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  • Control Unit Kya Hai?

    आइये इस खण्ड में हम जानते हैं कि कंट्रोल यूनिट क्या है ? यह भाग कम्प्यूटर को आन्तरिक क्रियाओं (Internal operations) की नियंत्रण करता है।

    यह इनपुट आउटपुट क्रियाओं को नियंत्रित करता है, साथ ही समारी और ए.एल.यू. (ALU) के मध्य डाटा के आदान प्रदान को निर्देशित करता है।

    यह प्रोग्राम को एक्जिक्यूट करने के लिए प्रोग्राम के निर्देशों (Instructions) को ममारी में से प्राप्त करता है। निर्देशों क विद्युत संकेतों (Electric Signals) में परिवर्तित करके यह उचित डिवाइसेज तक पहुँचाता है|

    जिससे डाटा प्रोसेसिंग हेतु डाटा, मेमोरी में कहाँ उपस्थित है, क्या किया करनी है तथा प्रोसेसिंग के पश्चात आउटपुट मेमारी में कहाँ स्टोर होना इन सभी निर्देशों के विद्युत संकेत, सिस्टम बस (System Bus) की कंट्रोल बस (Control Bus) के माध्यम से कम्प्यूटर के विभिन्न भागों (Components) तक संचारित होते हैं।

  • E-mail email kya hai

    Introduction of e-mail परिचय

    ई-मेल इन्टरनेट पर दी जाने वाली सबसे अधिक उपयोगी तथा अति लोकप्रिय सेवा है। यह सेवा सभी इंटरनेट सेवा प्रदाता (Internet Service Provider) अपने प्रयोक्ता को प्रदान करते हैं।

    Introduction of e-mail

    इसकी लोकप्रियता का मूल कारण इसकी गति तथा इस पर होने वाला खर्च है। यह अत्यन्त ही तेज तथा सस्ती सेवा है। व्यवसायिक प्रतिष्ठानों तथा निजी पतों (addresses) पर आज दूरभाष संख्या (Telephone No.) के साथ-साथ ई-मेल पता (e-mail address) देना साधारण बात है।

    ई-मेल की अवधारणा (Concept of E-mail)

    “ई-मेल एक ऐसा सिस्टम है जिसमें एक कम्प्यूटर प्रयोगकर्ता, किसी अन्य कम्प्यूटर प्रयोगकर्ता को संदेश एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकता है। इन सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये कम्युनिकेशन नेटवर्क का प्रयोग होता है।”

    ई-मेल का प्रयोग करने के लिए विभिन्न सॉफ्टवेयर प्रयोग में लाए जाते हैं। ई-मेल करने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि ई-मेल भेजने वाले व प्राप्त करने वाले के पास समान कम्प्यूटर हों।

    यदि हम किसी ऑफिस में काम कर रहे हैं व ऑफिस के किसी अन्य व्यक्ति को ई-मेल के माध्यम से संदेश देना चाहते हैं तो हमारे ऑफिस नेटवर्क में इंटरनेट के लिये एक गेटवे (Gateway) होता है, जो हमारे संदेश को इंटरनेट के माध्यम से भेजता है।

    गेटवे (Gateway ) गेटवे एक ऐसा कम्प्यूटर या कम्प्यूटर में क्रियान्वित होने वाला प्रोग्राम है जो कि एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में फाइलों को भेजता है

    ई-मेल किस प्रकार कार्य करता है ? (How does e-mail work ?)

