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  • CRT VS LCD Main Antar Kya Hai?

    सॉ० आर० टी० तथा एल० सी० डी० में रूप, आकार, कीमत, कार्यप्रणाली का बहुत बड़ा अंतर है।

    आज डेस्कटॉप कम्प्यूटर के साथ भी सी० आर०टी० का उपयोग कम होता जा रहा है तथा एल० सी० डी० इसकी जगह ले रहा है।

    सी० आर० टी० और एल० सी० डी० मॉनीटर के कार्यप्रणाली भी भिन्न है। एल० सी० डी० मानीटर में पतले पोलराइन्ड शीट्स के बीच लिक्विड क्रिस्टल होत हैं।

    लिक्विड क्रिस्टल लिक्विड चारकोल्स होते हैं। इसके कारण एल० सी० डी० अपेक्षाकृत पतले तथा सी० आर० टी० के मुकाबले में अधिक हल्के होते हैं।

    एल० सी० डी० सी०आर० टी० के मुकाबले मात्र एक तिहाई हो कर्जा (power) लेते हैं तथा सी० आर० टी० के मुकाबले इससे कम विकिरण निकलती है।

    फलस्वरूप आँखों में तनाव कम होती है। एल० सी० डी० मॉनीटर की एक कमी भी है। यह केवल 160 डिग्री पर ही दिखता है। इसलिए दूसरी ओर से यह स्पष्ट नहीं दिख जाता है।

  • Monitor Kya Hai?

    आइए इस सेक्शन में जानते हैं कि मॉनीटर क्या है? रंगों के आधार पर मॉनीटर कितने प्रकार का हो सकता है ?

    What is a monitor ? How many types there can be of monitor on the basis of colours?)

    मॉनीटर कम्प्यूटर की प्राथमिक आउटपुट डिवाइस है। यह एक ऐसी आउटपुट डिवाइस है|

    जो टी.वी. जैसी स्कीन पर आउटपुट को प्रदर्शित करती है। मॉनीटर को सामान्यतः उनके द्वारा प्रदर्शित रंगों के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है|

    (a) मोनोक्रोम (Monochrome) – यह शब्द दो शब्दों मोनो (Mono) अर्थात एकल (Single) तथा क्रोम (Chrome)

    अर्थात रंग (Color) से मिलकर बना है। इस प्रकार के मॉनीटर आउटपुट को श्वेत-श्याम (Black & White) रूप में प्रदर्शित करते हैं।

    (b) ग्रे स्केल (Gray-Scale)- मॉनीटर विशेष प्रकार के मोनोक्रोम मॉनीटर होते हैं जो विभिन्न ग्रे शेडस (Gray Shades) में आउटपुट प्रदर्शित करते हैं।

    इस प्रकार के मॉनीटर अधिकतर हैन्डी कम्प्यूटर जैसे लैपटॉप में प्रयुक्त किये जाते हैं।

    (c) रंगीन मॉनीटर (Color Monitors) – ऐसा मॉनीटर RGB (Red Blue-Green ) विकिरणों ( radiations) के समायोजन के रूप में आउटपुट को प्रदर्शित करता है।

    RGB कॉन्सेप्ट (concept) के कारण ऐसे मॉनीटर उच्च रेजोलूशन (resolution) में ग्राफिक्स को प्रदर्शित करने में सक्षम होते हैं।

    कम्प्यूटर मेमोरी की क्षमतानुसार ऐसे मॉनीटर 16 से लेकर 16 लाख तक के रंगों में आउटपुट प्रदर्शित करने की क्षमता रखते हैं।

    सी. आर. टी. मॉनीटर (CRT Monitor)

    अधिकतर मॉनीटर्स में पिक्चर ट्यूब एलीमेन्ट (Picture Tube Element) होता है जो टी.वी. सेट के समान होता है।

    यह दुयूब सी. आर. टी. (Cathode Ray Tube) कहलाती है। सी. आर. टी. तकनीक सस्ती और उत्तम रंगीन आउटपुट देने में सक्षम है।

    सी. आर. टी. मॉनीटर कार्यप्रणाली (CRT Mechanism )

    CRT तकनीक रास्टर ग्राफिक्स (raster graphics) के सिद्धान्त पर कार्य करती है। पिक्चर ट्यूब (Picture tube) में से

    वायु निकालकर निर्वात कर लिया जाता है। मोनोक्रोम मॉनीटर में इसकी समतल सतह (plane surface) की ओर इलेक्ट्रॉन की पतली पुंज (beam) छोड़ो जाती है।

    समतल सतह के आन्तरिक पृष्ठ (face) पर फास्फोरस का लेपन (coating) होता है जो उच्च गति के इलेक्ट्रॉन के टकराव से प्रकाश उत्सर्जित करता है

    जिससे एक पिक्सेल (pixel) चमकता है। यह संभव है कि इस प्रकार के मॉनीटर में अनेक इलेक्ट्रॉन एक ही बिन्दु पर आघात करके फॉस्फोरस को जला सकते हैं|

    इसलिए इलेक्ट्रॉन पुंज (beam) Z आकृति में गमन करता हुआ सम्पूर्ण स्क्रीन पर पिक्सल्स को सक्रिय (activate) करता है।

    इलेक्ट्रॉन पुंज की Z-आकृति की यह गति रास्टर (raster) कहलाती है| पिक्चर ट्यूब को दूसरी सतह जिसे नेक (neck) कहते हैं|

    इलेक्ट्रॉन को चुम्बकीय क्षेत्र (magnetic field) के नियंत्रण में दिशा देते हुए भेजती है। जब एक पिक्सेल (pixel) क्षण भर के लिए चमककर निष्क्रिय होता है

    तो इसे रिफ्रेश (refresh) कहते हैं। बार-बार इसके रिफ्रेश (refresh) होने की दर, रिफ्रेश दर (refresh rate) कहलाती है जो प्रायः 30 बार प्रति सैकण्ड होती है।

    यदि रिफ्रेश दर (refresh rate) कम होगी तो पिक्चर ट्यूब हिलती या लहराती हुई दिखाई देगी क्योंकि फॉस्फोरस

    (फॉस्फोरस के कण) अपनी दीप्ति (glow) जल्दी-जल्दी खोता है। प्रत्येक पिक्सेल की चमक (luminescence) इलेक्ट्रॉन पुंज (Beam) की तीव्रता पर भी निर्भर करती है|

    जो इलेक्ट्रॉन गन (Electron Gun) के वोल्टेज पर निर्भर करती है। यह वोल्टेज नियंत्रित भी किया जा सकता है।

