Author: Ram

  • Manipulation and Control Devices kya hai?

    मैनीपुलेशन तथा कन्ट्रोल डिवाइस (Manipulation and Control Devices)

    वर्चुअल संसार के साथ इंटरैक्शन के लिये मुख्य तत्व है वास्तविक संसार की वस्तु की स्थिति को ट्रैक करने का तरीका, जैसे- सिर या हाथ पोजीशन (स्थिति) ट्रैकिंग और नियंत्रण के लिये अनेक तरीके हैं। आदर्श रूप से एक टैक्नालाजी को पोजीशन (xyz) के तीन तरीके और ओरियेन्टेशन [(राल, पिच, याव) / roll, pitch, yaw] के तीन तरीकों को उपलब्ध करवाना चाहिये।

    पोजीशन ट्रैकिंग में सबसे बड़ी समस्या लैटैन्सी (latency) अथवा माप लेने और उनको प्रोसेस करने और सिमुलेशन इंजन के इनपुट करने से पहले प्री-प्रोसेस करने में लगने वाला समय है।

    सबसे सरल कंट्रोल हार्डवेयर एक परम्परागत माउस (conventional mouse), ट्रैकबाल (track ball) या ज्वायस्टिक (joystick) है।

    यद्यपि ये दो-आयामी (two dimensional) डिवाइस हैं, किन्तु क्रियेटिव प्रोग्रामिंग इन्हें 6D (छः आयामी) कन्ट्रोल के लिये इस्तेमाल कर सकता है। 3 और 6 आयामी माउस, ट्रैक बाल, ज्वायस्टिक मार्केट में आ गये हैं। ये कुछ अतिरिक्त बटन और व्हील देते हैं जो न केवल कर्सर (cursor) के XY ट्रांसलेशन को कन्ट्रोल करते हैं, अपितु इसके Z डाइमैनशन और तीनों दिशाओं में घुमाव को भी कन्ट्रोल कर सकते हैं। ग्लोबल डिवाइसेस 6 D कन्ट्रोलर एक ऐसा 6D ज्वायस्टिक है।

    यह देखने में रैकटबाल की तरह है जो एक शार्ट स्टिक (short stick) पर माउन्ट (mount) होता है। आप बाल (ball) को खींच सकते हैं, मोड़ सकते हैं। और साथ ही दायें बायें तथा आगे-पीछे भी कर सकते हैं। अन्य 3D और 6D माउस, ज्वायस्टिक तथा फोर्स बाल लागीटैक, माउस सिस्टम कार्पोरेशन इत्यादि कम्पनियाँ उपलब्ध कराती हैं।

    इन्स्ट्रमेन्टैड ग्लोव (instrumented glove) एक साधारण वीआर डिवाइस है। कम्प्यूटर में किसी वस्तु को मैनीपुलेट करने के लिए ग्लोव (glove) का इस्तेमाल करना अमेरिका में मूल पेटेंट (basic patent) द्वारा कवर्ड (coverd) है। अनेक प्रकार के सेंसर हैं जिनको इस्तेमाल किया जा सकता है।

    वीपीएल (पेटेंट के स्वामी) ने अनेक डाटा ग्लोव (data glove) बनाये हैं जिनमें अधिकतर फिंगर बैन्ट्स (finger bends) फाइबर आपटिक सेंसर (fiver optic sensor) के लिये तथा मैग्नेटिक ट्रेकर (magnetic tracker) की ओवरआल पोजीशन के लिये उपयोग हुआ है। मैटल (Mattel) ने पावर ग्लोव का उत्पादन विशेषकर निनटैनडो (Nintendo) खेल सिस्टम में कुछ समय के लिये इस्तेमाल किया था।

    यह डिवाइस आसानी से पर्सनल कम्प्यूटर के साथ इन्टरफेस के लिये उपयुक्त हो जाती है। यह कुछ सीमित हैन्ड लोकेशन और फिंगर पोजीशन डाटा (finger position data) उपलब्ध कराता है जो फिंगर बैन्ड और अल्ट्रासोनिक पोजीशन सैंसर का प्रयोग कर संभव होता है।

    एक इन्सट्रूमेन्टैड ग्लोव (instrumented glove) की धारणा का विस्तार शरीर के अन्य भागों तक हुआ। पूरे शरीर के लिये सूट (पोजीशन और बैन्ड कैंसर के साथ) उन मोशन को कैपचर (capture) करने के लिये हैं जो कैरेक्टर ऐनीमेशन (character animation), संगीत सिन्थेसाइजर (music synthesizer) के कंट्रोल और वीआर हेतु हैं।

    तेज और बिल्कुल सही ट्रैकिंग के लिये मैकेनिकल आर्मेचर (Mechanical armature) इस्तेमाल किये जा सकते हैं।