    ई-मेल प्रणाली क्लाइन्ट सर्वर संरचना का अनुसरण करती है। दो प्रोग्राम ई-मेल संदेश को प्रेषक के कम्प्यूटर से प्राप्तकर्ता के मेल बॉक्स तक स्थानांतरित करने में सहयोग करते है। स्थानांतरण में दो प्रोग्राम की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि एक कम्प्यूटर पर चल रहा एप्लीकेशन दूसरे कम्प्यूटर के मेल बॉक्स में सीधे-सीधे डाटा संगृहीत नहीं कर सकता है।

    जब एक प्रयोक्ता ई-मेल संदेश भेजता है, तब प्रेषक का कम्प्यूटर क्लाइन्ट (client) बन जाता है। यह प्राप्तकर्ता कम्प्यूटर के ई-मेल सर्वर प्रोग्राम से सम्पर्क करता है तथा संदेश की एक प्रति स्थानांतरित कर देता है। सर्वर उस संदेश को प्राप्तकर्ता के मेल बॉक्स में संचित कर देता है।

  • POP 3 E-MAIL kya hai? पॉप 3 ईमेल

    पॉप 3 ईमेल (POP 3 E-MAIL)

    पॉप ईमेल सेवाएँ आपके ई-मेल को किसी दूरस्थ सर्वर (remote server) पर संचित करती है। आप इस सर्वर से किसी भी समय जुड़ कर सकते हैं तथा अपने ई-मेल को पसन्दीदा ई-मेल सॉफ्टवेयर पैकेज में डाउनलोड कर सकते हैं।

    साधारणत: पॉप 3 मेल के साथ, अपने अपने स्थानीय कम्प्यूटर पर एक बार में ही सभी नये संदेशों को डाउनलोड कर सकते हैं।

    पॉप (या पॉप 3) मेल सेवा आपके आने वाले संदेशों को सर्वर पर तब तक संचित रखता है, जब तक आप उसे संग्रह करने के लिये तैयार नहीं हो जाते।

    आप उन्हें किसी ई-मेल सॉफ्टवेयर पैकेज यूडोटा (Eudora), आउटलुक एक्सप्रेस आदि) की सहायता से डाउनलोड कर सकते हैं। एक बार जब आप संदेशों को डाउनलोड कर लेते हैं, तो वे सर्वर से मिटा दिये जाते हैं तथा आपके कम्प्यूटर पर संचित हो जाते हैं।

    अधिकांश इण्टरनेट सेवा प्रदाता (ISPs) में पॉप (POP) मेल ही उपलब्ध रहता है, इसलिए आपके पास पहले से ही संभवतः कम-से-कम एक पॉप मेल एकाउन्ट होना चाहिए ।

    पॉप के फायदे (Pros of POP)

    आप ऑफलाइन (offline) रहकर संदेशों को लिखने तथा पढने का कार्य कर सकते हैं संदेश को भेजने एवं अपने नये मेल को डाउनलोड करने के लिये ही ऑनलाइन होने की आवश्यकता होती है। आप वर्तनी जाँच (spell checking), फिल्टर आदि के साथ उपलब्ध शक्तिशाली ई-मेल सॉफ्टवेयर का भी उपयोग कर सकते हैं।

    आप असीमित संख्या में संदेशों को सुरक्षित रख सकते हैं (जब तक आप उन्हें नियमित रूप से डाउनलोड करते रहना जारी रखेंगे), क्योंकि ये आपके हार्ड डिस्क पर संचित किये जाते हैं। इसका यह भी तात्पर्य है कि आप बिना इन्टरनेट से सम्पर्क स्थापित किये पुराने संदेशों को दुबारा पढ़ सकते हैं।

    पॉप के नुकसान (Cons of POP)

    अभी कुछ समय पहले तक, पॉप का सबसे बड़ा नुकसान यह था कि जब आप यात्रा कि दौरान अपने ई-मेल को एक्सेस नहीं कर सकते थे क्योंकि आपको ऐसे विशेष ई-मेल सॉफ्टवेयर की आवश्यकता पड़ती थी जो बिल्कुल इसी कार्य हेतु कनफिगर (configure) किया गया हो। परन्तु, अब पॉप मेल को पढ़ने के लिये कई कम्पनियों ने सरल वेब-आधारित समाधान प्रस्तुत किया है।

