इन्टरनेट तथा इन्टनेट दो समान दिखने वाले शब्द तो है परन्तु इसमें कई स्पष्ट अंतर है। दोनों के यदि शाब्दिक अर्थ पर विचार करें तो सम्भवतः इनके मध्य के अंतर स्पष्ट हो जायें। उदाहरणार्थ आपने सुना होगा कि इंटर स्कूल्स (Inter Schools) प्रतियोगिता होने वाला है। ठीक उसी प्रकार कभी-कभी इंटरा स्कूल (Intra School) प्रतियोगिता होती है। दोनों में मुख्य अंतर यह है कि इंटर स्कूल प्रतियोगिता में कई विद्यालयों के बीच प्रतियोगिता होती है जबकि इंटरा स्कूल प्रतियोगिता स्कूल के अन्दर अर्थात् किसी विशेष स्कूल के बच्चों एवं बच्चियों के मध्य की प्रतियोगिता को कहा जाता है।
ठीक उसी प्रकार, इंटरनेट में कई नेटवर्क व्यापक रूप से विश्वस्तर पर एक साथ जुड़े होते हैं। जबकि इंटरनेट में किसी विशेष संगठन का निजी नेटवर्क ही होता है। सैन (LAN) को इंटनेट के उदाहरण के रूप में कुछ हद तक समझा जा सकता है। इण्टरनेट तथा इष्टनेट दोनों में बुनियादी अंतर इसके बतावरण (environment) का भी होता है।
दोनों के साइटों को भी अलग ढंग से डिजाइन किया जाता है। दोनों के पाठकगण (audience) वर्ग अलग होते हैं। दोनों की एक्सेस गति में भी अंतर होता है। दोनों के प्लेटफॉर्म तपा परिचालन तंत्र (operating system) में भी विभिन्नताएँ हो सकती हैं। इसके अंतर को सारांशतः इस प्रकार समझा जा सकता है-
इण्टरनेट को सर्वदा अंग्रेजी के बड़े अक्षर से शुरू करते हैं जबकि इण्टरनेट को हमेशा अंग्रेजी के छोटे अक्षर से शुरू करते हैं, यदि यह वाक्य को प्रारम्भ नहीं करता है।
इण्टरनेट संजालों (networks) का संजाल (network) है। अधिकतर व्यापारिक नेटवर्क वस्तुतः इण्टरनेटवर्क (internetworks) होते है अतः वे दो या अधिक लोकल एरिया नेटवर्क से बने होते हैं।
किसी कम्पनी का इण्टरनेटवर्क कई अलग-अलग नेटवकों पर बना होता है। कई कम्पनी के इण्टरनेट विशेष भवन के अंदर हो होता है तथा अन्य पूरे विश्व में इसके कार्यालयों में स्थित होता है।
किसी कम्पनी का इण्टरनेट उपस्थिति कई सर्वरों के समूह से निर्मित होता है तथा सार्वजनिक तथा निजी दोनों ही तरह के प्रयोक्ताओं को सेवाएँ प्रदान करता है।
इण्टरनेट किसी निजी इण्टरनेटवर्क के अंदर स्थित प्लेटफॉर्म युक्त क्लाइण्ट/सवंर कम्प्यूटिंग नेटवर्क होता है। इसे निजी इण्टरनेट के रूप में भी समझा जा सकता है। यह इण्टरनेट सेवाओं में प्रयुक्त होने वाले टूल्स तथा सेवाओं का प्रयोग करता है परन्तु इसका प्रयोग अत्यंत निजी होता है।
इण्टरनेट में भी वेब साइट, एफ.टी.पी. सर्वर तथा विशेष इंटरएक्टिव क्लाइण्ट/सर्वर एप्लिकेशन्स इण्टरनेट की भाँति हो सकते हैं परन्तु इसकी गति अधिक होने के साथ ही यह ज्यादा सुरक्षित होता है और इसे किसी विशेष प्लेटफॉर्म की आवश्यकता नहीं होती है।
इण्टरनेट के लिए वेबसाइट को डिजायन करना इण्टरनेट वेबसाइट को डिजाइन करने की अपेक्षाकृत अधिक मुश्किल होता है।
इण्टरनेट वेबसाइट को डिजायन करने में फाइल के आकार को छोटा रखा जाता है ताकि तेजी के साथ डाउनलोड या एक्सेस हो सके। जबकि इण्टरनेट वेबसाइट की फाइल के आकार बढ़े हो सकते हैं क्योंकि इसकी एक्सेस गति तेज होती है।
इण्टरनेट वेबसाइट ब्राउजर के एक बड़े श्रृंख्ला पर ठीक-ठीक कार्य करती है जबकि इण्टरनेट वेबसाइट को एक विशेष प्रकार के ब्राउजर के लिए तैयार किया जाता है।
इष्टरनेट का पूरा खर्च किसी को वहन नहीं करना पड़ता, बल्कि इण्टरनेट पर किये जाने वाले कार्य के बदले प्रत्येक प्रयोक्ता अपने हिस्से का भुगतान करता है। नेटवर्क एक साथ संयोजित होते हैं तथा कैसे परस्पर जुड़े तप्पा इस परस्पर संयोजन पर होने वाले खर्च की राशि कहाँ से लायें, यह निर्णय करते हैं। विद्यालय या विश्वविद्यालय अथवा एक कम्पनी अपने संयोजन का भुगतान क्षेत्रीय नेटवर्क को करती है तथा वह क्षेत्रीय नेटवर्क इस एक्सेस के लिए राष्ट्रीय प्रदाता को भुगतान करता है।
वह कम्पनी जो इण्टरनेट एक्सेस प्रदान करती है इण्टरनेट सेवा प्रदाता (Internet Service Provider) कहलाती है। किसी अन्य कम्पनी की तरह ही इण्टरनेट सेवा प्रदाता अपने सेवाओं के लिए प्रयोक्ता से पैसा लेती है। सामान्यतः इण्टरनेट सेवा प्रदाता दो तरह की शुल्क राशि लेती हैं
• इण्टरनेट प्रयोग करने के लिए
• इण्टरनेट संयोजन (connection) देने के लिए।
आइ. एस. पी. (ISP) के सभी ग्राहकों को इण्टरनेट प्रयोग के बदले में शुल्क राशि का भुगतान करना ही होता है। अधिकतर मामलों में आई. एस. पी. ग्राहक पर एक निश्चित माहवार शुल्क लगाती है। इसमें ग्राहकों को समयावधि, संचार की दूरी तथा डेटा डाउनलोड या अपलोड की मात्रा के लिए स्वतंत्रता दी जाती है। प्रयोग शुल्क के बदले आई. एस. पी. ग्राहक के कम्प्यूटर से गंतव्य स्थान तक तथा अन्य स्थानों से ग्राहक के कम्प्यूटर तक पैकेट को ले जाने और लाने पर सहमत होते हैं।
