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  • Computer Ke Pramukh kaary and Input Device Name

    Computer Ke Pramukh kaary and Input Device Name

    Computer के चार प्रमुख कार्य- कम्प्यूटर के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं. (1) डाटा का संकलन तथा निवेशन (2) डाटा का संचयन (3) डाटा की संसाधन (प्रक्रिया) (4) प्रक्रिया के बाद परिणाम(सूचना)का निर्गम।

    Computer Ke Pramukh kaary

    Computer Ke Pramukh kaary

    निवेश युक्तियाँ– प्रयोक्ता आँकड़ों को संकलित करते हैं और डाटा पर प्रक्रिया (Data Process) करते हैं। डाटा और निर्देश कम्प्यूटर में जिस यूनिट से प्रविष्ट किये जाते हैं, वह इनपुट यूनिट कहलाती है। इनपुट यूनिट, प्रयोक्ता द्वारा प्रदत्त डाटा और निर्देशों को विद्यत संकेतों में परिवर्तित करके कम्प्यूटर के समझने योग्य बनाती हैं। सामान्यतया Input Device यूनिट में की-बोर्ड प्रयुक्त किया जाता है। इनपुट यूनिट के लिये निम्नलिखित अन्य इनपुट डिवाइसेज भी उपलब्ध रहती हैं.

    (1) की-बोर्ड(7) MICR
    (2) माउस (8) पंचकार्ड
    (3) स्कैनर(9) OCR
    (4) टच स्क्रीन(10) डिजिटल कैमरा
    (5) वाइस स्किनाइजर(11) OMR
    (6) ग्राफिक टेबलेट(12) जॉयस्टिक
    (13) ट्रेकबॉल(14) लाइटपेन.

    इनपुट डिवाइस के रूप में माइक्रोफोन भी प्रयुक्त किये जा सकते हैं जिनसे हम अपनी आवाज कम्प्यूटर में प्रविष्ट करा सकते हैं।

    इनपुट यूनिट बाहरी दुनिया के डाटा व निर्देशों को कम्प्यूटर के विभिन्न आन्तरिक भागों में पहुंचाता है। विभिन्न प्रकार की इनपुट डिवाइसेज आती हैं। ये इनपुट डिवाइसेज दो प्रकार की तकनीक लिये हो सकती हैं

    (1) ऑन लाइन– वे निवेश उपकरण हैं जो डाटा निवेश के समय कम्प्यूटर से सीधे सम्पर्क में रहते हैं। ये डिवाइसेज कम्प्यूटर के साथ सक्रिय होकर इनपुट का कार्य सम्पन्न करते हैं।

    (2) ऑफ लाइन– वे निवेश उपकरण हैं जो डाटा निवेश के समय कम्प्यूटर से सीधे सम्पर्क में नहीं रहते हैं। इनपट उपकरण- कम्प्यूटर को चाहे निर्देश देने हों या फिर उसमें डेटा इनपुट करना हो सभी के लिये हमें इनपुट उपकरणों की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में मुख्य इनपुट उपकरण की-बोर्ड के अलावा भी कई इनपुट डिवाइसों को प्रयोग किया जाता है।

    Cpmputer Input Device Names

    (1) की-बोर्ड-

    यह कम्प्यूटर का प्राइमरी इनपुट उपकरण है। इसके द्वारा करेक्टरों के रूप में टेक्स्ट को इनपुट कर सकते हैं। इस कार्य के लिये इसमें कीज़ होती हैं जिन्हें दबाने पर उससे सम्बन्धित अक्षर स्क्रीन पर दिखाई देने लगता है। इसे सीपीयू से जोड़ा जाता है। इसका स्टैण्डर्ड ले-आउट इस तरह से होता है।

    keyboard kya he

    जब तक पीसी मेंडॉस को ऑपरेटिंग सिस्टम के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है तब उपरोक्त वर्णित QWERTY ले-आउट वाला की-बोर्ड ही प्रयोग होता रहा। लेकिन विन्डोज़ के ऑपरेटिंग सिस्टम में बदलने के बाद इसमें कई नयी कीज़ को जोड़ा गया। चूँकि विंडोज का निर्माण माइक्रोसोफ्ट ने किया था। इसलिये की-बोर्ड के नये ले-आउट का डिजाइन भी माइक्रोसॉफ्ट ने ही निर्धारित किया। नये ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रयोग के बाद आज जिस कीबोर्ड को प्रयोग किया जा रहा है।

