Author: Ram

  • लाइसेन्सिंग (Licensing) kya hai?लाभ तथा नुकसान

    लाइसेन्सिंग (Licensing)लाभ तथा नुकसान (Benefits and Limitations)

    लाइसेन्सिंग को एक बिजनेस अरेन्जमेन्ट के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें एक कम्पनी किसी अन्य कम्पनी को अपने इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स यानि मैन्युफेक्चरिंग प्रोसेस, ब्रांड नेम, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेन्ट, टेक्नोलॉजी, ट्रेड सिक्रेट आदि के लिए अस्थायी रूप से पर्याप्त विचार के लिए लाइसेन्स जारी करके दिशानिर्देशों के साथ ऑथोराइज करती है।

    वह फर्म जो किसी अन्य फर्म को अपनी इन्टेन्जिबल असेट्स का उपयोग करने की अनुमति प्रदान करती है, वह ‘लाइसेन्सर है और जिस फर्म को लाइसेन्स जारी किया जाता है, वह लाइसेन्सी है। इन्टेलेक्चुअल प्रापर्टी राइट्स के उपयोग के लिए लाइसेन्सर द्वारा लाइसेन्सी से फीस या रॉयल्टी ली जाती है। –

    उदाहरण के लिए, लाइसेन्सिंग सिस्टम के तहत, कोका-कोला तथा पेप्सी का विश्व स्तर पर प्रोडक्शन तथा बिक्री विभिन्न देशों में लोकल बॉटलर्स द्वारा की जाती है।

    संक्षिप्त में, यह बिजनेस अलायन्स का सबसे सरल रूप है, जिसमें एक कम्पनी मार्केट में एंटर करने के बदले अपने प्रोडक्ट बेस्ट नॉलेज को किराए पर देती है।

    लाइसेन्सिंग क्यों? (Why Licensing)

    विदेशी कम्पनी एक निर्दिष्ट अवधि के लिए डामेस्टिक कन्ट्री पर आधारित अन्य कम्पनी के साथ लाइसेन्सिंग एग्रीमेन्ट करती है। लाइसेन्सिंग एग्रीमेन्ट में एंटर करने के लिए दो प्राथमिक कारण है:

    • एक ब्रांड फ्रेंचाइसी का इन्टरनेशनल एक्सपानशन

    • नई टेक्नोलॉजी के कमर्शियलाइजेशन की आवश्यकता

    सामान्य तौर पर, एक फर्म अपने प्रोडक्ट्स के लाइसेन्स के लिए विकल्प चुनती है, जब यह फर्म मानती है कि प्रोडक्ट की स्वीकृति अधिक है। यह लाइसेन्सी को मार्केट में कॉम्पिरिटर्स द्वारा पेश किए गए प्रोडक्ट्स से अन्य प्रोडक्ट्स को अलग करने में सहायता करता है। इसके साथ ही, यह लाइसेन्सिंग कम्पनी को कम कीमत पर नए कस्टमर्स तक पहुँचने में भी सहायता करता है।

    लाभ तथा नुकसान (Benefits and Limitations)

    लाइसेन्सिंग में, लाइसेन्सर को कम जोखिम पर इन्टरनेशनल मार्केट में एंटर होने का लाभ प्राप्त होता है। हालाँकि, प्रोडक्ट के प्रोडक्शन, डिस्ट्रिब्युशन तथा बिक्री के मामले में लाइसेन्सी पर बहुत कम या कोई कंट्रोल नहीं होता है। इसके साथ यदि लाइसेन्सी को सफलता मिलती है, तो फर्म अपना लाभ देती है, और जब भी लाइसेन्सिंग एग्रीमेन्ट प्राप्त हो जाता है, तो फर्म को पता चल सकता है कि उसने एक कॉम्पिटिटर को जन्म दिया है।

    रोकथाम के उपाय के रूप में, लाइसेन्सर द्वारा ही सप्लाए किए गए कुछ प्रॉप्राइटरी प्रोडक्ट कम्पोनेन्ट्स हैं। हालाँकि इनोवेशन को एप्रोप्रिएट स्ट्रेटेजी के रूप में माना जाता है, ताकि लाइसेन्सी को लाइसेन्सर पर निर्भर रहना पड़े ।

    दूसरी ओर, लाइसेन्सी प्रोडक्शन या एक प्रसिद्ध ब्रांड के नाम से विशेषज्ञता प्राप्त करता है। वह उम्मीद करता है। कि अरेन्जमेन्ट समग्र बिक्री में वृद्धि करेगा, जो नए मार्केट के द्वार खोल सकता है और बिजनेस आब्जेक्टिव्स को प्राप्त करने में सहायता कर सकता है। हालाँकि इसे ऑपरेशन्स की शुरूआत करने के लिए काफी कैपिटल इन्वेस्टमेन्ट की आवश्यकता होती है, साथ ही डेवलपमेन्ट कॉस्ट भी लाइसेन्सी द्वारा वहन की जाती है।

  • प्लेगियरिज्म (Plagiarism )प्लेगियरिज्म के प्रकार (Types of Plagiarism) kya hai?

    प्लेगियरिज्म (Plagiarism )

    प्लेगियरिज्म, दूसरे व्यक्ति को श्रेय दिए बिना किसी और के विचारों या शब्दों को अपने उपयोग में लेने का कार्य है। जब आप ओरिजिनल ऑथर को श्रेय देते हैं (व्यक्ति का नाम, आर्टिकल का नाम, जहाँ इसे पोस्ट या प्रिंट किया गया हो उसके बारे में जानकारी) आदि सोर्स का उपयोग करते हैं। प्लेगियरिज्म तब होता है, जब आप इन जानकारियों को अपने पेपर में सम्मिलित नहीं करते हैं। प्लेगियरिज्म के अन्य रूप भी हैं, जैसे किसी पेपर का पुनः उपयोग करना और किसी ओर से आपके लिए लिखवाना ।

    अन्य शब्दों में, प्लेगियरिज्म, सोर्स का उल्लेख किए बिना किसी अन्य ऑथर के टेक्स्ट की नकल है। किसी विशेष टेक्स्ट को अपनी ओरिजिनल राइटिंग के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत करना और उसकी नकल करना सीरियस ऑफेन्स है।

    प्लेगियरिज्म के ऑफेन्स के परिणामस्वरूप सजा भी हो सकती है, क्योंकि यह कॉपीराइट लॉ के तहत आता है, जो टेक्स्ट या कन्टेन्ट के ऑथर या ऑनर के अधिकार को प्रोटेक्ट करता है। राइटिंग में इसका सार होना आवश्यक है, और इसे राइटर को इसे वास्तविक रूप देने के लिए अपने शब्दों तथा भावनाओं को व्यक्त करने की आवश्यकता होती है। डुप्लिकेट या कॉपी किए गए कन्टेन्ट राइटिंग की ओरिजनलिटी समाप्त कर देते हैं, इसलिए राइटिंग रिडर तक पहुँचने में भी विफल हो जाता है। इसलिए रिसर्च पेपर्स तथा एकेडमिक पेपर्स के लिए टाइटर्स को अपने सोर्स मेटिरियल से सावधान रहना चाहिए।

