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  • भारत में साइबर लॉ (Cyber Laws in India)

    भारत में साइबर लॉ (Cyber Laws in India)

    भारत में, साइबर लॉ, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलाजी एक्ट, 2000 (IT एक्ट) में निहित है, जिसे 17 अक्टूबर, 2000 को लागू किया गया था। एक्ट का मुख्य उद्देश्य गवर्नमेन्ट के साथ इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स को कानूनी मान्यता प्रदान करना तथा फाइलिंग की सुविधा प्रदान करना है।

    भारत के मौजूद लॉ, यहाँ तक कि सबसे कम्पेसिनेट तथा इन्टरप्रिटेशन के साथ, साइबर स्पेस में विभिन्न एक्टिविटीज को सम्मिलित करने के लिए इमरजेन्सी साबर स्पेस के प्रकाश में इन्टरप्रिंट नहीं किया जा सकता है। वास्तव में, प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस तथा जजमेन्ट के ज्ञान ने पाया कि यह बड़े खतरों और नुकसान के बिना नहीं होगा, यदि लॉ की व्याख्या नए साइबर लॉ को लागू किए बिना इमर्जिंग साइबर स्पेस के सिनेरियों में की जाए। इसलिए रेलेवेन्ट साइबर लॉ को अधिनियमित करने की आवश्यकता है।

    मौजूदा लॉ में से किसी ने भी साइबर स्पेस में एक्टिविटीज की कोई लीगल वैलिडिटी या मंजूरी नहीं दी है। उदाहरण के लिए, अधिकांश युजर्स ईमेल के लिए नेट का उपयोग करते हैं। फिर भी आज तक हमारे देश में ईमेल आई कानूनी नहीं हैं।

    देश में ऐसा कोई लॉ नहीं है, जो ईमेल को लीगल वैलिडिटी तथा मंजूरी देना हो। हमारे देश में न्यायालय तथा न्यायपालिका, संसद द्वारा बनाए गए किसी विशिष्ट लॉ के अभाव में ईमेल की वैलिडिटी को न्यायिक मान्यता देने में पीछे रहे हैं। ऐसे में साइबर लॉ अत्यधिक आवश्यक हो गया है।

  • साइबर लॉ का महत्व (Importance of Cyber Laws) साइबर लॉ के लाभ (Advantages )

    साइबर लॉ का महत्व (Importance of Cyber Laws) साइबर लॉ के लाभ (Advantages of Cyber Law)

    साइबर लॉ ऐसे क्रिमिनल्स को दंडित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो कम्प्युटर से सम्बन्धित सीरियस क्राइम करते हैं, जैसे हैकिंग, ऑनलाइन हैरेसमेन्ट, डेटा थेफ्ट, किसी इंटरप्राइज के ऑनलाइन वर्कफ्लो को डिस्टप्ट करना, किसी व्यक्ति या वेबसाइट पर अटैक करना आदि।

    साइबर लॉ आपके द्वारा तोड़े गए लॉ के प्रकार, आपने किसे आफेन्स किया, आपने लॉ का उल्लंघन कहाँ किया और आप कहाँ रहते हैं, इसके आधार पर सजा के विभिन्न रूप तय करते हैं।

    क्रिमिनल को सलाखों के पीछे लाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि अधिकांश साइबर क्राइम्स सामान्य क्राइम की कैटेगरी में नहीं आते हैं और इस प्रकार न्याय से वंचित हो सकते हैं।

    ये क्राइम्स किसी देश की कॉन्फिडेन्शियलिटी तथा फाइनेन्शियल सिक्योरिटी को खतरे में डाल सकते हैं, इसलिए इन समस्याओं को कानूनी रूप से सम्बोधित किया जाना चाहिए।

    साइबर लॉ के लाभ (Advantages of Cyber Law)

    आर्गेनाइजेशन्स अब एक्ट द्वारा प्रदान किए गए लीगल इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करके ई-कॉमर्स करने में सक्षम हैं।

