Author: Ram

  • BASE Station kya hai?

    बेस स्टेशन (BASE Station)

    रेडियो संचार में, एक बेस स्टेशन एक निश्चित स्थान (fixed location) पर स्थापित एक वायरलैस संचार स्टेशन है और या तो एक पुश-टू-टॉक टू-वे रिडोयो सिस्टम, या एक वायरलेस टेलीफोन सिस्टम जैसे सेलुलर CDMA या GSM सेल साइट या स्थलीय ट्रंकेड रेडियो के भाग के रूप में संवाद (Communicate) करने के लिए प्रयोग किया जाता है

    BASE Station

    टू-वे रेडियो (Two-way Radio)

    व्यावसायिक टू-वे रेडियो सिस्टम में, एक बेस स्टेशन का प्रयोग हैड हेल्ड (हाथ से आयोजित) एक डिसपैच फ्लीट या मोबाइल रेडियो के साथ संपर्क बनाये रखने के लिए और/या वन-वे (One-way) पेजिंग रिसीवर को सक्रिय करने के लिए किया जाता है।

    बेस स्टेशन एक संचार (communications) लिंक का एक छोर (end) है। दूसरा छोर एक गतिमान movable) माहन माउण्डेट रेडियो या वॉकी-टॉकी है। टू-वे (Two-way) रेडियो में उपयोग किये जाने वाले बेस स्टेशन के उदाहरण में टो ट्रक्स (Tow Trucks) और ट्रैक्सी कैब्स हैं।

    प्रोफेशनल बेस स्टेशन रेडियो प्रायः एक चैनल का होता है। हल्के ढंग से प्रयोग होने वाले बेस स्टेशन में, एक मल्टी चैनल यूनिट नियोजित (employed) किया जा सकता है।

    भारी प्रयोग सिस्टम में, अतिरिक्त चैनल के लिए क्षमता (capability), जहाँ जरूरी है, प्रत्येक चैनल के लिए एक अतिरिक्त बेस स्टेशन के इंस्टॉलेशन द्वारा पूरा होता है।

    प्रत्येक बेस स्टेशन डिस्पैच सेंटर कन्ट्रोल कंसोल पर एक चैनल के रूप में प्रकट (appears) होता है। कई स्टॉफ सदस्यों के साथ एक अच्छी तरह से डिजाइन डिस्पैच सेंटर में, यह प्रत्येक डिस्पैचर को एक साथ एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से जैसा भी आवश्यक हो, संवाद (cornmunicate) करने के लिए अनुमति देता है।

    उदाहरण के लिए एक टैक्सी कंपनी डिस्पैच सेंटर का एक बेस स्टेशन बोस्टन में एक ऊँचे इमारत पर तथा दूसरे बेस स्टेशन प्रोविडेंस सहर में किसी भिन्न चैनल पर हो सकता है।

    प्रत्येक टैक्सी डिस्पैचर या तो बोस्टन या प्रोविडेंस शहर में टैक्सियों के साथ उसके या उसकी कंसोल पर संबंधित बेस स्टेशन का चयन कर के संवाद (communicate) कर सकता है।

    डिस्पैचिंग सेंटर्स में आठ (8) या उससे अधिक रेडियो बेस स्टेशनों के लिए एक सिंगल डिस्पैचिंग कंसोल से जुड़ा होना सामान्य है। डिस्पैचिंग कर्मिक (Personal) बढ़ा सकता है कि स्थानीय प्रोटोकॉल के संयोजन, यूनिट पहचानकर्ता, वॉन्यूम सेटिंग्स और व्यस्त सूचक लाइट द्वारा कौन-सा चैनल संदेश (message) प्राप्त कर रहा है।

    एक विशिष्ट कंसोल में सलेक्ट तथा अन्सलेक्ट के रूप में पहचान के लिए दो स्पीकर (speakers) होते हैं। एक प्राथमिक सलेक्टेड चैनल से ऑडियो सलेक्टेड स्पीकर और एक हेडसेट को भेजा जाता है। प्रत्येक चैनल में एक व्यस्त प्रकाश (Busy Light) होता है जो तब चमकता है, जब जुड़े चैनल पर कोई बात करता है।

    चित्र प्रदर्शित करता है कि एक बैंड पास फिल्टर बेस स्टेशन रिसीवर के एक्सपोजर को अनचाहे संकेतों से कम करने के लिए प्रयोग किया गया है। यह अवांछित संकेतों (Undesired Signals) के ट्रांसमिशन को भी कम कर देता है।

