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  • Hard Disk Ki Kis Kshetra Mein Bhumika Hai?

    हार्ड डिस्क के कार्य करने के तरीके को जानने से पहले हम जानते है कि हार्ड डिस्क हमारे कम्प्यूटर सिस्टम के किन-किन क्षेत्रों (fields) में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ?

    हार्ड डिस्क आपके कम्प्यूटर सिस्टम के निम्नलिखित महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एक विशेष भूमिका अदा करता है ।

    1) परफॉरमेन्स (Performance)- हार्ड डिस्क संपूर्ण सिस्टम को परफारमेन्स में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

    पी0 सी0 के बूट होने की तथा प्रोग्राम के लोड होने की गति हार्ड डिस्क की गति से सीधे-सीधे संबंधित होता है।

    हार्ड डिस्क की परफॉरमेन्स तब अधिक महत्वपूर्ण होती है जब मल्टीटास्किंग प्रयोग की जा रही हो

    या जब डाटा का बड़ी मात्रा जैसे ग्राफिक्स कार्य, साउण्ड तथा विडियो संपादन (editing) या डाटाबेस कार्य को प्रोसेस किया जा रहा है|

    2) स्टोरेज क्षमता (Storage Capacity ) – यह विशिष्ट प्रकार का परफॉरमेंन्स है। हार्ड डिस्क जितनी बड़ी होगी उतने हो अधिक प्रोग्राम तथा डाटा आपके कंप्यूटर में स्टोर होंगे ।

    3) सॉफ्टवेयर सपोर्ट (Software Support )- नये सॉफ्टवेयर को ठीक तरह से लोड करने के लिए ज्यादा स्थान वाली तथा अधिक तेज हार्ड डिस्क की आवश्यकता होती है।

    एक समय था जब कुछ एम० बी० की हार्ड डिस्क ही पर्याप्त था। परन्तु आज के पी0सी0 में 40 जी०बी० की हार्ड डिस्क भी पुराने जमाने की हार्ड डिस्क लगती है

    तथा आधुनिक ऑपरेटिंग सिस्टम को लोड करने के लिए कई गोगाबाइट हार्ड डिस्क की न्यूनतम आवश्यकता होती है ।

    4) विश्वसनीयता (Reliability) – किसी हार्डवेयर आइटम के महत्व का आकलन करने के लिए यह पता लगाना ही पर्याप्त है कि इसके काम करना बंद करने के फलस्वरूप कितनी परेशानी हो सकती है।

    इस पैमाने पर कम्प्यूटर के किसी भी हार्डवेयर आइटम से अधिक महत्वपूर्ण डाटा हो सकता है।

    हार्डवेयर को बदला जा सकता है, परन्तु डाटा किसी भी परिस्थिति में नहीं बदला जा सकता है।

    अच्छे मेन्टेनेन्स तथा बैकअप प्रवृत्ति वाली अच्छी क्वालिटी का हार्ड डिस्क डाटा के नुकसान के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली भयावह स्थिति से हमें बचा सकती है।

  • Disk Kitne Prakaar Ki Hoti Hai?

    मैग्नेटिक डिस्क (Magnetic disk)

    मैग्नेटिक डिस्क एक अलग प्रकार की सिक्वेंशियल एक्सेस वालों स्टोरेज डिवाइस है

    परन्तु यह डायरेक्ट एक्सेस स्टोरेज के लिए भी काफी अच्छी है जो मैग्नेटिक टेप में सम्भव नहीं है। मैग्नेटिक डिस्क दो रूप में हो सकती हैं-

    1) हार्ड डिस्क (Hard disk)

    2) डिस्कंट अथवा फ्लॉपी डिस्क (Diskettes or Floppy disk)

    हार्ड डिस्क ड्राइव (Hard Disk Drive)

    हार्ड डिस्क ड्राइव (Hard Disk Drive) को हार्ड ड्राइव या हार्ड डिस्क के नाम से भी जानते हैं। यह एक स्थाई (non- Volatile) स्टोरेज डिवाइस होती है।

    हार्ड डिस्क ड्राइव पी सी का डाटा सेन्टर होती है। यहाँ आप विभिन्न अवसरों पर अपने डाटा तथा प्रोग्राम को स्टोर करते हैं।