    डिजिटल मॉनीटर्स में वोल्टेज की उपस्थिति और अनुपस्थिति पिक्सेल को ऑन (On) और ऑफ (Off) करती है। अत्याधुनिक मॉनीटर जिन्हें एनालॉग मॉनीटर (Analog Monitor) कहते हैं

    प्रत्येक पिक्सेल की स्पष्टता (Brightness) को इलेक्ट्रॉन की निरंतर पुंज (Beam) से नियंत्रित किया जा सकता है।

    मोनोक्रोम मॉनीटर की CRT में यह तकनीक ग्रे स्केल (Gray Scale) प्रभाव (effect) उत्पन्न करती है।

    कलर मॉनीटर की CRT में यह तकनीक डिजिटल मॉनीटर की तुलना में अधिक संख्या में रंगों (Colours) की सुविधा प्रदान करती है।

    रंगीन मॉनीटर की CRT में अनेक अतिरिक्त भाग जोड़े जाते हैं। जैसे एक इलेक्ट्रॉनिक गन के स्थान पर तीन इलेक्ट्रॉनिक गन होती हैं

    जो लाल, हरे और नीले (RGB) रंग के लिए अलग-अलग लगायी जाती हैं। इसकी अन्दर की सतह (internal side) पर फॉस्फोरस की ट्रिपल कोटिंग (coating) होती है

    जिससे कि एक पिक्सल तीन रंगों को उत्सर्जित (emit) कर सके। लाल, हरे और नीले रंग के अलावा अन्य रंग और उनकी आभा व छाया (Tint and Shades) इलेक्ट्रॉन पुंज की तीव्रता को घटा-बढ़ा कर पैदा की जाती है।

    फ्लैट पैनल मॉनीटर (Flat Panel Monitor)

    सी. आर. टी. तकनीक के स्थान पर मॉनीटर और डिस्प्ले डिवाइसेज को नई तकनीक विकसित की गई हैं

    जिनमें आवेशित रासायनिक गैसों (charged chemical gases) को कांच की प्लेटों के मध्य संयोजित किया जाता है।

    ये पतली डिस्प्ले डिवाइसेज फ्लैट पैनल डिस्प्ले (Flat-Panel display) कहलाती है। ये डिवाइसेज वजन में हल्की और विद्युत की कम खपत करने वाली होती हैं।

    ये डिवाइसेज लैपटॉप (Laptop) कम्प्यूटरों में लगाई जाती हैं। फ्लैट पैनल डिस्प्ले में लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले (Liquid Crystal Display – LCD) तकनीक होती है।

    LCD में CRT तकनीक को तुलना में रिजोलूशन (Resolution) कम होता है जिससे आउटपुट स्पष्ट नहीं आता है।

    दो अन्य फ्लॅट-पैनल तकनीकों के नाम गैस प्लाज्मा डिस्प्ले (Gas Plasma Display-GPD) और इलेक्ट्रोल्यूमिनेसेन्ट डिस्प्ले (Electroluminescent Display – EL) हैं।

    GPD और BL तकनीक में LCD की तुलना में अच्छा रिजोलुशन होता है, लेकिन अभी यह तकनीक महँगी है।

    लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले (Liquid Crystal Display)

    सी० आर० टी० मॉनीटर बिल्कुल आपको टेलिविजन की तरह हुआ करता था। प्रौद्योगिकी के विकास के साथ मॉनीटर में भी अपने रूप बदले और आज सी० आर०टी० मॉनीटर के बदले एल सी डो० मॉनीटर प्रचलन में आ गये।

    एल०सी० डी० मॉनीटर बहुत ही आकर्षक होता है। आइए इस खण्ड में यह जानते है कि एल सी डी मॉनीटर क्या है ?

    इसकी विभिन्न विशेषताएँ तथा कमियाँ क्या है ? यह कार्य कैसे करता है ? लिक्विड क्रिस्टल डिस्ले को बेहतर रूप से इसके संक्षिप्त रूप एल.सी.डी. से जानते हैं।

    यह डिजिटल प्रौद्योगिकी है जो एक फ्लैट सर्फेस पर लिखिफाइड क्रिस्टल के माध्यम से आकृति बनाता है। यह कम जगह लेता है।

    यह कम ऊर्जा खपत करता है तथा पारम्परिक कैथोड र ट्यूब मॉनीटर की अपेक्षाकृत कम गर्मी पैदा करता है।

    लिपिड क्रिस्टल डिस्प्ले वर्षों से लैपटॉप की स्क्रीन के रूप में प्रयोग होता रहा है। अब यह स्कीन डेस्कटॉप कम्यूटर के लिए भी प्रयोग हो रही है।

    एल०सी०डी० के सी. आर. टी. मॉनिटर के मुकाबले में कई फायदे हैं। ये किस्स टेक्स्ट प्रस्तुत करते हैं। यह आमतौर पर दस से भी कम मोटा होता है।

    इसकी एक या दो महत्वपूर्ण कमियाँ भी है। एल.सी.डी. मॉनीटर के रंग के क्वालिटी को तूलना सी.आर.टी. से नहीं की जा सकती है

    सी.आर.टी. के मुकाबले इसकी कीमत लगभग ढाई गुणा अधिक होती है। 1888 में खोजा गया लिक्विड क्रिस्टल द्रवीय रसायन (liquified chemicals) होते हैं

    जिनके कणों को इलेक्ट्रिकल फोल्डस के अंदर सही से अलाइन किया जा सकता है। यह ठीक उसी प्रकार होता है

    जिस प्रकार चुम्बकीय फील्ड में आने के बाद धातु के कण कतारबद्ध हो जाते हैं। कणों के ठीक से अलाइन हो जाने के पश्चात कि क्रिस्टल की सहायता से इनके मध्य प्रकाश गमन करता है।

    लेपटॉप या डेस्कटॉप पर एल० सी०डी० स्क्रीन मल्टीलेअर्ड एक तरफ से ऊँचा करते हुए सैनविज् (sandwich) होती है।

    एक प्रतिदीप्त (fluorescent) प्रकाश स्रोत जिसे बैकलाइट (backlight) कहा जाता है सबसे पहली परत (first layes) का निर्माण करता है।

    प्रकाश पहले दो पोलराइजिंग फिल्टर्स (polarizing filters) के बीच उसके बाद पोलराइन्द्र प्रकाश एक परत से गुरजता है

    जिसमें हजारों निचिट क्रिस्टल गुजरता है। की बहुत ही गाढी बूँदें (concentrated drops) छोटे छोटे सेलों में प्रदर्शित होती हैं।