    ये आरमेचर देखने में एक डेस्क लैम्प ( मूलभूत पोजीशन ओरियेन्टेशन के लिये) की तरह हो सकते हैं या ये अत्यन्त जटिल एक्सोस्कैलेटन (exoskeletons) (अधिक विस्तृत पोजिशन्स के लिये) हो सकते हैं।

    हैड ट्रैकिंग के लिये शूटिंग स्टार सिस्टम कम कीमत का आरमेचर सिस्टम बनाता है। फेक स्पेस लैब्स (fake space labs) तथा लीप (leep) सिस्टम महँगे और अधि क विस्तृत आरमेचर सिस्टम बनाते हैं जो उनके डिस्प्ले सिस्टम्स में काम आते हैं।

    अल्ट्रासोनिक सैन्सर, पोजीशन और ओरियेन्टेशन को ट्रैक (track) करने के लिये इस्तेमाल किये जा सकते हैं। अल्ट्रासोनिक की कमियाँ लो रैजोलूशन (low resolution), लांग लैग टाइम्स (long lag times) तथा ईको (echo) वातावरण में अन्य शोर से हस्तक्षेप है।

    लागीर्टक और ट्रांजीशन स्टेट (Logitech, Transition State) दो कम्पनियाँ हैं जो अल्ट्रासोनिक ट्रैकिंग सिस्टम उपलब्ध करवाती हैं।

    मैगनेटिक ट्रैकर क्वाइल्स (coils) के सैट इस्तेमाल करते हैं जिनको मैग्नेटिक फील्ड (magnetic field) पैदा करने में पल्स (pulsed) किया जाता है। मैग्नेटिक सेंसर फील्ड के कोण (angles) और शक्ति (strength) का पता लगाता है।

    इन ट्रैकर्स की कमियाँ प्रोसेसिंग और मेजरमेन्ट के लिए उच्च लेटेन्सी, रेंज की सीमा तथा फील्ड के भीतर फैरस मैटीरियल्स (ferrous materials) से इन्टरफेयरेन्स (interference) हैं। तथापि मैगनेटिक ट्रैकर पसंदीदा विधि है। दो मुख्य कम्पनियाँ जो मैगनेटिक ट्रैकर बनाती हैं वे हैं पालहीमस (Polhemus) तथा एसैनशन (Ascension).

    आप्टिकल पोजीशन ट्रैकिंग सिस्टम विकसित हो चुका है। एक विधि में एक सीलिंग ग्रिड (ceiling grid), LEDs और एक हैड माउन्टैड कैमरा (head mounted camera) इस्तेमाल किया जाता है। LEDs सीक्वेन्स (sequence) में पल्स्ड (pulsed) होते हैं और फ्लेश का पता लगाने के लिये कैमरा इमेज प्रोसेस की जाती है।

    इस विधि में दो समस्याएँ हैं- सीमित जगह (ग्रिड साइज) तथा पूरे मोशन (full motion) की कमी। एक और आप्टिकल विधि अनेक वीडियो कैमरे इस्तेमाल कर सिमुलटैनियस (simultaneous) इमेज को कैपचर करती है जिनको आब्जैक्ट को ट्रैक करने के लिये हाई स्पीड कम्प्यूटर द्वारा कोरिलेट (correlate) किया जाता है।

    यहाँ प्रोसेसिंग समय और फास्ट कम्प्यूटर की कीमत, एक मुख्य कारण है जो इसके इस्तेमाल की सीमा बाँधता है। एक कम्पनी जो आप्टिकल ट्रैकर बेच रही है, वह ओरिजिन इन्सट्रूरूमेंट्स (Origin Instruments) है।

    यद्यपि इनरशियल ट्रैकर (inertial tracker) का विकास हुआ है जो छोटे हैं और वीआर के इस्तेमाल के लिये काफी सही हैं, तथापि ये डिवाइस साधारणतः केवल रोटेशनल मेजरमेन्ट (rotational measurement) ही उपलब्ध कराती हैं। ये स्लो पोजीशन परिवर्तन (slow position change) के लिये सही नहीं हैं।

  • Virtual Reality Hardware kya hai?

    virtual reality hardware (वर्चुअल रियलिटी हार्डवेयर)

    वर्चुअल रियलिटी ऐप्लीकेशन्स में इस्तेमाल होने वाले अनेक प्रकार के विशिष्ट हार्डवेयर डिवाइसेस (devices) का विकास हुआ है।

    इमेज जैनेरेटर्स (Image Generators)

    वीआर सिस्टम में सबसे अधिक समय लगने वाले कामों में से है इमेज जैनेरेशन (image generation) एक है।