    डिजिटल सिग्नेचर्स को एक्ट में लीगल वैलिडिटी तथा मंजूरी दी गई है।

    इसने सर्टिफाइंग आथोरिटीज होने के बिजनेस में डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट्स इशू करने के लिए कॉर्पोरेट कम्पनीज के प्रवेश के लिए द्वार खालो दिए हैं।

    यह गवर्नमेन्ट को -गवर्नेन्स की शुरूआत करते हुए वेब पर नोटिफिकेशन इशू करने की अनुमति प्रदान करता है।

    यह कम्पनीज या आर्गेनाइजेशन्स को किसी भी फॉर्म, एप्लिकेशन या किसी अन्य डॉक्युमेन्ट को किसी भी आफिस, आथोरिटी, बॉडी या एजेन्सी के स्वामित्व या कंट्रोल वाली एजेन्सी के पास ई-फॉर्म में ऐसे ई-फॉर्म के माध्यम से दर्ज कराने का अधिकार देता है, जैसा उपयुक्त गवर्नमेन्ट द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।

    IT एक्ट सिक्योरिटी के महत्वपूर्ण मुद्दों को भी सम्बोधित करता है, जो इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन्स की सफलता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

  • साइबर लॉ kya hai?(Cyber Law)

    साइबर लॉ (Cyber Law)

    साइबर लॉ किसी भी अन्य लीगल रूल या पॉलिसी के समान है, जिसको किसी भी प्रकार की परेशानी से बाहर निकलने के लिए हमारे दैनिक जीवन में पालन किया जाना चाहिए। ये लॉ हमारे समाज, मोरल्स, कम्प्युटर इथिक्स आदि जैसे की मुद्दों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। अंतर केवल इतना है कि साइबर लॉ इंटरनेट तथा इंटरनेट से सम्बन्धित टेक्नोलॉजीस पर ही लागू होता है। साइबर लॉ को वर्ल्ड में डिसिप्लिन तथा जस्टिस बनाए रखने के लिए बनाया गया है। लीगल सिस्टम में यह एरिया इसलिए पेश किया गया क्योंकि कम्प्युटर्स तथा अन्य टेक्नोलॉजीस से जुड़े क्राइम्स तेजी से बढ़ रहे थे। इस प्रकार के क्राइम्स किसी भी मौजुदा लीगल कैटेगरी के अंतर्गत नहीं आते थे, इसलिए साइबर लॉ के नाम से एक अलग सेक्शन का गठन किया गया था।

    साइबर लॉ बिजनेस तथा नियमित नागरिकों दोनों सहित इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों को लीगल प्रोटेक्शन प्रदान करता है। इंटरनेट का उपयोग करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए अपने देश तथा स्थानीय क्षेत्र के साइबर लॉ से अवगत होना महत्वपूर्ण है, ताकि वे जान सकें कि एक्टिविटी ऑनलाइन के अंतर्गत लीगल है और कौन-सी नहीं।

    पहला साइबर लॉ कम्प्युटर फ्रॉड तथा एब्युस एक्ट था, जिसे सन् 1986 में अधिनियमित किया गया था। CFAA के रूप में पहचाना जाने वाला यह लॉ कम्प्युटर्स अनआथोराइज्ड एक्सेस को प्रतिबंधित करता है और उस लॉ को तोड़ने के लिए सजा के स्तरों के बारे में डिटेल्स सम्मिलित करता है।

    साइबर लॉ में सम्मिलित क्षेत्र (Areas Encampassing in Cyber Laws)

    ये ऑनलाइन होने वाले कई एरियाज तथा एक्टिविटीज को कवर करते हैं और विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। ऑनलाइन व्यक्तियों को मेलिशियस एक्टिविटीज से बचाने के लिए कुछ लॉ बनाए जाते हैं। कुछ लॉ किसी कम्पनी में कम्प्युटर तथा इंटरनेट का उपयोग करने पर पॉलिसीज की व्याख्या करते हैं। ये सभी कैटेगरीज साइबर लॉ के अंतर्गत आती हैं। साइबर लॉ को सम्मिलित करने वाले कुछ विस्तृत क्षेत्र इस प्रकार है:

    1.स्कैम / ट्रेचरी लोगों को ऑनलाइन फ्रॉड्स तथा स्कैम्स से बचाने के लिए साइबर लॉ मौजूद हैं। ये लॉ किसी भी फाइनेन्शियल क्राइम तथा आइडोन्टिटी थेफ्ट को रोकते हैं।

    2.कॉपीराइट इशूज इंटरनेट कई प्रकार के कन्टेन्ट का सोर्स है, लेकिन किसी अन्य व्यक्ति की मेहनत की नकल करना उचित नहीं है। साइबर लॉ में कॉपीराइट के खिलाफ सख्त पॉलिसीज हैं, जो कम्पनीज तथा व्यक्तियों के क्रिएटिव वर्क्स को प्रोटेक्ट करती हैं।

    3. ऑनलाइन इन्सल्ट्स तथा कैरेक्टर डिग्रेडेशन सोशल मीडिया जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स स्वतंत्र रूप से अपने मन की बात कहने का सबसे अच्छे प्लेटफार्म्स हैं, लेकिन ऑनलाइन बोलने और किसी को बदनाम करने के अधिकार का उपयोग करने मुक्ति में काफी कमी पाई जाती है। साइबर लॉ किसी व्यक्ति की रेप्युटेशन को प्रोटेक्ट करने के लिए ऑनलाइन इन्सल्ट्स, रेसिज्म या जेंडर टार्गेट्स जैसे इशूज को सम्बोधित करते हैं।

    4. ऑनलाइन हैरेसमेन्ट तथा स्टॉकिंग हैरेसमेन्ट सिविल तथा क्रिमिनल दोनों ही लॉ का उल्लंघन है। साइबर स्पेस में यह क्राइम का प्रमुख मुद्दा है। इन जघन्य अपराध क्राइम्स को प्रतिबंधित करने के लिए लीगल सिस्टम में कुछ कठोर लॉ हैं।

    5. डेटा प्रोटेक्शन इंटरनेट का उपयोग करने वाले व्यक्ति ऑनलाइन रहते हुए अपनी प्राइवेसी को जोखिम में डालते हैं और अक्सर अपने सिक्रेट्स को प्रोटेक्ट करने के लिए साइबर लॉ तथा पॉलिसीज पर भरोसा करते हैं। साथ ही, कम्पनीज को अपने यूजर्स के डेटा की कॉन्फिडेन्शियलिटी को मेन्टेन करना चाहिए।

  • साइबर क्राइम की रोकथाम (Prevention of Cybercrime)

    साइबर क्राइम की रोकथाम (Prevention of Cybercrime)

    हम साइबर क्राइम की रोकथाम कर सकते हैं:

    1. स्ट्रॉन्ग पासवर्ड का उपयोग करें प्रत्येक अकाउंट के लिए अलग-अलग पासवर्ड तथा युजरनेम कॉम्बिनेशन्स मेन्टेन करें और उन्हें लिखने के प्रलोभन का विरोध करें। ब्रुट फोर्स अटैक, रेनबो टेबल अटैक आदि जैसी कुछ अटैकिंग मेथड्स का उपयोग करके कमजोर पासवर्ड को आसानी से क्रेक किया जा सकता है।

    2. डिवाइसेस में ट्रस्टेड एन्टीवायरस का उपयोग करें मोबाइल तथा पर्सनल कम्प्युटर्स में हमेशा भरोसेमंद और हाइली एडवांस्ड एन्टिवायरस सॉफ्टवेयर का उपयोग करें। इससे डिवाइसेस पर विभिन्न वायरस अटैक की रोकथाम होती है।