    निशुल्क पॉप मेल (free POP mail) के साथ, एकमात्र व्यावहारिक व्यावसायिक मॉडल संदेशों का विज्ञापन (advertising) करना है। यदि आप किसी निःशुल्क पॉप मेल सेवा के साथ साइन अप (sign up) करते हैं, तो आप महीने में कई बार अपने मेलबॉक्स में विज्ञापन प्राप्त करने की अपेक्षा रख सकते हैं।

    कई निःशुल्क पॉप मेल सेवा ने संदेश भेजने हेतु सपोर्ट को निष्क्रिय कर दिया है (स्पैम (spam) को रोकने के लिये), अतः आप उसी कम्पनी के माध्यम से संदेशों को भेजने एवं प्राप्त करने के योग्य नहीं भी हो सकते हैं।

  • Arithmetic Logic Unit Kya Hai?

    पिछले खण्ड में हमने यह जाना की अर्थमेटिक व लॉजिक यूनिट सी.पी.यू. का ही एक भाग होता है | आइये तो हम जानते हैं की एरिथ्मेटिक लॉजिक यूनिट क्या है तथा यह क्या करता है ?

    एरिथमेटिक लॉजिक यूनिट का संक्षप में ए एल. यू. कहते हैं। यह यूनिट डाटा पर एरिथमेटिक ऑपरेशन्स (जोड़, घटाव, गुणा, भाग) और लॉजिकल ऑपरेशन्स (Logical Operations) करती है।

    इसमें ऐसा इलेक्ट्रॉनिक सर्किट होता है जो बाइनरी अंकगणित (Binary Arithmetic) की गणनाएँ करने में सक्षम होता है। ए.एल.यू. सभी गणनाओं को पहले सरल अंकगणितीय क्रियाओं में बाँट लेता है|

    जैसे गुणा ( Multiplication) का बार-बार जोड़ने की क्रिया में बदलना। बाद में इन्हें विद्युत पल्स (Pulse) में बदल कर सर्किट में आगे संचारित किया जाता है।

    लॉजिकल ऑपरेशन्स (Logical Operations) में एए दो संख्याओं या डाटा की तुलना करता है और (Processing) में निर्णय लेने का कार्य करता है।

    ए.एल.यू.(ALU) कंट्रोल यूनिट से निर्देश या गाइडलाइन्स प्राप्त करता है। यह मेमोरी से द्वारा प्राप्त करता है और में ही सूचना इंफॉर्मेशन को लौटा देता है।

    (ALU) के कार्य करने की गति अति तीव्र होती है। यह 1000000 गणनाएँ प्रति सेकण्ड की गति से करता है। इसमें कईस्टर (Registers) और एक्युमुलेट (Accum tors) होते हैं

    जो गणनाओं के दौरान वन (virtual) मेमोरी का कार्य करते हैं। ए.एल.यू. प्रोग्राम के आधार पर क यूनिट के बताए अनुसार सभी दादा मैमारी से प्राप्त करके एक्युमुलेटर (Accumulator) रख लेता है।

    उदाहरणार्थ, माना दो संख्याओं A और B को जोड़ना है। कंट्रोल यूनिट A को मेमोरी से चुनकर ए. एल.यू. में स्थित B में जोड़ती है। परिणाम मेमोरी में स्थित हो जाता है या आगे गणना हेतु एक्युमुलेटर में स्टोर हो जाता है।

  • ATM kya hai? ए. टी. एम.

    ए. टी. एम. (ATM)

    ए. टी. एम. ATM से तात्पर्य असहकालिक हस्तांतरण मोड (Asynchronous Transfer Mode) होता है। यह एक सेल रिले नेटवर्क प्रोटोकॉल है जो डेटा ट्रैफिक को परिवर्तनीय आकार के नेटवर्क (कभी-कभी इसे फ्रेम कहा जाता है)