    फास्ट कम्प्यूटर ग्राफिक्स (fast computer graphics) वीआर के अलावा अनेक अन्य ऐप्लिकेशन्स प्रस्तुत करते हैं, अतः बाजार में ऐसे हार्डवेयर की माँग काफी समय से जोर पकड़े है।

    अनेक वैन्डर हैं जो पीसी स्तर की मशीनों के लिये इमेज जैनेरेटर कार्ड बेच रहे हैं। इनमें से अनेक इनटैल i 860 प्रोसेसर पर आधारित हैं।

    सिमुलेटर बाजार ने अनेक ऐसी कम्पनियाँ बनाई हैं जो विशेष प्रयोजन में कम्प्यूटर डिजाइन करती हैं जिनसे रियल टाइम इमेज (real time image) जैनेरेट होती है। ऐसे कम्प्यूटर्स की कीमत लाखों डालर की होती है।

  • Simulation Processing Power kya hai?

    प्रोसेसिंग पावर (Processing Power)

    कम्प्यूटर सिमुलेशन अपने होस्ट कम्प्यूटर की प्रोसेसिंग शक्ति से सीमित रहेगा और इसलिए सिमुलेशन के कई पहलू हो सकते हैं

    जो फाइन ग्रेन्ड, उदाहरण के तौर पर सब एटामिक (subatomic) स्तर पर कम्प्यूटेड (computed) नहीं हुए। यह सूचना की एक्यूरेसी (accuracy) पर लिमिटेशन (limitation) की तरह दिख सकता है

    जिसे पार्टिकल फिजिक्स (particle physics) में प्राप्त किया जा सकता है। हाँलाकि औरों के तरह यह आर्ग्युमेंट भी यह कल्पना करता है।

    सिमुलेटिंग कम्प्यूटर के बारे में सही निर्णय सिमुलेशन के द्वारा ही बन सकता है। अगर हम सिमुलेटिड है तो हमें कम्प्यूटर्स के स्वभाव के बारे में गलतफहमी हो सकती है।

    हमारी दुनिया के “फाइन ग्रेन्ड” (fine grained), तत्व स्वयं सिमुलेट हो सकते हैं क्योंकि हम अपनी निहित भौतिक/शारीरिक सीमाओं के कारण सब एटामिक पार्टिकल्स को कभी नहीं देख पाते।

    इन पार्टिकल्स को देखने के लिये हम अन्य यंत्रों पर भरोसा करते हैं जो इन सूचनाओं का एक ऐसे फार्मेट में अनुवाद करते हैं। जिसको हमारी सीमित ज्ञानेन्द्रियाँ देख सकें,

    जैसे- कम्प्यूटर प्रिंट आउट, माइक्रोस्कोप के लैंस इत्यादि । अतः हम इस विश्वास को मानते हैं कि वे फाइन ग्रेन्ड (fine grained) दुनिया की अच्छी तस्वीर हैं जो उस कार्य क्षेत्र में हैं जो हमारी प्राकृतिक ज्ञानेन्द्रियों से परे है।

    अगर हम यह कल्पना करें कि सब-एटामिक भी सिमुलेटिड हो सकता है तब रियलिस्टिक संसार के निर्माण के लिये प्रोसेसिंग शक्ति की आवश्यकता बहुत कम हो जायेंगी।

  • Recursive Simulations kya hai?

    रिकर्सिव सिमुलेशन्स (Recursive Simulations)

    एक सिमुलेटेड रियलिटी में एक कम्प्यूटर हो सकता है जो एक सिमुलेटैड रियलिटी को चलाता है। ‘पेरेन्ट’ (parent) सिमुलेटर कम्प्यूटर के सभी एटम्स (atoms) को सिमुलेट कर रहा होगा,

    वह ऐटम जो एक ‘चाइल्ड’ (शिशु) के सिमुलेशन की गणना कर रहा हो। समझने हेतु कल्पना कीजिये कि एक मानव एक खेल “दी सिम्स” (The Sims) खेल रहा है जिसमें खिलाड़ियों में से एक खिलाड़ी का सिम्स (“सिमूलेटैड पीपुल”) खेल में एक कम्प्यूटर खेल रहा है।

    यह रिकर्सन (recursion) अनेक स्तरों पर अनन्त तक चल सकता है। रिकर्सन (Recursion) में केवल एक बाधा (constraint) हो सकती है, प्रत्येक ‘नैस्टैड’ (nested) सिमुलेशन होना चाहिये:

    अपनी पेरेन्ट रियलिटी (parent reality) से छोटा (small) क्योंकि उसकी अपनी मेमोरी (memory) पेरेन्ट (parent) की एक सबसैट (subset) होनी चाहिये।