    3. सोशल मीडिया को प्राइवेट रखें: अपनी सोशल मीडिया प्राइवेसी को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर न करें। यह भी सुनिश्चित करें कि केवल उन्हें ही दोस्त बनाए, जिन्हें आप जानते हैं।

    4. अपने डिवाइस सॉफ्टवेयर को अपडेट रखें: जब भी आपको सिस्टम सॉफ्टवेयर के अपडेट्स मिलते हैं, उसी समय इसे अपडेट कर लें, क्योंकि कभी-कभी पिछले वर्शन पर आसानी से अटैक किया जा सकता है।

  • साइबर क्राइम के प्रकार (Types of Cybercrime)

    साइबर क्राइम के प्रकार (Types of Cybercrime)

    साइबरक्राइम के विभिन्न प्रकार है, जिनका वर्णन इस प्रकार किया गया हैं;

    1. DDoS अटैक्स इनका उपयोग ऑनलाइन सर्विस को अनुपलब्ध बनाने के लिए किया जाता है और विभिन्न सोसेंस से ट्रेफिक के साथ साइट को भारी बनाकर नेटवर्क को धीमा कर देता है। बॉटनेट्स के नाम से पहचानी जाने वाली इन्फेक्टेड डिवाइसेस के बड़े नेटवर्क युजर्स के कम्प्युटर्स पर मालवेयर डिपॉजिट करके बनाए जाते हैं। नेटवर्क धीमा होने के बाद हैकर सिस्टम को हैक कर लेता है।

    2. बॉटनेट्स बॉटनेट्स कॉम्प्रोमास्ड कम्प्युटर्स हैं, जिन्हें रिमोट हैकर्स द्वारा एक्सटर्नल रूप से कंट्रोल किया जाता है। रिमोट हैकर्स इन बॉटनेट्स के जरिए स्पेस भेजते है या दूसरे कम्प्युटर्स पर अटैक करते हैं। बॉटनेट्स का उपयोग मालवेयर के रूप में कार्य करने और मेलिशियस टास्क्स परफॉर्म करने के लिए भी किया जाता है।

    3. आइडेन्टिटी थेफ्ट यह साइबर क्राइम तब होता है, जब कोई क्रिमिनल धन की चोरी करने, कॉन्फिडेन्शियल इन्फॉर्मेशन एक्सेस करने या टेक्स्ट या हेल्थ इन्श्योरेन्स फ्रॉड में पार्टिसिपेट करने के लिए युजर की पर्सनल इन्फॉर्मेशन का एक्सेस प्राप्त कर लेता है।

    वे आपके नाम से फोन/इंटरनेट अकाउंट भी ओपन कर सकते हैं, क्रिमिनल एक्टिविटी को प्लान करने के लिए आपके नाम का उपयोग कर सकते हैं और आपके नाम पर गवर्नमेन्ट बेनिफिट्स को क्लैम भी कर सकते हैं। वे हैकिरा के माध्यम से युजर के पासवर्ड का पता लगाकर सोशल मीडिया से पर्सनल इन्फॉर्मेशन प्राप्त करके या फिशिंग ईमेल्स सेन्ड करके ऐसा कर सकते हैं।

    4. सोशल इंजीनियरिंग सोशल इंजीनियरिंग में वो क्रिमिनल्स सम्मिलित होते हैं, जो आमतौर पर फोन या ईमेल के जरिए आपसे सीधे संपर्क करते हैं। वे आपका विश्वास हासिल करना चाहते हैं और आमतौर पर कस्टमर सर्विस एजेन्ट के रूप में पेश आते हैं, ताकि आप अपनी आवश्यक जानकारी उन्हें देदें। यह सामान्य तौर पर एक पासवर्ड, आपके द्वारा काम किए जाने वाली कम्पनी की जानकारी या बैंक की जानकारी होती है।