    (2) माउस सिस्टम-

    mouse kya he

    वर्तमान समय में ऑप्टीकल माउस को सबसे ज्यादा प्रयोग किया जा रहा है। इसमें बाल के स्थान पर लाइट का प्रयोग होता है। इसका प्रयोग इसलिये भी बढ़ रहा है कि इसमें मेन्टीनेन्स की जरूरत नहीं होती है। प्रकाश के परावर्तन के सिद्धान्त पर यह कार्य करता है। माउस बटनों के हिसाब से दो प्रकारों में उपलब्ध हैं। पहला दो बटन वाला माउस और दूसरा तीन बटन वाला माउस। इन दोनों प्रकार के माउस सिस्टम को हम अपनी आवश्यकतानुसार अलग-अलग साफ्टवेयरों में प्रयोग कर सकते हैं। बटनों के अलावा – इंटरनेट के प्रयोग को सरल बनाने हेतु इसमें एक स्क्रॉल बार को भी जोड़ा गया है जिसे घुमाने पर वेब पेज में आसानी से ऊपर नीचे जाया जा सकता है। कुछ इमेज एडीटिंग सॉफ्टवेयरों में यह स्क्रॉल बार या बटन इमेज को जूम-इन और जूम-आउट करने में भी सक्षम होती है।

    (3) स्कैनर-

    वर्तमान समय में इस डिवाइस का प्रचलन लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके द्वारा हम किसी भी डॉक्यूमेंट को स्कैन करके कम्प्यूटर के अंदर भेज सकते हैं तथा उसमें अपनी आवश्यकता के अनुसार बदलाव करके किसी भी इमेज प्रोसेसिंग प्रोग्राम के साथ प्रयोग कर सकते हैं। स्कैनरों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है।

    Printer kya he

    (a) हैंडी स्कैनर– इस श्रेणी के स्कैनरों का प्रयोग काफी छोटी-छोटी फोटोग्राफ या ड्राइंग को स्कैन करने के लिये किया जाता है।

    (b) डेस्कटॉप स्कैनर– इस प्रकार के स्कैनरों में हम A-4 साइज के किसी कागज को डालकर स्कैन कर सकते हैं। स्कैन चार भागों में विभाजित होता हैं- स्कैन कार्ड,स्कैनर, केबल एंड कनेक्टर, स्कैनिंग सॉफ्टवेयर। कम्प्यूटर में सर्वप्रथम मदरबोर्ड में स्कैन कार्ड को लगाते हैं

    (c) ड्रम स्कैनर– इस स्कैनर को व्यावसायिक कार्यों में प्रयोग किया जाता है। यह सबसे उच्च क्वालिटी की स्कैनिंग करने में सक्षम होता है। ऑफसेट प्रिंटिंग के लिये यह आदर्श स्कैनर होता है। इसमें स्कैनिंग का कार्य फोटो मल्टीप्लाइर ट्यूब के द्वारा होता है। इसके विपरीत डेस्कटॉप स्कैनर जिसे फ्लैट बड स्कैनर कहते हैं में CCD का प्रयोग होता है। ड्रम स्कैनर कागज पर प्रिंट इमेज के अलावा फिल्म को भी स्कैन करने में सक्षम होता है।