    आइसोलैटॉराइज (Isolatoris) एक वन-वे डिवाइस है जो ऐन्टीना लाइन से होकर जाने वाले ट्रांसमीटर में संकेतों को आसानी से कम कर देता है। यह बेस स्टेशन ट्रांसमीटर जो हस्तक्षेप (Interference) उत्पन्न कर सकते हैं, के अन्दर संकेतों के अनचाहे मिश्रण को रोकता है।

    बेस स्टेशनों को स्थानीय नियंत्रित या दूरस्थ नियंत्रित किया जा सकता है। स्थानीय नियंत्रित बेस स्टेशन फ्रॉन्ट-पैनल-कंट्रोल द्वारा बेस स्टेशन कैबिनेट पर संचालित (Operated) हैं।

    रिमोट कंट्रोल बेस स्टेशनों को टोन या डीसी रिमोट सर्किट पर संचालित किया जा सकता है। डिस्पैच प्वाइन्ट कंसोल तथा रिमोट बेस स्टेशन लिज्ड प्रावेट लाइन टेलीफोन सर्किट (कभी-कभी RTO सर्किट कहा जाता है), एक DS-1, या रेडियो लिंक से जुड़े हुए हैं।

    कंसोल मल्टीप्लेक्स रिमोट कंट्रोल सर्किट्स पर कमाण्ड्स को ट्रांसमिट करता है। कुछ सिस्टम कॉन्फिगरेशन को डुप्लेक्स या चार तार (Four wires), ऑडियो पाथ बेस स्टेशन से कंसोल तक की आवश्यकता होती है। कुछ अन्य को सिर्फ एक दो तार या हाफ-डुप्लेक्स लिंक की आवश्यकता होती है।

    हस्तक्षेप (interference) आपके सिस्टम में एक रेडियो से संकेत के तुलना में किसी भी अन्य संकेत प्राप्त करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। एक ही चैनल पर यूजर्स से हस्तक्षेप या किसी अन्य चैनल पर पास के मजबूत संकेतों से हस्तक्षेप से बचने के लिए प्रोफेशनल बेस स्टेशनों निम्न में से एक संयोजन (combination) का उपयोग करें

    हस्तक्षेप (interference) आपके सिस्टम में एक रेडियो से संकेत के तुलना में किसी भी अन्य संकेत प्राप्त करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। एक ही चैनल पर यूजर्स से हस्तक्षेप या किसी अन्य चैनल पर पास के मजबूत संकेतों से हस्तक्षेप से बचने के लिए प्रोफेशनल बेस स्टेशनों निम्न में से एक संयोजन (combination) का उपयोग करें :

    न्यूनतम रिसीवर स्पेसीफिकेशन तथा फिल्टरिंग ।

    आस-पास के उपयोग में अन्य आवृतियों (frequencies) का विश्लेषण (analysis) ।

    अमेरिका में, समन्वय (Coordinating) एजेंसियों द्वारा शेयर्ड फ्रिक्वेंसीज का सामजस्य या समन्वय (Coordination)।

    पता लगाने के उपकरण (locating equipment) ताकि भू-भाग हस्तक्षेप कर रहे संकेतों (signals) को रोके (Blocks)।

    अनचाहे संकेतों को कम करने के लिए दिशात्मक (Directional) एंटेना का उपयोग।

    अमेरिकी फेडरल कम्युनिकेशन्स कमीशन लाइसेंसिंग में बेस स्टेशनों को कभी-कभी कन्ट्रोल या फिक्स्ड स्टेशन कहा जाता है। ये सभी शब्द कमीशन नियमों के भाग 90 के अन्दर विनियमों में परिभाषित किये गए हैं। अमेरिकी लाइसेंसिंग शब्द जाल (Jargon) में, बेस स्टेशन के प्रकार में निम्न शामिल हैं। :

    एक फिक्स्ड स्टेशन, एक बेस स्टेशन है जो एक अन्य बेस स्टेशन के साथ संवाद (Communicate) करने के इरादे से एक सिस्टम में प्रयोग किया जाता है। एक फिक्स्ड स्टेशन भी रेडियो लिंक के रिमोट कंट्रोल द्वारा दूर बेस स्टेशन को संचालित (Operate) किया जा सकता है। (सिस्टम में कोई मोबाइल या हैंड-हेल्ड रेडियो शामिल नहीं है।)