    आपको हार्ड डिस्क विभिन्न प्रकार के स्थायी स्टोरेज माध्यमों (media) में सबसे महत्वपूर्ण है।

    अन्य स्थायी स्टोरेज माध्यम जैसे- फ्लॉपी डिस्क, सीडी रॉम, टेप स्थानांतरणीय (removable) होते है।

    हाई डिस्क अन्य से तीन प्रकार जैसे इनके आकार, गति तथा स्थायित्व के हिसाब से अलग होती है।

    हार्ड डिस्क ड्राइव वस्तुतः कम्प्यूटर में प्रयोग के लिए विकसित की गयी थी। आज हार्ड डिस्क ड्राइव के अनुप्रयोग कम्प्यूटर से आगे बढ़कर डिजिटल विडियो रिकॉर्डर (digital video recorders),

    डिजिटल ऑडियो प्लेयर्स (digital audio players), पर्सनल डिजिटल सहायक (personal digital assistants),

    डिजिटल कैमरा ( digital camerns), डिजिटल कनसोल (consoles) होने लगे हैं। समसंग (Samsung) तथा नोकिया (Nokia) के मोबाइल फोनों में भी हार्ड डिस्क के प्रयोग पाये जा सकते हैं।

    पिछले 20 वर्षों में हार्ड डिस्क की क्षमता में माइक्रोप्रोसेसर की तरह आश्चर्यजनक बदलाव आया है।

    पहले जहाँ 10 एम.बी. क्षमता के हार्ड डिस्क का मूल्य 6-7 हजार रुपये था वहीं अब 500 जी.बी. के हार्ड डिस्क खरीदने पर कीमत वही है।

    पॉकेट हार्ड डिस्क ड्राइव (Pocket Hard Disk Drive)

    पॉकेट हार्ड डिस्क ड्राइव फ्लैश ड्राइव का एक अद्भुत उच्च क्षमता वाला विकल्प है। न्यूनतम स्टोरेज क्षमता वाला पॉकेट हार्ड डिस्क ड्राइव भी कई फ्लैश ड्राइव के बराबर का डाटा स्टोरेज कर सकता है।

    यह पारम्परिक हार्ड डिस्क स्टोरेज की तरह ही होता है, परन्तु यह आकार में छोटा तथा पूर्णत: प्लग एण्ड प्ले उपकरण (device) होता है।

    इसमें यू.एस.बी. कनेक्शन की सुविधा होती है। आप इसे यू.एस.बी. में लगाकर काम शुरू कर सकते हैं।

    यद्यपि ये उपकरण फ्लैश ड्राइव से कुछ बड़े होते हैं इसके बावजूद डाटा को बड़ी मात्रा में स्टोर तथा स्थानांतरित (transfer) करने का एक सुविधाजनक तरीका है।

    200 गीगाबाइट तक की स्टोरेज क्षमता वाला पॉकेट हार्ड ड्राइव बाजार में इस पुस्तक के लिखे जाने के समय तक उपलब्ध हैं।

    पॉकेट हार्ड डिस्क ड्राइव की कार्यविधि पारम्परिक हार्ड डिस्क ड्राइव के समान ही होती है। इससे भी पारम्परिक हार्ड ड्राइव की तरह प्लैटर्स तथा घूमने वाले हेड्स होते हैं।

    यह चौक एक छोटे डिब्बे में पैक होता है। इसलिए इसमें फ्लैश आधारित प्रौद्योगिकी (technology) जैसे मिनी एस.डी. काईस, कॉम्पैक्ट फ्लैश तथा थम्ब ड्राइव्स की अपेक्षाकृत दुरूपयोग सहने की क्षमता (Tolerant of abuse) कम होती है।

  • Cartridge Tape Kya Hai?

    आइए इस खण्ड में यह पढ़ें कि कार्टेज टेप क्या है ? (What 1 is cartridge tape?)