    (4) टच स्क्रीन-

    वर्तमान समय में इस तकनीक का प्रयोग अमेरिका, जापान व यूरोप के देशों में अपनी आवश्यकतानुसार सूचनाओं को देखने के लिये किया जाता है। इस तकनीक के ‘अन्तर्गत मॉनीटर पर एक मीनू आता है, इस मीनू में जब हम अपनी ऊंगली के द्वारा किसी कमांड को छूते हैं तो वह कमांड क्रियान्वित हो जाती है और हम इच्छित सूचना को मॉनीटर पर देख सकते हैं। वर्तमान समय में लैपटॉप, मोबाइल फोन, बैंकों की ATM मशीनों में इसका जमकर प्रयोग हो रहा है।

    (5) वाइस स्किग्नाइजर (माइक्रोफोन)-

    इस यंत्र के द्वारा हम अपनी आवाज के द्वारा कम्प्यूटर को निर्देश दे सकते हैं, कम्प्यूटर इस यंत्र के द्वारा आवाज को पहचान कर निर्देश ग्रहण करता है और फिर उन निर्देशों को क्रियान्वित करता है। इस समय इस तकनीक का प्रयोग शब्दों को कम्प्यूटर पर टाइप करने में सफलतापूर्वक किया जा रहा है। उपकरण के रूप में माइक का प्रयोग इस कार्य के लिये किया जाता है। इसे कम्प्यूटर की साउंड पोर्ट से जोड़ा जाता है।

    (6) लाइट पेन-

    इस पेन का प्रयोग बार कोड को पढ़ने में किया जाता है। बार कोड पढ़ने के पश्चात् यह यंत्र कम्प्यूटर के मॉनीटर पर दिखाई देता है। इस प्रकार यह यंत्र बार कोड को कम्प्यूटर में इनपुट करता है। इसके पश्चात् हम इसे मॉनीटर पर देखते हैं।

    (7) मैग्नेटिक इंक करेक्टर रीडर (MICR)-

    इस शब्द का पूरा नाम मैग्नेटिक इंक करेक्टर रीडर है। इस यंत्र के द्वारा हम वर्तमान समय में चैक बुक पर प्रिंट किये गये नम्बरों को पढ़कर उनका प्रयोग करते हैं। इसी कारण इस यंत्र का प्रयोग बैंकों के क्लियरिंग हाउस में सफलतापूर्वक किया जा रहा है।

    (8) पंच कार्ड-

    इस कार्ड के द्वारा कम्प्यूटर के प्रारम्भ में निर्देशों को कम्प्यूटर में फीड किया जाता था। वर्तमान समय में इसका प्रयोग बहुत कम किया जाता है। यह शुरूआती कम्प्यूटरों में निर्देश देने के खूब प्रयोग किया जाता था।

    (9) ऑप्टिकल करेक्टर रीडर(OCR)-

    इस यंत्र के द्वारा हम पेंसिल से लगे हुये निशान पहचान कर उन्हें कम्प्यूटर में फीड कर सकते हैं। इसका प्रयोग वर्तमान समय में परीक्षाओं के परिणाम जाँचने में किया जाता है। इसका सम्पूर्ण नाम -ऑप्टिकल करेक्टर रीडर है। आजकल डेस्कटॉप स्कैनरों के साथ भी इस तरह के सॉफ्टवेयरों को प्रयोग किया जाता है जो पेज पर प्रिंट अक्षरों को पढ़ सकते हैं।

    (10) डिजिटल कैमरा-

    यह एक विशेष इलेक्ट्रॉनिक कैमरा होता है जिसमें फिल्म के स्थान पर एक मेमोरी चिप का प्रयोग होता है। यह प्रकाश के परावर्तन के सीसीडी सेन्सर से इमेज के रूप में कैप्चर करके मेमोरी चिप में स्टोर कर देता है जिसे कम्प्यूटर में खोला जाता है।