    एक कंट्रोल स्टेशन, एक बेस स्टेशन है जो एक सिस्टम में एक रीपीटर (Repeater) के साथ प्रयोग होता है, जहाँ बेस स्टेशन रीपीटर (Repeate) के माध्यम से संवाद (communicate) करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

    एक अस्थायी बेस, एक बेस स्टेशन है जो एक स्थान पर एक वर्ष से भी कम समय के लिए प्रयोग किया जाता है। एक रिपीटर (Repeater), बेस स्टेशन का एक प्रकार (Type) है जो हैंड-हेल्ड और मोबाइल रेडियो की सीमा को बढ़ा देता है।

  • Satellite Systems kya hai?

    सैटेलाइट सिस्टम (Satellite systems)

    सैटेलाइट सिस्टम नेटवर्क कई दशकों से उपयोग किये जा रहे हैं। सैटेलाइट, जो धरती की सतह से बहुत दूर हैं, बहुत बड़े क्षेत्र को कवर कर सकते हैं।

    what is Satellite systems

    इनके साथ विभिन्न सेटेलाइट बीम्स भी होती है जो एक सैटेलाइट द्वारा नियंत्रित तथा संचालित जाती है। क्योंकि सैटेलाइट धरती के चारों ओर घूमते हैं इसलिये ये बडे क्षेत्र को कवर कर सकते हैं।

    सैटेलाइट नेटवर्क ग्लोबल संचारण को सरल बनाते हैं तथा ग्लोबल के पार हजारों लोकेशन्स पर इसका प्रबन्ध करते हैं।

    यद्यपि लीज्ड लाइन्स, लोकल टेलीफोन कम्पनी सुविधाओं तथा पब्लिक डाटा नेटवर्क का उपयोग करके इसके समकक्ष लैण्ड-बेस्ड नेटवर्क का निर्माण सम्भव है परन्तु ऐसे नेटवर्क के निर्माण, प्रबन्ध तथा रखरखाव के लिये संभार – तन्त्र (logistics) एक महाकाय कार्य है।

    सैटेलाइल सिस्टम ऐसी स्थितियों में अत्यधिक लाभकारी होते हैं जहाँ डाटा को बहुत सारी रिमोट नोड्स पर फैलाना होता है अथवा वहां से संचित करना होता है, तथा वहाँ भी जहाँ एण्ड-टू-एण्ड डिले प्राथमिक महत्तव नहीं होता है। सैटेलाइट नेटवर्क को दो प्रकारों में विभाजित किया गया है

    (i) बहुत छोटे एपरचर वाले टर्मिनल्स (Very Small Aperture Terminals (VSATS)) :

    यह जरूरी नहीं है कि दो धरातल स्टेशन्स के मध्य सैटेलाइट द्वारा होने वाला संचारण समान मात्रा का हो अथवा वे समान पॉवर से डाटा संचारित करें।

    विभिन्न सैटेलाइट नेटवर्क बहुत सारी छोटी डिशिज का उपयोग करते हैं जिन्हें VSATS कहा जाता है। इन छोटी डिशिज का उपयोग नोड्स की आउटलेयिंग के लिए करते हैं।

    सैटेलाइट बडी डिश के साथ सैन्ट्रल हब का प्रयोग भी करते हैं जो बहुत शक्तिशाली सिग्नल संचारित करती है तथा इनकमिंग सिग्नल के लिये बहुत संवेदी होता है। VSAT नेटवर्क वहाँ बहुत उपयोगी होते हैं जहाँ टेलीफोन लिन्क ओवरलोडेड, अविश्वसनीय अथवा कठिनाई से लागू होता है।

    (ii) पेजिंग तथा सैटेलाइट नेटवर्क (Paging and Satellite Networks) :

    पेजिंग एक विस्तृत क्षेत्र के लिये बेतार संचारण का तरीका है जिसके द्वारा एक इलैक्ट्रोनिक पेजर को रेडियो frequency का उपयोग करके संक्षिप्त अल्फान्यूमेरिक संदेश भेजे जाते हैं।

    जब एक ग्राहक (subscriber) का आभिहित (designated) टेलीफोन नम्बर डायल किया जाता है तब पेजिंग स्विच रेडियो ट्रांसमीटर को जानकारी भेजता है कि वह सर्विस क्षेत्र में एक सिग्नल प्रसारित करें, जो बदले में ग्राहक के विशिष्ट पेजर पर टोन, अथवा न्यूमेरिक, अल्फा न्यूमेरिक, अथवा वोइस संदेश डिलीवर करते हैं।

    पेजर टेक्नोलॉजी मोबाइल दूरसंचार तकनीकी का पुराना प्रारूप है। यह 1949 में एक तरफ से मोबाइल संचारण भेजने के लिये शुरू की गई थी।

  • सेलुलर सिस्टम्स Cellular Systems kya hai?