    साइबर क्रिमिनल्स यह पता लगा लेते हैं कि वे आपकी जानकारी का क्या उपयोग कर सकते हैं, जिसके बाद वे आपको सोशल अकाउंट पर फ्रेड के रूप में जोड़ने का प्रयास करते हैं। एक बार जब वे किसी अकाउंट को एक्सेस कर लेते हैं, तो वे आपकी जानकारी या आपके नाम के सिक्योर अकाउंट्स को बेच सकते हैं।

    5. PUP PUPs या पोटेन्शियली अनवॉन्टेड प्रोग्राम्स अन्य साइबर क्राइम्स की तुलना में कम खतरनाक होते हैं, लेकिन ये एक प्रकार के मालवेयर होते हैं। वे सर्च इंजन्स तथा पहले से डाउनलोड की गई ऐप्स सहित आपके सिस्टम में आवश्यक सॉफ्टवेयर को अनइंस्टॉल कर देते है। इनमें स्पाइवेयर या एडवेयर सम्मिलित हो सकते हैं, इसलिए मेलिशियस डाउनलोड से बचने के लिए एंटीवायरस सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना एक अच्छा विचार है। इस प्रकार के अटैक में हैकर्स, युजर्स को उनके अकाउंट्स या कम्प्युटर को एक्सेस करने के लिए मेलिशियस ईमेल

    6. फिशिंग अटैचमेन्ट्स या URL भेजते हैं। साइबर क्रिमिनल्स अधिक स्थापित हो रहे हैं और इनमें से कई ईमेल्स स्पैम के रूप में फ्लैग नहीं किए गए हैं। युजर्स को ईमेल्स में यह दावा किया जाता है कि उन्हें अपना पासवर्ड बदलने या अपनी बिलिंग इन्फॉर्मेशन अपडेट करने की आवश्यकता है, जिससे क्रिमिनल्स को एक्सेस प्राप्त हो सके।

    7. प्रोहिबिटेड / इल्लिगल कन्टेन्ट इस साइबर क्राइम में क्रिमिनल्स को इन अप्रोप्रिएट कन्टेन्ट को शेयर करना तथा डिस्ट्रिब्यूट करना सम्मिलित है, जिसे अत्यधिक चिंताजनक तथा आक्रामक माना जाता है। आफेन्सिव कन्टेन्ट में एडल्ट्स के बीच सेक्सुअल एक्टिविटी इन्टेन्स वॉएलेन्ट वीडियोज तथा क्रिमिनल एक्टिविटी बीडियोज सम्मिलित हो सकते हैं, लेकिन ये यही तक सीमित नहीं है। इल्लिगल कन्टेन्ट में टेररिज्म से सम्बन्धित एक्ट्स तथा चाइल्ड एक्सप्लॉइटेशन मटेरियल सम्मिलित है। इस प्रकार का कन्टेन्ट रोजमर्रा के इंटरनेट तथा डार्क वेब, एक एनोनिमस नेटवर्क दोनों पर मौजूद है।।

    8. एक्सप्लाइट किट्स यूजर के कम्प्यूटर को कन्ट्रोल करने के लिए एक्सप्लॉइट किट्स को क्ल्नरेबिलिटी (सॉफ्टवेयर के कोड में बग) की आवश्यकता होती है। ये रेडीमेड टूल्स हैं, जिन्हें क्रिमिनल्स ऑनलाइन खरीद सकते हैं और कम्प्युटर के साथ किसी के भी खिलाफ उपयोग कर सकते हैं। एक्सप्लॉइट किट्स नियमित रूप से सामान्य सॉफ्टवेयर के सामान अपग्रेड होते हैं और डार्क वेब हैकिंग फॉरम्स पर उपलब्ध होते हैं।

  • साइबर क्राइम का क्लासिफिकेशन (Classification of Cybercrime)

    साइबर क्राइम का क्लासिफिकेशन (Classification of Cybercrime)