यद्यपि प्रयोग शुल्क एक निश्चित दर पर लगाया जाता है, आई. एस. पो. प्रयोक्ता के वर्गों के अनुसार इसे निर्धारित करते हैं, उदाहरणार्थ, आई. एस. पी. एक व्यवसायिक प्रतिष्ठान से एक व्यक्ति की तुलना में अधिक शुल्क लगाते हैं, क्योंकि एक व्यक्तिगत प्रयोक्ता इण्टरनेट का प्रयोग एक कम्प्यूटर पर कभी-कभी करता है, जबकि व्यवसायिक प्रतिष्ठान में इण्टरनेट का प्रयोग कई लोग करते हैं तथा वहाँ प्रतिदिन डेटा स्थानांतरण की मात्रा बड़ी होती है। इसके अतिरिक्त आई. एस. पी. इण्टरनेट का शुल्क इस बात पर भी तय करता है कि उस ग्राहक के पास कौन सा संयोजन है। वैसे ग्राहक जिनके पास बड़ी मात्रा में डेटा को स्थानांतरित करने के योग्य संयोजन है, को कम क्षमता के संयोजन वाले ग्राहकों की तुलना में अधिक शुल्क देने होते हैं।
एक अन्य प्रकार का संयोजन शुल्क भी वैसे ग्राहकों के लिए निर्धारित होता है जिनके पास उनके साइट तथा आई. एस. पी. के मध्य अलग से एक समर्पित (dedicated) संयोजन होता है। बी. एस. एन. एल. (BSNL), बी. एस एन एल. (VSNL). रिलायन्स (Reliance), सिफी (Sify), भारती (Bharti) भारत के कुछ खास इण्टरनेट सेवा प्रदाताओं के नाम हैं।
कलेक्शन्स की डिलेट्स एक CSV फाइल में आइटम कैटेगरी, आइटम ID, आइटम नाम, आइटम टाइप, कन्डीशन के रूप में कॉलम हैडिंग्स के साथ स्टोर किया जाता है।
यदि आइटम कैटेगरी, बुक है, तो आइटम टाइप या तो एकेडमिक या नॉन एकेडमिक हो सकता है, और आइटम ID के आगे ‘B’ प्रिफिक्स होना चाहिए। एकेडमिक के केस में क्लासेस में एंटर किया जाएगा।
यदि आइटम कैटेगरी बुक है, तो आइटम सिंगल लाइन, फोर लाइन, फाइव लाइन हो सकता है, और आइटमID को ‘N’ के साथ प्रिफिक्स किया जाएगा।
कंडीशन सिर्फ फिट, मेन्डिंग की आवश्यकता या अनफिट हो सकती है। आइटम के नवीनीकरण के बाद डेटा को एक अन्य CSV फाइल में स्टोर किया जाता है, जिसमें निम्नलिखित कॉलम हेडिग्स होती हैं: आइटम ID, आइटम नेम, आइटम कैटेगरी, आइटम क्वान्टिटी तथा प्राइज। आइटम कैटेगरी, पेपर बेग्स, नोटबुक्स तथा बुक्स हो सकती हैं। केस में क्लॉस भी एंटर की जाएगी।
बुक्स के आर्डर स्टोर करने के लिए एक और CSV फाइल क्रिएट की जाती है, जो आइटम कैटेगरी, आइटम नेम, क्वान्टिटी तथा प्राइज को स्टोर करती है। आर्डर के केस में, नवीनीकृत CSV क्वालिटी को अपडेट करेगी।
प्रभावी निर्णय को सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि सेल्स नवीनीकृत आइटम्स को शो करने के लिए एप्रोप्रिएट प्लॉट्स का उपयोग करके विभिन्न डेटा प्लॉट किए जाएँ।
इस सेक्शन में प्रोजेक्ट वर्क्स के कुछ उदाहरण दिए गए हैं, जिन्हें प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग के अंतर्गत ग्रुप्स में लिया जाता है। यद्यपि, एक ग्रुप, गाइड टीचर के कन्सल्टेशन से किसी अन्य प्रोजेक्ट का चयन कर सकता है।
डिस्क्रिप्शन मुरूगन ने एक आनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म APPAREL EASY लॉन्च करने की योजना बनाई हैं। वह दो व्यापक क्षेणियों (ब्रॉड कैटेगरीज) के व्यापारों की योजना बना रहा है- पुरुष, महिला। दोनों कैटेगरीज श्रेणियों के अंतर्गत कपड़े तथा फूटवियर्स होंगे तथा एसेसरीज सब-कैटेगरी के अंतर्गत होगी। इसके अलावा अपने शॉपिंग प्लेटफॉर्म पर वह दो मेगा इवेन्ट्स लॉन्च करने की योजना बना रहा है- फैस्टिवल सेल (दीवाली से लेकर क्रिसमस के एक महीने पहले) तथा एंड आफ सीजन सेल (फरवरी तथा अगस्त) मुरुगन मेगा इवेन्ट्स पर विशेष ध्यान देने के साथ अपने मंथली रेवन्यू जनरेशन सेल्स तथा कैटेगरी वाइज सेल का रिकॉर्ड भी रखना चाहते हैं। मैन्युफेक्चर्स द्वारा दिए जा रहे डिस्काउंट्स, पेमेन्ट साइट्स याAPPAREL EASY पोर्टल द्वारा प्रमोशनल कैम्पेन के रूप में दिए जाने वाले किसी डिस्काउंट पर भी एक रिकार्ड रखा जाना चाहिए।
स्पेसिफिकेशन पुरुषों तथा महिलाओं के परिधानों (अपैरल्स) की डिटेल्स डेटा फाइल में अपैरल कोड, नाम, कैटेगरी, साइज, प्राइज, कस्टमर का नाम, पैमेन्ट मोड, डिस्काउंट कोड आदि के रूप में फिल्ड के साथ स्टोर किया जाना चाहिए।
यदि कैटेगरी मेन (पुरुष) है, तो अपैरल्स मेन के ट्राउजर्स, शर्ट, जीन्स, टी-शर्ट हो सकते हैं। यदि कैटेगरी विमन (महिला) है, तो अपरैल्स स्कर्ट, टॉप, जीन्स, कुर्ता आदि हो सकते हैं।
यदि पेमेन्ट मोड क्रेडिट या डेबिट कार्ड है, तो क्रेडिट कार्ड नम्बर, नाम CVV और वैलिडिटी एंटर की जाना चाहिए। यदि पैमेन्ट मोड कैश आन डिलिवरी (COD) है, तो कोई डिटेल नहीं पुछी जाना चाहिए।
सेल के लिए रेन्डमली मर्चेन्डाइस सिलेक्ट होता है। सिलेक्ट किए गए मर्चेन्डाइज, टोटल मर्चेन्डाइज के 70 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
डिस्काउंट कोड या तो FEST (फेस्टिवल के लिए) या EOS (एंड आफ सीजन के लिए) हो सकता है। FEST के लिए डिस्काउंट 10 प्रतिशत तथा EOS के लिए 15 प्रतिशत होगा।
आपको मुरुगन की सभी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए डेटा स्ट्रक्चर को विजुअलाइज करने की आवश्यकता है, और फिर पायथन पांडा का उपयोग इम्प्लिमेन्ट करें। इसके बाद, आपको मर्चेन्डाइज की डिटेल्स को आनलाइन सेल करने के लिए सॉफ्टवेयर डिजाइन करने की आवश्यकता है। वहीं ई-कॉमर्स साइट पर आने वाले कस्टमर्स की संख्या के भी रिकॉर्ड्स रखने होते हैं। मुरुगन को फ्युचर मार्केटिंग और प्रमोशन स्ट्रेटेजीस के लिए डिसिजन लेने में सहायता करने के लिए कलेक्ट किए गए डेटा को उचित रूप से प्लॉट किया जाना चाहिए।