    सेलुलर सिस्टम्स (Cellular systems)

    पहले बेतार सिटम्स में अधिकतम क्षमता का ट्रांसमिटर होता था जो सम्पूर्ण सर्विस एरिया को कवर करता था। इसके लिये अत्यधिक मात्रा में पॉवर की आवश्यकता होती थी तथा यह कई व्यावहारिक कारणों के कारण उपयुक्त नहीं था।

    सेलुलर सिस्टम ने छोटे हेक्सागोनल सेल्स से विशाल जोन को विस्थापित किया है इनके साथ एक सिंगल शाक्तिशाली ट्रांसमिटिंग स्टेशन जिसे बेस स्टेशन (BS) कहते हैं, भी लगाया गया है जो पूरे क्षेत्र के एक छोटे भाग को कवर करते हैं।

    बेस स्टेशन के अन्दर एक बेस ट्रांससिवर सिस्टम (BTS) तथा एक BS कन्ट्रोलर (BSC) होता है। टॉवर और एन्टीना दोनों BTS के भाग होते हैं, जबकि सम्बन्धित इलैक्ट्रानिक भाग BSC में रखे जाते हैं।

    होम लोकेश्न रजिस्टर (HLR) तथा विजिटर लोकेशन रजिस्टर (VLR) पॉइन्टर्स के दो सैट्स हैं जो मोबिलिटी तथा संसार भर में समान टेलीफोन नम्बर्स के उपयोग को सपोर्ट करते है।

    HLR मोबाइल स्विचिंग सेन्टर (MSC) पर स्थित है जहाँ पर मोबाइल डिवाइस जैसे लेपटॉप जिन्हें मोबाइल सिस्टम (MS) हैं रजिस्टर किये जाते हैं तथा जहाँ पर बिलों तथा एक्सेस इनफॉरमेशन के लिये प्रारम्भिक होम लोकेशन का रख-रखाव जाता है।

    सरल शब्दों में, कॉल्ड नम्बर के आधार पर कोई भी इनकमिंग कॉल होम MSC के HLR को भेज दी जाती या फिर HLR कॉल को पुनः MSC (तथा BS) को भेज देता है जहाँ पर MS वर्तमान में स्थित है। मूलत: VLR में एक ष्ट MSC एरिया के सारे विजिटिंग MS के बारे में जानकारी होती है। नर रेडियो तीन प्रकार के सिस्टम्स में विभाजित किया गया है

    1.धिक क्षमता तथा विस्तृत कवरेज के लिए कोर्डलेस टेलीफोनः सेलुलर टेक्नोलॉजी छुटपुट आवादी वाले क्षेत्रों के लिये वित्तीय कवरेज प्रदान करने हेतु लम्बे बेस स्टेशन एन्टीना तथा बडे सेल्स की दिशा में विकसित हो रहे हैं। इन बडे सैल के विकास का अन्तिम केस सेटेलाइट सिस्टम का विकास है।

    2. कम सैल साइज तथा पॉवर लेवल्स के लिये हैण्डहैल्ड तथा Vehicular सेलुलर रेडियो : सैलुलर सैल्स छोटे सैल जिनमें कम बेस स्टेशन एन्टीना होते हैं, अथवा विल्डिंग के अन्दर एन्टीना की तरफ भी बढ़ रहे हैं। यह वे कम पावर के सैलुलर पॉकेट फोन को उच्चतम क्षमता तथा बेहतर कवरेज प्रदान करने के लिये कर रहे हैं। इन कम पॉवर के सैलुलर पॉकेट फोन का उपयोग आजकल विस्तृत रूप से बढ़ रहा है।

    3. विशिष्ट बेतार डाटा सिस्टम्स : विशिष्ट सिस्टम्स भी उत्पन्न हो रहे हैं यद्यपि वे बेतार टेलीफोन की तरह प्रमुख नहीं हैं। ये डाटा-ओरिएंटेड बेतार सिस्टम्स सेलुलर पैकेट डाटा के द्वारा भी उत्पन्न हो रहे हैं।