    (11) ऑप्टीकल मार्क रीडर (OMR)-

    यह एक ऐसी डिवाइस है जो किसी कागज पर पेन्सिल या पेन के चिन्ह की उपस्थिति और अनुपस्थिति को जाँचती है। इसमें चिन्हित कागज पर प्रकाश डाला जाता है और परावर्तित प्रकाश को जाँचा जाता है। जहाँ चिन्ह उपस्थित होगा, कागज के उस भाग से परावर्तित प्रकाश की तीव्रता कम होगी।

    (12) जॉयस्टिक-

    यह खेल खेलने के काम में आने वाली इनपुट डिवाइस है। जॉयस्टिक के माध्यम से स्क्रीन पर उपस्थित टर्टल या आकृति को इसके हैंडिल से पकड़ कर चलाया जा सकता है। इसका प्रयोग बच्चों द्वारा प्रायः कम्प्यूटर पर खेल खेलने के लिये किया जाता है, क्योंकि यह बच्चों को कम्प्यूटर सिखाने का आसान तरीका है।

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    (13) ट्रैकर बाल-

    यह जॉयस्टिक के समान ही कार्य करती है, लेकिन छोटे बच्चों द्वारा अधिकतर प्रयोग में लायी जाती है। इसकी ऊपरी सतह पर एक बाल लगी रहती है जिसका। हिलाने पर स्क्रीन पर उपस्थित आकृति को कर्सर द्वारा चलाया जा सकता है।

    (14) डिजीटाइजर टेबलेट या ग्राफिक टेबलेट-

    ग्राफिक टेबलेट एक ड्राइंग सतह होती है। इसके ऊपर एक पेन या माउस होता है। ड्राइंग सतह में पतले तारों का जाल होता है जिस पर पेन या माउस को चलाने से संकेत कम्प्यूटर में चले जाते हैं।

    (15) ऑप्टीकल बार कोड रीडर (OBR)-

    OBR का मुख्य कार्य Vertical Bar का जो कि अलग-अलग डाटा के लिये निश्चित होते हैं, स्कैन करने का होता है। OBR द्वारा माता टैगों को पढ़ा जाता है जो कि शॉपिंग सेन्टर में विभिन्न उत्पादों में, दवाइयों के पैकेट पर तथा लाइब्रेरी की पुस्तकों के आवरण आदि पर छपे रहते हैं। ऑप्टीकल बार कोड रीडर के बारकोड के ऊपर से निकालते हैं तो यह इस पर छिपी हुई सूचना को कम्प्यूटर में प्रविष्ट कर देता है।

  • Computer के विभिन्न क्षेत्रों में क्या उपयोग है।

    Computer के विभिन्न क्षेत्रों में क्या उपयोग है।

    uses of computer

    भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आगमन हो रहा है। वहीं हमारे उद्योगपति विदेशों में अपने कार्य-क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं। यह युग प्रतिस्पर्धा का युग है। वही बाजा में खडा रह पायेगा जो सर्वोत्तम सुविधायें प्रदान करेगा। जबकि हमारे प्रतिस्पर्डी पी कम्प्यूटरीकृत हैं तो हमारे लिये भी यह आवश्यक है कि हम इस दिशा में पिछडे न Computer के द्वारा कार्य की गति में वृद्धि से उत्पादन लागत कम हो जाती है, अतः प्रतिस्पी हेतु हमें भी अपनी सेवायें उसी स्तर पर रखनी होंगी। इसलिये हमें Computerization करना ही होगा। इसके प्रभावों का विवेचन निम्न प्रकार से है.