    अधिकतर आधुनिक कार्टेज टेप रोल (reels) का प्रयोग करते हैं जो पुराने 10.5 इंच खुले रील (open reels) से बहुत छोटे होते हैं

    तथा टेप की सुरक्षा तथा संचालन में सहजता हेतु कार्टेज के अंदर लगे (fix) होते हैं।

    1970 के दशक के अंत तथा 1980 के शुरूआती दशक के घरेलू कम्प्युटरों में कॉम्पेक्ट कैसेट का प्रयोग होता था

    जिनकी कोडिंग कैन्सास सिटी स्टैण्डर्ड के आधार पर की जाती थी। आधुनिक कार्टेज फॉरमेट में एल. टी. ओ. (LTO), डी.एल.टी. (DLT) तथा डेट/डी. डी. सी. (DAT/DDC) होते हैं।

    टेप डिस्क का एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि इसकी लागत डिस्क की अपेक्षाकृत प्रत्येक बिट पर कम होती है।

    यद्यपि डिस्क ड्राइव को अपेक्षाकृत इसका वास्तविक घनत्व बहुत कम होता है, टेप पर उपलब्ध सतह (surface) बड़ी होती हैं।

    टेप की स्टोरेज क्षमता भी लगभग डिस्क की स्टोरेज क्षमता के समान होती है तथा दोनों की स्टोरेज क्षमता में एक साथ बढ़ोतरी भी हो रही है।

    टेप तथा डिस्क की लागत में बहुत बड़ा अंतर होता है। टेप डिस्क की अपेक्षा अत्यंत सस्ता होता है।

    यही कारण है कि बैकअप के उद्देश्य से टेप एक बेहतर उत्पाद (product) है तथा सस्ते बैकअप के साथ जहाँ स्थानांतरण की योग्यता वांछनीय हो तो इसका कोई जवाब नहीं है|

    परन्तु आज एक सामान्य कम्प्यूटर का जानकार शायद ही टेप के बारे में जानता हो या फिर बाजार में इसकी बहुत अधिक उपयोगिता बची हो।

    इसका कारण क्या है? डिस्क स्टोरेज के घनत्व तथा कीमत में सुधार (improvement) तथा टेप स्टोरेज में नयापन देने में असफलता जैसे कारणों ने इन उत्पादों के बाजार शेयर को बहुत कम कर दिया है।

  • Magnetic Tape Kya Hai?

    आइए, इस खण्ड में हम जानते हैं कि मैग्नेटिक टेप क्या है ? (What is a magnetic tape?)

    मैग्नेटिक टेप सेकण्डरी स्टोरेज डिवाइस है। इसमें मैग्नेटिक (magnetic) पदार्थ लेपित एक पतला फोता होता है।

    इस टेप का प्रयोग पुनाति तथा डिजिटल डाटा को स्टोर करने में होता है। यह पुराने दिनों के ऑडियों कैसेंट की तरह का होता है ।

    यह एक सिक्वेंशियल एक्सेस मीडिया है तथा इसमें डाटा तुरंत लोकेट नहीं किया जा सकता है। मैग्नेटिक टेप का प्रयोग मुख्य रूप से बड़ी में डाटा स्टोरेज में होता है ।

    आज भी इसका प्रयोग संगठनों में डाटा बैकअप के उद्देश्य से किया जाता है। इसके सकारात्मक तथा नकारात्मक पहलू इस प्रकार हैं

    सकारात्मक पहलू (Positive Aspects)

    1) मैग्नेटिक टेप अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं।

    2) मैग्नेटिक टेप का प्रयोग बड़ी मात्रा में डाटा को स्टार करने में किया जा सकता है।

    3) यह विश्वसनीय, टिकाउ एवं स्थानांतरणीय होता है अतः इसका प्रयोग महत्वपूर्ण डाटा का बैकअप लेने में किया के सकता है ।

    नकारात्मक पहलू (Negative Aspects)

    1) इसमें डाटा एक्सेस की विधि सिक्वेन्शियल होती है अतः किसी विशेष डाटा को प्राप्त करने के लिए कर ही जाना पड़ता है।

    2) इसकी गति धीमी होती है। इसमें डाटा में संशोधन करना, डाटा सर्च करना इत्यादि समय लेने वाला होता है|

  • DIMM Kya Hai?