    अपनी पेरेन्ट रियलिटी (parant reality) से धीमा (slower) होना चाहिये क्योंकि उसके अपने आकलन पेरेन्ट के सबसैट (subset) होने चाहिये अथवा

    अपनी पेरेन्ट रियलिटी से कम जटिल (less complex) होना चाहिये प्रोसेसेस के सरलीकरण (simplification) द्वारा जो

    पैरेन्ट रियलिटी में कम्प्यूटेशनली इन्टैनसिव (computationally intensive) है अथवा

    तथा इनमें से एक अवश्य होना चाहिये:

    अपनी पेरेन्ट रियलिटी से कम सम्पूर्ण (less complete) हो वाया (via) आब्जैक्ट्स (objects) के एप्राक्सीमेशन्स (approximations) से, जिनको कोई नहीं देख रहा हो।

    पिछले विचार का आधार है कि क्वान्टम अनिश्चितताएँ (quantum uncertainities) परिस्थितिजन्य (circumstantial) सबूत है कि हमारी स्वयं की रियलिटी एक सिमूलेशन है। तथापि यह मान लिया जाता है कि कहीं सीमित प्रतिबंधन (finite limitation) चेन में है।

    यह मान लें कि सिमुलेशन के अन्दर असीमित संख्या के सिमुलेशन्स हैं। किसी सबसैट (subset) के बीच कोई नोटिस (notice) करने वाला अन्तर होना आवश्यक नहीं है।

  • Simulation (VR)kya hai?

    सिमुलेशन के प्रकार (Type of Simulation)

    ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस (Brain Computer Interface) एक ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस सिमूलेशन में प्रत्येक भाग लेने वाला सीधा अपने ब्रेन (brain) को सिमुलेशन कम्प्यूटर के साथ जोड़कर बाहर से प्रवेश लेता है

    कम्प्यूटर सेंसरी डाटा (sensory data) को उनमें ट्रांसफर करता है और उनकी इच्छाओं तथा क्रियाओं को वापस पढ़ता है। इस प्रकार से वे सिमुलेटैड विश्व से इन्टरैक्ट (interact) करते हैं और उससे फीडबैक (feedback) प्राप्त करते हैं।

    सहभागी, थोड़ी देर के लिये यह भूल जाने के लिये कि वे एक वर्चुअल रियल्म (Virtual realm) में हैं, अर्थात् (“passing through the veil”), एडजेस्टमेन्ट (adjustment) भी प्राप्त कर सकते हैं।

    जब सिमुलेशन के अंदर हों, तब सहभागी की चेतना (consciousness), एक ‘अवतार’ के द्वारा प्रदर्शित होती है जो सहभागी के असली रूप से भिन्न दिखता है।

    वर्चुअल लोग (Virtual People) – वर्चुअल पीपुल (Virtual people) सिमुलेशन में प्रत्येक निवासी सिमुलेटैड दुनिया का बाशिन्दा होता है। उनका ‘बाहरी’ वास्तविकता में कोई ‘यथार्थ’ शरीर नहीं होता।

    कदाचित प्रत्येक पूर्णतः सिमुलेटैड एन्टिटी ( entity) है जिसके पास उपयुक्त स्तर की कानश्यसनैस (consciousness) अर्थात् चेतन अवस्था है

    जिसका इम्प्लीमेंटेशन सिमुलेशन के अपने लाजिक (अर्थात् स्वयं की फिजिक्स/भौतिकी का उपयोग करते हुए) के इस्तेमाल से हो।

    इनको एक सिमूलेशन से दूसरे में डाउनलोड किया जा सकता है या उसे आरकाइव में रखा जा सकता है और फिर जब आवश्यकता हो निकाला जा सकता है।

    यह भी संभव है कि एक सिमुलेटेड एन्टिटी (simulated entity) सिमुलेशन से पूर्णतः हटायी जा सकती है जिसमें माइन्ड ट्रांसफर (mind transfer) को एक सिन्थेटिक बॉडी (Synthetic body) में कर किया जा सकता है।

    इसका उदाहरण है “जब मूवी वर्चुआसिटी (virtuosity) में एस आई डी 6.7 (SID 6.7) अपनी सिमुलेटैड रियलिटी से बच जाता है”। यह वर्ग दो और प्रकारों में विभाजित हो सकता है।

    वर्चुअल पीपुल वर्चुअल वर्ल्ड (Virtual people virtual world) – इसमें एक एक्सटर्नल रियलिटी (external reality) आर्टीफिशियल कानशियसनैस (artificial consciousness) में अलग से सिमुलेट (simulate) होती है।

    → सौलिपसिस्टिक सिमुलेशन (solipsistic simulation) – इसमें कॉनशियसनेस (consciousness) सिमुलैट होती है और भाग लेने वाले जिसको “विश्व” मानते हैं वह केवल उनके दिमाग में होता है।