    सेलुलर संचारण एक निर्विघ्न ट्राजेक्शन प्रदान करने के लिये डायमेनिक स्विचिंग के द्वारा कार्य करता है तथा जैसे ही यूजर सैल की बॉउन्डरी को पार करता है सैल खत्म हो जाते हैं। सैलुलर संचारण प्रक्रिया एक चक्र का अनुसरण करके कार्य करता है इस चक्र में लॉग-ऑन, मॉनीटरिंग, इनकमिंग कॉल्स तथा आउटगोइंग कॉल्स सम्मिलित हैं।

    लॉग-ऑन : प्रत्येक सेलुलर हैण्डसैट को एक अद्वितीय परिचय अथवा न्यूमेरिक अरेंजमेन्ट माड्यूल (NAM) असाइन किया जाता है। यह परिचय इसके घरेलु क्षेत्र पर आधारित होता है। संदेश प्रायः पृथक नियंत्रण चैनल द्वारा हैण्डसैट को भेजे जाते हैं यह जांचने के लिये वे घरेलु क्षेत्रों के साथ संचालित हैं या नहीं। जैसे-जैसे मोबाइल यूनिट सैल्स के पार जाता है वैसे-वैसे उसे मोबाइल टेलीफोन स्विचिंग ऑफिस को अपनी लोकेशन बताने के लिये लगातार संदेश भेजते रहना चाहिये जिससे नयी कॉल्स को उस ट्रैफिक क्षेत्र की तरफ मोड़ा जा सके।

    मॉनीटरिंग : एक बार जब हैण्डसैट की पॉवर ऑन कर दी जाती है वह लोकल पेजिंग चैनल पर जानकारी पाने के लिये कन्ट्रोल चैनल को मॉनीटर करने लग जाता है। यह एक उपलब्ध चैनल को चुनता है तथा आइडल स्टेट में चला जाता है। आइडल स्टेट में वह चैनल पर संचारित होने वाले डाटा पर ध्यान देता है।

    इनकमिंग कॉल्स : जब MTSO (मोबाइल टेलीफोन स्विचिंग ऑफिस) इनकमिंग कॉल प्राप्त करता है तो वह उस ट्रैफिक एरिया के सभी सैल्स को एक सिंगनल भेजता है। सैट सिंगनल को प्राप्त करता है तथा MTSO को जवाब देता है। MTSO सैट को सूचना देता है कि वह कॉल को रिसीव करने के लिये इस विशिष्ट चैनल का उपयोग करें तथा तब सैट उस नई frequency के अनुसार अपने आपको retune कर लेता है।

    आउटगोइंग कॉल : कॉल करने के लिये यूजर टेलीफोन नम्बर एन्टर करता है तथा उसे MTSO को एक उपलब्ध एक्सेस चैनल द्वारा प्रोषित करता है। MTSO या तो हैण्डसैट की रिकवेस्ट के लिये अनुमति दे देता है या फिर उसे दूसरे उपलब्ध चैनल के अनुसार अपनी frequency को परिवर्तित करने को कहते हैं।

    बेतार संचारण में बहुत सारे विषय शामिल हैं तथा किसी भी सिग्नल को प्रेषित करने पहले व्यापक सिग्नल प्रोसेसिंग की आवश्यकता होती है। ये मुख्य चरण चित्र 1 तथा 2 में प्रदर्शित किये गये हैं। बहुत सारे सिग्नल प्रोसेसिंग ऑपरेशन्स इस पुस्तक की सीमा के अर्न्तगत नहीं आते हैं इसलिये उन्हें इस पुस्तक में सम्मिलित नहीं किया गया है।

  • Wireless Communication and its Generations kya hai?