    (A) ग्राहक सेवा पर प्रभाव-

    Computer के प्रयोग से ग्राहक सेवा का स्तर बढ़ता है। बाजार में ग्राहक की सन्तुष्टि ही मूल मन्त्र है।

    (1) Computer द्वारा कार्य करने की गति बढ़ती है। ग्राहक को अधिक देर तक लाइन में प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। अतः समय की बचत होती है।

    (2) Computer द्वारा गणनायें पूर्णतः सही एवं विश्वसनीय होती हैं। इससे ग्राहक को अनावश्यक गणना नहीं करनी पड़ती है। साथ ही वह गलतियों को सही कराने के लिये चक्कर लगाने से बच जाता है।

    (3) Computer एक मशीन है। यह कभी थकती नहीं है। अतः ग्राहक को कभी भी कार्य हेतु टरकाती नहीं है।

    (4) Computer द्वारा विवरण तुरन्त ही तैयार हो जाते हैं, जिससे उपभोक्ता अपना मिलान कर सकता है।

    (B) डाटा ट्रांसमिशन-

    परम्परागत रूप में डाटा पेपर पर प्रिन्ट करके डाक द्वारा भेजा जाता था। Electronic के विकास के साथ ही डाटा ट्रांसमिशन हेतु टैलेक्स तथा फैक्स का प्रयोग होने लगा है। Computer ने इस प्रक्रिया को अति आसान कर दिया है। वहीं संचार क्रांति के साथ डाटा-प्रेषण के अन्य साधन भी उपलब्ध हो गये हैं, जिन्हें Computer के साथ जोड़कर चमत्कारिक परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

    (1) टैलेक्स को Computer के साथ जोड़ा जा सकता है। कम्प्यूटर स्वतः ही डायल करता है तथा सन्देश प्रेषित कर देता है। इस प्रकार हम एक ओर से सन्देश फीड कर सकते हैं दूसरी ओर उसी समय में प्रेषण भी होता रहता है।

    (2) Computer में मॉडेम लगाकार टेलीफोन लाइन के माध्यम से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार Electronic Mail द्वारा सन्देश एक Computer से दूसरे कम्प्यूटर पर प्रेषित हो जाता है। इसमें सन्देश इतना शीघ्र प्रेषित होता है कि पूरी की पूरी किताब Telephone की एक काल में भेजी जा सकती है।

    (3) Internet के द्वारा हम विश्व के किसी भाग में सीधे ही सन्देश, चित्र आदि भेज सकते हैं। इसमें उपभोक्ता satellite के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। प्रत्येक उपभोक्ता का एक सैटेलाइट एड्रेस होता है, जिसके द्वारा उससे सम्पर्क किया जाता है।

    (4) Data को Floppy पर Copy करके फ्लॉपी को कोरियर अथवा डाक द्वारा भेजा जा सकता है। इसमें लागत कम आती है तथा काफी मात्रा में DATA एक लिफाफे में ही आ जाता है।

    (C) स्टोरेज डिवाइस-

    Computer ने Data का Store (संग्रह) बड़ा ही आसान कर दिया है। कागज पर रिकॉर्ड रखने में हमने बहुत-सी फाइलें अलग-अलग व्यवस्थित करनी पड़ती थीं, पहेत स्थान की आवश्यकता होती थी। दूसरे लागत भी बहुत बढ़ जाती थी। साथ ही अधिक दल में से अपने उपयोग की Files ढूंढना भी कठिन कार्य था। कम्प्यूटर में डाटा संचय तथा फाइल प्रबन्धन उच्च कोटि का है।

    (1) DATA को Hard Disk में Store किया जा सकता है। आजकल काफी अधिक शक्ति की Hard Disk बाजार में प्रचलित हैं, जिनमें डाटा किलोबाइट में न होकर Megabyte में आता है। इसमें बहुत-सी किताबें एक साथ आ सकती हैं।

    (2) Computer की कार्य कुशलता बढ़ाने हेतु हम Data को Computer से अलग डिवाइस में भी स्टोर कर सकते हैं, जहाँ से आवश्यकता पड़ने पर पुनः प्रयोग किया जा सकता है। इससे हार्ड डिस्क की मेमोरी की समस्या ही नहीं रहती है।

    (i) डाटा को फ्लॉपी डिस्क में स्टोर कर सकते हैं। ये 1.2 MB तथा 1.44MB के आकार में उपलब्ध हैं। हम अलग-अलग प्रकार के डाटा के लिये अलग-अलग फ्लॉपी प्रयोग कर सकते हैं।

    (ii) डाटा को मेग्नेटिक टेप पर एकत्र कर सकते हैं। इसमें डाटा सिक्वेन्सियल रूप में जमा होता है। जब भी कोई डाटा आवश्यक हो टेप को कम्प्यूटर में नकल करके वाँछित डाटा निकाला जा सकता है.