    एैमीग्रेशन (Emigration) – एक एैमीग्रेशन सिमुलेशन में भाग लेने वाले सिमुलेशन में बाहरी रियलिटी से प्रवेश करते हैं; जैसे ब्रेन कम्प्यूटर इन्टरफेस सिमुलेशन (brain-computer interface simulation) में किन्तु अधिक बड़ी मात्रा में।

    प्रवेश पर भाग लेने वाला अपनी मैन्टल प्रोसेसिंग (mental processing) को एक वर्चुअल पर्सन (virtual person) में अस्थाई रूप से रीलोकेट (relocate) करने के लिये माइन्ड ट्रांसफर (mind transfer) का उपयोग करता है।

    सिमुलेशन हो जाने के बाद भाग लेने वाले का माइन्ड (mind) अपनी आउटर-रियलिटी बाडी (outer-reality body) में नई यादों और अनुभवों, जो उसने अन्दर प्राप्त किये, के साथ फिर वापस ट्रांसफर (transfer) हो जाता है।

    इंटरमिंगिल्ड (Intermingled) – एक इन्टरमिंगिल्ड सिमुलेशन दोनों प्रकार की चेतन अवस्थाओं (कानशियसनैस) का समर्थन करता है।

    आउटर रियलिटी से खिलाड़ी जो विजिट (visit) कर रहे हैं (एक ब्रेन कम्प्यूटर इन्टरफेस सिमुलेशन की तरह) अथवा एैमीग्रेट (emigrate) कर रहे हैं

    और वर्चुअल पीपुल जो सिमुलेशन के निवासी हैं, अतः बाहरी रियलिटी (outer reality) में कोई भौतिक शरीर नहीं है।

    मैट्रिक्स चलचित्र (मूवीज) में इन्टरमिंगिल्ड (Intermingled) प्रकार का सिमुलेशन है। वे न केवल मानवीय मन रखते हैं, (जबकि उनका भौतिक मन बाहर ही रहता है) अपितु एजेन्ट (agent) भी जो स्वतंत्र सॉफ्टवेयर प्रोग्राम हैं और कम कम्प्यूटैड रियल्म (Computed realm) के लिये देते हैं।

  • Simulated Reality kya hai?

    सिमुलेटैड रियलिटी (Simulated Reality)

    यह एक विचार है कि वास्तविकता (reality) को बहुधा कम्प्यूटर सीमुलेशन से इस हद तक सिमुलेट (simulate) किया जा सकता है

    कि वह ‘यथार्थ’ की वास्तविकता से भिन्न न लगे। इसमें वे सतर्क/चेतन (conscious) मन हो सकते हैं जो शायद जानते हों या न जानते हों कि वे एक सिमुलेशन के अन्दर जी रहे हैं।

    अपने शक्तिशाली प्रारूप में सिमुलेशन हाइपोथीसिस (Simulation Hypothesis) दावा करती कि हम इस तरह के सिमुलेशन में यथार्थ में रह रहे हैं।

    यह आज की टेक्नोलॉजी द्वारा प्राप्त योग्य ‘वीआर’ धारणा से अलग है। वीआर ‘यथार्थ वास्तविकता’ के अनुभव से आसानी से अलग की जा सकी है क्योंकि इसमें भाग लेने वालों को संदेह नहीं होता कि उनके अनुभव की क्या प्रकृति है।

    सिमुलेटेड रियलिटी को अपेक्षाकृत ‘यथार्थ’ रियलिटी से अलग पहचानना लगभग असंभव है। सिमुलेटेड रियलिटी के विचार से अनेक प्रश्न उठते हैं :

    क्या सैद्धांतिक रूप से यह मुमकिन है कि हम बता सकें कि हम एक सिमूलेटेड रियलिटी में हैं ? क्या एक सिमुलेटैड रियलिटी तथा एक यथार्थ में कोई अन्तर है

    यदि हमको मालूम है कि हम सिमुलेटैड रियलिटी में रह रहे हैं तो हमें कैसे व्यवहार करना चाहिये

  • Impact of VR kya hai?