    बेतार संचारण तथा इसकी पीढ़िया (Wireless Communication and its Generations)

    बेतार संचारण सिस्टम्स कुछ ही समय पहले उपयोग होने शुरू हुये हैं तथा गैरेज डोर ओपनर्स तथा कॉर्डलेस टेलीफोनों में इनका प्रत्यक्ष उपयोग अभी हाल में ही स्पष्ट हुआ है।

    वहन करने योग्य मूल्य वाले बेतार टेलीफोनों के परिचय ने इन्हें आम जनसंख्या के मध्य आकर्षित बना दिया है।

    इनका सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग यह है कि इनमें एक ही कॉनटेक्ट नम्बर को मेन्टेन करने की योग्यता होती है उस वक्त भी जब यूजर एक लोकेशन से दूसरी लोकेशन पर जाता है।

    बेतार टेलीफोनी तथा मैसेजिंग सर्विसेज जैसे पेजिंग की सफलता के बाद बेतार संचारण लोकल एरिया नेटवर्क के व्यक्तिगत तथा बिजनैस कम्प्यूटिंग के क्षेत्र में लागू होना शुरू हो गया है।

    बेतार संचारण विभिन्न विधियों जैसे रेडियो, सेलुलर तथा सेटेलाइट पर आधारित बेतार सिस्टम्स द्वारा प्रदान किया जा सकता है

  • Infrared Light Wave Transmission kya hai?

    इन्फ्रारेड प्रकाश तरंग संचारण (Infrared Light Wave Transmission)

    अनिर्देशित इन्फ्रारेड प्रकाश (तरंग) व्यापक तौर से छोटी दूरी के संप्रेषणों के लिए प्रयोग किए जाते हैं। TV, VCR और स्टीरियो में इस्तेमाल होने वाले सभी रिमोट कण्ट्रोल इन्फ्रारेड संप्रेषण का प्रयोग करते हैं।

    वे अपेक्षाकृत दिशात्मक, सस्ते और निर्माण में आसान होते हैं। लेकिन एक बड़ी कमी यह है, कि वे ठोस वस्तुओं से होकर नहीं गुजरते हैं। दूसरी ओर यह तथ्य कि इन्फ्रारेड तरंगें ठोस दीवारों से होकर नहीं गुजरती हैं, एक गुण भी है।

    इसका अर्थ है कि किसी भवन के एक कमरे में इन्फ्रारेड सिस्टम आस-पास के कमरों में लगे उसी प्रकार के सिस्टम के साथ हस्तक्षेप नहीं करेगा।

    इव्ज़ड्रापिंग (Evasdropping) के विरुद्ध इन्फ्रारेड सिस्टम की सुरक्षा रेडियो सिस्टम की तुलना में बेहतर है। इसी कारण इन्फ्रारेड प्रकाश आंतरिक बेतार LAN के लिए उचित रहता है।

    उदाहरण के लिए किसी भवन में स्थित कम्प्यूटर और कार्यालय अपेक्षाकृत अकेन्द्रित इन्फ्रारेड ट्रान्समीटर्स और रिसीवर्स के साथ सुसज्जित हो सकते हैं। इन्फ्रारेड क्षमता वाला पोर्टेबल कम्प्यूटर लोकल LAN पर हो सकता है तथा इसे भौतिक रूप से जोड़ने की आवश्यकता नहीं होती।

    इन्फ्रारेड संप्रेषण का इस्तेमाल बाहर नहीं हो सकता है। क्योंकि सूर्य इन्फ्रारेड में भी उतना ही तेज चमकता है जितना कि दृश्य स्पेक्ट्रम में।

    इन्फ्रारेड संचारण के अनुप्रयोग (Applications of Infrared Transmission)

    (1) घरेलू उपकरणों उदारहण TV, VCR, VCD और DVD प्लेयर्स, के रिमोट कण्ट्रोल में।

    (2) आन्तरिक बेतार LANs (Indoor wireless LAN) में।

    (3) घर के अंदर के विद्युतीय उपकरणों (Gadgets) जैसे कि ‘की-बोर्ड’ (key bord), माउस, प्रिंटर्स, स्कैनर्स के बीच संप्रेषण और पंखे, एयर कन्डिशनर्स इत्यादि को नियंत्रित करने के लिए।

  • Limitations of Microwave Communication kya hai?

    माइक्रोवेव सवांद की सीमाएं (Limitations of Microwave Communication)

    चूंकि माइक्रोवेव एक सीधी रेखा में गमन करते हैं, अतः यदि टावर्स बहुत ज्यादा दूरी पर हैं, तो पृथ्वी बीच में आ जाएगी।

    परिणामतः समय-समय पर रिपीटर्स की आवश्यकता पड़ती है। टॉवर जितने ज्यादा ऊँचे होगें, उन्हें उतनी ही अधिक दूरी पर रखा जा सकता है।

    अनुमानतः रिपीटर्स के बीच की दूरी टावर की ऊँचाई के वर्गमूल के बराबर होती है। 100m ऊँचे टावर के लिए रीपिटर्स 80km की दूरी पर लगाए जा सकते हैं।

  • Characteristics of Microwave Communications kya hai?