टीमवर्क (Teamwork)टीमवर्क के कम्पोनेन्ट्स (Components of Teamwork)
कई रियल लाइफ टास्क्स बहुत कॉम्प्लेक्स होते हैं और उन्हें अचिव करने में योगदान देने के लिए बहुत से व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। किसी टास्क को पूरा करने के लिए व्यक्तियों द्वारा सामूहिक रूप से किया गया प्रयास टीम वर्क कहलाता है।
उदाहरण के लिए, कई स्पोर्ट्स में प्लेयर्स की टीम होती है। एक क्रिकेट टीम का उदाहरण लेते हैं। हम देखते है। कि भले ही कोई बॉलर अच्छी तरह बॉल फेंके, लेकिन यदि फिल्डर कैच नहीं लेता है, तो विकेट नहीं लिया जा सकता है। इसलिए कैच लेने के लिए बॉलर के साथ फिल्डर को भी प्रयासों की जरूरत होती है। एक क्रिकेट मैच जीतने के लिए बेटिंग, बॉलिंग तथा फिल्डिंग तीनों क्षेत्रों के टीम के मेम्बर्स के योगदान की आवश्यकता होती है।
टीमवर्क के कम्पोनेन्ट्स (Components of Teamwork)
टेक्निकल प्रोफिशिएन्सी के अलावा अन्य कम्पोनेन्ट्स की एक विस्तृत विविधता एक सफल टीम वर्क बनाती है। इसमें लक्ष्य हासिल करने के लिए विशिष्ट भूमिकाओं वाले कुशल टीम मेम्बर्स सम्मिलित होते हैं।
(A) दूसरों के साथ कम्युनिकेट करना: जब व्यक्तियों का ग्रुप एक जॉब परफॉर्म करता है, तो टीम के मेम्बर्स के बीच इफेक्टिव कम्युनिकेशन होना जरूरी है। इस तरह का कम्युनिकेशन ई-मेल्स, टेलीफोन्स या ग्रुप मीटिंग्स अरेन्ज करके किया जाता है। यह टीम के मेम्बर्स को एक-दूसरे को समझने और लक्ष्य को प्रभावी ढंग से हासिल करने के लिए उनकी प्रॉब्लम्स की सॉर्ट आउट करने में सहायता करता है।
(B) दूसरों की सुनना: किसी जॉब को एक्जिक्युट करते समय दूसरों के विचारों को समझने की आवश्यकता होती है। यह तब हासिल किया जा सकता है, जब टीम के मेम्बर्स, ग्रुप मीटिंग्स में एक-दूसरे को सुनते हैं और उनके द्वारा सहमति प्राप्त स्टेप्स को फॉलो करते हैं।
(C) दूसरों के साथ शेयर करनाः किसी जॉब को परफॉर्म करने के लिए आइडियाज, इमेजेस तथा टूल्स को एक-दूसरे के साथ शेयर करने की आवश्यकता होती है। शेयरिंग, टीमवर्क का एक महत्वपूर्ण कम्पोनेन्ट है। टीम का कोई भी मेम्बर, जो किसी निश्चित एरिया से अच्छी तरह परिचित है, तो उसे समय सीमा के अंदर लक्ष्य को प्रभावी ढंग से हासिल करने के लिए एक्सपर्टाइज तथा एक्सपीरिएंस को दूसरों को शेयर करना चाहिए।
(D) दूसरों का सम्मान करनाः टीम के प्रत्येक मेम्बर के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए। ग्रुप मीटिंग्स में रखे गए सभी विचारों तथा आइडियाज का सम्मान करके उन पर विधिवत विचार किया जा सकता है। किसी पर्टिक्युलर मेम्बर के व्यूज का सम्मान नहीं करने से समस्या हो सकती है, यानि हो सकता है कि यह अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे
(E) दूसरों की सहायता करनाः सभी मेम्बर्स की सहायता करना सफलता की कुंजी है। कभी-कभी जो लोग टीम का हिस्सा नहीं होते हैं, उनसे भी किसी जॉब को पूरा करने के लिए सहायता की जाती है।
(F) पार्टिसिपेट करनाः टीम के सभी मेम्बर्स को प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पार्टिसिपेट करने और ग्रुप मीटिंग्स में डिस्कशन करने के लिए एक-दूसरे द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साथ ही प्रत्येक मेम्बर का एक्टिव पार्टिसिपेशन होना चाहिए ताकि वे टीम में अपने महत्व को महसूस कर सकें।
पर्सनल कम्प्यूटर इनपुट डिवाइस (input device) आउटपुट डिवाइस (output device), सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central) Processing Unit) तथा अतिरिक्त डिवाइसेज़ जैसे मॉडेम, स्कैनर, प्रिन्टर इत्यादि पर आधारित होता है।
आइए हम देखते है कि किसी पर्सनल कम्प्यूटर के विभिन्न कम्पोनेन्ट्स क्या है ? (What are the components of a personal computer?) पर्सनल कम्प्यूटर के विभिन्न भागों को समझने के लिए हमें इसके आंतरिक भाग तथा बाहरी भाग दोनों को समझना होगा।
पर्सनल कम्प्यूटर का आंतरिक भाग से यहाँ तात्पर्य वे भाग हैं जो सी०पी०यू० कैबिनेट के अंदर होते हैं। मदरबोर्ड, रैम, हार्ड डिस्क, विडियो कार्ड पावर सप्लाई इत्यादि सी०पी०यू० कैबिनेट के अंदर होते हैं जो हमें दिखते नहीं है।
इसी प्रकार सी० पी० पृ० कैबिनेट के आगे हमें फ्लॉपी डिस्क ड्राइव तथा सी० डी० या डी० वी० डी० ड्राइव मिलते हैं। सी० पी० यू० कैबिनेट के पीछे के भाग कुछ महत्वपूर्ण कनेक्शन्स होते हैं
जो आपके सी० पी० यू० कैबिनेट के अंदर के भागों को अन्य पेरिफेरल से जोड़ते है । उन सभी कम्पोनेन्ट्स को क्रमांक दिया गया है ताकि आप भलीभांति समझ सकें । ये कम्पोनेन्ट इस क्रम में हैं
1) मदर बोर्ड (Motherboard)
मदरबोर्ड को मुख्य बोर्ड भी कहा जाता है। यह पर्सनल कम्प्यूटर के अन्दर प्राइमरी सर्किट बोर्ड होता है। कम्प्यूटर के कई अन्य भाग भी मदरबोर्ड से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। मदरबोर्ड में एक या अधिक सी.पी.यू. होते हैं।