    जैसा कि पैकेट स्वीच्ड नेटवर्क (यथा इण्टरनेट प्रोटोकॉल या ईथरनेट) में होता है के बजाय छोटे स्थिर आकार (53 बाइट जिसमें 48 बाईट डेटा तथा 5 बाईट हेडर सूचना) के सेलों में कोडित (encode) करता है। यह संयोजन प्रदत्त प्रौद्योगिकी (Connection oriented technology) होता है जिसमें संयोजन को मूल डेटा के आदान-प्रदान होने से पहले ही दो अंतिम बिन्दुओं (end-point) के मध्य स्थापित किया जाता है।

    ए. टी. एम. ATM का उद्देश्य इकहरा तथा एकीकृत नेटवर्किंग मानक प्रदान करना था जो पैकेट ट्रैफिक के लिए कई स्तरों की सेवाओं की गुणवत्ता (multiple levels of quality of service) को सर्पोट करने के साथ-साथ सहकालिक चैनल नेटवर्किंग (synchro- nous channel networking ) (PDH, SDH) और पैकेट आधारित नेटवर्किंग दोनों को सपोर्ट कर सकता था।

    ए. टी. एम. ATM ने सर्किट स्विच्ड नेटवर्क (Circuit Switched Networks) और पैकेट स्विच्ड नेटवर्क (Packet Switched Networks) दोनों के बीच के विवाद (conflict) को सुलझाने की कोशिश की और इसके लिए उसने दोनों बिट स्ट्रीम्स तथा पैकेट स्ट्रीम्स को वर्चुअल सर्किट पहचानकर्ता से जुड़े छोटे नियत आकार के सेलों के स्ट्रीम पर मापने और अंकित करने की कोशिश की।

    सेलों (Cells) को एक सहकालिक बिट स्ट्रीम में एक सहकालिक टाइम स्लॉट के भीतर माँग के आधार पर (on demand) भेजा जाता है। यहाँ असहकालिक सेलों (cells) को ढ़ोने वाले निम्न स्तर बिट् स्ट्रीम नहीं है, बल्कि सेलों को भेजा जाना असहकालिक (asynchronous) हैं।

    अपने मूल अवधारणा में ATM को ब्रॉड बैण्ड इंटिग्रेटेड सर्विसेज डिजीटल नेटवर्क (Broadband Integrated Services Digital Network (B-ISDN)) की सामर्थ्यदायी तकनीक होना था जो वर्तमान में चल रही पी. एस. टी. एन. (PSTN) को प्रतिस्थापित करता।

    ए. टी. एम. मानक का पूरा सुईट (suite), क्लासिकल ओ. एस. आई. के सात लेअर नेटवर्किंग मॉडल का लेयर । (भौतिक संयोजन), लेयर 2 (डेटा लिंक लेयर) और लेयर 3 (नेटवर्क) की परिभाषा प्रदान करता है। ATM मानकों की अवध रणा कम्प्यूटर नेटवर्किंग कम्यूनिटि से नहीं दूरसंचार कम्यूनिटि से ली गई थी। इस कारण से, वर्तमान टेलको तकनीक और ए. टी. एम. की परंपराओं के एकीकरण के लिए व्यापक प्रबन्ध किये गए थे।

    इसके परिणाम स्वरूप ए. टी. एम. एक उच्च स्तर की जटिल तकनीक प्रदान करता है, जिसकी विशेषताएँ, वैश्विक टेलकों नेटवर्क से लेकर लोकल एरिया कम्प्यूटर नेटवर्क तक के अनुप्रयोगों पर लागू होती हैं। अपने विस्तृत फैलाव के कारण ए. टी. एम. एक तकनीक के रूप में आंशिक रूप से सफल हुई है, किन्तु सामान्यतः इसका उपयोग आई. पी. ट्रैफिक के लिए ट्रांस्पोर्ट के रूप में होता है। लैन पब्लिक नेटवर्क, तथा प्रयोक्ता सेवाओं के लिए एकीकृत तकनीक प्रदान करने का इसका लक्ष्य बड़े रूप में असफल ही रहा है।

  • FDDI kya hai? एफ.डी.डी.आई.