    यदि कार्यों में प्लेगियरिज्म का संकेत है, तो यह ओरिजनल नहीं है, इसके बजाए इसे कॉपी के नए कन्टेन्ट के रूप में माना जाता है। इसलिए राइटर्स के लिए यह जानना आवश्यक है कि प्लेगियरिज्म से कैसे बचा जाए और राइटिंग की ओरिजिनलिटी को बरकरार रखा जाए

    प्लेगियरिज्म के प्रकार (Types of Plagiarism)

    प्लेगियरिज्म के विभिन्न प्रकार होते हैं। डायरेक्ट प्लेगियरिज्म तथा मोसेक प्लेगियरिज्म, प्लेगियरिज्म के समान्य प्रकार हैं। इससे बचने के लिए यह जानना जरूरी है कि प्लेगियरिज्म को ऑनलाइन कैसे चैक किया जाता है।

    1. डायरेक्ट प्लेगियरिज्मः सामान्य तौर पर, प्लेगियरिज्म के अपराध में सोर्स के उचित उल्लेख के बिना किसी अन्य राइटिंग के कुछ हिस्सो को अपनाना सम्मिलित होता है। कई बार टेक्स्ट से कॉपी करने वाला एक भी शब्द नहीं बदलता हैं। प्लेगियरिस्ट सेन्टेन्स के कुछ हिस्सों को भी बदल सकता है या फिर कुछ शब्दों को अपने शब्दों से फेरबदल कर सकता है। हालांकि यह प्लेगियरिज्म के अपराध के अंतर्गत भी आता है।

    प्लेगियरिज्म के विभिन्न रूपों में डायरेक्ट प्लेगियरिज्म सबसे हानिकारक है। जब प्लेगियरिस्ट किसी और के कार्य से टेक्स्ट को कॉपी तथा पेस्ट करता है और सोर्स का हवाला देने या कोटेशन मार्क्स को हटाने की अपेक्षा करता है, तो यह डायरेक्ट प्लेगियरिज्म है।

    किसी टेक्स्ट की समान कॉपी या क्लोनिंग एक सीरियस ऑफेन्स है। यह डुप्लिकेट केन्टेन्ट जानबुझकर प्लेगियराइज किए गए कन्टेन्ट की श्रेणी में आती है। यह अनैतिक है और ओरिजिनल कन्टेन्ट का राइटर प्लेगियरिस्ट के खिलाफ डिसिप्लिनरी एक्शन्स ले सकता है।

    2. मॉसेक प्लेगियरिज्म: एक अन्य प्रकार का प्लेगियरिज्म होता है, जो अनजाने में किया जाता है। इस केस में प्लेगियरिस्ट ने उस कन्टेन्ट के सोर्स का उल्लेख किया होगा, जिसका उसने उपयोग किया है। लेकिन वह कोटेड भाग को एक्नॉलेज नहीं करता है या उन्हें कोटेशन मर्क्स के भीतर सही तरीके से रखता है, तो राइटर प्लेगियरिज्म के अपराध करता है। चाहे इरादतन हो या अनजाने में प्लेगियरिज्म एक सीरियस ऑफेन्स है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि राइटिंग राइटर की प्रापर्टी है।

    राइटिंग को समृद्ध बनाने के लिए कुछ सोर्स मटेरियल्स का उल्लेख करना आवश्यक है। यदि को राइटर इंटरनेट को सोर्स के रूप में उपयोग करता है, तो उसे पता होना चाहिए कि क्या नहीं करना है, ताकि वह प्लेगियरिज्म से बच सके। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस कार्य का उन्होंने उल्लेख किया है, उसके सोर्स का ठीक प्रकार उल्लेख करना यदि उसने शब्द दर शब्द का उपयोग किया है, तो उसे कोटेशन मार्क्स का उपयोग करना चाहिए। एक राइटर को मॉसेक प्लेगियरिज्म से सावधान रहना चाहिए। इस प्रकार का प्लेगियरिज्म तब होता है, जब राइटर कोटेशन मक्स का उपयोग किए बिना किसी विशेष सोर्स मटेरियल से फ्रेजेस या पार्ट्स को बीरो करता है या सोर्स के ओरिजिनल स्ट्रक्चर को बदले बिना कन्टेन्ट के कुछ शब्दों को अनजाने में किसी और के कार्य की पैराफ्रेजिंग करना भी मॉसेक प्लेगियरिज्म की ओर जाता है। कभी-कभी प्लेगियरिस्ट कुछ पार्ट्स की पैराफ्रेजिंग करके पेच, राइटिंग करते हैं और फिर उसमें से टेक्स्ट या पार्ट्स को कॉपी तथा पेस्ट करते हैं। यह मॉजेक प्लेगियरिज्म का दूसरा रूप है। ये दो तरीके राइटर को सबसे सामान्य प्रकार के प्लेगियरिज्म से बचने में सहायता करते हैं।

    3. सेल्फ-प्लेगियरिज्मः सेल्फ-प्लेगियरिज्म, प्लेगियरिज्म के सामान्य प्रकारों में से एक है, जहाँ स्कूल के स्टूडेन्ट्स अपने पहले सबमिट किए गए एकेडमिक पेपर के हिस्से को कॉपी तथा पेस्ट करते हैं। यदि स्टूडेन्ट सम्बन्धित टीचर से पूछे बिना दो अलग-अलग क्लास प्रोजेक्ट्स के लिए एक ही पेपर सबमिट करता है, तो इसे सेल्फ-प्लेगियरिज्म माना जाता है।

    हालाँकि सेल्फ-प्लेगियरिज्म अक्सर गंभीर लीगल एक्शन के साथ समाप्त नहीं होती है, जो एकेडमिक पेपर्स तथा रिसर्च पेपर्स के प्रेजेन्टेशन को प्रभावित कर सकती है।

    • एक्सिडेन्टल प्लेगियरिज्मः प्लेगियरिज्म के एक अन्य सामान्य रूप में एक्सिडेन्टल प्लेगियरिज्म सम्मिलित है। जब प्लेगियरिस्ट सोर्स मटेरियल के लिए फ्रेजेस तथा टेक्स्ट के कुछ हिस्सों को गलत तरीके से कोट करता है या सोर्स का पर्याप्त रूप से हवाला नहीं देता है, तो उसे प्लेगियरिज्म माना जाता है।

    गलत ऑथरशिप के लिए भले ही कार्य का नाम उद्धृत किया गया हो, ओरिजिनल राइटर प्लेगियरिस्ट के खिलाफ डिसिप्लिनरी एक्शन्स ले सकता है, भले ही एक्सिडेन्टल प्लेगियरिज्म इरादतन न हो।

  • इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी वॉएलेशन्स (Intellectual Property Violations) kya hai?

    इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी वॉएलेशन्स (Intellectual Property Violations)

    इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी वॉएलेशन्स मुख्य रूप से ट्रेडमार्क इन्फ्जिमेन्ट तथा पेटेन्ट इन्जिमेन्ट से सम्बन्धित हैं। एन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (IP) वह वाइन है, जिसके माध्यम से गवर्नमेन्ट क्रिएशन को प्रोत्साहित करती है और पब्लिक नॉलेज शेयर करती है। संक्षिप्त में, प्रॉपर्टी का यह रूप मन के क्रिएशन्स को संदर्भित करता है। इसमें लिटरेरी वर्क्स, इन्वेन्शन्स तथा डिजाइन्स के साथ-साथ कॉमर्स में उपयोग की जा रही इमेजेस, नाम तथा सिम्बॉल्स सम्मिलित किए जा सकते हैं। IP प्रोटेक्शन प्राप्त करके, क्रिएटर्स को अपने विचारों को पब्लिक के साथ शेयर करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

    इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी को रजिस्टर करने के द्वारा प्रदान किए गए लाभों के परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 10 लाख से अधिक एप्लिकेशन्स प्राप्त होती हैं। प्रत्येक वर्ष रजिस्ट्रेशन की संख्या के साथ इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इन्फिजमेन्ट (उल्लंघन) के हजारों केसेस अदालत में जाते हैं। कॉपीराइट, ट्रेडमार्क तथा पेटेन्ट के लिए समस्याएँ तब उत्पन्न होती हैं जब कोई अन्य एन्टिटी बिना अनुमति के इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी का उपयोग करती है। यह ट्रेड सिक्रेट्स के समान है, लेकिन इस स्थिति में समस्या सामान्य अन अप्रुबल उपयोग के बजाए मिस-एप्रोप्रिएट है।

    तथ्य यह है कि आपकी इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी पर आपके कुछ अधिकार होते हैं। ये तब भी होते हैं, जब आपने कॉपीराइट रजिस्ट्रेशन या ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन फाइल नहीं की हो। पेटेन्ट के विपरीत, जिन्हें प्रोटेक्शन प्राप्त करने के लिए रजिस्टर करना आवश्यक है, ट्रेड सिक्रेट्स का सार यह है कि वे रजिस्टर्ड नहीं है। जब आपके अधिकारों का उल्लंघन होता है, जो ट्रेडमार्क लिटिगेशन या पेटेंट लिटिगेशन के रूप में एक्शन लेना आपके ऊपर निर्भर करता है।

  • इन्टेलेक्चुअल प्रॉपटी राइट्स (Intellectual Property Rights) kya hai?

    इन्टेलेक्चुअल प्रॉपटी राइट्स (Intellectual Property Rights)

    इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी, जैसा कि नाम से ही पता चलता है, एक इन्टेन्जिबल प्रॉपर्टी है, जो ह्युमन इन्टेलेक्ट, कैपिटल, लेबर आदि का एक प्रोडक्ट है, जैसे कि आर्टिस्टिक क्रिएशन्स, लिटरेटी वर्क्स, इन्वेन्शन्स आदि। यह इन्टेन्जिबल है, क्योंकि इसकी फिजिकल विशेषताओं की सहायता से पहचान नहीं की जा सकती है।

    क्रिएटर्स के हितों की रक्षा के लिए, इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पेश किए जाते हैं, जो उन्हें अपनी प्रॉपर्टी पर अधिकार देते है, और दूसरों को आनर (क्रिएटर) की अनुमति के बिना इसका उपयोग करने से रोकते हैं।

    अन्य शब्दों में, इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ह्युमन इन्टेलेक्ट का प्रोडक्ट है, जिसमें क्रिएटिविटी कॉन्सेप्ट्स, इन्वेन्शन्स, इन्डस्ट्रियल मॉडल्स, ट्रेडमार्क्स, सॉन्ग्स, लिटरेचर, सिम्बॉल्स, नेम्स, ब्रॉड्स आदि सम्मिलित हैं। इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स अन्य प्रॉपर्टी राइट्स से अलग नहीं हैं। वे अपने आनर को अपने प्रोडक्ट से पूरी तरह से लाभान्वित करने की अनुमति प्रदान करते हैं, जो शुरू में एक विचार या लेकिन बाद में विकसित हुआ तथा प्रकाश में आया। वे उसे/उसकी प्रायर परमिशन पूर्व अनुमति के बिना अन्य लोगों के उसके प्रोडक्ट का उपयोग करने, डील करने या उसके साथ छेड़छाड़ करने से रोकने का अधिकार भी देते हैं। वह वास्तव में उन पर मुकदमा कर सकता है।

    इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स का इतिहास (History of Intellectual Property Rights)

    इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (IPR) नया कॉन्सेप्ट नहीं है। ऐसा माना जाता है कि IPR की शुरूआत नार्थ इटली में पुनर्जागरण काल के दौरान हुई थी। सन् 1474 में, वेनिस ने पेटेंट्स प्रोटेक्शन को रेग्युलेट करने वाला कानून जारी किया, जिसने आनर के लिए विशेष अधिकार प्रदान किया। कॉपीराइट 1440 ईस्वी पूर्व का है, जब जोहान्स गुटेनबर्ग ने बदले जा सकने वाले लकड़ी या धातु के अक्षरों के साथ प्रिंटिंग प्रेस का अविष्कार किया था। 19वीं शताब्दी के अंत में, कई देशों ने IPR को रेग्युलेट करने वाले कानूनों को बनाने की आवश्यकता महसूस की। विश्व स्तर पर IPR सिस्टम का आधार बनाने वाले दो कन्वेन्शन्स पर हस्ताक्षर किए गए थे। इन्डस्ट्रियल प्रॉपर्टी के प्रोटेक्शन के लिए पेरिस कन्वेन्शन (1883), लिटरेटी तथा आर्टिस्टिक र्वक्स के प्रोटेक्शन के लिए बर्न कन्वेन्शन (1886)।

    इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी का क्लासिफिकेशन (Classification of Intellectual Property)

    1. इन्डस्ट्रियल प्रॉपर्टीः इन्डस्ट्रियल प्रॉपर्टी उस प्रॉपर्टी का संकेत देती है, जिसे इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी लॉज के तहत प्रोटेक्शन मिला है, और इसमें ट्रेडमार्क, डिजाइन्स, इन्वेन्शन के लिए पेटेन्ट, ट्रेड सिक्रेट, युटिलिटी मॉडल आदि सम्मिलित हैं।

    2. ट्रेडमार्क: ट्रेडमार्क एक निश्चित साइन, सिम्बॉल या किसी विशेष प्रोडक्ट के सोर्स को डिटरमाइन करने वाले शब्द को संदर्भित करता है। इसका उपयोग करने के लिए रेस्ट्रिक्टेड राइट्स की सुविधा के द्वारा, मार्क आनर को प्रोटेक्शन प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है। जब यह सर्विस प्रोवाइडर की पहचान करता है, तो इसे सर्विस मार्क कहा जाता है। एक बार रजिस्टर होने के बाद, ट्रेडमार्क एक निश्चित अवधि के लिए प्रोटेक्ट रहता है, जिसके बाद इसे भुगतान करके रिन्यू किया जा सकता है।