    फिर वही सेल स्क्रीन पर पंक्तियों के रूप में प्रदर्शित होते हैं। एक या अधिक सेलों से मिलकर पिक्सेल बनता है।

    पिक्सेल डिस्प्ले पर सबसे छोटा दिखने वाला बिन्दु होता है। एल० सी० डी० के किनारे के विद्युत तार इलेक्ट्रीक फील्ड पैदा करते हैं

    जो क्रिस्टल कण को मोड़कर दूसरे पोलराइजिंग फिल्टर के प्रकाश को कतारबद्ध कर इसे पास होने देता है।

    कभी-कभी एक या अधिक पिक्सेल को विद्युत धारा भेज रही मेकनिज्म विफल होने की स्थिति में बिल्कुल काला पिक्सेल मॉनीटर पर नजर आता है।

    करीब-करीब सभी नोटबुक तथा डेस्कटॉप के रंगीन एल. सी. डी. (LCD) में एक पतला फिल्म ट्राजिस्टर जिसे एक्टिव मैट्रिक्स (active matrix) भी कहते हैं

    का इस्तमाल प्रत्येक सल को सक्रिय (active) करने के लिए होता है। टी एफ टी एल. सी. डी. (TFT LCD) जीव (sharp) तथा चमकॉल (bright) इमेजों का निर्माण करते हैं।

    पूर्व की एल.सी.डी. (LCD) तकनीकियों धीमी (slower) तथा कम कुशल श्री तथा निम्न कंट्रास्ट (lower contrast) उपलब्ध कराती थी।

    सबसे पुरानी मैट्रिक्स प्रौद्योगिकीयों में एक निष्क्रिय मैट्रिक्स (passive matrix) तेज टेक्स्ट प्रस्तुत करते हैं परन्तु तेजी से बदलते समय डिस्प्ले सायेदार आकृतियाँ (ghost images) को बनाते हैं|

    जो मोशन विडिया (motion video) के लिए कम अनुकूल होता है। अधिकतर श्याम श्वत (black and white) पामटॉप तथा मोबाइल फोन में निष्क्रिय मैट्रिक्स (passive matrix ) एल० सी०डी० का ही प्रयोग होता है।

    क्योंकि एल० सी० डी० प्रत्येक पिक्सल का अलग-अलग एड्स (address) करता है, व. सी. आर. टी. (CRT) से अधिक तीव्र (sharper) टेक्स्ट बनाते हैं

    जो कि फोकस होने पर सभी स्पष्ट पिक्सत को धुंधला (blur) करता है जो स्क्रॉन इमेज को तैयार करता है। लेकिन एल० सी० डी० का उच्च कन्सिस्ट उस वक्त मुश्किल पैदा कर सकता है

    जब आप ग्राफिक्स को प्रदर्शित करना चाहते हैं। सी. आर. टी. (CRT) टेक्स्ट के साथ साथ ग्राफिक्स तथा टेक्स्ट के किनारों (edges) को भी साम्य बनाते हैं

    तथा फलस्वरूप यह कम रिजोल्यूशन पर टेक्स्ट को पढ़ने योग्य बनाता है। इसका अर्थ यह भी है कि सी. आर. टी. (CRT) फोटोग्राफ में भी एस०सी०डी० से बेहतर बारीकियाँ (substitutes) डाल सकता है।

    एल० सी० डॉ० (LCD) में केवल एक प्राकृतिक (natural) रिजोल्यूशन होता है, जो कि डिस्प्ले में भौतिक रूप से लगे पिक्सेल को सीमित कर देता है।

    यदि आप 800×600 एल० सी० डी० में 1024 x 768 तक का रिजल्यूशन तक जाना चाहत है तो आपको सॉफ्टवेयर के साथ इम्यूलेट करना पड़ता है

    जो केवल खास रिजोलुशन पर ही कार्य करेगा। सी० आर०टी० की तरह ही डेस्कटॉप एल. सी. डी. पी.सी. से आये एनालॉग सिग्नल्स को जो तरंग रूप में होते हैं

    को स्वीकार करने हेतु बनाया गया है जो वस्तुतः पी.सी. से आये बाइनरी तरंगे (wave) रूप के विपरीत होता है।

    ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकतर स्टैण्डर्ड ग्राफिक्स बास आज भी विजुअल सूचना को मॉनीटर को भेजन से पहले नेटिव डिजिटल फॉर्म से एनालॉग फॉर्म में बदलते हैं।

    परन्तु एल. सी.डी. सूचना को डिजिटल रूप में प्रोसेस करते हैं इसलिए जब किसी स्टैंडर्ड ग्राफिक्स बोर्ड से एनालॉग डाटा एल.सी.डी. मॉनिटर तक पहुँचता है

    तब मॉनिटर को इस वापस डिजिटल फॉर्म में बदलने की आवश्यकता होती है। नये डिजिटल एल.सी.डी. स्पेशल ग्राफिक्स बोर्ड का प्रयोग डिजिटल कनेक्टर्स के साथ डिस्प्ले को शार्प रखने के उद्देश्य: से करते हैं। इसकी विशेषताओं एवं कर्मियों को संक्षेप में इस प्रकार बताया गया है।

  • Output Device Kya Hai?

    परिचय (Introduction)

    आउटपुट डिवाइस (Output Devices) किसी कम्प्यूटर का एक महत्वपूर्ण भाग है। आप जो कुछ कहते या करते हैं|

    जो कुछ एक इनपुट डिवाइस द्वारा इनपुट किया गया होता है और सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट द्वारा इसे जिस प्रकार एक्जिक्यूट किया गया होता है

    यह सब आउटपुट डिवाइसेज़ पर प्रतिबिम्बित (reflected) होता है। यह हमारे चेहरे की तरह है, जिस पर हमारे मन में चल रही प्रत्येक हलचल प्रतिबिम्बित (reflected) होता है।

    आउटपुट डिवाइसेज़ अनेक हैं जो हम अपने इनपुट का परिणाम देखने में सहायता प्रदान करती हैं।

    यह अध्याय हमें वैसी सभी आउटपुट डिवाइसेज़ की जानकारी प्रदान करता है जिनका प्रयोग हम प्रायः अथवा कभी-कभी करते हैं।

    आउटपुट डिवाइसेज़ (Output Devices)

    इनपुट डिवाइसेज के द्वारा किये गये श्रम (labour) का नतीजा (result) हमें आउटपुट डिवाइसेज़ पर प्राप्त होता है

    तो आइए अध्याय इस पहले हो खण्ड में हम यह जानते हैं कि आउटपुट डिवाइसेज़ क्या हैं ? (What are output devices?)