    (iii) आजकल मार्केट में कैसिट के आकार की मैग्नेटिक टेप उपलब्ध हैं जिन पर प्रतिदिन का बैकअप लिया जा सकता है। इसे कभी भी दुर्घटना की स्थिति में प्रयोग किया जा सकता है।

    (iv) आजकल डाटा स्टोर की नई विधि ऑप्टीकल रिकॉरिंग भी आ गयी है जिसमें डाटा लेसर किरण की सहायता से एक प्लेट पर स्टोर कर लिया जाता है जिसे लेसर की सहायता से पुनः पढ़ा जा सकता है।

    (D) व्यापार पर प्रभाव-

    व्यापारिक क्षेत्र को कम्प्यूटर ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। आज के प्रतिस्पर्धी युग में प्रत्येक व्यापारी के लिये कम्प्यूटर का प्रयोग अनिवार्य है.

    (1) कम्प्यूटर द्वारा अंकगणितीय कार्य अत्यधिक कुशलता एवं विश्वसनीयता से सम्पन्न किये जाते हैं। अतः व्यापार में बिल जारी करने तथा खातों के रख रखाव में यह अत्यन्त आवश्यक है।

    (2) बढ़ती प्रतियोगिता के युग में यह आवश्यक है कि हम अपनी उत्पादन लागत को कम से कम रखें। कम्प्यूटर के द्वारा यूनिट लागत की गणना सही की जा सकती है ताकि प्रतिस्पर्धी कीमतें निर्धारित की जा सकें।

    (3) कम्प्यूटर द्वारा बिना थके लगातार कार्य किया जा सकता है। अतः उत्पादन की मात्रा बढ़ती है तथा लागत में कमी आती है।

    (4) आज का युग सूचना क्रान्ति का युग है। वर्तमान में व्यापारी को विश्व में घट रहा है? इसकी जानकारी रखनी होती है जो कम्प्यूटर के माध्यम सारी को विश्व में कहाँ क्या सके माध्यम से ही सम्भव पकता है कि उसका मता का विस्तार होता है.

    (5) कम्प्यटर के प्रयोग के द्वारा व्यापारी यह विश्लेषण कर सकता है, कि उसका उत्पादन निष्पादन क्या है? यह बढ़ रहा है अथवा घट रहा है? उसी कार्य-कशलता हेतु प्रयास कर सकता है। अतः प्रबन्धन क्षमता काल है।

    कम्प्यूटर का विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग

    (1) औद्योगिक क्षेत्र-

    उद्योगों में निर्माण-प्रणाली को कम्प्यूटर द्वारा नियन्त्रित जाने लगा है। निर्माण कार्य पर नियन्त्रण हेतु कई चीजों जैसे तापमान, हवा द्रव्य के बहने की गति आदि की पूरी जानकारी कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त होती रहती है। कम्प्यूटर निम्नलिखित कार्य करता है

    (i) सभी चीजों की मात्रा नापना।

    (ii) नापी गई मात्रा का निर्धारित मात्रा से तुलना करना।

    (iii) प्रणाली को इस प्रकार नियन्त्रित करना जिससे यह अन्तर कम से कम हो।मानवीय रूप से कार्य करने पर प्रत्येक स्तर पर जाँच नहीं हो पाती है तथा श्रम लागत भी बढ़ जाती है।