    पेटेन्टः पेटेन्ट, इन्वेन्टर को उसके क्रिएशन के लिए प्रदान किया गया प्रोटेक्शन है, जो एक डिवाइस या प्रोसेस हो सकती है। यह एक गवर्नमेन्ट लाइसेन्स है, जो इन्वेन्टर को एक विशिष्ट अवधि के लिए, अन्य लोगों को इसे क्रिएट करने या बेचने से रोकने के लिए विशेष अधिकार प्राप्त करता है।

    डिजाइनः इन्डस्ट्रियल डिजाइन भी कहा जाता है, मुख्य रूप से किसी प्रोडक्ट या प्रोसेस के एस्थेटिक फीचर्स से सम्बन्धित है, जो इसे और भी अधिक आकर्षक बनाता है और इस प्रकार इसकी कमर्शियल वैल्यु को बढ़ाता है।

    • ट्रेड सिक्रेट्स: जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह सेन्सिटिव बिजनेस इन्फॉर्मेशन है, जो फर्म को कॉम्पिटिटिव एज प्रदान करती है।

    2. कॉपीराइटः कॉपीराइट का अर्थ है आर्टिस्टिक तथा लिटरेरी वर्क्स के क्रिएटर या कम्पोजर को एक निश्चित अवधि के लिए सौंपे गए विशेष अधिकार, जो अन्य लोगों को काम की नकल करने से रोके जाने के लिए प्रदान किए जाते हैं। इसमें नॉवेल्स, कविताएँ तथा खेल, फिल्म्स, ड्रामा, म्यूजिकल वर्क तथा आर्टिस्टिक क्रिएशन्स, जैसे- पेंटिंग्स, स्कल्पचर्स, फोटोग्राफ्स आदि की एक विस्तृत विविधता सम्मिलित है।

  • Data Projection Element kya hai?

    डेटा प्रोटेक्शन के एलिमेन्ट्स (Elements of Data Protection)

    सिक्योरिटी से सम्बन्धित सभी कन्स्ट्रेन्ट्स तथा रिक्वायरमेन्ट्स को पूरा करने के लिए रिसचर्स तथा सिक्योरिटी एनालिस्ट्स कुछ अनूठे कॉन्सेप्ट्स के साथ आए है, जो सिस्टम को सिक्योर करने में सहायता कर सकते हैं। यदि किसी भी एलिमेन्ट से समझौता किया जाता है, तो इन्फॉर्मेशन के साथ-साथ सिस्टम के लिए भी संभावित जोखिम होता है।

    डेटा प्रोटेक्शन के एलिमेट्स का वर्णन इस प्रकार किया गया है:

    1. अवेलेबिलिटी: अवेलेबिलिटी यह स्पेसिफाए करती है कि डेटा या रिसोर्स क्लाइंट द्वारा रिक्वायर्ड है या रिक्वेस्ट किए जाने पर उपलब्ध है या नहीं। रिक्वेस्ट की गई इन्फॉर्मेशन का वास्तविक मूल्य तभी होगा, जब वैलिड युजर्स सही समय पर उन रिसोर्सेस को एक्सेस कर सकते हैं। लेकिन साइबर क्रिमिनल्स उन डेटा को जब्त कर लेते हैं, ताकि उन रिसोर्सेस को एक्सेस करने की रिक्वेस्ट अस्वीकार हो जाए। (वर्किंग सर्वर के डाउनटाइम की ओर चला जाता है), जो एक कन्वेन्शनल अटैक है।

    2. इन्टिग्रिटी यह सुनिश्चित करने के लिए टेक्निक्स को संदर्भित करता है कि सभी डेटा या रिसोर्सेस जिन्हें वास्तविक समय पर एक्सेस किया जा सकता है, वैलिड, सही तथा अनआथोराइज्ड युजर (हैकर्स) मोडिफिकेशन से प्रोटेक्ट करते हैं। डेटा इन्टिग्रिटी एक प्राथमिक तथा आवश्यक कम्पोनेन्ट या इन्फार्मेशन सिक्योरिटी का एलिमेन्ट बन गया है, क्योंकि यूजर्स को इनका उपयोग करने के लिए ऑनलाइन इन्फॉर्मेशन पर भरोसा करना होता है। नॉन-ट्रस्टेड डेटा इन्टिग्रिटी से समझौता करता है, और इसलिए यह छः एलिमेन्ट्स में से एक का उल्लंघन करता है। डेटा इन्टिग्रिटी को चैकसम, हैश ईस्युज में चेन्जेस तथा डेटा कम्पेरिजन जैसी टेक्निक्स के माध्यम से वैरिफाए किया जाता है।

    3. आथेन्सिसिटीः आथेन्टिसिटी एक अन्य आवश्यक एलिमेन्ट है, और आथेन्टिक्शन को यह सुनिश्चित करने तथा कन्फर्म करने की प्रोसेस के रूप में परिभाषित किया जा सकता है कि युजर की आइडेंटिटी वास्तविक तथा वैध है। आथेन्टिकेशन की यह प्रोसेस तब होती है जब युजर किसी भी डेटा या इन्फॉर्मेशन को एक्सेस करने का प्रयास करता है। आमतौर पर लॉगिन या बायोमैट्रिक एक्सेस द्वारा किया जाता है। हालांकि, साइबर क्रिमिनन्स सोशल इंजीनियरिंग, पासवर्ड गेसिंग या क्रेकिंग सिफर्स के उपयोग से इस तरह के एक्सेस प्राप्त करने के लिए अधिक सोफिस्टिकेट टूल्स तथा टेक्निक्स का उपयोग करते हैं।

    4. कॉन्फिडेन्शियलिटी: कॉन्फिडेन्शियलिटी को सभी सेन्सिटिव तथा प्रोटेक्टेड इन्फॉर्मेशन को एक्सेस करने के लिए अप्रूव्ड युजर्स को परमिट करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। कॉन्फेन्शियलिटी इस तथ्य को ध्यान में रखती है कि कॉन्फिडेन्शियल इन्फॉर्मेशन तथा अन्य रिसोर्सेस को वैलिड तथा आथोराइज्ड युजर्स को ही रिवेल किया जाता है। युजर या व्युअर के आथोराइजेशन के साथ-साथ किसी विशेष डेटा पर एक्सेस कंट्रोल्स सुनिश्चित करने के लिए रोल-बेस्ड सिक्योरिटी टेक्निक्स के उपयोग से कॉन्फिडेन्शियलिटी को निश्चित किया जा सकता है।

    5. नॉन- रेप्युडिएशनः नॉन-रेप्युडिएशन डेटा प्रोटेक्शन का एक एलिमेन्ट है, जिसे एश्योरेन्स के तरीके के रूप में परिभाषित किया जा सकता है कि डिजिटल सिग्नेचर के माध्यम से या इन्क्रिप्शन के उपयोग के माध्यम से दो या दो से अधिक युजर्स के बीच ट्रांसमिट किया गया मैसेज एक्युरेट है, और कोई भी किसी भी डॉक्यूमेन्ट पर डिजिटल सिग्नेचर के आबेन्टिकेशन को लेकर इन्कार नहीं कर सकता है। आबेन्टिक डेटा, साथ ही इसकी उत्पत्ति को डेटा हैश से प्राप्त किया जा सकता है।