    आउटपुट डिवाइस हार्डवेयर का एक अवयव (part) अथवा कम्प्यूटर का मुख्य भौतिक भाग (physical part) होता है।

    जिसे छुआ जा सकता है तथा जिसे कम्प्यूटर यूजर के समक्ष सुचना प्रस्तुत करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

    यह सूचना के किसी भी भाग तथा सूचना के किसी भी प्रकार जैसे ध्वनि (sound), डाटा, मेमारी, इमेज (image) इत्यादि को प्रदर्शित कर सकता है।

    सामान्य आउटपुट डिवाइसेज में सामान्यतः मॉनीटर, प्रिन्टर, इअरफोन तथा प्रोजेक्टर सम्मिलित हैं।

    सॉफ्ट कॉपी बनाम हार्ड कॉपी आउटपुट (Soft Copy Vs Hard Copy Output)

    आमतौर पर हमें दो अवस्था (mode) में परिणाम प्राप्त होते हैं। ये सॉफ्ट तथा हार्ड कहलाती हैं।

    आइए इस अध्याय में हम यही जानते हैं कि सॉफ्ट कॉपी तथा हार्ड कॉपी आउटपुट क्या होता है ?

    सामान्यतः हमें जो आउटपुट प्राप्त होता है वह दो रूप में होता है। कुछ आउटपुट को हम स्पर्श नहीं कर सकते हैं

    परन्तु कुछ को हम स्पर्श कर सकते हैं तथा उन्हें अपने पास रख सकते हैं। उदाहरण के तौर पर स्क्रीन पर जो आउटपुट हम देखते हैं

    वह केवल हम देख सकते हैं वह भौतिक रूप (tangible form) में नहीं होता है, परन्तु जो आउटपुट हम प्रिन्टर के माध्यम से कागज या किसी अन्य माध्यम पर प्राप्त करते हैं

    वह भौतिक रूप में होते हैं तथा उसे हम स्पर्श कर सकते हैं। वह आउटपुट जो अपने भौतिक रूप में नहीं होता है तथा जिन्हें हम स्पर्श नहीं कर सकते हैं

    सॉफ्ट आउटपुट कहलाता है। सॉफ्ट आउटपुट को वह आउटपुट भी कह सकते हैं जिसे ऑफ लाइन रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता है।

    मॉनीटर के दृश्य, स्पोकर की आवाज इत्यादि सॉफ्ट आउटपुट के उदाहरण हैं। आउटपुट जो अपने भौतिक रूप में होता है तथा जिन्हें हम स्पर्श कर सकते हैं हार्ड आउटपुट कहलाता है।

    हार्ड आउटपुट को वह आउटपुट भी कहा जा सकता है जिसे ऑफ लाइन रिकॉर्ड किया जा सकता हो।

    प्रिन्टर से छापा गया दस्तावेज प्लॉटर से छापा गया नक्शा हार्ड आउटपुट के उदाहरण हैं।

    मॉनीटर (Monitor )

    ले सेक्शन में हमने आउटपुट डिवाइसेज़ के बारे में जाना। आइए इस सेक्शन में जानते हैं कि मॉनीटर क्या है? रंगों के आधार पर मॉनीटर कितने प्रकार का हो सकता है ?

    What is a monitor ? How many types there can be of monitor on the basis of colours ? )

    मॉनीटर कम्प्यूटर की प्राथमिक आउटपुट डिवाइस है। यह एक ऐसी आउटपुट डिवाइस है, जो टी.वी. जैसी स्क्रीन पर आउटपुट को प्रदर्शित करती है।

    मॉनीटर को सामान्यतः उनके द्वारा प्रदर्शित रंगों के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है-

    (a) मोनोक्रोम (Monochrome ) – यह शब्द दो शब्दों मोनो (Mono) अर्थात एकल (Single) तथा क्रोम (Chrome)

    अर्थात रंग (Color) से मिलकर बना है। इस प्रकार के मॉनीटर आउटपुट को श्वेत-श्याम (Black & White) रूप में
    प्रदर्शित करते हैं।

    (b) ग्रे स्केल (Gray Scale) मॉनीटर विशेष प्रकार के मोनोक्रोम मॉनीटर होते हैं जो विभिन्न ग्रे शेडस (Gray Shades) में आउटपुट प्रदर्शित करते हैं।

    इस प्रकार के मॉनीटर अधिकतर हेन्डी कम्प्यूटर जैसे लैपटॉप में प्रयुक्त किये जाते हैं।

    (c) रंगीन मॉनीटर (Color Monitors) – ऐसा मॉनीटर RGB (Red Blue-Green) विकिरणों (radiations) के समायोजन के रूप में आउटपुट को प्रदर्शित करता है।

    RGB कॉन्सेप्ट (concept) के कारण ऐस मॉनीटर उच्च रेजोलुशन (resolution) में ग्राफिक्स को प्रदर्शित करने में सक्षम होते हैं।

    कम्प्यूटर मेमोरी को क्षमतानुसार ऐसे मॉनीटर 16 से लेकर 16 लाख तक के रंगों में आउटपुट प्रदर्शित करने की क्षमता रखते हैं।

  • Automatic Teller Machine (ATM) Kya Hai?

    ऑटोमैटिक टेलर मशीन या ए.टी.एम. (ATM) ऐसी मशीन है जो हमें प्रायः बैंक कैम्पस में, शॉपिंग मॉल्स (shopping (malls) में, रेलवे स्टेशनों पर हवाई अड्डों पर बस स्टैण्ड पर तथा अन्य महत्वपूर्ण बाजारों तथा सार्वजनिक स्थानों पर मिल जाती है।

    यह इनपुट डिवाइस का एक विशिष्ट रूप है। ए.टी.एम. की सहायता से आप किसी भी समय यहाँ तक की अर्धरात्रि में भी पैसे निकाल सकत है।

    यद्यपि कुछ ए.टी.एम. केवल 12 घरा को सेवा देते हैं, परन्तु अधिकतर ए.टी. एम. चौबीस घंटों की सेवा प्रदान करते हैं।

    ए.टी.एम. की सहायता से आप पैसे जमा कर सकते हैं, अपने ऋण की अदायगी कर सकते हैं, अपने बिलों का भुगतान कर सकते हैं

    अपने खाते के लेन देन तथा बकाया (balance) भी जान सकते हैं। आप ए.टी.एम. का प्रयोग तभी कर सकते हैं