    एफ.डी.डी.आई. (FDDI)

    एफ. डी. डी. आई. (FDDI) का पूर्ण रुप फाइबर डिस्ट्रीब्यूटेड डेटा इंटरफेस (FIBER DISTRIBUTED DATA INTERFACE) है। एफ. डी. डी. आई. लोकल एरिया नेटवर्क में डाटा संप्रेषण के लिए एक मानक प्रदान करता है, जो 200 किमी. (124 मील) की सीमा तक विस्तारित हो सकती है। एफ. डी. डी. आई. प्रोटोकॉल अपने आधार के रूप में टोकेन रिंग प्रोटोकॉल (Token Ring Protocol) का प्रयोग करता है। विशाल भौगोलिक क्षेत्र को कवर करने के अतिरिक्त, एफ. डी. डी. आई. लोकल एरिया नेटवर्क, हज़ारों प्रयोक्ताओं को सपोर्ट कर सकती है। मानक नीचे बिछ सकने वाले (underlying) माध्यम के रूप में यह ऑप्टिकल फाइबर ( हालाँकि यह ताँबे के केबल का भी उपयोग कर सकता है, जिस स्थिति में हम इसे CDDI कहते हैं) का प्रयोग करता है।

    एफ. डी. डी. आई. युग्म रूप से जुड़ा हुआ (dual attached) दोनों ओर से घूमते हुए टोकेन रिंग टोपोलॉजी (topology) का प्रयोग करता है। अमेरिकन नेशनल स्टैण्डर्डस इन्स्टीट्यूट (American National Standards Institute) x 3- T9 के उत्पाद के रुप में एफ. डी. डी. आई. (FDDI) अन्य प्रोटोकॉलों का प्रयोग करते हुए लैनस् के फंक्शनल लेअरिंग के ओपन सिस्टम्स इण्टरकनेक्शन (Open Systems Interconnection) अर्थात ओ. एस. आई. (OSI) मॉडल का पालन करती है।

    एक एफ. डी. डी. आई. नेटवर्क में दो टोकेन रिंग होते हैं। एक प्रारंभिक रिंग के कार्य करना बंद कर देने की स्थिति में संभावित बैकअप (backup) प्रदान करने के लिए होता है। प्रारंभिक रिंग 100 मेगाबाइट की क्षमता प्रदान करता है। जब किसी नेटवर्क को बैकअप के लिए द्वितीयक या सहायक रिंग की जरूरत नहीं होता है तो यह 200 मेगाबाइट की क्षमता तक जाकर डेटा को वहन कर सकता है। एकल रिंग महत्तम दूरी को विस्तारित कर सकता है। एक दोहरा (dual) रिंग 100 किमी (62 मील) तक विस्तृत हो सकता है। एफ. डी. डी. आई. में मानक 100 मेगाबाइट इथरनेट के मुकाबले अधिक बड़ा महत्तम ढाँचाकृति (Maximum frame size) होता है। फलस्वरुप बेहतर (throughput) देता है।

    डिज़ाइनर सामान्यतः दोहरे वृक्ष रिंग (dual ring of trees) के रूप में एफ. डी. डी. आई. रिंगों का निर्माण करते हैं। एक छोटी संख्या के उपकरण (खासतौर से, मूलसंरचनात्मक उपकरण (infrastructural devices) जैसे रुटर्स कंसेन्ट्रेटर्स न कि होस्ट कम्प्यूटर) दोनों रिंगों से जुड़ते हैं इसलिए ड्यूअल अटैच्ड (dual attached) नामक शब्दावली का उपयोग किया जाता है। फिर होस्ट कम्प्यूटर (host computers) एकल रूप से संग्लग्न उपकरण (single attached devices) के रूप में रुटर्स या कंसेन्ट्रेटर्स से जुड़ते हैं। दोहरे रिंग, अपने सबसे विकृत रूप में सामान्य रूप से एकल डिवाइस में बदल कर जाते हैं। विशेष रूप से, एक कम्प्यूटर कक्ष (computer room) में संपूर्ण दोहरा रिंग होता है, हालाँकि कुछ कार्यान्वयनों में मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क के रूप में एफ. डी. डी. आई. को प्रभावी रूप से प्रयुक्त किया है।