    माइक्रोवेव संप्रेषण के गुण (Characteristics of Microwave Communications)

    माइक्रोवेव संचारण मौसम तथा आवृत्ति पर निर्भर होता है। सामान्यतः 10GHz की आवृति सीमा का प्रयोग किया जाता है।

    लंबी दूरी के टेलीफोन संप्रेषण, सेल्युलर टेलीफोन, टेलीविजन वितरण तथा इस प्रकार के अन्य कार्यों में माइक्रोवेव का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता है।

    इससे स्पेक्ट्रम की भीषण कमी उत्पन्न हो गई है। माइक्रोवेव के कुछ महत्त्वपूर्ण गुण निम्न हैं ;

    (a) फाइबर ऑप्टिक सिस्टम की तुलना में माइक्रोवेव अपेक्षाकृत सस्ता होता है। उदाहरण के लिए दो साधारण टॉवर और एन्टिना को रखना, 50km लम्बा फाइबर खरीदने की अपेक्षा सस्ता हो सकता है और यह लीज (lease) पर टेलिफोन लाइन लेने की तुलना में भी सस्ता हो सकता है।

    b) माइक्रोवेव सिस्टम 16 गीगा बिट्स की दर से डेटा संचारण की अनुमति देता है। इस उच्च आवृत्ति पर माइक्रोवेव सिस्टम एक ही समय में दो लाख पचास हजार चैनलों को रख सकता है। इनका प्रयोग उन महानगरों को जोड़ने में होता है, जहाँ टेलिफोन ट्रैफिक बहुत ज्यादा होता है।

  • Microwave Transmitter and Receiver kya hai?

    माइक्रोवेव ट्रान्समिटर और रिसीवर (Microwave Transmitter and Receiver)

    चित्र माइक्रोवेव लिंक ट्रान्समिटर और रिसीवर भागों के ब्लॉक डायग्राम को दिखलाता है :

    आवाज, वीडियो या डेटा माध्यम BB सिग्नल उत्पन्न करने के लिए मल्टिप्लेक्सिंग (multiplexing) नामक एक तकनीक के द्वारा जुड़े होते हैं।

    यह सिग्नल एक IF पर फ्रीक्वेन्सी मॉड्यूलेटेड होता है और फिर वायुमण्डल के द्वारा संचारण के लिए RF पर अप-कन्वर्टेड (हेटरोडाइन्ड) होता है।

    ठीक इसके विपरीत प्रक्रिया रिसीवर पर होती है। माइक्रोवेव संचारण आवृत्तियाँ 2- 24 GHz के अनुमानित दायरे के तहत रहती हैं।

    डिजीटल माइक्रोवेव रेडियो में इस्तेमाल होने वाले आवृति बैण्ड्स CCIR के द्वारा सिफारिश किए गए होते हैं।

    प्रत्येक सिफारिश आवृति दायरा, उस दायरे में प्रयोग होने वाले चैनलों की संख्या, बिट दर को स्थान देने वाले चैनल और ध्रुवण सम्भावनाओं को स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है।

  • Microwave Transmission kya hai?

    माइक्रोवेव संचारण (Microwave Transmission)

    100 MHz के ऊपर तरंगें सीधी रेखा में गमन करती हैं और इसलिए संकीर्ण रूप से केन्द्रित की जा सकती हैं।

    सारी ऊर्जा को एक पैरा-बॉलिक एन्टिना (सैटेलाइट टीवी डिश की तरह) का इस्तेमाल करके एक छोटी किरण के रूप में केन्द्रित करने से ध्वनि तथा शोर का एक उच्च अनुपात प्राप्त होता है।

    लेकिन भेजने वाले और प्राप्त करने वाले एन्टिना को पूरी तरह से एक-दूसरे के साथ पंक्तिबद्ध होना चाहिए। फाइबर ऑप्टिक की खोज से पहले ये माइक्रोवेव लम्बी दूरी के टेलिफोन संचारण सिस्टम का केन्द्र थे।

    अपने सरलतम रूप में माइक्रोवेव लिंक एक हॉप (Hop) हो सकता है, जिसमें दो एन्टिना हो सकते हैं जो केवल एक या दो कि.मी. की दूरी पर हों, या एक मजबूत आधार हो सकता है जिसमें कि कई हजार किलोमीटर तक फैले हुए कई हॉप्स हों।