    (2) रिमोट कन्ट्रोल से-

    कम्प्यूटर के एक छोटे रूप का उदाहरण है- टीवी-वीसीआर का रिमोट। यह यन्त्र इन्फ्रारेज द्वारा बटन दबाने का सन्देश टीवी में लघु कम्प्यूटर सिस्टम को प्रेषित करता है। कम्प्यूटर उन संदेशों को समझकर टीवी या वीसीआर की टयूनिंग उसी के अनुसार कर देता है। हमें अब बार-बार उठकर टीवी, वीसीआर तक नहीं आना पड़ता है जिससे समय की बचत होती है।

    (3) रोबोट में-

    कई घातक कार्य जैसे गर्म वस्तुओं का इधर-उधर रखना, रेडियोधर्मी पदार्थों का लाना, खदानों के अन्दर खुदाई करना रोबोट द्वारा आसानी से किये जा सकते हैं। यह जरूरी नहीं है कि रोबोट मनुष्य की तरह हो बल्कि किसी भी मशीन को उसकी आवश्यकतानुसार निर्मित कम्प्यूटराइज्ड संचालन प्रणाली लगाई जा सकती है। यह कार्य बुद्धिमानीपूर्वक कर सकती हैं। इस प्रकार अब घातक कार्यों से होने वाली मानवीय क्षति कम की जा सकती है।

    (4) खगोल विद्या के क्षेत्र में-

    प्रारम्भ में सूर्य एवं चन्द्रमा की गति का अध्ययन करके मौसम की गणना की जाती थी। भारत में प्राचीन राजाओं ने जन्तर-मन्तर भवन का भी निर्माण कराया था। कम्प्यूटरों ने इस गणना को एक नई दिशा प्रदान की है। सूर्य एवं चन्द्रमा के साथ-साथ आकाश गंगा के अन्य ग्रहों की उत्पत्ति तथा गति का सटीक अध्ययन किया जा रहा है। इसमें मौसम की अधिक सटीक भविष्यवाणी करना सम्भव हुआ है।

    (5) ज्योतिष के क्षेत्र में-

    ज्योतिष विज्ञान पूर्णतः गणित पर आधारित विज्ञान है। अब कम्प्यूटर के आधार पर गणनायें अधिक विश्वसनीय रूप से की जा सकती हैं। हाथ से गणना में केवल दशमलव के बाद दो अंकों तक ही गणना की जाती थी। इससे ग्रहों की चाल में काफी अन्तर आ जाता था, परन्तु Computer द्वारा स्थान, सूर्योदय आदि को ध्यान में रखते हुये बिल्कुल सटीक गणना की जाती है। इससे भविष्यफल बताने में सत्यता की सम्भावना अधिक हो गयी है। आजकल बाजार में बने हुये ज्योतिष सॉफ्टवेयर भी उपलब्ध हैं।

    (6) व्यापारिक क्षेत्र में-

    पाश्चात्य देशों में बाजार में मिलने वाले पैकेटों, पुस्तकों व अन्य वस्तुओं पर एक लेबल बना होता है जिसमें कुछ मोटी व पतली लकीरें बनी होती हैं। यह एक प्रकार की गुप्त संकेत भाषा है जिसमें उस वस्तु की गुणवत्ता तथा मूल्य के विषय में जानकारी होती है। कम्प्यूटर इन बार कोड को एक विशेष प्रकार के पैन जिसे ऑप्टीकल बाण्ड कहा जाता है, के द्वारा पढ़ता है तथा रसीद जारी करता है एवं स्टॉक रजिस्टर को भी अद्यतन कर देता है।

    (7) कला एवं भवन-निर्माण में-

    कम्प्यूटर पर पैन अथवा माउस की सहायता से चित्र अथवा वास्तचित्र बनाया जा सकता है। कम्प्यूटर की सहायता से हम उसे तरहतरह के परिवर्तन करके उसका वास्तशिल्प देख सकते हैं तथा सर्वोत्तम मॉडल का चयन कर सकते हैं, जबकि मानवीय रूप से केवल कुछ ही विकल्प उपलब्ध कराये जा सकते हैं।