    वीआर के प्रभाव (Impact of VR)

    नई टैक्नालाजी जैसे वर्चुअल रियलिटी के सामाजिक प्रभावों में दिलचस्पी बढ़ने लगी है।

    माइचिलो एस क्लाइन (Mychilo S. Cline) ने अपनी पुस्तक पावर, मैडनेस एण्ड इममारटैलिटी: दी फ्यूचर आफ वर्चुअल रियलिटी (Power, Madness and Immortality : The Future of Virtual Reality) में यह तर्क रखा है कि वीआर मानव-जीवन में अनेक परिवर्तन लायेगी । उसका तर्क है कि :

    वीआर मनुष्य की दिनचर्या और गतिविधियों में घुलकर अनेक तरीकों से काम में आयेगी।

    मानव-व्यवहार इन्टरपर्सनल कम्यूनिकेशन (interpersonal communication) तथा कॉग्निशन अर्थात् वर्चुअल जैनेटिक्स (Virtual genetics) को प्रभावित करने के लिये यह तकनीक विकसित होगी।

    जैसे-जैसे हम वर्चुअल स्पेस में अधिक समय बितायेंगे वैसे-वैसे हम धीरे-धीरे “वर्चुअल स्पेस में माइग्रेट (migrate) ” हो जायेंगे जिसके फलस्वरूप आर्थिक, विश्व दृष्टि (world view) तथा संस्कृति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होंगे।

    जैसे-जैसे हम सामाजिक तथा राजनीतिक विकास के एक चरण से अगले चरण की ओर चलेंगे। वर्चुअल एनवायरमेंट के डिजाइन को वर्चुअल स्पेस में मूलभूत मानव अधिकारों के विस्तार में, मानव-स्वतंत्रता के प्रचार-प्रसार में तथा सामाजिक स्थिरता में इस्तेमाल कर सकते हैं।

  • VR Marketing kya hai?

    मार्केटिंग (Marketing) : VR की छवि को सूचना-प्रसारण माध्यम ने इतनी ऊँचाई तक पहुँचा दिया कि विज्ञान में इनका योगदान होना आश्चर्य नहीं था।

    यह अधिकतर खेलों को खेलने के लाइसेंस में अधिक कारगर साबित हुआ। वर्ष 1980 में Mattel द्वारा निर्मित NES Power glove, प्रारम्भ के दौर का अच्छा उदाहरण है।

    U-force तथा बाद में Sega Activator भी इसी श्रेणी में आते हैं। VR और वीडियो खेलों में मार्केटिंग संबंध अनपेक्षित नहीं हैं।

    यदि हम उस प्रगति को देखें जो 3D कम्प्यूटर ग्राफिक्स और Virtual environment विकास (पारम्परिक VR का hole mark) में हुई है और जिसके पीछे खेल बनाने वाले उद्योग से संबंधित शक्तियाँ हैं।

  • Virtual Reality Applications(VR) kya hai?

    वर्चुअल रियलिटी के वर्तमान में उपयोग (Virtual Reality Applications)

    खेल (Games) : वर्ष 1991 में (मूलत: W Industries बाद में नाम बदला) Virtuality कम्पनी ने Amiga 3000 को लाइसेंस दिया कि वे इसे अपनी VR मशीनों में इस्तेमाल कर सकें और एक VR gaming सिस्टम रिलीज किया जिसे 1000 cs कहते हैं।

    यह एक खड़ा हुआ immersive HMD प्लैटफार्म, एक ट्रैक किये 3D ज्वायस्टिक के साथ था। इस सिस्टम ने अनेक VR खेल बनाए; system एक visor और Head phone head set है

    जो किसी भी वीडियो आउटपुट (जिसमें 3D ब्राडकास्टिंग भी शामिल है) के साथ compatible है और अनेक गेम सिस्टम्स (Nintendo, playstation इत्यादि) के साथ इस्तेमाल करने योग्य हैं। Virtual Reality World 3D colour Ninja गेम हैड सैट visor और टखने तथा कलाई के step के साथ आता है

    जो खिलाड़ी के मुक्कों और लातों को महसूस कर सके। Virtual Reality Wireless TV Tennis Game एक टैनिस रैकट खिलौने के साथ आता है जो खिलाड़ी के swing को महसूस कर सकता है जबकि Wireless TV Virtual Boxing में बाक्सिंग ग्लोव होते हैं जो खिलाड़ी पहनता है और लड़ता है।

    Nintendo’s Virtual Boy केवल एक वर्ष 1995 में बेचा गया। Aura Interactor Virtual Reality Game Wear. एक छाती और पीठ की हारनेस (घोड़े की जीन) है जिससे खिलाड़ी मुक्कों, धमाकों, लातों, uppercut, slamdunk, crash तथा body blows को महसूस कर सकता है।

    यह Sega Genesis तथा Super Niutendo में भी काम करता है। Kingdom Hearts II में पात्र Roxas एक virtual Twilight Tower में रहता है जब तक वह Sora में नहीं समा जाता। System Shock में खिलाड़ी के पास implant है जो उसे एक प्रकार के साइबर स्पेस (cyber space) में प्रवेश योग्य बनाता है उसकी अगली कड़ी System Shock 2 में भी VR के कुछ minor स्तर दिखते हैं।