    एक सफल हॉप 2 से 8 GHz बैण्ड्स में आवृत्तियों के लिए अपेक्षाकृत समतल क्षेत्रों में 30 से 60 किलोमीटर तक होता है। जब एन्टिना को पहाड़ की चोटियों पर रखा जाता है, तो एक बहुत लंबी हॉप दूरी प्राप्त की जा सकती है। 200 किलोमीटर से ज्यादा की हॉप दूरियाँ भी विद्यमान हैं।

    माइक्रोवेव्स के “लाइन-आफ-साइट ” (Line-of-Sight) स्वभाव के केबल सिस्टम की तुलना में कुछ बहुत ज्यादा आकर्षक फायदे हैं। ‘लाइन-ऑफ-साइट’ एक शब्द है, जो माइक्रोवेव मार्गों की व्याख्या करने में अपूर्णरूप से ही सही है।

    वातावरणीय परिस्थितियाँ तथा कुछ अन्य प्रभाव माइक्रोवेव प्रसारण को कुछ इस प्रकार प्रभावित करते हैं कि यदि डिजाइनर, बिन्दु A से B (सच्ची लाइन ऑफ साइट) तक देख सकता हो, तो भी उन दो बिन्दुओं पर एन्टिना को रखना और एक सन्तोषजनक संवाद प्रदर्शन प्राप्त करना सम्भव नहीं हो पाता है।

    लाइन-ऑफ-साइट की समस्या और कमजोर सिग्नलों के पावर एम्प्लीफिकेशन से निकलने के क्रम में माइक्रोवेव सिस्टम ट्रान्समिटिंग तथा रिसीविंग स्टेशनों के बीच 25-30 किलोमीटर के अन्तराल पर रिपीटर्स का प्रयोग करता है।

    पहले रिपीटर को ट्रान्समिटिंग स्टेशन की लाइन ऑफ साइट पर रखा जाता है और अन्तिम रिपीटर को प्राप्त करने वाले स्टेशन की लाइन ऑफ साइट पर रखा जाता है।

    दो लगातार रिपीटर्स को भी एक-दूसरे की लाइन ऑफ साइट पर रखा जाता है। डेटा सिग्नल्स इन तीनों स्टेशनों द्वारा प्राप्त विस्तारित और पुनः प्रसारित किए जाते हैं।

    माइक्रोवेव सवांद सिस्टम का उद्देश्य बिना किसी हस्तक्षेप के और रिसिवर पर स्पष्ट उत्पादन के साथ एक जगह से दूसरी जगह सूचना को भेजना है। चित्र दिखलाता है कि सरलतम रूप में यह कैसे प्राप्त किया जाता है।

  • Radio Frequency kya hai?

    रेडियो आवृत्ति गुण (Radio Frequency Char- acteristics)

    रेडियो तरंगों के कुछ गुण ;

    Radio Frequency

    (a) रेडियो तरंगों को उत्पन्न करना आसान है।

    (b) वे लम्बी दूरी तक गमन कर सकते हैं।

    (c) वे भवनों को आसानी से भेद सकते हैं, इसलिए वे भीतरी और बाहरी, दोनों प्रकार के संवादों के लिए व्यापक स्तर पर इस्तेमाल किए जाते हैं।

    (d) रेडियो तरंगें सर्वदिशिक (Omni-directional) होती हैं, अर्थात् वे स्रोत से सभी दिशाओं में गमन करती हैं, अतः ट्रान्समीटर और रिसीवर दोनों को एक पंक्ति में रखने की आवश्यकता नहीं है।

    (e) रेडियो तरंगों के गुण आवृत्ति आधारित हैं। अल्प आवृतियों पर रेडियो तरंगें रूकावटों को अच्छी तरह पार कर जाती हैं, लेकिन स्रोत से दूरी के साथ-साथ शक्ति घटती जाती है।

    उच्च आवृति आवृति पर, रेडियो तरंगें मोटर्स और अन्य विद्युतीय उपकरणों से हस्तक्षेप के प्रति संवेदनशील रहती है। डेटा अंतरण (Data-transfer) के लिए निम्न तथा मध्यम आवृत्ति सीमाओं का प्रयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि उनकी बैंडविड्थ बहुत कम होती है।