    1. साइबर टेररिज्म: साइबर टेररिज्म वॉएलेन्ट एक्ट्स करने के लिए कम्प्युटर तथा इंटरनेट का उपयोग है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन की हानि हो सकती है। इसमें नागरिकों के जीवन को खतरे में डालने के लिए सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर द्वारा विभिन्न प्रकार की एक्टिविटीज सम्मिलित हो सकती है।

    सामान्य तौर पर, साइबर टेररिज्म को साइबर स्पेस या कम्प्युटर रिसोर्सेस के उपयोग के माध्यम से किए गए टेररिज्म के कार्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

    2. साइबर एक्सटॉर्शन: साइबर एक्सटॉर्शन तब होता है, जब किसी वेबसाइट, ई-मेल सर्वर या कम्प्युटर सिस्टम को मेलिशियस हैकर्स द्वारा रिपिटेड डिनायल आफ सर्विस या अन्य अटैक्स के अधीन किया जाता है या धमकी दी जाती है। ये हैकर्स अटैक्स को रोकने तथा प्रोटेक्शन प्रदान करने के अश्योरेन्स के बदले भारी धन की माँग करते हैं।

    3. साइबर वारफेयर: साइबर वारफेयर कम्प्युटर्स ऑनलाइन कंट्रोल सिस्टम्स तथा नेटवर्क्स के बेटल स्पेस या वारफेयर कॉन्टेक्स्ट में उपयोग या इसकी टारगेटिंग है। इसमें साइबर अटैक्स, जासूसी तथा तोड़फोड़ के खतरे से सम्बन्धित आफेन्सिव तथा डिफेन्सिव दोनों तरह के ऑपरेशन्स सम्मिलित हैं।

    4. इंटरनेट फ्रॉड: इंटरनेट फ्रॉड एक प्रकार की धोखाधड़ी या छल है, जो इंटरनेट का उपयोग करता है और इसमें धन या प्रॉपर्टी के लिए विक्टिम्स को धोखा देने के उद्देश्य से जानकारी छिपाना या गलत जानकारी प्रदान करना सम्मिलित हो सकता है। इंटरनेट फ्रॉड को केवल विशिष्ट क्राइम नहीं माना जाता है, बल्कि साइबर स्पेस में किए जाने वाले कई अवैध कार्यों को सम्मिलित किया जाता है।

    5. साइबर स्टॉकिंगः यह एक प्रकार का ऑनलाइन हैरेसमेन्ट है, जिसमें विक्टिम को ऑनलाइन मैसेजेस तथा ई-मेल्स की बड़ी मात्रा का सामना करना पड़ता है। इस मामले में, ये स्कॉलर्स अपने विक्टिम्स को जानते हैं और आफलाइन स्टॉकिंग के बजाए वे स्टॉक करने के लिए इंटरनेट का उपयोग करते हैं। हालाँकि, यदि वे पाते हैं कि साइबर स्टॉकिंग का वांछित प्रभाव नहीं हो रहा है, तो वे विक्टिम्स के जीवन को और अधिक दयनीय बनाने के लिए साइबर स्टॉकिंग के साथ- साथ उनकी आफलाइन स्टॉकिंग भी शुरू कर देते हैं।

  • साइबर क्राइम की कैटेगरीज (Categories of Cybercrime)

    साइबर क्राइम की कैटेगरीज (Categories of Cybercrime)

    साइबरक्राइम की तीन मुख्य कैटेगरीज हैं:

    इन्डिविजुअल, प्रॉपर्टी तथा गवर्नमेन्ट । उपयोग की जाने वाली विधियों के प्रकार तथा कठिनाई के स्तर कैटेगरीज के आधार पर भिन्न होते हैं।

    प्रॉपर्टीः यह किसी व्यक्ति की बैंक या क्रेडिट कार्ड डिटेल्स को अवेध रूप से रखने वाले क्रिमिनल के वास्तविक जीवन के उदाहरण के समान है। हैकर किसी व्यक्ति की बैंक डिटेल्स को चुराता है ताकि वह धन प्राप्त कर सके, ऑनलाइन खरीदारी कर सके या लोगों को उनकी इन्फॉर्मेशन देने के लिए फिशिंग स्कैम्स चला सके। वे कॉन्फिडेन्शियल इन्फॉर्मेशन -वाले वेब पेज को एक्सेस करने के लिए मेलिशियस सॉफ्टवेयर का उपयोग भी कर सकते हैं। •