    जब आपके पास एटी.एम. कार्ड तथा एक Valid Personal Identification Number जिसे संक्षेप में पिन (PIN) कहा जाता है

    की ए टी एम बैंक के मुख्य कम्प्यूटर से जुड़ा होता है तथा यह ऑनलाइन प्रोसेसिंग सिस्टम का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

    एटीएम के विकास के साथ ही बैंकिग पहले से कहीं अधिक आसान हो गयी है तथा लोग अपने ए.टी.एम. के साथ ही बैंकिंग लेन देन को आमतौर पर प्राथमिकता देते हैं।

    इसका कारण है कि अब उन्हें बैंक के काउन्टर में घंटों कतारबद्ध होकर खड़ा नहीं होना पड़ता, अतः इससे परेशानी से मुक्ति के साथ समय की भी बचत होती है।

    एक और जहाँ ग्राहकों को इससे राहत मिली है वहीं दूसरी ओर बैंकों के मानव संसाधन (human staffing) पर आ रही लागत भी कम हुई हैं।

    इसकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि ग्राहक-संतुष्टि है, क्योंकि इसमें गलती होने की संभावना बिल्कुल न के बराबर है।

    ए.टी.एम. के अनगिनत फायदे हैं, साथ ही इसके नकारात्मक पहलू (negative aspects) ये हैं कि इसमें धोखाधड़ी के लिए पर्याप्त अवसर है तथा बिजली की अनुपस्थिति में इससे कार्य नहीं लिया जा सकता है।

  • Audio Visual Input Devices Kya Hai?

    ऑडियो विजुअल इनपुट डिवाइस के इनपुट डिवाइसन है जो डाटा या निर्देश (कमाण्ड्स) ध्वनि या दृश्य के माध्यम से इनपुट करते हैं। वॉयस रिकॉगनिशन, माइक्रोफोन, डिजिटल कैमरा इसके उदाहरण हैं।

    वॉयस रिकॉग्नीशन (Voice Recognition )

    कम्प्यूटर में तकनीक (technique) का सबसे नया उदाहरण वॉयस रिकॉग्नीशन के रूप में सामने आया है।

    कम्प्यूटर तकनीक के विकास से हम कम्प्यूटर में डाटा बिना टाइप किये सीधे बोलकर भी इनपुट करा सकते हैं।

    इस तकनीक के माध्यम से डाटा इनपुट में होने वाली परेशानियों को दूर किया जा सकता है तथा यह तकनीक कम्प्यूटर यूजर को इनपुट में सहायता प्रदान करती है।

    वॉयस रिकॉग्नीशन वस्तुत: वह प्रौद्योगिकी ( technology) है जिसमें ध्वनि को डिजिटल सिग्नल्स (signals) में बदलकर स्क्रीन पर टेक्स्ट के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।

    इसमें माइक्रोफोन की मुख्य भूमिका होती है। यूजर माइक्रोफोन में बोलता है जिसे यह साठण्ड कार्ड को भेजता है ।

    साउण्ड कार्ड प्राप्त एनालॉग संकेत को बाइनरी अथवा डिजीटल सिग्नल्स में बदलता है जिसे वॉयस रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर टेक्स्ट में बदलकर स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है।

    आजकल आधुनिक ऑपरेटिंग सिस्टम जैसे विण्डोज एक्सी-पो में यह यूटिलिटि पूर्व-निर्मित (inbuilt) होती है।

    यह प्रौद्योगिकी (technology) शारीरिक रूप से अक्षम उपयोगर्त्ताओं के लिए वरदान है। इसकी मुख्य समस्या यह है कि इसके लिए वातावरण बिल्कुल शांत होना चाहिए तथा उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए।

    माइक्रोफोन (Microphone)

    ध्वनि के माध्यम से निर्देशों (instructions) को इनपुट करना एक आम बात है। कंप्यूटर में हम ध्वनि (sound) इनपुट करने के लिए प्राथमिक रूप से माइक्रोफोन का प्रयोग करते हैं।

    आइए इस सेक्शन में यही जानते है कि माइक्रोफोन क्या है ? माइक्रफोन एक ऑडियो (ध्वनि) इनपुट डिवाइस है

    जिसका प्रयोग कर ऑडियो इनपुट कम्प्यूटर में प्रविष्ट (enter) किया जाता है। माइक्रोफोन तथा स्पीकर के समायोजन से कम्प्यूटर पर इन्टरनेट के माध्यम से Voice-chat (वॉयस चैट) किया. जा सकता है।

    इसके अतिरिक्त यह आपकी आवाज को रिकॉर्ड करने में भी आपकी सहायता कर सकता है। इसका बेहतर ढंग से उपयोग करने हेतु आपके कम्प्यूटर में साउण्ड कार्ड का होना आवश्यक है।

    डिजीटल कैमरा (Digital Camera)

    डिजिटल कैमरा भी एक इनपुट डिवाइस ही है। आइए इस खण्ड में हम यह जानते है कि डिजिटल कैमरा क्या है?

    डिजीटल कैमरा एक ऐसी मोबाइल इनपुट डिवाइस है जो कि किसी भी दृश्य, चलचित्र आदि को स्टोर करने के काम आती है।

    इसके माध्यम से हम दृश्य को स्टोर करते समय उस दृश्य को कैमरे की स्क्रीन पर भी देख सकते हैं।

    डिजीटल वीडियो कैमरा (Digital Video Camera) बहुत छोटे आकार की इनपुट डिवाइस है जिसको एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है।

  • Bar Code And Bar Code Reader Kya Hai?

    अक्सर जब आप सामान की खरीददारी करते होंगे तो देखा होगा कि उत्पाद (product) के पैकेट पर कीमत ही गायब है।

    मूल्य की जगह पर एक काली और उजली पट्टी है। यही बार कोड होता है। आइए इस सेक्शन में देखते हैं कि बार कोड तथा बार कोड रीडर क्या होता है? (What are bar code and bar code reader?)