    6. युटिलिटी: युटिलिटी का उपयोग किसी भी उद्देश्य या कारण के लिए किया जा सकता है और एक्सेस किया जा सकता है, इसके बाद युजर्स द्वारा उपयोग किया जा सकता है। यह पूरी तरह से सिक्योरिटी के एलिमेन्ट का प्रकार नहीं है, लेकिन यदि किसी रिसोर्स की युटिलिटी अस्पष्ट या बेकार हो जाती हैं, तो यह किसी काम की नहीं रहती है। क्रिप्टोग्राफी का उपयोग इंटरनेट पर सेन्ड किए गए किसी भी रिसोर्स की इफिशिएन्सी को बनाए रखने के लिए किया जाता है। इंटरनेट पर सेन्ड किए गए मैसेज या डेटा को सिक्योर करने के लिए विभिन्न इन्क्रिप्शन मैकेनिज्म्स का उपयोग किया जाता है ताकि ट्रांसमिशन के दौरान इसे बदला न जाए, अन्यथा, उस रिसोर्स को युटिलिटी प्रबल नहीं होगी।

  • Data Projection kya hai?

    डेटा प्रोटेक्शन (Data Protection)

    डेटा प्रोटेक्शन, नेटवर्क पर फाइल्स, डेटाबेसेस तथा अकाउंट्स को प्रोटेक्ट करने की प्रोसेस है, जो विभिन्न डेटासेटन के सापेक्ष उनकी सेन्सिटिविटी, रेग्युलेटरी कम्प्लाएंस रिक्वायरमेन्ट्स की पहचान करने और फिर उन रिसोर्सेस को सिक्योर करने के लिए कंट्रोल्स, एप्लिकेशन्स तथा टेक्निक्स के सेट को अपनाती हैं ।

    अन्य शब्दों में, डेटा प्रोटेक्शन, डेटा को प्रोटेक्ट करने की प्रोसेस है और इसमें डेटा तथा टेक्नोलॉजी के कलेक्शन तथा डिसेमिनेशन पब्लिक परसेप्शन तथा प्राइवेसी की एक्सपेक्टेशन और उस डेटा के आसपास के पॉलिटिकल तथा कानून आधार के बीच रिलेशनशिप सम्मिलित है। इसका उद्देश्य इन्डिविजुअल प्राइवेसी राइट्स के बीच बैलेन्स स्थापित करना है, जबिक डेटा को बिजनेस के उद्देश्यों के लिए उपयोग करने की अनुमति प्राप्त है।

    डेटा प्रोटेक्शन प्रोटेक्टिव डिजिटल प्राइवेसी मेजर्स को संदर्भित करता है, जो कम्प्युटर्स, डेटाबेसेस तथा वेबसाइट्स में अनआथोराइज्ड एक्सेस को रोकने के लिए लागू कि जाते हैं। डेटा प्रोटेक्शन डेटा को करप्शन से भी बचाता है। यह प्रोटेक्शन हर आकार तथा प्रकार के आर्गेनाइजेशन्स के लिए IT का एक महत्वपूर्ण पहलु है।

    डेटा प्रोटेक्शन की प्रैक्टिस करने के सबसे सामान्य तरीकों में से आथेन्टिकेशन का उपयोग है। आथेन्टिकेशन के साथ युजर्स को किसी सिस्टम या डेटा एक्सेस प्रदान करने से पहले उसकी ऑइडेन्टिटी वेरिफाए करने के लिए एक पासवर्ड, कोड, बायोमेट्रिक डेटा या अन्य प्रकार का डेटा प्रदान करना होगा। डेटा प्रोटेक्शन टेक्नोलॉजीस के उदाहरणों में बैकअप, डेटा मास्किंग तथा डेटा इरेजर सम्मिलित है। एक प्रमुख डेटा प्रोटेक्शन टेक्नोलॉजी मेजर, इन्क्रिप्शन है, जहाँ डिजिटल डेटा, सॉफ्टवेयर/हार्डवेयर तथा हार्ड ड्राइव इन्क्रिप्ट किए जाते हैं और इसे अनआथोराइज्ड युजर्स तथा हैकर्स के अनरीडेबल स्टफ । प्रदान किए जाते हैं।

  • Social Media ki Labh aur haniyan kya hai?

    सोशल मीडिया के लाभ सोशल मीडिया की हानियाँ (Advantages of Social Media)

    1. कनेक्टिविटी: सोशल मीडिया का पहला और मुख्य लाभ कनेक्टिविटी है। लोकेशन तथा रिलिजियन की परवाह किए बिना कहीं से भी व्यक्ति किसी से भी जुड़ सकते हैं। सोशल मीडिया की खूबी यह है कि आप अपने विचारों को शेयर करने के लिए किसी से भी जुड़ सकते हैं।

    2. एज्युकेशन : स्टूडेन्ट्स तथा टीचर्स के लिए सोशल मीडिया के बहुत सारे लाभ हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से एक्सपर्ट्स तथा प्रोफेशनल्स से सीखना बहुत आसान है। आप किसी से भी सीखने के लिए उसे फॉलो कर सकते हैं और किसी भी फील्ड में अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं। आपकी फील्ड तथा एज्युकेशन बैकग्राउंड के बावजूद आप इसके लिए भुगतान किए बिना स्वयं को एज्युकेट कर सकते हैं।

    3. सहायताः आप सहायता और गाइड करने के लिए उद्देश्य से अपने इशूज को कम्युनिटी के साथ शेयर कर सकते है। चाहे यह सहायता पैसों के मामले में हो या सलाह के मामले में, आप इसे उस कम्युनिटी से प्राप्त कर सकते हैं, जिससे आप जुड़े हुए हैं।

    4. इन्फॉर्मेशन तथा अपडेट्स: सोशल मीडिया का मुख्य लाभ यह है कि आप दुनिया भर में होने वाली नवीनतम घटनाओं से स्वयं को अपडेट कर सकते हैं। आजकल अधिकांश समय टेलीविजन तथा प्रिंट मीडिया पक्षपाती होते हैं, जिसके कारण कई बार सही इन्फॉर्मेशन कन्वे नहीं हो पाती है। सोशल मीडिया की सहायता से आप कुछ रिसर्च करके सही तथ्त था इन्फॉर्मेशन प्राप्त कर सकते हैं।

    5. प्रमोशनः आफलाइन बिजनेस हो या ऑनलाइन, व्यक्ति अपने बिजनेस को बड़ी संख्या में आडियंस तक पहुँचा सकता है और इसे प्रमोट कर सकता है। यह बिजनेस को प्रॉफिटेबल तथा कम एक्सपेन्सिव बनाता है, क्योंकि किसी बिजनेस में किए गए अधिकांश खर्च एडवर्टाजमेन्ट तथा प्रमोशन के लिए ही होते हैं। सही ऑडियंस से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया पर लगातार तथा नियमित रूप से इन्वॉल्व होने से इसे कम किया जा सकता है।