    जैसे Dacty, Nightmare (shoot-em-up), Legend Quest (adventure तथा fantasy), Hero (VR puzzle), Grid Busters (shoot-em-up), Virtual Reality I Glasses Personal Display system एक visor और Head phone head set है

    जो किसी भी वीडियो आउटपुट (जिसमें 3D ब्राडकास्टिंग भी शामिल है) के साथ compatible है और अनेक गेम सिस्टम्स (Nintendo, playstation इत्यादि) के साथ इस्तेमाल करने योग्य हैं। Virtual Reality World 3D colour Ninja गेम हैड सैट visor और टखने तथा कलाई के step के साथ आता है जो खिलाड़ी के मुक्कों और लातों को महसूस कर सके।

    Virtual Reality Wireless TV Tennis Game एक टैनिस रैकट खिलौने के साथ आता है जो खिलाड़ी के swing को महसूस कर सकता है जबकि Wireless TV Virtual Boxing में बाक्सिंग ग्लोव होते हैं जो खिलाड़ी पहनता है और लड़ता है।

    Nintendo’s Virtual Boy केवल एक वर्ष 1995 में बेचा गया। Aura Interactor Virtual Reality Game Wear. एक छाती और पीठ की हारनेस (घोड़े की जीन) है जिससे खिलाड़ी मुक्कों, धमाकों, लातों, uppercut, slamdunk, crash तथा body blows को महसूस कर सकता है।

    यह Sega Genesis तथा Super Niutendo में भी काम करता है। Kingdom Hearts II में पात्र Roxas एक virtual Twilight Tower में रहता है

    जब तक वह Sora में नहीं समा जाता। System Shock में खिलाड़ी के पास implant है जो उसे एक प्रकार के साइबर स्पेस (cyber space) में प्रवेश योग्य बनाता है उसकी अगली कड़ी System Shock 2 में भी VR के कुछ minor स्तर दिखते हैं।

  • Virtual Reality kya hai?

    वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality)

    वर्चुअल रियलिटी (VR) वास्तविक दुनिया के ” वातावरणों” के कम्प्यूटर सिमुलेशन को कहते हैं

    जो थ्री-डाइमैन्शनल ग्राफिक्स तथा बाहरी डिवाइस (device), जैसे हैलमेट डाटा ग्लोव (data glove) का इस्तेमाल करता है जो यूजर को सिमुलेशन (simulation) के साथ इन्टरैक्ट (interact) करने की अनुमति देता है।

    यूजर वर्चुअल रियलिटी एनवायरमेंट (environment) से ऐसे गुजरते हैं जैसे वे वास्तविक दुनिया में रह रहे हों। संरचनाओं के बीच से गुजरना और वातावरण में उपस्थित वस्तुओं के साथ मिलकर कार्य करना इत्यादि ।

    “वर्चुअल रियलिटी (VR), मानव के लिये कम्प्यूटर और अत्यन्त जटिल डाटा के साथ मन में स्पष्ट रूप से देखने, मैनीपुलेट (manipulate) तथा इंटरैक्ट करने का एक तरीका है।

    मन में स्पष्ट रूप से देखने (Visualization) वाला भाग कम्प्यूटर द्वारा बनाये गये विजुअल, आडिटरी (auditory) या अन्य सैनसुअल (sensual) आउटपुट से संबंधित हैं जो कम्प्यूटर में बसी दुनिया के यूजर (user) के लिये हैं।

    यह दुनिया एक कैड (CAD) मॉडल भी हो सकती है, या एक वैज्ञानिक सिमुलेशन (simulation) या डाटाबेस में एक दृष्टि भी यूजर इस दुनिया से इंटरैक्ट कर सकता है और इसी दुनिया में वस्तुओं को सीधा मैनीपुलेट (manipulate) भी कर सकता अन्य प्रक्रियाओं से एनीमेटेड (animated) होती है

    जो कदाचित भौतिक सिमुलेशन्स या सरल एनीमेशन स्क्रिप्ट (simple animation script) हो। वर्चुअल रियलिटी (VR) एक टेक्नोलॉजी है जो यूजर को एक कम्प्यूटर सिमूलेटेड (computer कुछ दुनिया simulated) वातावरण (चाहे वह वास्तविक हो या केवल काल्पनिक) के साथ इंटरैक्ट करने देती है। चालू व वर्चुअल रियलिटी एनवायरमेन्ट (environment) मुख्य रूप से विजुअल अनुभव है

    जो कम्प्यूटर स्क्रीन (परदे पर दिखते हैं या विशेष स्टीरियो कोपिक डिस्प्ले के द्वारा। किन्तु कुछ सिमुलेशन्स (simulations) में अतिरिक्त सैंसरी (sensory) सूचना होती है; जैसे स्पीकर अथवा हैडफोन (Speaker or headphone) द्वारा ध्वनि। कुछ उन्नत, हैपटिक सिस्टम (Haptic system) अब टैक्टाइल (tactile) सूचना सम्मिलित करते हैं।