    एफ. डी. डी. आई. को इस नेटवर्क टोपोलॉजी की ज़रूरत होती है क्योंकि दोहरा रिंग (dual ring) प्रत्येक संबद्ध उपकरण से होकर गुजरता है और उसे इस बात की आवश्यकता होती है कि ऐसा प्रत्येक उपकरण (device) सतत रूप से कार्यशील रहे। यह मानक, दरअसल ऑप्टिकल (bypasses) की अनुमति देता है, किन्तु नेटवर्क अभियंता इसे गैर भरोसेमंद और त्रुटि-कारक समझते हैं।)

    ऐसे उपकरण यथा वर्कस्टेशन (workstations) और मिनी कम्प्यूटर जो नेटवर्क प्रबंधक के नियंत्रण में नहीं आ सकते दोहरे रिंग से संबद्धता के लिए उपयुक्त नहीं है। दोहरे रूप से संबद्ध कनेक्शन (dual-attached connection) के विकल्प के रूप

    में, एक वर्कस्टेशन एक ही एफ. डी. डी. आई. रिंग में दो अलग-अलग उपकरणों से एक साथ किए गए ड्यूअल होम्ड (dual homed) कनेक्शन के द्वारा समान सीमा तक लचीलापन हासिल कर सकता है। दो में से एक कनेक्शन सक्रिय हो जाता है तथ दूसरा स्वतः बंद या अवरूद्ध हो जाता है। यदि पहला कनेक्शन कार्य करना बंद कर देता है तो बैकअप लिंक बिना समय गँवाए कार्यशील हो जाता है। अपनी गति, लागत और सर्वव्यापकता (ubiquity) के कारण तीव्र इथरनेट (1998 से अब तक) गीगाबाइट इथरनेट ने FDDI को बड़े तौर पर अनावश्यक बना दिया है।

  • Ethernet kya hai? इथरनेट

    इथरनेट (Ethernet)

    इथरनेट लोकल एरिया नेटवर्क (Local Area Networks) के लिए फ्रेम आधारित कम्प्यूटर नेटवर्किक तकनीक का एक विशाल एवं विविधतापूर्ण परिवार है। यह नाम इथर की भौतिक अवधारणा से लिया गया है। यह फीजिकल लेअर (Physical layer के लिए वायरिंग (wiring) तार बिछाने का और संकेत भेजने (signalling) के मानक, मीडिया अभिगम नियंत्रण (Media access control)/डाटा लिंक स्तर (data link layer) पर नेटवर्क अभिगमन के दो साधन तथा सामान्य अड्रेसिंग फॉरमेट को परिभाषित करता है।

    इथरनेट (Ethernet)

    ईथरनेट को आई. ई. ई. ई. 802.3 (IEEE802.3) के रुप में मानकीकृत किया गया है। इसका स्वर टोपोलॉजी, टविस्टेड युग्म वायरिंग रुप 1990 के दशक से लेकर आज तक सर्वप्रचलित लैन प्रौद्योगिकी के रुप में प्रयोग होता रहा है तथा इसने व्यापाक स्पर पर प्रतियोगी लैन मानकों यथा को-एक्सिल केबल ईथरनेट, टोकेन रिंग, एफ. डी. डी. आई. तथा आर्कनेट (ARC NET) को प्रतिस्थापित किया है। कई स्थापनों (installations) में आई. ई. ई. ई. 802.11 (IEEE 802.11) द्वारा मानवीकृत वाई. फाई. (WiFi), वायरलेस लैन को ईथरनेट के बदले में प्रयोग किया गया है।