    6. नेक कार्य: सोशल मीडिया का उपयोग नेक कार्यों के लिए भी किया जाता है। उदाहरण के लिए, एक NGO (नॉन गवर्नमेन्ट आर्गेनाइजेशन) को प्रमोट करने के लिए सोशल वेलफेयर एक्टिविटीज तथा जरूरतमंदों के लिए डोनेशन्स लोग जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए डोनेशन करने हेतु सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं, और यह ऐसे लोगों की सहायता करने का एक त्वरित तरीका हो सकता है।

    7. अवेयरनेसः सोशल मीडिया अवेयरनेस (जागरूकता) भी उत्पन्न करता है और लोगों के जीवन में नवाचार लेकर आता है। यह सोशल मीडिया ही है, जिसने लोगों को नई चीजे खोजने में भरपूर सहायता की है, जो निजी जीवन को बेहतर बना सकती है। किसानों से लेकर स्टूडेन्ट्स तथा वकीलों तक समाज का हर व्यक्ति सोशल मीडिया और इसके अवेयरनेस फैक्टर से लाभान्वित हो सकता है।

    8. गवर्नमेन्ट तथा एजेन्सीज को अपराधों से लड़ने में सहायता करता है सोशल मीडिया का एक लाभ यह भी है कि यह गवर्नमेन्ट तथा सिक्योरिटी एजेन्सीज को अपराधों से लड़ने के लिए अपराधियों की जासूसी करने तथा पकड़ने में सहायता करता है।

    9. बिजनेस रेप्युटेशन बढ़ाता है जिस प्रकार यह किसी बिजनेस के रेप्युटेशन को समाप्त कर सकता है, उसी प्रकार यह बिजनेस की सेल्स तथा रेप्युटेशन को दोगुनी मात्रा में बढ़ा भी सकता है। किसी कंपनी के बारे में पॉजिटिव कमेन्ट्स तथा शेयरिंग उनकी सेल्स तथा गुडविल बढ़ाने में सहायता कर सकती है। चूंकि लोग सोशल मीडिया पर कुछ भी शेयर करने के लिए स्वतंत्र हैं, इसलिए जब अच्छा कन्टेन्ट शेयर किया जाता है, तो यह पॉजिटिव रूप से प्रभावित हो सकता है।

    10. समुदाय बनाने में सहायता करता है: चूँकि विश्व में अलग-अलग धर्म तथा मान्यताएँ हैं, सोशल मीडिया अपने धर्म के समुदाय बनाने तथा उसमें भाग लेने में सहायता करता है और इसके बारे में डिस्कस तथा शेयर करने में भी सहायता करता है। इसी प्रकार, विभिन्न समुदायों के लोग सम्बन्धित कन्टेन्ट पर डिस्कस तथा शेयर करने के लिए जुड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, खेल प्रेमी, खेल समुदायों से जुड़ सकते हैं, कार प्रेमी कारों से सम्बन्धि समुदायों से जुड़ सकते हैं, आदि

    सोशल मीडिया की हानियाँ (Disadvantages of Social Media)

    1. साइबर बुलिंगः एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश बच्चे अतीत में साइबरबुलिंग का शिकार हो चुके हैं। चूँकि कोई भी फेक अकाउंट क्रिएट कर सकता है और बिना ट्रेस किए कुछ भी कर सकता है, इसलिए किसी के लिए भी इंटरनेट पर धमकाना या बुल करना काफी आसान हो गया है। समाज में बैचेनी तथा अराजकता पैदा करने के लिए जनता को धमकी, धमकी भरे मैसेजेस तथा अफवाहें भी भेजी जा सकती है।

    2. हैकिंग: पर्सनल डेटा तथा प्राइवेसी को आसानी से हैक किया जा सकता है और इंटरनेट पर शेयर किया जा सकता है, जिससे फाइनेंशियल तथा पर्सनल लाइफ को भारी नुकसान पहुँच सकता है। इसी प्रकार, आइडेन्टिटी की चोरी एक अन्य मुद्दा है, जो किसी के पर्सनल अकाउंट्स को हैक करके फाइनेन्शियल नुकसान पहुंचा सकता है। कई पर्सनल ट्विटर तथा फेसबुक अकाउंट्स पहले भी हैक कि जा चुके हैं, जिसके नुकसान गंभीर हुए हैं। यह सोशल मीडिया के खतरनाक नुकसानों में से एक है, और युजर को सलाह दी जाती है कि इस तरह की दुर्घटनाओं से बचने के लिए अपने पर्सनल हटा तथा अकाउंट्स को सुरक्षित रखें।

    3. एडिक्शन: सोशल मीडिया का एडिक्शन बहुत खराब है और पर्सनल लाइफ को भी अस्त-व्यस्त कर सकता है। सोशल मीडिया की लत से किशोर सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। वे बहुत बड़े पैमाने पर इसमें इन्वॉल्व हो जाते हैं और अंततः समाज से कट जाते हैं। यह व्यक्तिगत समय को भी बर्बाद कर सकता है, जिसका उपयोग प्रोडक्टिव टास्क्स तथा एक्टिविटीज द्वारा किया जा सकता था।

    4. फ्रॉड तथा स्कैम्सः ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं। सोशल मीडिया पर किए जाने वाले फ्रॉड तथा स्कैम्स की लम्बी-चौड़ी लिस्ट है, जिसके लाखों लोग प्रतिदिन शिकार होते है।

    5. सिक्योरिटी इशूजः आजकल सिक्योरिटी एजेन्सीज के पास लोगों के पर्सनल अकाउंट्स का एक्सेस होता है, जिससे प्राइवेसी लगभग खत्म हो जाती है। आप कभी नहीं जान सकते है कि कब किसी इन्वेस्टिगेशन आफिसर द्वारा किसी इशू पर आपका अकाउंट विजिट कर लिया गया हो, जिस विषय पर आपने गलती से या अनजाने में चर्चा की हो।

    6. रेप्युटेशनः सोशल मीडिया झूठी कहानी बनाकर और इसे फैलाकर किसी व्यक्ति विशेष की रेप्युटेशन आसानी से बर्बाद कर सकता है। इसी प्रकार, सोशल मीडिया खराब रेप्युटेशन के कारण बिजनेसेस को भी काफी नुकसान हो सकता। है।

    7. धोखाधड़ी तथा रिलेशनशिप इशूजः ज्यादातर लोग सोशल मीडिया का उपयोग शादी करने के उद्देश्य आदि से करते हैं। हालाँकि, कुछ समय बाद वे अपने फैसले को लेकर गलत साबित हो जाते हैं और अलग हो जाते हैं। इस प्रकार सोशल मीडिया के माध्यम से ठगी को जन्म दिया जाता है।

    8. हेल्थ इशूज: सोशल मीडिया के अधिक उपयोग से स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है। चूंकि एक्सरसाइज वजन करने की कुंजी है, लेकिन इसके विपरीत लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स का अत्यधिक उपयोग करने के कारण आलसी हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, उनके नियमित जीवन में अवस्थता आ जाती है।

    9. सोशल मीडिया मौत का कारण बन सकता है: केवल इसका उपयोग करना ही नहीं, बल्कि स्टंट्स तथा अन्य खतरनाक चीजों का पालन करके व्यक्ति मौत के घाट उतर सकता है, जो इंटरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया पर शेयर किया जाता है। उदाहरण के लिए, अनावश्यक स्टंट करने वाले बाइकर्स, दोनों के ऊपर से छलांग लगाने वाले लोग तथा इस प्रकार की अन्य खतरनाक चीजें। इस प्रकार के स्टंट किशोरों द्वारा अपना लिए जाते हैं, जिन्हें सफल लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर किया जाता है।

    10. ड्रग्स तथा एल्कोहल को ग्लैमराइज करता है: सोशल मीडिया के बड़े नुकसानों में से एक यह है कि लोग अमीर या ड्रग एडिक्टेड लोगों को फॉलो करना शुरू कर देते हैं और वेब पर अपने व्यूज तथा वीडियो शेयर करने लग जाते हैं, जो अंततः अन्य लोगों को भी इसे फॉलो करने को मजबूर कर देता है और वे भी इम्स तथा एल्कोहल से एडिक्ट हो जाते हैं।

  • Social Media kya hai?