    सीम्म के बारे में आप जान चुके हैं। आइए अब हम जानते हैं कि डीम्म क्या है ? (What is DIMM?) डीम् (DIMM) का पूर्ण रूप अनलाइन मेमोरी मॉड्यूल (Dual to line Memory Module) होता है।

    इसमें रेण्डम एक्सरस मेमोरी इंटिग्रेटिड सर्किट को एक श्रृंखला (series) शामिल होती है। ये मॉड्यूल (modules) एक सर्किट बोर्ड पर छपे हुए होते हैं

    तथा पर्सनल कम्प्यूटरों में उपयोग के लिए डिजायन किये जाते हैं। सीम्म तथा डीम्म में मुख्य अंतर यह है कि सीम्म में 32 बिट डाटा पाथ (data path) होते हैं

    जबकि डीम्म में 64-बिट का डाटा पाथ (data path) होते हैं। चूंकि इण्टेल पेण्टियम में 64 बिट की चौड़ाई होती है

    इसमें उन्हें प्रयोग करने के लिए इस सीम्म को एक समान जोड़ों में इन्स्टॉल करने की आवश्यकता होती थी। प्रोसेसर फिर दो को साथ-साथ एक्सेस करते हैं।

    डोम्म का परिचय इसी कमजोरी को समाप्त करने के लिए हुआ था। दूसरा अन्तर यह है

    कि डीम्स में मॉडयूल के प्रत्येक छोर पर अलग अलग विद्युतीय सम्पर्क (electrical contacts) होते हैं जबकि सोम्म (SIMMs) पर कॉन्टैक्ट्स (contacts) दोनों ओर अनावश्यक (redundant) होते हैं।

  • SIMM kya hai?

    आइए अब हम जानते हैं कि सीम्म क्या हैं ? (What is SIMM?) सीम्म (SIMM) को सिंगल इनलाइन मेमोरी मॉड्यूल (Single In-line Memory Module) कहा जाता है।

    यह एक प्रकार का मेमोरी मॉडयूल है जिसे पर्सनल कम्प्यूटरों में रैण्डम एक्सेस मेमोरी के लिए प्रयोग किया जाता है।

    अधिकतर पुराने पर्सनल कम्प्यूटरों के मदरबोर्ड जैसे 8088 आधारित पी.सी. तथा एक्स.टी. में सॉकेट युक्त (socketed) डी.आई.पी. चिप (DIP chips) का प्रयोग होता था।

    80286 आधारित कम्प्यूटर के आगमन के बाद जिसमें अधिक मेमोरी का प्रयोग हो सकता था, मेमोरी मॉडयूल को मदरबोर्ड पर जगह बचाने तथा मेमोरी विस्तार को आसान बनाने के उद्देश्य से विकसित किया गया ।

    8 या 9 सिंगल डीरैम डीप चिप्स (Single DRAM DIP chips) को प्लग करने के बजाय एक अतिरिक्त मेमोरी मॉडयूल ही कम्प्यूटर की मेमोरी को बढ़ाने के लिए काफी था।

    कुछ 80286 आधारित कम्प्यूटरों में (अक्सर नॉन-स्टैण्डर्ड) सोप्प अर्थात् सिंगल इनलाइन पिन पैकेज (Single In-line Pin Package) जैसे मेमोरी मॉडयूल का प्रयोग होता था।

    30 पिन वाला सोप्प (SIPP) प्राय: इन्स्टॉलेशन के दौरान मुड़ जाता या टूट जाता था अतः उन्हें तत्काल सीम्म (SIMM) के द्वारा बदला गया जिसमें पिन के स्थान पर प्लेट्स (plates) का प्रयोग होता था।

    सबसे पहला SIMM 1980 के मध्य में PS/2 पर नजर आया था जिसे स्किप कॉपोला (Skip Coppola) ने प्रस्तावित किया था जो उस समय आई.बी.एम. में थे।

    इसके कारण उस समय की कई समस्याओं का समाधान हुआ। उदाहरणस्वरूप मदरबोर्ड पर सौम्म कम जगह लेते थे।

    सोम्मस् (SIMMS) के पहले प्रकार में बोस पिन होती थीं तथा 8 बिट डाटा (पॅरिटी वर्जन्स में 9 बिट्स) प्रदान करते थे।

    अतः सिस्टम जिसमें 300 पिन सीम्म को आवश्यकता होती थी को 4 के सेटों में इन्स्टॉल (install) करना होता था।

    सीम्मस (SIMMs) के दूसरे प्रकार में 72 पिनें होती थी तथा 32 बिट डाटा (पैरिटी वर्जन्स में 36 बिट) प्रदान करते थे।