    जो सामान्यतः फोर्स फीडबैक (force feedback) के नाम से जानी जाती है, विशेषकर मैडिकल और गेमिंग (garning) ऐप्लीकेशन्स में यूजर की-बोर्ड (key board) तथा माउस (mouse) अथवा मल्टीमोडल डिवाइस (multi model device) जैसे वायर्ड ग्लोब (wired golve) पालहीमस (palhemus) बूम आर्म (boom arm) तथा ओमनी डायरेक्शनल ट्रीड मिल ( omni directional tread mill) के द्वारा वर्चुअल एनवायरमेन्ट (Virtual environment) या वर्चुअल आरटीफैक्ट (VA) के साथ इन्टरैक्ट (interact) कर सकता है। सिमुलेटैड वातावरण वास्तविक दुनिया की तरह हो सकता है; जैसे वे सिमुलेशन जो पायलट (विमान चालक) या काम्बैट (combat) प्रशिक्षण के लिये इस्तेमाल किये जाते हैं य ा

    वे वास्तविकता से महत्त्वपूर्ण ढंग से अलग होते हैं जैसे वीआर खेल (VR games )। यथार्थ में प्रोसेसिंग शक्ति, इमेज रिसोल्यूशन (resolution) तथा कम्यूनिकेशन बैन्ड विड्थ (band width) के तकनीकी बंधन के कारण अभी हाई फीडैलिटी (high fidelity) वर्चुअल रियलिटी अनुभव को बनाना बहुत कठिन है। तथापि इन लिमिटेशन्स को भी समय के साथ जीता जा सकता है अगर जब प्रोसेसर, इमेजिंग और डाटा टैक्नालाजियाँ अधिक शक्तिशाली और सस्ती बन जायें

    शब्द वर्चुअल रियलिटी (VR) किसने खोजा या बनाया, यह निश्चित नहीं है। डैमियन ब्रोदेरिक (Damien Broderick) के 1982 के विज्ञान पर आधारित काल्पनिक नावल (novel) जुडास मंडला (The Judas Mandala) की रचना की थी

    जहाँ जिस संदर्भ में यह शब्द इस्तेमाल हुआ है ऊपर दी गयी परिभाषा से भिन्न है। वी आर को विकसित करने वाले जारोन लैनियर (Jaron Lanier) दावा करते हैं कि यह शब्द उन्होंने बनाया है।

    इससे संबंधित एक शब्द है “कृत्रिम वास्तविकता” अर्थात् “आर्टीफिशियल रियलिटी” (artificial reality) जिसे मायरान क्रूगर (Myron Krugar) ने बनाया। जिसका इस्तेमाल वर्ष 1970 से हो रहा है।

    “वर्चुअल रियलिटी” की धारणा के मास मीडिया (mass media) में लोकप्रिय होने का कारण कुछ फिल्म विशेषकर ब्रेनस्टार्म (Brain storm) तथा लान मोवर मैन (Lawn mower man) थीं।

    वर्ष 1990 में वीआर के अनुसंधान में अभूतपूर्व रुचि देखने को मिली जिसके पीछे प्रेरणा थी होवर्ड रीनगोल्ड (Howard Rheingold) द्वारा लिखी पुस्तक “वर्चुअल रियलटी” जो अकाल्पनिक थी।

    इस पुस्तक में उपरोक्त विषय को सरलता से समझाया गया है जिसे वे भी समझ सकते हैं जो तकनीक से परिचित नहीं हैं। साथ ही साथ इससे जुड़ी टैक्नालाजी भी पाठकों के लिये असाध्य रहस्य नहीं रही।

    इस पुस्तक का प्रभाव उसकी पुस्तक ‘दी वर्चुअल कम्युनिटी’ (The Virtual Community) की तरह था जब वर्चुअल कम्युनिटी अनुसंधान वीआर के अनुसंधान पथ के समीप चल रहा था।

    1980 के अंतिम दशक में वीआर को जारोन लैनियर (Jaron Lanier) ने लोकप्रिय बनाया। वे इस क्षेत्र के आधुनिक अग्रणियों (Pioneers) में एक हैं। लैनियर ने 1985 में एक कम्पनी वीपीएल रिचर्स (VPL Research) स्थापित की। यहाँ वीपीएल का अर्थ था “वर्चुअल प्रोग्रामिंग लैंग्वेज” (Virtual Programming Language) जिसने विकसित हो “गोगल्स एन ग्लव” (goggle n’gloves) सिस्टम बनाया।