    मूल इथरनेट का विकास प्रायोगिक कोक्सिअल केबल नेटवर्क के रूप में 1970 के दशक में ज़ेरोक्स कॉरपोरेशन (Xerox Corporation) के द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य विरल किन्तु अवसर विशेष पर भारी ट्रैफिक आवश्यकताओं वाले लैनस् (LANs) के लिए एम. बी. पी. एस. वाले डेटा दर (data rate) पर इस परियोजना की सफलता ने 1980 के तीन कम्पनियों के निकाय (three-company consortium) द्वारा 10 एम. बी. पी. एस. (MBPS) ईथरनेट संस्करण 1.0 विनिर्देशन के विकास को जन्म दिया। इन तीन कम्पनियों के नाम डिजीटल इक्वीपमेंट कॉरपोरेशन (Digital Equipment Corporation), इण्टेल कॉरपोरेशन (Intel Corporation) तथा जेरॉक्स कॉरपोटेशन (Xerox Corporation) थे।

    मूल IEEE 802.3 मानक इथरनेट संस्करण 1.0 विनिर्देशन पर आधारित भी था और उससे बहुत मिलता जुलता भी था। ड्राफ्ट मानक को 1983 में 802.3 वर्किंग समूह के रुप में स्वीकृति प्रदान किया गया और तदनन्तर 1985 (ANSI/TEEE Std. 802.3- 1985) में ऑफिशियल मानक के द्वारा प्रकाशित किया गया। तब से, तकनीक के विकास का लाभ उठाने तथा अतिरिक्त नेटवर्क मीडिया और उच्चतर डेटा दर क्षमता (higher data rate capabilities) तथा कई अन्य वैकल्पिक नेटवर्क अभिगम नियंत्रक विशेषताओं को सपोर्ट करने हेतु इस मानक में बहुत सी संपूरक विशेषताएँ निर्दिष्ट की गई हैं।

  • Central Processing Unit Kya Hai?

    परिचय (Introduction)

    कम्प्यूटर की रचना का सबसे महत्वपूर्ण भाग सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) है। इसमें इनपुट किये गये डाटा पर प्रक्रिया (प्राससिंग) होती है

    तदोपरान्त डाटा सूचना (Information) का रूप धारण करता है। इस अध्याय में हम सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के विभिन्न भागों की चर्चा करेंगे।

    सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट क्या है? (What is Central Processing Unit ?)

    कम्प्यूटर के मुख्य तीन भाग सी.पी. यू. ए.एल.यू. तथा मेन मेमारी होते है जैसा कि आप पहले ही यह जान चुके हैं। आइये इस अध्याय के इस खण्ड में हम यह जानते हैं कि सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट क्या है ? (What is a Central Processing Unit ? ) सी.पी.यू. कम्प्यूटर का मस्तिष्क होता है।

    इसका मुख्य कार्य प्रोग्राम्स (Programs) को एक्जिक्यूट (Execute) करना है। इसके अलावा सी.पी.यू. कम्प्यूटर के सभी भागों, जैसे मेमोरी, इनपुट और आउटपुट डिवाइसेज के कार्यों को भी नियंत्रित करता है। इसके नियंत्रण में प्रोग्राम और डाटा, मेमोरी में संग्रहीत (store) होते हैं।

    इसी के नियंत्रण में आउटपुट स्क्रीन (Screen) पर दिखाई देता है या प्रिंटर के द्वारा कागज पर छपता है।सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के निम्नलिखित तीन भाग होते हैं-

    1) एरिथमेटिक लॉजिक यूनिट (Arithmetic Logic Unit)

    2) मेन मेमोरी यूनिट (Main Memory Unit )

    3) कन्ट्रोल यूनिट (Control Unit)

  • Point to Point Protocol kya hai?