    1997 के करीब 72 पिन सीम्म ने 30 पिन सीम्म को प्रतिस्थापित कर दिया। मेमोरी मॉडयूल तथा कुछ प्रोसेसर्स के अलग-अलग डाटा बस की चौड़ाई के कारण कभी-कभी कई मॉडयूल को मेमोरी बैंक (memory bank) को भरने हेतु समान जोड़ों या चार के समान जोड़ों में इन्स्टॉल (install) किया जाता है।

    उदाहरणार्थ, 80386 या 80486 सिस्टम्स (32 बिट चौड़ाई वाले डाटा बस) में या तो 300-पिन के सीम्म अथवा 72 पिन के सीम्म की आवश्यकता होती है।

    पहले के सीम्म सॉकेट पारम्परिक पुश-टाइप ( push-type) सॉकेट होते थे। इनकी जल्दी ही जिफ (ZIF) अर्थात् जीरो इंसर्शन फोर्स (Zero Insertion Force) सॉकटों (sockets) ने प्रतिस्थापित कर दिया

    जिसमें सीम्म का प्रविष्ट कर तब तक घुमाया जाता जब तक कि यह अपनी जगह पर पूरी तरह फिट नहीं हो जाता।

    सीम्म को इन्स्टॉल करने के लिए मॉड्यूल को सर्किट में एक कोण पर स्थित किया जाता है तथा उसे उसी स्थिति में घुमाया जाता है।

    उसे हटाने के लिए दो धातु अथवा प्लास्टिक के क्लिपों (clips) को प्रत्येक छोर पर उसी और खींचा जाता है ।

    फिर सोम्म को पीछे झुकाकर बाहर निकाला जाता है। पहले के सॉकेटों में प्लास्टिक रिटेनर क्लिप (retainer clips) का प्रयोग होता था

    जो अक्सर टूट जाता था। अतः स्टील के क्लिप प्रयोग में आने लगे। 30 पिन सीम्म के 256 किलोबाइट, 1 मेगाबाइट, 4 मेगाबाइट, 16 मेगाबाइट मानक आकार (standard size) उपलब्ध हैं

    वहीं सीम्म पिन के साथ सीम्म 1, 2, 4, 16, 32, 64, 1280 मेगाबाइट में उपलब्ध हैं।

  • Cache Memory Kya Hai?

    आइए इस खण्ड में हम यह जानते हैं कि कैशे मेमोरी क्या है ? इसके विभिन्न प्रकार क्या हैं ?

    (What is cache memory ?What are its different kinds?)

    कैश मेमारी उच्च गति वाली मेमोरी होता है जो कम्प्यूटर में सी.पी.यू. तथा रैम (RAM) के मध्य स्थित होती है।

    कैशे मैमारी उस प्रकार के डाटा तथा निर्देशों को स्टोर करती है जिनकी आवश्यकता सी.पी.यू. को बार-बार पड़ती है।

    सी.पी.यू. कैश मेमोरी से डाटा या निर्देश की रैम तथा डिस्क की अपेक्षाकृत अधिक शीघ्रता के साथ प्राप्तःकर सकता है। इन दिनों कम्प्यूटर में 256 512 तथा 1024 KB कैशे मैमोरी उपलब्ध है।

    कैशे मेमोरी के प्रकार (Kinds of Cache Memory)

    L1. L2 और L3 कैश मेमोरी के प्रकार हैं

    1) L1 कैशे- L1 कैशे को ऑन बोर्ड अथवा प्राइमरी कैशे के नाम से भी जाना जाता है, जो सी. पी. यू. में निर्मित (in built) होता है।

    L1 कैसे साइज में बहुत छोटी होती हैं। ज्यादातर कम्प्यूटर में यह 16 KB की होती है, (यद्यपि यह बहुत तेजी से बदल रही है) परन्तु यह बहुत तीव्र होती है।

    2) L.2 कैशे- L2 कैश को बाह्य (External) अथवा सेकण्डरी कैशे (Secondary Cache) के नाम से भी जाना जाता है।

    यह एक अलग चिप में निर्मित होती है। परन्तु यह परम्परागत ममारी (conventional memory) से अधिक तेज होती है।

    यह मदरबोर्ड की स्पीड की परिसीमा का कारण नहीं होती क्योंकि L.2 कैशे की रेंज 128 KB – 1 MB तक होती हैं।