इसके अतिरिक्त कुछ सहायक सर्किटरी (circuitry) होते हैं। जो वास्तविक रूप में इंटीग्रेटिड सर्किट होते हैं। जिनका काम सी. पी.यू., मेमोरी तथा इनपुट/आउटपुट पैरोफेरल सर्किट के मध्य इन्टरफेस प्रदान करना होता है। इसमें मुख्य मेमोरी के साथ ही पावर ऑन होने के बाद कम्प्यूटर के आरम्भिक सैटअप के लिए सर्विसेज़ भी होती हैं।
कई पॉटबल तथा इम्बेडेड पर्सनल कम्प्यूटरों के मदरबोर्ड पर लगभग सभी मुख्य भाग स्थित होते हैं। मदरबोर्ड में एक्सपेंशन पर्पज उद्देश्यों के लिए एक या अधि क पेरिफेरल बस तथा फिजिकल कनेक्टर्स होते हैं।
डॉटरबोर्ड क्या है? (What is Daughterboard ?) डॉटरबोर्ड अथवा डॉटरकार्ड एक सर्किट बोर्ड होता है जो मदरबोर्ड पर एक अतिरिक्त बोर्ड अथवा एक्सपेंशन (expansion) बोर्ड के रूप में कार्य करता है। यह कभी-कभी एक स्वतंत्र कार्ड की तरह भी कार्य करता है। विशेषतः डॉटरबोर्ड में प्लग (plugs), सॉकेट (sockets), पिन (prms), संयोजक (connectors) अथवा दूसरे बोर्ड के अन्य संलग्नक (chet) होते है। इसकी यही विशेषता अन्य एक्सपेंशन (expansion) बोर्ड जैसे पी. सी. आई आदि से इसे अलग करती है। इसके अतिरिक्त डॉटरबोर्ड (daughter boards) में सामान्यतः बाहरी संयोजकों (connector) के बजाय कम्प्यूटर तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज के अंदर ही संयोजक होते हैं तथा यह कम्प्यूटर बस के माध्यम से मदरबोर्ड को एक्सेस करने के बजाय सीधे-सीधे एक्सेस करता है।
2) मुख्य मेमोरी (Main Memory)
पर्सनल कम्प्यूटर को मुख्य मेमोरी को इसका प्राइमरी मेमोरी भी कहा जाता है। ये अत्यंत तेज स्टोरेज (storage) होता है जो सी.पी.यू. के द्वारा सीधे-सीधे प्राइमरी (accessible)
इसका प्रयोग तत्काल एक्जिक्यूट हो रहे प्रोग्राम तथा आवश्यकता को स्टोर करने में होता है। पर्सनल कम्प्यूटर में कई प्रकार के अर्द्धचालक (semi-conductor) रैण्डम एक्सेस ऑकल डोरैम (DRAM) अथवा एसम (SRAM) का प्रयोग उनके प्राइमरी स्टोरेज के रूप में होता है।
मुख्य मेमोरी में रेस्टोरेज डिवाइसेस (mass torage devices) जैसे हार्डीडस्क, ऑप्टीकल डिस्क स्टोरेज की अपेक्षाकृत बहुत अधिक से होता है, परन्तु आमतौर पर अस्थाई (volatile) होता है अर्थात् पावर (power) की अनुपस्थिति में कन्टेंट्स (निर्देशों अथवा डाटा) को बनाये नहीं रख पाता है
तथा मास स्टोरेज (mass storage) की अपेक्षा समान क्षमता में बहुत अधिक महंगा होता है। मुख्य मेमोरी सामान्यतः दीर्घकालिक अथवा आर्काइवल डाटा स्टोरेज के लिए उपयुक्त नहीं है।डॉटरबोर्ड अथवा डॉटरकार्ड एक सर्किट बोर्ड होता है
जो मदरबोर्ड पर एक अतिरिक्त बोर्ड अथवा एक्सपेंशन (expansion) बोर्ड के रूप में कार्य करता है। यह कभी- कभी एक स्वतंत्र कार्ड को तरह भी कार्य
3) हार्ड डिस्क (Hard Disk)
हार्ड डिस्क ड्राइव को साधारणतः हार्ड ड्राइव या हार्ड डिस्क कहते हैं। यह एक स्थाई (non-volatile) स्टोरेज डिवाइस होती है जो डिजिटल रूप में अंकित (encoded) डाटा को चुम्बकीय सतहों वाले घूमते हुए प्लैटर्स (rotatingplatters) पर तेजी के साथ स्टोर करती है।
हार्ड डिस्क ड्राइव वस्तुतः कम्प्यूटर में प्रयोग के लिए विकसित किया गया था परन्तु आज हार्ड डिस्क ड्राइव के अनुप्रयोग कम्प्यूटर से आगे बढ़कर डिजिटल विडियो रिकॉर्डर (digital video recorders), डिजिटल ऑडियो प्लेयर्स (digital audio players), पर्सनल डिजिटल असिस्टेन्ट (personaldigital assistants), डिजिटल कैमरा (digital cameras) इत्यादि में भी होने लगे हैं। सैमसंग (Samsung) तथा नोकिया (Nokia) के मोबाइल फोनों में भी हार्ड डिस्क के प्रयोग पाये जा सकते हैं।
4) विडियो कार्ड (Video Card)
विडियो कार्ड को ग्राफिक्सर एक्सीलरेटर कार्ड (graphics celerator card) डिस्प्ले अडैप्टर (display adapter) ग्राफिक्स कार्ड (graphics card) तथा अन्य कई नामों से जाना जाता है।
यह पर्सनल कम्प्यूटर हार्डवेयर का एक भाग (stem) होता है, जिसका कार्य मॉनीटर पर आकृतियां (images) का निर्माण तथा आउटपुट देना होता है।
इसका प्रयोग सामान्यतः एक अलग समर्पित एक्सपेंशन कार्ड की भाँति होता है जो कम्प्यूटर मदरबोर्ड के स्लॉट (slot) में प्लग किया जाता है । कुछ विडियो कार्ड अतिरिक्त फंक्शनेलिटिज (functionalities) जैसे चिडिया कैप्चर (video capture). टी.वी. ट्यूनर अडेप्टर (TV) tuneradapter) MPEG-2 तथा MPEG-4 डिकोडिंग प्रदान करते हैं।
साथ ही कुछ में फायरवायर (firewire); माउस, लाइटपेन अथवा जॉयस्टिक संयोजक (con- nectors) भी प्रदान करते हैं। आप इसकी सहायता से एक से अधिक मॉनिटर को जोड़ भी सकते हैं जो अक्सर आपने किसी संगीत रिकॉर्डिंग स्टूडियों में देखा होगा।
इस कार्ड का प्रयोग उच्च विमिया जैसे द्वि-विमिय तथा त्रि-विमिय (2-D and 3-D) ग्राफिक्स प्रोग्राम को Motherboard Connection कम्प्यूटर पर चलाने में होता है।
प्रत्येक मदरबोर्ड, विडियो कार्ड फार्मेट (format) की एक निश्चित रेंज की ही सपोर्ट करता है इसलिए खरीदने के पहल यह अपने मदरबोर्ड के हिसाब से है को नहीं इसकी जाँच कर लो