    पॉइण्ट-टू-पॉइण्ट प्रोटोकॉल (Point to Point Protocol)

    पॉइण्ट-टू-पॉइण्ट प्रोटोकॉल (Point to Point Protocol) या पी. पी. पी. का उपयोग सामायतः दो नोड्स के बीच संबंध स्थापित करने के लिए किया जाता है। यह सीरियल केबल, फोन लाइन, ट्रंक लाइन, सेल्युलर टेलिफोन, विशेषीकृत (specialized) रेडियो लिंक, या फाइबर ऑप्टिक लिंक में से किसी का उपयोग कर कम्प्यूटरों आपस में जोड़ सकता है।

    अधिकांश इन्टरनेट सेवा प्रदानकर्ता, इन्टरनेट से ग्राहक डायल-अप अभिगमन के लिए पी. पी. पी. का प्रयोग करते हैं। पी. पी. पी. का एक संपुटित (Encapsulated) रूप जिसे पी. पी. पी. ओवर ईथरनेट (PPPOE) कहा जाता है, का प्रयोग समान भूमिका में डिजिटल सब्सक्राइबर लाइन इन्टरनेट सेवा (Digital Subscriber Line Internet Service) के साथ किया जाता है।

    पी. पी. पी. आमतौर पर प्रयोग लेअर-2 (OSI मॉडल के : डेटा लिंक लेअर) प्रोटोकॉल के रूप में कार्य करता है जो समक्रमिक (synchronous) और असमक्रमिक (asynchronous) परिपथ पर संयोजन (connection) के लिए होता है, जहाँ इसने बड़े पैमाने पर एक पुराने अमानक प्रोटोकॉल (an older nonstandard protocol) (जो SLIP के रूप में जाना जाता है) और टेलिफोन कम्पनी अधिदेशाधीन मानक (telephone company mandated standards) (जैसे X.25) को खत्म किया है।

    पी. पी. पी. को अनगिनत लेअर3 नेटवर्क लेयर प्रोटोकॉल्ज़ जिसमें आई. पी., नॉवेल का आई. पी. एक्स और एपल टॉक (Apple Talk) के साथ काम करने हेतु डिज़ायन किया गया था।

  • SLIP kya hai? क्रमिक लाइन इण्टरनेट प्रोटोकॉल

    क्रमिक लाइन इण्टरनेट प्रोटोकॉल (SLIP)

    मिक लाइन इन्टरनेट प्रोटोकॉल (SLIP) इन्टरनेट प्रोटोकॉल का ऐसा पुराना पड़ चुका संपुटित रूप है जिसे क्रमिक पोर्ट्स और डेम कनेक्शनों पर कार्य करने के लिए विकसित किया गया था। इसे RFC 1055 में दस्तावेज़ीकृत किया गया है।

    पर्सनल म्प्यूटरों पर स्लीप (SLIP) को मुख्यतः प्वाइण्ट-टू-प्वाइण्ट प्रोटोकॉल ने प्रतिस्थापित किया है, जिसे ज्यादा बेहतर तरीके से र्मित किया गया है, जिसमें अधिक विशेषताऐं हैं और स्थापित किये जाने से पूर्व इसके आई. पी. कन्फिग्रेशन को निर्धारित कये जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। किन्तु सूक्ष्म नियंत्रकों (Micro-controllers) पर, अब भी स्लीप अपने छोटे ओवर हेड – कारण आई. पी. पैकेटों को संपूटित करने का पसंदीदा तरीका है।

    लीप एक मानक इन्टरनेट डेटाग्राम को इसमें एक विशेष “SLIP END” कैरेक्टर संलग्न कर उन्नत करता है, जो डाटाग्राम atagrams) को अलग-अलग करके देखे जाने की अनुमति प्रदान करता है। स्लीप में 8 डेटा बिट्स के एक पोर्ट कन्फिग्रेशन आवश्यकता होती है।

    स्लीप त्रुटियों को पता लगाने की क्षमता नहीं प्रदान करता और इसके लिए दूसरे उच्च स्तर के टोकॉल पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए, एक खास गलतियों की संभावना वाली डायल-अप कनेक्शन पर स्लीप खुद में तना संतोषजनक नहीं है।

    किन्तु यह अब भी लोड के अंतर्गत परिचालन तंत्र के रिअल टाइम क्षमताओं की जाँच के लिए पयोगी है। हेडर वाला स्लीप का एक संस्करण संकुचन स्लीप (Compressed SLIP) कहलाता है।