    बार कोड उत्पाद (product) संबंधित टेक्स्ट सूचना को कोड में बदलने (encode) को एक सरल तथा सस्ती पद्धति है

    जिसे सस्ते इलेक्ट्रॉनिक रीडर्स द्वारा आसानी से पढ़ा जाता है। बार कोडिंग का प्रयोग कर डाटा को तेजो तथा शुद्धता के साथ संकलित किया जाता है।

    बारकोड में पट्टियाँ (bars) तथा रिक्त स्थान (blanks) समानांतर रूप से सटे (attached) होते हैं।

    पूर्व परिभाषित स्ट्रीप (stripe) तथा स्पेस का प्रयोग कैरेक्टर डाटा की एक छोटो सिक्वेन्स को छपे हुए संकतों (printed symbols) में एनकोड करने के लिए किया जाता हैं।

    बार कोड रीडर बार कोड को डीकोड करने वाली एक इनपुट डिवाइस है। यह कई प्रचलित तथा महत्वपूर्ण इनपुट डिवाइस में एक है।

    इसका प्रयोग उत्पाद के फेंकट के ऊपर उप हुये बार कोड को पढ़ने के लिए किया जाता है। यह बार कोड को पढ़कर ASCII वेल्यू मान में बदलता है

    जो सीधे कम्प्यूटर में प्रविष्ट (Entery) हो जाती है। बार कोड रोडर बार कोड को प्रकाश स्रोत (Light source) द्वारा स्कॅन करता है

    परावर्तित प्रकाश की मात्रा को मापता है। इसमें दो तरह की पट्टिकाएं (bar) बन जाती है। काली पट्टिकाएँ कम प्रकाश परावर्तित करती है

    जबकि सफेद पटिकाएँ जो रिक्त स्थान (blank space) होती हैं अपेक्षाकृत अधिक प्रकाश परावर्तित करती हैं। बार कोड रोडर मुख्यतः दो मंडल में आते हैं

    1) फ्लैटबेड (Flatbed) मॉडल, जिसका प्रयोग सुपर मार्केट तथा बड़े डिपार्टमेन्टल स्टोर में उत्पाद से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

    2) हेन्ड – हेल्ड (Handheld) मॉडल, जिसका प्रयोग करियर सर्विस में उत्पादों को पहचानने में किया जाता है।

  • MICR Kya Hai?

    हम यह जानते हैं कि मैग्नेटीक ड्रंक कैरेक्टर रिकॉगनीशनक्या है ? यह कैसे कार्य करता है ? एम.आई.सी. आर. कॅरेक्टर को पहचानने की एक तकनीक है

    जिसका प्रयोग व्यापक रूप से बैंकिंग में होता है। यह तकनीक डॉक्यूमेन्ट्स पर कैरेक्टर्स को छापने के लिए एक विशेष प्रकार के फॉन्ट तथा चुम्बकीय स्याही (magnetic ink) का प्रयोग करता है।

    इस प्रकार के दस्तावेज की सूचना को डिकोड करने के लिए एक विशेष मशीन आती है। जब इस मशीन को दस्तावेज से गुजारा जाता है

    तब मशीन एम.आई.सी. आर. तकनीक से छपे फॉण्ट को चुम्बकीयकृत करती है तथा चुम्बकीय सूचना को कैरेक्टर में बदलती है।

    आवश्यकता पड़ने पर दस्तावेज की उसी सूचना का ओ.सी.आर. की सहायता से प्रकाशीय रूप में (optically) पढ़ा जा सकता है।

    कुछ वर्षो एम.आई.सी.आर. बैंकों में सूचना (इन्फोर्मेशन) प्रोसेसिंग हेतु एक सुरक्षित तथा उच्च निष्पादन क्षमता वाली विधि साबित हुई है।

    इसमें गलतियों के अवसर बिल्कुल न के बराबर होते हैं।चेक के निचली पंक्ति में पाए जाने वाली संख्या (numbers) में चेक संख्या, सॉर्ट संख्या तथा एकाउण्ट संख्या होती है।

    इन्हें एम. आई. सी. आर. प्रयोग के लिए चुम्बकीय स्याही (magnetic ink) का प्रयोग कर छापा जाता है।

    1) एम.आई.सी.आर. के लिए आवश्यक डिवाइसेज़ (Required Devices For MICR)

    एम.आई. सौ. आर. को प्रयोग करने वाले आवश्यक उपकरण निम्नलिखित हैं|

    1) विशेष मैग्नेटिक इंक प्रिन्टर्स अथवा वैसे लेजर प्रिन्टर जो एम.आई. सो. आर. स्याही (ink) का प्रयोग करते हैं।

    2) एम.आई.सी.आर. फॉन्ट्स

    3) एम.आई.सी.आर. स्कॅनर

    2) एम.आई.सी.आर. फॉन्ट्स (MICR Fonts)

    विशेष स्तर पर (on special level) चेक प्रासंसिंग में चार तरह के फॉन्ट का प्रयोग होता है। यह फॉन्ट ई-13बी (E- 13B), सी.एम.सी.-7 (CMC-7). ओ.सी. आर. ए (OCR-A) तथा ओ.सी. आर. बी. (OCR-B) कहलाते हैं।

    ओ.सी.आर-ए तथा ओ. सी. आर बी का प्रयोग सामान्यतः यूरोपीय देशों में होता है। ई-13-बी तथा सी.एम.सी-7 अक्सर एम.आई.सी. आर. फॉन्ट कहे जाते हैं,

    क्योंकि इन्हें मैग्नेटिक एक के साथ छापना होता है जो बैंकों को डाटा की पहचान करने में सहायता करता है। इसकी पहचान ठीक इसी तरह से होती है

    जिस तरह से आपके क्रेडिट कार्ड की पहचान होती है। ओ.सी. आर. ए. तथा ओ.सी.आर.- बी ऑप्टीकल रिकॉगनीशन के जरिए इनपुट किये जाते हैं।

    ई-13बी फॉन्ट को ए.बी.ए. (ABA) द्वारा 1958 में विकसित किया गया था तथा इसे स्टैंडर्ड (standard) के रूप में अपनाया गया था।

    ई-13 बी का प्रयोग यूनाईटेड स्टेटस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, कोलम्बीया सहित यूरोप सेन्ट्रल अमेरिका, भारत तथा अन्य पूर्वी देशों में किया जाता है।

    सी.एम.सी.-7 फॉन्ट को फ्रान्स की एक कम्प्यूटर कम्पनी मशीन्स बूल (Machines Bull) ने विकसित किया था तथा यह सितम्बर, 1964 से अधिकारिक रूप से standard के रूप में फ्रांस में प्रयोग किया जाता रहा है।

    यूरोप तथा दक्षिणी अमेरिका के कुछ देशों में भी इस फॉन्ट का प्रयोग होता है। कुछ देश एस भी हैं जहां एक से अधिक प्रकार के एम.आई.सी. आर. फॉन्ट का बैंक के प्रोसेसिंग में उपयोग होता है।

    ओ.सी.आर.-ए (OCR-A) तथा ओ.सी. आर. बी. (OCR-11) का प्रयोग ऑस्ट्रीया, बेल्जीयम, पुर्तगाल स्वीटजरलैण्ड स्कॉटलैण्ड तथा अन्य कई देशों में होता है।

    46 ऑडियो विजअल इनपट

    को

    जाता है।

  • Scanning Input Devi ces Kya Hai?