    3) L.3 कैशे- इसका प्रयोग सामान्यतः नहीं किया जाता है। यह कैशे मदरबोर्ड पर ही जोड़ी जाती है । इस कैशे का प्रयोग उच्च क्षमता वाले कम्प्यूटरों के लिए किया जाता है।

    सभी कम्प्यूटरों के लिए L.3 कैसे आवश्यक नहीं है L1. L2 तथा L3 तीनों ही सी० पी० यू० एक्जिक्यूशन स्पीड को तेज़ करती है।

    हालांकि तीनों अलग-अलग तरह से सी०पी०यू० की मदद करती हैं। L1 एक्जिक्यूट हो रहे निर्देशों को रखती है । L2 संभावित आगामी निर्देशों को रखती है तथा L3 सभी संभव निर्देशों को रखती है ।

  • RAM & ROM mein Antar Kya Hai?

    रेम अर्थात रैण्डम एक्सेस मेमोरी तथा राम अर्थात रोड ओनला मेमारी दोनों हो प्राइमरी मेमोरी की श्रेणी में आते हैं।

    जब दोनों हो प्राइमरी मेमोरी हैं तो क्या उसमें अंतर नहीं होंगे। अवश्य होंगे। तो आइए जान कि रेम और रोम में क्या अन्तर है ?

    रैम और रोम में कई प्रमुख अंतर हैं जिनकी जानकारी हर कम्प्यूटर जानने वाले की होनी चाहिए। सारणी 6.2 में हमने इन दोनों के मध्य प्रमुख अंतरों को स्पष्ट किया है।

    रैण्डम एक्सेस मेमोरी

    1) यह कम्प्यूटर को अस्थाई (temporary) मेमोरी है।

    2) इसमें डाटा बार-बार लिखत तथा मिटाते रहते हैं।

    3) कम्प्यूटर में पावर चले जाने पर या किसी भी स्थिति में कम्प्यूटर बंद हो जाने पर स्टोर किया गया डाटा नष्ट हो जाता है।

    4) यह कई स्टोरेज क्षमताओं में होता है।

    5) इसका कार्य कम्प्यूटर के ऑन होने के बाद शुरू होता है।।

    रीड ओनली मेमोरी

    1) यह कम्प्यूटर की स्थाई ( permanent) मेमोरी है।

    2) इसमें डाटा निर्माता के द्वारा ही लिखा होता है।

    3) इसमें स्टोर डाटा किसी भी स्थिति में नष्ट नहीं होता है।

    4) इसका स्टोरेज क्षमता से कोई लेना देना नहीं होता है।

    5) इसका कार्य कम्प्यूटर को ऑन करने में होता है।

  • Read Only Memory Kya Hai?

    ROM का पूरा नाम रोड ऑनली मेमोरी (Read Only Memory) है। यह स्थाई (Permanent) मेमोरी होती है

    जिसमें कम्प्यूटर के निर्माण के समय प्रोग्राम स्टोर कर दिये जाते हैं। इस मेमोरी में स्टोर किये गये प्रोग्राम परिवर्तित और नष्ट नहीं किये जा सकते है|

    उन्हें केवल पढ़ा (read) जा सकता है। इसलिये यह मेमोरी, रोड ऑनली मेमोरी (Read Only Memory) कहलाती है।

    कम्प्यूटर का स्विच ऑफ (Off) करने के बाद भी रोम (ROM) में स्टोर किये गये अवयव (contents) नष्ट नहीं होते हैं।

    अत: रोम नॉन-वोलेटाइल (Non- Volatile ) या स्थाई स्टोरेज माध्यम कहलाता है। इसमें कम्प्यूटर की बनावट के अनुसार प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर स्टोर रहते हैं।

    रोम के विभिन्न प्रकार होते हैं जो निम्नलिखित है|

    1) प्रोम (PROM Programmable Read Only Memory )

    2) इप्रोम (EPROM Erasable Programmnable Read Only Memory)

    3) इ-इप्रोम ( EEPROM Electrical Erasable Programmable Read Only Memory)

    1)प्रोग्रामैबल रीड ऑनली मेमोरी (Programmable Read Only Memory)

    PROM ऐसा रोम (ROM) होता है जिसके कन्टेन्ट्स को संशोधित (alter) नहीं किया जा सकता।