आजकल के कई कम्प्यूटरों में विडियो एक्सपेन्शन कार्ड (video expansion card) नहीं होता इसके स्थान पर मदरबोर्ड पर ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट सीधे सीधे मंदरबार्ड पर एकीकृत होती है।
यह कंप्यूटर का कर्म खर्चीला बनाता है लेकिन इस तरह का ग्राफिक्स सिस्टम कम शक्तिशाली होता है। यह विकल्प औसत व्यवसाय तथा घरल उपयोगकर्ता के लिए उचि हो सकता है।
उन्नत ग्राफिक्स क्षमताओं या नवीनतम खेलों में रूचि लेने/रखने वाले उपयोगकर्ताओं को अलग से ही विडियो कार्ड लगवाना उचित होता है। एनविडिया कॉरपोरेशन (NVIDIA Corponition). ए.टी.आई. टेक्नोलॉजिजु (A.T.I Technologies) मैट्रॉक्स (Matrox) लोकप्रिय विडियो कार्ड निर्माणकर्त्ताओं के नाम है।
5) एक्सपेंशन कार्ड (Expansion Card)
एक्सपेंशन कार्ड को एक्सपेंशन बोर्ड, अडॉप्टर कार्ड अथवा एक्सेसरी कार्ड भी कहा जाता है। यह एक प्रिंटिड सर्किट बोर्ड (printed circuit board) होता है जो मदरबोर्ड के एक्सपेंशन स्लॉट (expansion slot) में प्रविष्ट कर कम्प्यूटर सिस्टम में अतिरिक्त फंक्शनेलिटी (functionality) को जोड़ता है।
एक्सपेंशन बोर्ड का एक छोर (edge)contacts को पकड़े रहता है जो स्लॉट (slot) में पूर्णतः फिट हो जाता है। यह मदरबोर्ड पर इंटीग्रेटिड सर्किटों (integrated circuits) के मध्य विद्युतीय सम्पर्क स्थापित करता है।
6) कम्प्यूटर पावर सप्लाई (Computer Power Supply)
डेस्कटॉप कम्प्यूटरों में पॉवर सप्लाई (power supply) एक बक्से के समान होता है जो कम्प्यूटर के अंदर होता है। इस बक्से को एस. एम. पी. एस. (SMPS) के नाम से जाना जाता है। यह कम्प्यूटर का महत्त्वपूर्ण भाग होता है|
क्योंकि यह कम्प्यूटर से जुड़े अथवा इसके अंदर प्रत्येक दूसरे भाग (component) को विद्युत ऊर्जा प्रदान करता है, ताकि यह काम कर सके। पोर्टेबल कम्प्यूटरों (portable [computers) जैस लपटॉप में आमतौर पर एक बाहरी पावर एडॉप्टर होता है|
जो ए.सी.(AC ) को डी.सी.(DC) में परिवर्तित करता है (अधिकतर सामान्यतः 19V) तथा लैपटॉप में डी.सी. से डी.सी. परिवर्तन (DC- DC Conversion) होता है जो पोर्टेबल कम्प्यूटर के अन्य भागों द्वारा आपेक्षित विभिन्न डी.सी. बोल्टेज भेजता है।
7) साउण्ड कार्ड (Sound Card)
साउण्ड कार्ड कम्प्यूटर की एक हार्डवेयर यूनिट है जो मुख्य बोर्ड पर एक्सपेंशन कार्ड की तरह लगाया जाता है। यह माइक्रोफोन से प्राप्त एनालॉग संकेतों (signals) को डिजिटल रूप में परिवर्तित करता है जिस कम्प्यूटर मेमोरी में स्टोर किया जाता है साथ हो, साउण्ड कार्ड डिजिटल संकतों (signals) को एनालॉग रूप में बदल कर स्पीकर को आउटपुट के रूप में भेजता है।
8) ऑप्टीकल डिस्क ड्राइव (Optical Dise Drive)
ऑप्टीकल डिस्क एक समतल (flat), वृत्ताकार, सामान्यतः पॉलीकार्बोनेट डिस्क होती है, जहाँ डाटा पिट्स (अथवा बम्पस्) के रूप में एक समतल सतह के अंदर सामान्यतः एक स्पाइरल चैनल (groove) के समानान्तर जो डिस्क के पूरे रिकॉर्ड किये गये सतह को ढँकता है, में स्टोर होता है।
यह डाटा आमतौर पर तब एक्सेस होता है, जब लेजर डायोड (diode) की सहायता से डिस्क पर कोई विशेष धातु (प्राय एल्युमिनियम) प्रकाशित ( Illuminated) होती है। पिट्स (pits) परावर्तित लेजर प्रकाश को विकृत करता है।
डिस्क पर सूचना क्रमिक रूप में एक निरंतर स्पाइरल ट्रैक पर अन्तरतम (Innermost) ट्रैक से वाह्यतम (outermost ) ट्रैक की ओर स्टोर होती है। प्रकाशीय डिस्क ड्राइव को संक्षेप में ओ.डी.डी. (ODD) कहते हैं।
9) समानांतर पोर्ट (Parallel Port)
समानांतर पोर्ट कंप्यूटर के कई भागों (pars) को जोड़ने के लिए कम्प्यूटर पर पाया जाने बाला एक प्रकार का इंटरफेस है। इसे प्रिंटर पोर्ट के नाम से भी जाना जाता है।
आई ई.ई.ई. 1284 स्टैण्डर्ड पोर्ट के द्वि-दिशिय (bi-directional) कनि (version) का परिभाषित करता है। यू० एस० बी० के आगमन के पहले समानांतर इंटरफेस को प्रिंटर के अतिरिक्त भी ढेर सारी पेरिफेरल डिवाइसेज को एक्सेस करने के लिए अपनाया जाता था।
जीप (Zip Drives) तथा स्कैनर शुरूआती डिवाइसे थी जिनमें परे इंटरफेस को इम्प्लीमेंट किया था जिसका अनुकरण आगे चलकर एक्सटर्नल मम (modems), साउण्ड कार्ड (sound card), वेबकॅम (web cams) गेम पेड (game pads), जॉयस्टीक (Joy Sticks) तथा एक्सटर्नल हार्ड डिस्क ड्राइव (external hard disk drives) तथा CD-Rom ड्राइज (CD-Rom Drives) में हुआ।
पर्सनल कंप्यूटर तथा लैपटॉप के कई निर्माणकर्ता पैरेलल इंटरफेस को legacy port मानते है तथा अब इस का प्रयोग नहीं करते हैं। यू० एस० बी० सिस्टम के पैरेलल प्रिन्टर के प्रयोग हेतु यू०एस० बी० पैरेलल अडप्टर प्रयोग किये जाते है।
10) नेटवर्क कार्ड (Network Card)
नेटवर्क कार्ड को नेटवर्क एडेप्टर (network adapter), लैन एडप्टर (LAN adapter) या नेटवर्क इंटरफेस कार्ड (Network Interface Card) के नाम से भी जाना जाता है। यह कंप्यूटर हार्डवेयर का एक भाग है