    इन्डिविजुअल: साइबर क्राइम की इस कैटेगरी में वह व्यक्ति सम्मिलित है, जो मैलिशियस या इल्लिगल इन्फॉर्मेशन को ऑनलाइन डिस्ट्रिब्युट करता है। इसमें साइबर स्टॉकिंग, पोर्नोग्राफी तथा ट्रेफिकिंग डिस्ट्रिब्युट करना सम्मिलित हो सकता है।

    गवर्नमेन्टः यह सबसे कम सामान्य साइबरक्राइम है, लेकिन सबसे सीरियस आफेन्स है। गवर्नमेन्ट के खिलाफ क्राइम को साइबर टेररिज्म के रूप में भी जाना जाता है। गवर्नमेन्ट साइबर क्राइम में गवर्नमेन्ट वेबसाइट्स मिलिटरी वेबसाइट्स या प्रचार-प्रसार सम्मिलित होता है। ये क्रिमिनल्स सामान्य तौर पर टेररिस्ट्स या अन्य देशों की दूश्मन गवर्नमेन्ट्स होती हैं।

  • साइबर क्राइम kya hai?(Cybercrime )

    साइबर क्राइम (Cybercrime )

    साइबरक्राइम को ऐसे क्राइम के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहाँ क्राइम का ऑजेक्ट कम्प्यूटर होता है या क्राइम करने के लिए इसका उपयोग एक टूल के रूप में किया जाता है। एक साइबर क्रिमिनल युजर की पर्सनल इन्फॉर्मेशन, कॉन्फिडेन्शल बिजनेस इन्फॉर्मेशन, गवर्नमेन्ट इन्फॉर्मेशन या किसी डिवाइस को डिसेबल करने के लिए डिवाइस का उपयोग कर सकता है। उपरोक्त इन्फॉर्मेशन को ऑनलाइन बेचना या प्राप्त करना भी एक प्रकार का साइबर क्राइम ही है।

    अन्य शब्दों में, साइबर क्राइम को एक ऐसे क्राइम के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो नेटवर्क से कनेक्टेड डिवाइस, जैसे कम्प्यूटर या मोबाइल फोन का उपयोग करके किया जाता है। साइबर क्राइम करने वालों को साइबर क्रिमिनल या साइबर क्रुक्स के रूप में जाना जाता है। बढ़ते डिजिटाइजेशन के साथ, इंटरनेट क्राइम्स भी तेजी से बढ़ रहे हैं।

    जैसे, इस प्रकार का क्राइम दूरस्थ स्थानों से किया जा सकता है। उदाहरण के लिए विदेश के अधिकांश क्रिमिनल्स इस मोड को पसंद करते हैं, क्योंकि ट्रेस होने तथा दंडित होने का जोखिम सीमित है। कुछ सामान्य प्रकार के साइबर क्राइम्स में फिशिंग, हैकिंग, साइबर-बुलिंग, आइडेन्टिटी थेफ्ट, स्पैमिंग आदि सम्मिलित हैं।

  • फ्री तथा ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के उदाहरण (Examples of Free and Open Source Software)

    फ्री तथा ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के उदाहरण (Examples of Free and Open Source Software

    लिनक्स (आपरेटिंग सिस्टम)

    KDE, GNOME, XFce (डेस्कटॉप एन्वायर्नमेन्टस)

    एंड्राइड (फोन आपरेटिंग सिस्टम / एन्वायर्नमेन्ट)

    अपाचे (वेब सर्वर)

    MySQL, PostgreSQL (DBMS ‘s/सर्वर्स)

    पर्ल, PHP, पायथन (स्क्रिप्टिंग लैंग्वेज)