    सोशल नेटवर्क / सोशल मीडिया (Social Network/Social Media)

    वैकल्पिक रूप से वर्चुअल कम्युनिटी या प्रोफाइल साइट भी कहा जाता है, एक सोशल नेटवर्क ऐसी वेबसाइट है, जो लोगों को बात करने, ऑइडियाज शेयर करने या नए दोस्ट बनाने के लिए एक साथ लाती है। इस प्रकार के कोलेबरेशन तथा शेयरिंग को सोशल मीडिया के रूप में जाना जाता है।

    ट्रेडिशनल मीडिया के विपरीत, जिसे दस लोगों से अधिक द्वारा नहीं बनाया जा सकता है, सोशल मीडिया साइट्स में सैकड़ों या लाखों लोगों द्वारा बनाया गया कन्टेन्ट होता है। अन्य शब्दों में, सोशल नेटवर्किंग दोस्तो, परिवार, कलीग्स, कस्टमर्स या क्लाइंट्स से जुड़े रहने के लिए इंटरनेट बेस्ड सोशल मीडिया साइट्स का उपयोग है। फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन और इंस्टाग्राम जैसी साइट्स के माध्यम से सोशल नेटवर्किंग का उद्देश्य सामाजिक बिजनेस या दोनों ही हो सकता है। कस्टमर्स को जोड़कर रखने के इच्छुक मार्केटर्स के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बन गया है।

    Bolt.com सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट को सन् 1996 में जेन माउंट और डेन पेल्सन द्वारा क्रिएट किया गया था।। हालांकि, इसे पहली सोशल मीडिया वेबसाइट नहीं माना जाता है, लेकिन तकनीकी रूप से इसे सबसे पहले क्रिएट किया गया था। इसे अधिकारिक तौर पर अक्टूबर 2008 में बंद कर दिया गया था। पहली सोशल मीडिया वेबसाइट sixDigrees.com को माना जाता है, जिसे सन् 1997 में एंड्रियू वेनरिच द्वारा क्रिएट किया गया था।

    सोशल नेटवर्क्स व्यक्तियों को अपने मित्रो तथा परिवार से जुड़े रहने में सहायता करते हैं और साथ ही यह इस बात का पता लगाने का आसान तरीका है कि आपके सोशल सर्कल में अन्य लोग क्या कर रहे हैं। मार्केटर्स ब्रांड की पहचान बढ़ाने और ब्रांड लॉयल्टी को प्रोत्साहित करने के लिए सोशल नेटवर्किंग का उपयोग करते हैं। चूंकि यह कंपनी को नए कस्टमर्स के लिए सुलभ तथा मौजूदा कस्टमर्स के लिए अधिक पहचानने योग्य बनाता है, इसलिए सोशल नेटवर्किंग एक ब्रांड की आवाज और कन्टेन्ट को प्रमोट करने में सहायता करती है।

    उदाहरण के लिए, एक फ्रिक्वेन्ट ट्विटर युजर पहली बार किसी कंपनी के बारे में न्यूज फीड के माध्यम से सुन सकता है और प्रोडक्ट या सर्विस खरीदने का निर्णय ले सकता है। किसी कंपनी के ब्रांड के प्रति जितने लोग उजागर होते हैं, नए कस्टमर्स को खोजने और बनाए रखने की संभावना उतनी ही अधिक होती है।

    मार्केटर्स कन्वर्शन रेट्स को इम्युव करने के लिए सोशल नेटवर्किंग का उपयोग करते हैं। इसका निर्माण नए तथा पुराने कस्टमर्स तक पहुँच और उनके साथ इन्टरेक्शन प्रदान करता है। सोशल मीडिया पर ब्लॉग पोस्ट्स, इमेजेस, वीडियोज या कमेन्ट्स शेयर करने पर फॉलोअर्स को रिएक्ट करने की अनुमति प्राप्त होती है। साथ ही वे कंपनी की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं और कस्टमर्स बन सकते है।

  • Digital Footprint ka Parichay aur Prakar kya hai?

    डिजिटल फुटप्रिंट का परिचय (Introduction to digital Footprint) डिजिटल फुटप्रिंट्स के प्रकार

    डिजिटल फुटप्रिंट वह डेटा है, जो युजर्स के ऑनलाइन होने के दौरान छुट जाता है। अन्य शब्दों में, डिजिटल फुटप्रिंट आपके बारे में इंटरनेट पर छोड़ी गई इन्फॉर्मेशन के टूकड़ों का बना होता है। वैकल्पिक रूप से, डिजिटल एक्जॉस्ट के रूप में भी जाना जाता है, डिजिटल फुटप्रिंट उन एक्टिविटीज का वर्णन करता है, जिन्हें ट्रेक किया जा सकता है, जब कोई व्यक्ति इंटरनेट या अन्य ऑनलाइन सर्विसेस जैसे सर्च इंजन का उपयोग करता है।

    वेबसाइट्स को ब्राउज करने के बाद हम जो डिजिटल फुटप्रिंट छोड़ देते हैं, उसे इंटरनेट फुटप्रिंट भी कहा जा सकता है। इन्हें आमतौर पर कुकीज के रूप में भी जाना जाता है। अधिकांश वेबसाइट्स आपको इन्हें एक्सेस करने से पहले कुकीज के उपयोग को स्वीकार करने के लिए कहती है, भले ही आप इसका अर्थ न जानते हों। यदि हम अनजाने में बहुत सारी इन्फॉर्मेशन छोड़ देते हैं, तो इसे अन्य लोगों द्वारा पैसिव या एक्टिव रूप से सर्च इंजन का उपयोग करके एक्सेस किया जा सकता है।

    यह एम्पलॉयर्स के लिए साइबर वेट प्रोस्पेक्टिव एम्प्लॉयीज के लिए उनकी ऑनलाइन एक्टिविटीज के आधार पर कॉमन होता जा रहा है। डिजिटल फुटप्रिंट्स का उपयोग पुलिस द्वारा व्यक्तियों के बारे में के लिए इन्फॉर्मेशन एकत्रित करने हेतु भी किया जा सकता है। पूछताछ करने में सहायता करने

    डिजिटल फ्रुटप्रिंट डेटा के एक डिजिटल कलेक्शन को संदर्भित करता है, जिसे आपके द्वारा पुनः ट्रेस किया जा सकता है।