जिसे कंप्यूटर को कंप्यूटर नेटवर्क (computer network) से संपर्क करने (communicate) के लिए तैयार किया गया है। यह फिजिकल लेयर अर्थात् ओ.एस.आई. प्रथम लेयर तथा डाटा लिंक लेयर अर्थात् ओ. एस. आई. द्वितीय लेयर के रूप में कार्य करता है। यह नेटवर्किंग माध्यम को फिजिकल एक्सेस प्रदान करता है
मैक ऐड्स (MAC address) के प्रयाग के माध्यम से निम्नस्तरीय ऐइसिंग प्रदान करता है। इसकी सहायता से उपयोगकर्ता एक दूसरे से तार द्वारा या बिना तार के संपर्क स्थापित कर सकता है।
यद्यपि अन्य नेटवर्क तकनीकियाँ (network lechnologies) भी मौजूद है परन्तु इथरनेट ने 1990 के मध्य से ही अपना क्षेत्र व्यापक कर लिया है। प्रत्येक इथरनेट नेटवर्क कार्ड का एक यूनिक 48-बिट serial number होता है
जिसे मैक एड्स (MAC Address) कहा जाता है, जो कि उस कार्ड के राम (ROM) में स्टोर होता है। इथरनेट नेटवर्क के प्रत्येक कंप्यूट के पास एक यूनिक मैक ऐडस वाला एक अवश्य होना चाहिए।
कोई भी दो कार्ड समान ऐड्स को माझा नहीं कर सकते। यह कार्य इंस्टीच्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एण्ड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (Institute of Electrical and Electron ics Engineers (IEEE)) द्वारा पूरा किया जाता है।
यह संस्था नेटवर्क इंटरफेस कंट्रोलर्स 6के विकताओं को यूनिक मक ऐड्स आवंटित करने के लिए जिम्मेवार होता है ।
11) यूनिवर्सल सिरियिल बस ( Universal Serial Bus)
यूनिवर्सल सिरियिल बस को संक्षेप में यू. एस. बी. कहा जाता है। यू. एस. बी. को एक ही मानकीकृत इंटरफेस सॉकेट (standardized interface socket ) की सहायता से कंप्यूटर के पेरिफेरलों को जोड़ने हेतु डिजायन किया गया है।
इसकी सहायता से कंप्यूटर को बगैर पुनः बूट किये एक्सटर्नल डिवाइसेस को जोड़ा या हटाया जा सकता है| इस प्रकार प्लग एण्ड प्ले क्षमताओं में वृद्धि होती है। इसकी अन्य सुविधाजनक विशेषताओं में एक विशेषता यह है कि यह कम विद्युत खपत वाले डिवाइसेज को बिना किसी बाहरी पावर सप्लाई के ऊर्जा उपलब्ध कराता है।
साथ ही इसकी सहायता से कई डिवाइसेज़ को बिना निर्माता विशिष्ट ड्राईवर इन्स्टॉल (install) किये कम्प्यूटर से जोड़कर चलाया जा सकता है। यूनिवर्सल सिरियल बस का उद्देश्य क्रमिक तथा पैरेलल पोर्टस से उपयोगकर्त्ताओं को मुक्ति दिलाना है।
यू. एस. वो कंप्यूटर पेरिफेरलों जैसे माउस की बोर्ड, पर्सनल डिजिटल असिस्टेण्ट, गेम पैड्स जॉयस्टिक, स्कैनर्स, डिजिटल कैमरा, प्रिंटर, पर्सनल मिडिया प्लेयर तथा फ़्लैश ड्राईवर को जोड़ सकता है।
इनमें से कई डिवाइसेज़ के लिए यू. एस. बी. स्टैण्डर्ड कनेक्शन की विधि बन चुका है। यू. एस. बी. को वास्तविक रूप से पर्सनल कम्प्यूटरों के लिए ही तैयार किया गया था लेकिन यह अन्य उपकरणों जैसे पर्सनल डिजिटल असिस्टेण्ट तथा विडियो गेम कंसोल्स में भी उपयोग हो रहा है।
12) मॉनीटर (Monitor)
मॉनीटर को तकनीकी रूप से विजुअल डिस्प्ले यूनिट (Visual Display Unit) कहा जाता है। इसे कम्प्यूटर डिस्प्ले (Computer Display) भी कहा जाता है। मॉनीटर विद्युतीय मंत्र का एक भाग है
जो कम्प्यूटर जनित आकृतियों को बिना इनका स्थाई रिकॉर्ड रखे हुए प्रदर्शित करता है। ये सामान्यतः या तो कैथोड रे ट्यूब (Cathode Ray Tube) होते हैं या टी. एफ.टी., एल.सी.डी. डिस्प्ले की भाँति फ्लॅट पेनल रूप में होते हैं।
मॉनीटर में डिस्प्ले डिवाइस, सर्किटरी जो कम्प्यूटर द्वारा भेजे गये संकेतों (signals) के आधार पर आकृति तैयार करते हैं तथा एक डिब्बा या आवरण सम्मिलित होते हैं।
कम्प्यूटर के अंदर सर्किट या तो इसके एक अभिन्न अंग के रूप में अथवा प्लग किये गये इंटरफेस के रूप में होता है, जो आंतरिक (internal) डाटा को मॉनीटर समन्वित फॉरमेट में परिवर्तित करता है।
13) माउस (Mouse)
माउस एक इनपुट डिवाइस है। यह अपने supporting surface के मापेक्ष द्वि-विमीय गति की पहचान करते हुए एक प्वाइन्टिंग डिवाइस के रूप में कार्य करता है।
भौतिक रूप से, माउस एक डिब्बे (case) की भांति होता है, जो यूजर के द्वारा किसी एक हाथ से पकड़ कर चलाया जाता है तथा जिसमें एक या एक से अधिक बटन होते हैं।
इसमें कभी-कभी कुछ और तत्त्व जैसे व्हॉल्स (wheels) होते हैं जिनकी सहायता से यूजर सिस्टम आधारित ऑपरेशन्स को सम्पन्न करते हैं
इसमें अतिरिक्त बटन या फीचर अन्य नियंत्रण (control) अथवा विमीय (dimensional) इनपुट को जोड़ सकते हैं। माउस को गति सामान्यतः मॉनीटर पर प्वाइन्टर की गति में परिवर्तित होती है। माउस नाम स्टेनफोर्ड शोध संस्थान (Standford Research Institute) में रखा गया।
14 की-बोर्ड (Keyboard)
कम्प्यूटर की-बोर्ड कम्प्यूटर का एक परीफरल (peripheral) है। यह आंशिक रूप से टाइपराइटर के की-बोर्ड को होता है। की-बोर्ड को टेक्स्ट तथा कैरेक्टर इनपुट करने के लिए डिज़ायन किया गया है
साथ ही यह कम्प्यूटर के ऑपरेशन को नियंत्रित भी करता है। भौतिक रूप से, कम्प्यूटर का को बाड़ शायताकार या लगभग आयताकार बटनों या Keys को व्यवस्था होती है।
