तथा उन्हें मेनटेन करना अत्यंत महंगा था।

    इण्टरनेट के उदभव के साथ ई-कॉमर्स का तेजी से विकास हुआ। इसका कारण यह है कि इसमें लागत कम आता है तथा यह खुले मानकों (open standards) पर आधारित है।