    स्कैनिंग इनपुट डिवाइसेज़ वे इनपुट डिवाइसेज़ हैं जो डाटा या निर्देश (कमाण्ड्स) स्कैनिंग प्रोसेस के माध्यम से पूरा करती है।

    स्कैनर, ऑप्टिकल कॅरेक्टर रिकॉगनिशन, ऑप्टिकल मार्क रीडर, मैगनेटिक इंक कैरेक्टर रिकॉगनिशन स्कॅनिंग इनपुट डिवाइसेज़ के उदाहरण हैं।

    1) स्कैनर(Scanner)

    स्कैनर एक ऐसी डिवाइस है जो हमारी बहुत सारी मुश्किलों को आसान बना देती है। इस खण्ड में हम यह जानते हैं की स्कैनर क्या है ? यह किस प्रकार कार्य करता है ? ( What is a scanner? How does it function ?)

    स्कैनर एक इनपुट डिवाइस है। ये कम्प्यूटर में किसी पृष्ठ पर बनी आकृति या लिखित (Text) सूचना को सीधे इनपुट करता है। इसका मुख्य लाभ यह है

    कि यूजर को सूचना टाइप नहीं करनी पड़ती है। इन्हें इमेज स्कैनर भी कहा जाता है। ये चित्र, फोटोग्राफ, आकृति आदि का कम्प्यूटर को मेमोरी में डिजिटल (Digital) फॉर्म में इनपुट करते हैं।

    आजकल पी. सी. के लिए अनेक प्रकार के स्कैनर उपलब्ध है जिनको रिजोलुशन (Resolution) 300 डॉट प्रति इंच (dot per inch) से प्रारम्भ होती है।

    यहाँ रिजोलुशन (resolution) से अभिप्राय उस चित्र की स्पष्टता से है जिसे स्कैन (scan) किया जाता है। इकाई क्षेत्रफल (unti area) में चित्र के बिन्दुओं (dots) को संख्या रिजोलूशन (resolution) कहलाता है।

    किसी डॉक्यूमेंट को स्कैन करने के लिए उसे स्कैनर को समतल सतह जो आमतौर पर शीशे की होती है, पर रखा जाता है। इसमें लगे लेन्स और प्रकाश स्रोत (hight sources के द्वारा चित्र को फोटोसेन्स (photosense) करके बाइनरी कोड में बदलकर कम्प्यूटर को मेमोरी में पहुंचा दिया जाता है|

    जिसे कम्प्यूटर स्क्रीन पर दिखाता है। यदि हम इस स्कैन किये गये चित्र को संशोधित (modify) करना चाहें तो कर सकते हैं। सामान्य या इमेज स्कॅनर को सबसे बड़ी कमी यह है

    कि यह टेक्स्ट को भी इमेज के रूप में ही इनपुट करता है जिसकी वजह से इसे edit नहीं किया जा सकता है तथा स्कैन किये गया फाइल चौक इमेज होती हैं।

    अतः यह हार्ड डिस्क पर अधिक जगह भी लेती है। ऑप्टिकल करेक्टर रिकॉग्नोशन, ऑप्टिकल मार्क रीडर, MICR स्कैनर (Scanner) के ही उदाहरण हैं।

    2) ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्नीशन (Optical Character Recognition)

    ऑप्टिकल कॅरेक्टर रिकॉग्नीशन (Optical Character Recognition) को संक्षेप में ओ. सी. आर. (O.C.R.) कहते हैं।

    यह एक ऐसी तकनीक (technique) है जो स्कनर की कमी को पूरा करती है। यह तकनीक डॉक्यूमेंट के टेक्स्ट को पढ़ती है

    तथा प्राप्त आकृति को उसके तुल्य ASCII Characters में परिवर्तित करती है। इन ASCII Characters को कम्प्यूटर समझ सकता है।

    सभी ओ. सी. आर. में एक ऑप्टिकल स्कैनर तथा ओ.सी.आर. सॉफ्टवेयर होते हैं। टेक्स्ट आकृति (image) को टेक्स्ट फाइल में बदलने की प्रक्रिया ओ.सी.आर. सॉफ्टवेयर द्वारा संपन्न की जाती है।

    डॉक्यूमेंट जब स्कैन किया जाता है तब यह बिटमैप में बदलता है जो उस डॉक्यूमेंट को आकृति (इमेज) होती है।

    फिर ओ.सी. आर. सॉफ्टवेयर प्रत्येक अक्षर के बिटमैप को जाँच करता है तथा कम्प्यूटर में संग्रहित (stored) ओ.सी.आर. फॉन्ट जिन्हें ओ.सी.आर. स्टैण्डर्ड कहा जाता है से मिलान करता है।

    यदि स्कैन किया गया टेक्स्ट ओ. सी. आर स्टैन्डर्ड से मिलता है तो यह स्वीकृत होता है अन्यथा इसे अस्वीकृत कर दिया जाता है।

    अस्वीकृत टेक्स्ट को उपयोगकर्ता किसी वर्ड प्रोसेसर सॉफ्टवेयर की मदद से edit कर सकता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह इमेज स्कैनर के विपरीत स्कैन किये गये डॉक्यूमेंट को टेक्स्ट फाइल में बदलता है

    जिसे edit किया जा सकता है तथा इसकी सहायता से हस्तलिखित डॉक्यूमेंट को भी टेक्स्ट फाइल में बदला जा सकता है।

    इसकी सबसे बड़ी कमी यह है कि स्कैन किये गये टेक्स्ट का ओ० सी० आर० फॉन्ट से मिलना जरूरी है फलस्वरूप सभी प्रकार के फॉण्ट की पहचान मुश्किल है।

    3)ऑप्टिकल मार्क रीडर (Optical Mark Reader)

    आपने कभी बैंकिंग या कोई वस्तुनिष्ठ प्रकृति का परीक्षा दी है? यदि आपने दी होगी तो अक्सर यह लोगों को कहते सुना होगा की इसको उत्तर पुस्तिकाएं कम्प्यूटर से जाँची जाती हैं।

    जी हां, इन परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाएं कम्प्यूटर के एक उपकरण ऑप्टिकल मार्क रोडर से ही जांची जाती है। आइए इस सेक्शन में हम यह जानते हैं