को वार्ड में सामान्यतः Keys ऑकत होती है अथवा उसी हुई होती हैं। अधिकांश स्थितियों में, किसी Key (को) को दबाने पर की-बोर्ड एक लिखित निद्र भेजता है। किन्तु कुछ संकेतों को बनाने के लिए कई Keys को साथ-साथ या एक क्रम में देवाने या पकड़ रहने की आवश्यकता पड़ती है।
अन्य Keys कोई संकेत (symbol) नहीं बनातीं बल्कि कम्प्यूटर अथवा को बोर्ड के क्रिया को प्रभावित करती हैं। की-बोर्ड के लगभग आधी key अक्षर संख्या या चिह्न (characters) बनाती हैं।
अन्य कीज को दबाने पर क्रियाएँ होती हैं तथा कुछ क्रियाओं (actions) को सम्पन्न करने में एक से अधिक keys को एक साथ दबाया जाता है।
बच्चों के दिमाग विकसित होने की स्थिति में होते हैं, और एक वयस्कों के दिमाग की तुलना में टेक्नोलॉजी के प्रभावों तथा इसके अति प्रयोग के प्रति अधिक सेन्सिटिव हो सकते हैं। विभिन्न अध्ययनों के 2018 रिव्यु में विभिन्न टेक्नोलॉजीस का उपयोग करने वाले बच्चों के संभावित प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख किया गया है। जो बच्चे टेक्नोलॉजी का अत्यधिक उपयोग करते हैं, उनमें समस्याओं का अनुभव होने की संभावना अधिक हो सकती है,
जिनमें निम्न बिन्दु सम्मिलित है-
शैक्षणिक प्रदर्शन (एकेडमिक परफॉर्मेन्स) की कमी
ध्यान की कमी
• रचनात्मकता (क्रिएशन) की कमी
• भाषा के विकास में देरी
• सामाजिक तथा भावनात्मक विकास में देरी
• शारीरिक निष्क्रियता (फिजिकल इनएक्टिविटी) तथा मोटापा • नींद की खराब गुणवत्ता (पुअर स्लीप क्वालिटी)
• सामाजिक मुद्दे, जैसे सामाजिक असंगति तथा चिता
• आक्रामक व्यवहार (एग्रेसिव बिहेवियर्स)
• इन टेक्नोलॉजीस की लत
• उच्च BMI
रिसर्च ने बच्चों को इन टेक्नोलॉजीस के साथ स्वस्थ तरीके से इन्टरेक्ट करने के लिए उनके समय को मानिटर तथा दिलचस्प विकल्प प्रदान करके सिखाने के महत्व को भी नोट किया।। इसके अतिरिक्त, 15-16 आयु वर्ग के किशोरों के एक अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों ने हाई डिजिटल मीडिया का उपयोग किया था, उनमें ध्यान में कमी का सक्रियता विकार या अटेन्शन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसॉर्डर (ADHD) के लक्षण विकसित होने की संभावना बढ़ गई थी।
इसका अर्थ यह नहीं है कि डिजिटल मीडिया का उपयोग ADHD का कारण बनता है, बल्कि दोनों के बीच एक सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध का क्या अर्थ है, यह निर्धारित करने के लिए अधिक रिसर्च की आवश्यकता है।
2015 की रिसर्च में ऑथर्स ने पाया कि टेक्नोलॉजी सभी उम्र के बच्चों तथा किशोरों के समग्र स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। रिसर्चर्स ने सभी बच्चों में स्क्रीन टाइम को कंट्रोल करने वाले माता-पिता तथा देखभाल करने वालो के महत्व को नोट किया।
अमेरिकन एकेडमिक आफ पीडियाट्रिक्स 18 महीने से कम उम्र के बच्चों को पूरी तरह से स्क्रीन टाइम से बचने की सलाह देता है, जबकि 2-5 साल के बच्चों के पास एक वयस्क के साथ दिन में 1 घंटे से अधिक हाई क्वालिटी व्युइंग का समय नहीं है।
सोने के समय, बहुत करीब से टेक्नोलॉजी का उपयोग करने से नींद की समस्या हो सकती है। यह प्रभाव इस तथ्य जुड़ा है कि ब्लु लाइट जैसे सेल फोन्स, ई-रीडर्स तथा कम्प्युटर्स से निकलने वाली लाइट मस्तिष्क को उत्तेजित करता से है।
2014 के एक अध्ययन के ऑथर्स ने पाया कि यह ब्लु लाइट शरीर के नेचरल सर्केडियन रिदम को बिगाड़ने के लिए पर्याप्त है। यह डिस्टर्बेन्स नींद को कठिन बना सकता है या अगले दिन व्यक्ति को कम सतर्क महसूस करा सकता है। मस्तिष्क पर ब्लु लाइट के संभावित प्रभाव से बचने के लिए, लोग सोने से एक या दो घंटे पहले ब्लु लाइट उत्सर्जित करने वाली इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेसस का उपयोग करना बंद कर सकते हैं।
इसके बजाए शांत करने के लिए जेन्टल एक्टिविटीज, जैसे किताब पढ़ना, जेन्टल स्ट्रेचेस करना तथा स्नान करना विकल्प हैं।
फिजिकल एगोनोमिक हेल्थ इफेक्ट्सPhysical health effect
टेक्नोलॉजी के उपयोग से फिजिकल इशूज का खतरा भी बढ़ सकता है,
.आईस्ट्रेन हैंडहेल्ड टेब्लेट्स, स्मार्टफोन्स तथा कम्प्युटर्स जैसी टेक्नोलॉजी किसी व्यक्ति का लंबे समय तक ध्यान खींच सकते हैं। इससे आंखों की रोशनी भी जा सकती है।
डिजिटल आइस्ट्रेन के सिम्प्टम्स् में ब्लर्ड विजन (धुंधली दृष्टि) तथा ड्राई आइज (आँखों में सूखापन) सम्मिलित हो सकते हैं। आइसट्रेन से शरीर के अन्य हिस्सों जैसे सिर, गर्दन या कंधों में भी दर्द हो सकता है। कई टेक्नोलॉजिकल फैक्टर्स आइस्ट्रेन का कारण बन सकते हैं, जैसे-
.स्क्रीन टाइम
• स्क्रीन ग्लेयर
• स्क्रीन ब्राइटनेस
• बहुत पास या बहुत दूर देखना
• पुनर सिटिंग पोश्चर
.अंडरलाइंग विजन इशूज
स्क्रीन से नियमित रूप से दूरी बनाने या नजर हटाते रहने से आइसट्रेन की संभावना कम हो सकती है। नियमित रूप से इन सिम्प्टम्स का अनुभव करने वाले किसी भी व्यक्ति को चेकअप के लिए आप्टोमेट्रिस्ट को दिखाना चाहिए। लम्बे समय तक डिजिटल स्क्रीन के किसी भी रूप का उपयोग करते समय, अमेरिकन आप्टोमेट्रिक एसोसिएशन 20-20-20 रूल का उपयोग करने की सलाह देता है।