    Open Office (आफिस सॉफ्टवेयर सूट)

    GCC (GNU कम्पाइलर कलेक्शन)

    GNU टूलचैन : Autoconf, make आदि)

    Git, सबवर्शन, CVS (वर्शन कंट्रोल सिस्टम्स)

    OpenSSH (SSH सर्वर)

    सेन्डमेल, पोस्टफिक्स (ईमेल ट्रांसपोर्ट सॉफ्टवेयर)

    आक्टेव (GNU Matlab क्लोन)

    GIMP (इमेल मैनिप्युलेशन फोटोशॉप)

    वर्डप्रेस (ब्लॉगिंग)

    ड्रूपल (कन्टेन्ट मैनेजमेन्ट सिस्टम

  • Foss का इतिहास kya hai?(History of Foss)

    Foss का इतिहास (History of Foss)

    अधिकांश लोगों के द्वारा पढ़ा जाने वाला Foss तुलनात्मक रूप से पुराना है। एक अवधारणा के रूप में, यह लगभग 1950 के दशक से है। उस समय, जब कम्पनीज हार्डवेयर खरीदती थीं, तो खरीदे गए उन हार्डवेयर पर रन होने वाला स्पेशलाइज्ड बंडल्ड सॉफ्टवेयर मुफ्त था। इस कारण से उस समय एक स्टैंडर्ड प्रैक्टिस हार्डवेयर कस्टमर्स को उस कोड को मोडिफाय करने की अनुमति प्रदान करना था। चूँकि इस अवधि के दौरान हार्डवेयर असामान्य रूप से महँगा था, इसलिए ये कस्टमर्स मुख्य रूप से रिसर्चर्स तथा एकेडमिशियन्स थे।

    उस समय सॉफ्टवेयर के लिए उपयोग की जाने वाली टर्म वैसी नहीं थी, जैसी आज है। इसके बजाए, इसे सामान्य तौर पर पब्लिक डोमेन सॉफ्टवेयर के रूप में संदर्भित किया जाता था। आज Foss तथा पब्लिक डोमेन सॉफ्टवेयर काफी अलग हैं। Foss मुफ्त है, लेकिन लाइसेन्स्ड भी है। यह उन टर्म्स तथा कंडीशन्स को सम्मिलित करता है, जिसमें लाइसेंस का उपयोग किया जाता है। पब्लिक डोमेन सॉफ्टवेयर के पास कोई लाइसेन्स नहीं है और इसे बिना किसी प्रतिबंध के, स्वतंत्र रूप से उपयोग, मोडिफाय तथा डिस्ट्रिब्यूट किया जा सकता है, और क्रिएट को उसके क्रिएशन का अधिकार नहीं है।

    सन् 1985 में, रिचार्ड स्टॉलमैन ने फ्री सॉफ्टवेयर मूवमेन्ट का समर्थन करने के लिए फ्री सॉफ्टवेयर फाउंडेसन (FSF) की स्थापना की। FSF का कमिटमेन्ट फ्री सॉफ्टवेयर के प्रति था। यानि वह सॉफ्टवेयर जिसे युजर्स उपयोग करने, मोडिफाय करने तथा अध्ययन करने तथा शेयर करने के लिए स्वतंत्र थे।

    एक वर्ष पश्चात्, जैसा कि हम जानते हैं, Foss चार स्वतंत्रताओं के आधार पर अस्तित्व में आया:

    किसी भी उद्देश्य के लिए प्रोग्राम का उपयोग करने की स्वतंत्रता

    सोर्स कोड के लिए एक्सेस

    प्रोग्राम कैसे कार्य करता है, यह जानने तथा इसे मोडिफाय करने की स्वतंत्रता

    कॉपीज जो रिडिस्ट्रिब्युट करने की स्वतंत्रता

    मोडिफाय वर्शन्स की कॉपी डिस्ट्रिब्युट करने की स्वतंत्रता