    इन्हें विशेष आवश्यकताओं (needs) को पूरा करने के लिए बनायी जाती है तथा यह किसी में लिखे गये High Level Language एप्लीकेशन प्रोग्राम की अपेक्षा अधिक तेजी से ऑपरेट होने की क्षमता रखती है

    2) इरेजेबल प्रोग्रामैबल रोड ऑनली मेमोरी (Erasable Programmable Read Only Memory)

    इसे संक्षेप में इप्रोम कहते हैं। यह प्रोम के समान ही होता है, लेकिन इसमें स्टोर प्रोग्राम पराबैगनी किरणों (Ultraviolet rays) की उपस्थिति में मिटाये जा सकते हैं और नये प्रोग्राम स्टोर किये जा सकते हैं।

    3) इ-इप्रोम ( EEPROM Electrical Erasable Programmable Read Only Memory)

    एक नई तकनीक इ-इप्रोम (EEPROM) भी है। जिसमें मेमोरी से प्रोग्राम को विद्युतीय विधि (electric current) से मिटाया जा सकता है।

  • Random Access Memory Kya Hai?

    रैम या रैण्डम एक्सेस मेमोरी (Random Access Memory) कम्प्यूटर की अम्बाई मेमारी होती है।

    की बोर्ड या अन्य किसी इनपुट डिवाइस से इनपुट किया गया डाटा, प्रोसेसिंग से पहले रैम (RAM) में ही स्टोर किया जाता है

    और सी. पी. यू. द्वारा आवश्यकतानुसार वहाँ से एक्सेस किया जाता है। रेम में डाटा या प्रोग्राम अस्थाई रूप से स्टोर रहते हैं।

    कम्प्यूटर बन्द हो जाने या विद्युत बाधित हो जाने पर रैम (RAM) में स्टोर डाटा मिट जाता है। इसलिये रैम को वोलेटाइल (Volatile) या अस्थाई मेमोरी भी कहते हैं।

    रैम (RAM) की क्षमता या आकार (Size) विभिन्न प्रकार के होते हैं। जैसे 4 MB 8 MB, 16 MB, 32 MB, 64 MB, 128 MB, 256 MB आदि।

    पर्सनल कम्प्यूटर में कई प्रकार के रैम प्रयुक्त किए जाते हैं। ये निम्न प्रकार हैं-

    1) डायनैमिक रैम (Dynamic RAM)

    2) सिन्क्रोनस डीरैम (Synchronous DRAM)

    3) स्टैटिक रैम (Static RAM)1)

    1) डायनैमिक रैम (Dynamic RAM)

    डायनैमिक रैम को संक्षिप्त रूप में डीरम (DRAM) बोला जाता है। रैम में सबसे अधिक साधारण (common) डीरैम है

    तथा इसे जल्दी-जल्दी रिफ्रेश करने की आवश्यकता पड़ती है। रिफ्रेश का अर्थ यहाँ पर चिप को विद्युत आवेशित (recharging the chip with electricity) करना होता है।

    यह एक सेकण्ड में लगभग हजारों बार रिफ्रेश होता है तथा प्रत्येक बार रिफ्रेश होने के उपरान्त यह पहले की विषय वस्तु (contents) को मिटा देता है।

    इसके जल्दी-जल्दी रिफ्रेश होने के लक्षण के कारण यह दूसरे रैम की अपेक्षा मन्द गति का है।

    2) सिन्क्रोनस डीरैम (Synchronous DRAM)

    इस प्रकार का चिप सामान्य डॉरम की अपेक्षा ज्यादा तेज है। इसकी तेज गति का कारण यह है कि यह सी.पी.यू. की क्लॉक की गति के अनुसार चलता है।

    अतः इस कारण यह दूसरे डीरैम की अपेक्षा डाटा को तेजी से स्थानांतरित कराता है।

    3) स्टैटिक रैम (Static RAM)

    स्टैटिक रैम कम रिफ्रेश होता है, फलस्वरूप यह डाटा को डॉरम को अपेक्षा अधिक समय तक रखता है। सभी प्रकार के रैम अस्थाई (volatile) हैं

    परन्तु डोरेम की अपेक्षा एस-रैम (SRAM) अधिक तेज तथा महँगा होता है। इनका प्रयोग विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटरों के लिए किया जाता है।