    1. प्राइमरी इन्फॉर्मेशन सीधे शेयर की जाती है: प्राइमरी इन्फॉर्मेशन उस इन्फॉर्मेशन को संदर्भित करती है, जिसे आपने सर्विसेस को एक्सेस करने के लिए शेयर किया है या उदाहरण के लिए फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, ईमेल्स, फोन कॉल्स तथा चैट्स पर पोस्ट किया है । इसमें पर्सनल ऑइडेन्टिफाएबल, सेन्सिटिव या अन्य इन्फॉर्मेशन सम्मिलित है, जिसे आप सर्विसेस को एक्सेस करने के लिए शेयर करते हैं।

    2. सेकंडरी इन्फॉर्मेशन आपकी एक्टिविटीज के माध्यम से एकत्रित की जाती है: यह वह इन्फॉर्मेशन होती है, जिसे आप शेयर नहीं करते हैं। यह अक्सर आपकी ऑनलाइन एक्टिविटीज जैसे- ब्राउजिंग, पर्चेसिंग, वेबसाइट विजिट तथा सर्च से सम्बन्धित होती है। इसे आपकी जानकारी के बिना भी एकत्रित किया जा सकता है, जो अन्य लोगों द्वारा आपकी इन्फॉर्मेशन शेयर करने का परिणाम है।

    डिजिटल फुटप्रिंट्स के प्रकार (Types of Digital Footprints)

    मुख्य रूप से डिजिटल फुटप्रिंट के दो प्रकार होते हैं: एक्टिव तथा पैसिव। इनका वर्णन इस प्रकार किया गया है:

    1. पैसिव फुटप्रिंटः पैसिव फुटप्रिंट तब बनता है, जब युजर से बिना यह जाने कि यह क्या हो रहा है, इन्फॉर्मेशन एकत्रित कर ली जाती है। एक पैसिव डिजिटल फुटप्रिंट का सटिक उदाहरण यह हो सकता है कि युजर ऑनलाइन हो और उसकी इन्फॉर्मेशन ऑनलाइन डेटाबेस में स्टोर हो जाए। इसमें यह सम्मिलित हो सकता है कि फुटप्रिंट क्रिएट होते समय यह कहाँ से आया है, और साथ ही युजर का IP एड्रेस । फुटप्रिंट का आफलाइन एनालिसिस भी किया जा सकता है और इसे उन फाइल्स में स्टोर किया जा सकता है और इसे उन फाइल्स में स्टोर किया जा सकता है, जिन्हें एक एडमिनिस्ट्रेटर एक्सेस कर सकता है। इसमें इस बात की जानकारी भी सम्मिलित होगी कि उस मशीन का उपयोग किसलिए किया गया लेकिन इस बात की जानकारी नहीं हो सकती है कि इन एक्शन्स को किसके द्वारा परफॉर्म किया गया है।

    2. एक्टिव फुटप्रिंट: एक्टिव फ्रुटप्रिंट वह है, जहाँ युजर ने सोशल मीडिया साइट्स या वेबसाट्स का उपयोग करके जानबूझकर अपने बारे में इन्फॉर्मेशन शेयर की है। एक्टिव डिजिटल फुटप्रिंट का सटिक उदाहरण यह हो सकता है। कि यूजर ने किसी ऑनलाइन फॉरम या सोशल मीडिया साइट पर एडिटिंग या कमेन्ट करने के लिए लॉग इन किया हो। रजिस्टर्ड नाम पर प्रोफाइल को बनाई गई पोस्ट्स से लिंक किया जा सकता है और आपके द्वारा छोड़े गए ट्रेल्स से किसी व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ पता लगाना आश्चर्यजनक रूप से आसान है।

    एक ब्लॉग पब्लिश करना और सोशल मीडिया अपडेट्स पोस्ट करना आपके डिजिटल फुटप्रिंट का विस्तार करने का लोकप्रिय तरीका है। किसी व्यक्ति द्वारा ट्विटर पर पोस्ट किया जाने वाला प्रत्येक ट्विट, फेसबुक पर पब्लिश की जाने वाली प्रत्येक अपडेट तथा इंस्टाग्राम पर शेयर की जाने वाली प्रत्येक फोटो उसके डिजिटल फुटप्रिंट में योगदान देती है। युजर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स पर जितना समय व्यतीत करेगा, उसका डिजिटल फुटप्रिंट उतना ही बड़ा होगा। यहाँ तक कि किसी पेज या फेसबुक पोस्ट को लाइक करने से भी डिजिटल फुटप्रिंट एड हो जाता है, क्योंकि डेटा फेसबुक के सर्वर पर सेव होता है।

  • Digital Footprint kya hai?

    डिजिटल फुटप्रिंट (Digital Footprint)

    डिजिटल फुटप्रिंट डेटा की बॉडी है, जो ऑनलाइन एक्शन्स तथा कम्युनिकेशन्स के परिणाम के रूप में मौजूद होता है, जिसे किसी व्यक्ति द्वारा पुनः ट्रेस किया जा सकता है। डिजिटल फुटप्रिंटस कभी-कभी एक्टिव तथा पैसिव डेटा ट्रेसेस में विभाजित होते हैं।

    एक्टिव डेटा ट्रेसेस वे होते हैं, जिन्हें युजर जानबूझकर छोड़ देता है। फेसबुक, ट्विटर तथा ब्लॉग पोस्ट्स, सोशल नेटवर्क कनेक्शन्स, इमेज तथा वीडियो अपलोड्स, ईमेल, फोन कॉल्स तथा चैट्स ऐसे तरीके हैं, जिनसे व्यक्ति एक्टिव डिजिटल फुटप्रिंट्स क्रिएट करते हैं।

    पेसिव डेटा ट्रेसेस वे होते हैं, जो किसी व्यक्ति से जुड़े होते हैं और अन्य व्यक्ति द्वारा छोड़ दिए जाते हैं या कोई एक्टिविटी के माध्यम से एकत्र किए जाते हैं। इस डेटा का उपयोग यूजर बिना किसी उद्देश्य के कर लेता है। वेबसाइट विजिट तथा एक्शन, सर्च तथा ऑनलाइन पर्चेस उन एक्टिविटीज में से हैं, जो डिजिटल फुटप्रिंट में पेसिव डेटा ट्रेसेस को जोड़ती हैं।

    एक डिजिटल फुटप्रिंट अपेक्षाकृत स्थायी होता है और एक बार डेटा पब्लिक या सेमी पब्लिक होने के बाद, जैसा कि फेसबुक के केस में होता है, ऑनर का इस पर बहुत कम कंट्रोल होता है। वह यह तय नहीं कर सकता है कि दूसरों के द्वारा उसके डेटा का उपयोग किस प्रकार किया जाएगा। इस कारण, डिजिटल फुटप्रिंट मैनेजमेन्ट (DFM) का प्रमुख फोकस डेटा को कंट्रोल करने के लिए ऑनलाइन एक्टिविटीज के बारे में सावधानी है, जिसे पहले स्थान पर एकत्रित किया जा सकता है।