इस रूल का उपयोग करने के लिए प्रत्येक 20 मिनट के स्क्रीन टाइम के बाद, कम से कम 20 फीट दूर किसी वस्तु को देखने के लिए 20 सेकंड का ब्रेक लें। ऐसा करने से, निरंतर अवधि के लिए स्क्रीन को देखने से आँखों पर पड़ने वाले दबाव को कम करने में सहायता मिलती है।
पुअर पोश्चर जिस तरह से बहुत से लोग मोबाइल डिवाइसेस तथा कम्प्युटर्स का उपयोग करते हैं, वह भी गलत पोश्चर का कारण न सकता है। समय के साथ यह मस्क्युलोस्केलेटल इशूज को जन्म दे सकता है।
कई टेक्नोलॉजीस ‘डाउन तथा फॉरवर्ड यूजर पोजिशन को बढ़ावा देती हैं, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति आगे की ओर झूककर स्क्रीन पर देखता है। यह गर्दन तथा रीढ़ पर अनावश्यक दबाव डाल सकता है। अप्लाइड एर्गोनॉमिक्स पत्रिका में 15 साल के एक अध्ययन में मोबाइल फोन पर टेक्स्ट करने वाले युवा वयस्कों में गर्दन या ऊपरी पीठ दर्द की समस्या पाई गई।
इसके रिजल्ट्स यह इन्डिकेट करते हैं कि प्रभाव कम समय के ही थे, हालाँकि कुछ लोगों में ये सिम्प्टम्स लम्बे समय तक बने रहें। यद्यपि कुछ रिजल्ट्स इन रिजल्ट्स को भी चुनौती देते हैं।
यूरोपियन स्पाइन जर्नल में 2018 के एक अध्ययन में पाया गया कि टेस्टिंग करते समय गर्दन के पोश्चर ने गर्दन दर्द जैसे सिम्प्टम्स में कोई अंतर नहीं किया। इस अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि टेक्स्टिंग तथा ‘टेक्स्ट नेक’ ने युवा वयस्कों में गर्दन दर्द को प्रभावित नहीं किया। हालाँकि अध्ययन में लॉन्ग-टर्म फॉलो अप सम्मिलित नहीं था।
यह हो सकता है कि अन्य फैक्टर्स भी गर्दन दर्द को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे कि उम्र तथा एक्टिविटी लेवल्सा टेक्नोलॉजी का उपयोग करते समय पोश्चर की समस्याओं को ठीक करने से कोर, गर्दन तथा पीछ के पोश्चर तथा स्ट्रेन्थ में समग्र सुधार हो सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति स्वयं को घंटों तक एक ही पोजिशन में बैठा हुआ पाता है, जैसे कि काम करते समय डेस्क पर बैठना, नियमित रूप से खड़े रहना या स्ट्रेचिंग करना, शरीर पर तनाव को कम कर सकता है। इसके अतिरिक्त, हर घंटे आफिस में घूमने जैसे शार्ट ब्रेक्स लेने से भी मांसपेशियों को ढीला रखने तथा तनाव और गलत पोश्चर से बचने में सहायता मिल सकती है।
आईसाइट, फिजियोलॉजिकल इशूज तथा एर्गोनॉमिक आस्पेक्ट्स पर टेक्नोलॉजी के उपयोग से सम्बन्धित हेल्थ कन्सर्न्स के बारे में ई-वेस्ट अवेयरनेस
(E-waste awareness about health concerns related to the usage of technology on eyesight, physiological issues and ergonomic aspects)
पहले की अपेक्षा लोग आज के समय में एक-दूसरे से कहीं गुना अधिक कनेक्टेड हैं। जबकि टेक्नोलॉजी के कुछ रूपों ने दुनिया में सकारात्मक बदलाव किए हैं, टेक्नोलॉजी के नकारात्मक प्रभाव और इसके अति प्रयोग के प्रमाण भी हैं। सोशल मीडिया तथा मोबाइल डिवाइसेस से फिजियोलॉजिकल तथा फिजिकल इशूज हो सकते हैं, जैसे आँखों में खिचाव तथा महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई। ये डिप्रेशन जैसी सीरियस हेल्थ कंडीशन्स का कारण भी बन सकते हैं। टेक्नोलॉजी का अति प्रयोग का विकासशील बच्चों और किशोरों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
1.फिजियोलॉजिकल इफेक्ट्स टेक्नोलॉजी का अति प्रयोग या निर्भरता के प्रतिकुल फिजियोलॉजिकल इफेक्ट्स हो सकते हैं, जिसमें निम्नलिखित बिन्दू सम्मिलित हैं:
• आइसोलेशन सोशल मीडिया जैसी टेक्नोलॉजीस को लोगों को एक साथ लाने तथा कनेक्ट करने के लिए किया गया है, फिर केसेस में उनका विपरीत प्रभाव हो सकता है।
19-32 वर्ष की आयु के युवा वयस्कों के वर्ष 2017 के एक अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया का अधिक उपयोग करने वाले लोगों के सामाजिक रूप से अलग होने की संभावना उन लोगों से तीन गुना अधिक थी, जो अक्सर सोशल मीडिया का उपयोग नहीं करते थे।
सोशल मीडिया के उपयोग को कम करने के तरीके ढूंढना, जैसे कि सोशल एप्स के लिए समय सीमा निर्धारित करना कुछ लोगों में अलगाव की भावनाओं को कम करने में सहायता करना है।
डिप्रेशन तथा एन्जाइटी
वर्ष 2016 के सिस्टमेटिक रिव्यू ने सोशल नेटवर्क्स तथा मेन्टल हेल्थ इशूज, जैसे डिप्रैशन तथा एन्जाइटी के बीच की कड़ी पर चर्चा की।
उनकी रिसर्च में मिश्रित परिणाम मिले। जिन लोगों के पास इन प्लेटफॉर्म पर पॉजिटिव इन्टरेक्शन तथा सोशल सपोर्ट था, उन लोगों में डिप्रेशन तथा इन्जाइटी का लेवल कम था।
हालाँकि, इसका उल्टा भी सच था। जिन लोगों ने महसूस किया कि उनके पास अधिक नेगेटिव सोशल इन्टरेक्शन्स थे, और जो सोशल कम्पेरिजन के लिए अधिक प्रवण थे, उन्होंने हायर लेवल के डिप्रैशन तथा एन्जाइटी का अनुभव किया। इसलिए, जबकि सोशल मीडिया तथा मेन्टल हेल्थ के बीच एक कड़ी प्रतीत होती हैं, तो एक सिग्निफिकेन्ट डिटरमाइन फैक्टर को लेकर लोगों को लगता है कि वे इन प्लेटफॉर्म्स पर होने वाले इन्टरेक्शन्स के प्रकार हैं।