    (8) मनोरंजन में-

    कम्प्यूटर पर हम टीवी प्रोग्राम चला सकते हैं। गेम खेल सकते हैं।अपनी तर्क-क्षमता तथा सामान्य ज्ञान बढ़ा सकते हैं। आजकल बाजार में बहुत से कम्प्यूटर गेम उपलब्ध हैं जो जटिलता को हल करना सिखाते हैं। पूरा इनसाइक्लोपीडिया सीडी पर उपलब्ध है जिसे हम मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्धन कर सकते हैं।

    (9) फिल्म एवं कार्टून निर्माण में-

    कम्प्यूटर में ध्वनि यन्त्र लगाकर विभिन्न एनीमेशन फिल्म का निर्माण किया जा सकता है। इसमें महंगे सेट तथा व्यस्त कलाकारों की आवश्यकता नहीं होती। बल्कि हम अपनी कल्पना का कोई भी कलाकार लेकर मनचाहे एक्शन करा सकते हैं। ध्वनि कंट्रोल द्वारा आवाज नियन्त्रित कर सकते हैं तथा बदल सकते हैं। आजकल बाल मनोरंजन फिल्मों में, विज्ञापन के क्षेत्र में इनका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है।

    (10) बैंकिंग में- बै

    ंकिंग क्षेत्र में कम्प्यूटर का प्रयोग विस्तृत रूप से हो रहा है। खातों में लेन-देन में कम्प्यूटरीकृत शाखाओं का प्रादुर्भाव हुआ है। धन के प्रेषण हेतु इलेक्ट्रॉनिक मेल की सुविधा प्रदान की गई है तथा चेकों के समाशोधन में माइकर पद्धति का प्रयोग किया गया है। 24 घण्टे बैंकिंग के लिये एटीएम लगाये गये हैं। ग्राहक को साख-सुविधा हेतु क्रेडिट कार्ड का चलन प्रारम्भ हुआ है। साथ ही कुछ बैंकों ने होम बैंकिंग तथा टैली बैंकिंग जैसी सुविधा भी प्रदान की है। मानवीय कार्य की स्थिति में जब बाहरी चेकों का निस्तारण 20-25 दिनों में होता था, अब 3 से 5 दिन में होने लगा है। खातों की विवरणी तुरन्त ही उपलब्ध है। साथ ही कार्य समय भी एक घण्टा बढ़ गया है.

    (11) प्रशासन में-

    प्रशासनिक क्षेत्र में अब बाढ़, सूखा, मौसम, फसल, कराधान तथा अपराधों के आँकड़े कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं। इससे प्रशासन के नीति-निर्धारकों को अपनी योजना तैयार करने में सहायता मिलती है। लिपिकीय लापरवाही के कारण होने वाले भ्रष्टाचार तथा विलम्ब पर नियन्त्रण सम्भव हुआ है। रेलवे में आरक्षण की सही स्थिति ज्ञात रहती है। अपराधियों के विरुद्ध रणनीति बनाई जा सकती है।

    (12) आयध निर्माण में-

    आज नवीनतम हथियार तैयार किये जा रहे हैं। यह हाइडोजन तथा न्यूट्रॉन का युग है। इनका मैदान में परीक्षण करने में काफी लागत आती है। तथा विरोध का सामना भी करना पड़ता है। कम्प्यूटर के द्वारा यह सम्भव हुआ है कि हम प्रयोगशाला में मॉनीटर पर ही डिजायन बनायें तथा उसका विस्फोट करायें। पूर्णतः निर्माण होने पर इसका वास्तविक परीक्षण किया जा सकता है। देश में बहुत-सी मिसाइलों तथा परमाणु बम परीक्षण में इसका प्रयोग किया गया है।

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