    की ऑप्टिकल मार्क रोडर क्या है ? ऑप्टिकल मार्क रोडर (Optical Mark Reader) को संक्षेप में ओ. एम. आर. (OM.R.) कहते हैं।

    यह एक ऐसी इनपुट डिवाइस है जो किसी कागज पर पेन्सिल या पेन के चिह्न की उपस्थिति और अनुपस्थिति को जाँचती है।

    इसमें चिह्नित कागज पर प्रकाश डाला जाता है और परावर्तित (reflected) प्रकाश को जांचा जाता है। जहाँ चिह्न उपस्थित होगा, कागज के उस भाग से परावर्तित प्रकाश की तीव्रता कम होगी।

    यह तकनीक केवल छपे हुए कार्ड या फॉर्म (forms) पर निश्चित स्थानों पर बने बॉक्सों (Boxes) और पेन्सिल से भर बॉक्सों (Boxes) का जाँचती है।

    OMR किसी परीक्षा की उत्तरपुस्तिका को जाँचने के लिए सर्वाधिक प्रचलित तथा उपयोगी डिवाइस है।

    इन परीक्षाओं के प्रश्नपत्र में वैकल्पिक (objective type) प्रश्न होते हैं और विद्यार्थी को चार या पाँच विकल्पों मैं से उत्तर छाँटकर सम्बन्धित बॉक्स को पेन्सिल से भरना होता है।

    4) एम. आई. सी. आर. (MICR)

    हम अब तक की इनपुट डिवाइसेज़ के बार में जान चुके हैं। अब हम यह जानते हैं कि मैग्नेटीक इंक कैरेक्टर रिकॉगनीशन क्या है ? यह कैसे कार्य करता है?

    एम.आई.सी.आर. कैरेक्टर को पहचानने की एक तकनीक है जिसका प्रयोग व्यापक रूप से बैंकिंग में होता है।

    यह तकनीक डॉक्यूमेन्ट्स पर कैरेक्टर्स को छापने के लिए एक विशेष प्रकार के फॉन्ट तथा चुम्बकीय स्याही (magnetic ink) का प्रयोग करता है।

    इस प्रकार के दस्तावेज की सूचना को डिकोड करने के लिए एक विशेष मशीन आती है। जब इस मशीन को दस्तावेज से गुजारा जाता है

    तब मशीन एम.आई.सी. आर. तकनीक से छपे फॉण्ट को चुम्बकीयकृत करती है तथा चुम्बकीय सूचना को कैरेक्टर में बदलती है।

    आवश्यकता पड़ने पर दस्तावेज की उसी सूचना को ओ.सी.आर. की सहायता से प्रकाशीय रूप में (optically) पढ़ा जा सकता है।

    कुछ वर्षों में एम.आई.सी. आर. बैंकों में सूचना (इन्फोर्मेशन) प्रोसेसिंग हेतु एक सुरक्षित तथा उच्च निष्पादन क्षमता वाली विधि साबित हुई है।

    इसमें गलतियों के अवसर बिल्कुल न के बराबर होते हैं। चेक के निचली पंक्ति में पाए जाने वाली संख्या (numbers) में चेक संख्या, सॉर्ट संख्या तथा एकाउण्ट संख्या होती हैं।

    इन्हें एम. आई. सी. आर. प्रयोग के लिए चुम्बकीय स्याही (magnetic ink ) का प्रयोग कर छापा जाता है।

  • Digitizer Table or Graphics Tablet

    डिजिटाइजर टेबलेट एक इनपुट डिवाइस है जिसे कम्प्यूटर में रेखाचित्र तथा आरेख (sketches) प्रविष्ट करने में प्रयोग किया जाता है।

    यह बिल्कुल बच्चों के स्लेट तथा पेंसिल की तरह होता है। आप इस इलेक्ट्रॉनिक पैड पर कुछ भी बनाकर जो रेखाचित्र से लेकर आपका अपना हस्ताक्षर भी हो सकता है

    कंप्यूटर में स्टोर कर सकते हैं। डिजिटाइजर टैबलेट में एक इलेक्ट्रॉनिक टैबलेट तथा एक कर्मर या पेन होता है। कर्सर को पक (puck) भी कहा जाता है।

    यह माउस के समान होता है। इसमें 16 बटन तक हो सकते हैं। पेन का स्टायलस (stylus) भी कहा जाता है। यह साधारण बॉलप्वाइण्ट पेन की तरह दिखता है।

    सामान्य पेन तथा स्टायलस में यह अंतर होता है कि स्टायलस स्याही की जगह पर इलेक्ट्रॉनिक हेड का प्रयोग करता है।टैबलेट या ड्राईंग लेवल (level) में तारों का एक जटिल (complex) नेटवर्क होता है।

    यह नेटवर्क उत्पन्न संकेतों (signals) को प्राप्त करता है, जो कर्सर या कलम की गति के फलस्वरूप होते हैं तथा उन्हें कम्प्यूटर को भेजता है।

    यदि आप बहुत अच्छे चित्रकार हैं तथा पेंटब्रश के आदि हैं और अपने चित्र को कंप्यूटर पर स्टोर करना चाहते हैं तो आपको अब माउस पर अपनी पकड़ बनाने की आवश्यकता नहीं है।

    इसकी सहायता से आप अपने चित्रों को इस तरह बनाकर कंप्यूटर में स्टोर कर सकते हैं जिस तरह आप अपने चित्र पेंटब्रश की सहायता से बनाते हैं।

  • Light Pen Kya Hai?

    लाइट पेन को इलेक्ट्रॉनिक पेन या स्टाइलस (styles) भी कहा जाता है। इसका प्रयोग कम्प्यूटर स्क्रीन पर कोई चित्र या ग्राफिक्स बनाने में किया जाता है।

    लाइट पेन में एक प्रकाश-संवेदनशील (light sensitive) कलम की तरह (penlike) की डिवाइस होती है जो डिस्प्ले स्क्रीन पर ऑब्जेक्ट के चयन (selection) के लिए होती है।

    लाइट पेन की सहायता से बनाया गया कोई भी ग्राफिक्स कम्प्यूटर पर स्टोर किया जा सकता है तथा आवश्यकतानुसार इसमें संशोधन किया जा सकता है

    अथवा इसका आकार बदला जा सकता है। इसका प्रयोग पामटॉप कम्प्यूटर जैसे टैबलेट पी.सी., पर्सनल डिजिटल असिस्टेण्ट (PDA) एवं आधुनिक मोबाइल डिवाइसेज़ में होता है।