Category: Computer

  • DOS कमाण्ड का प्रारूप क्या है?

    DOS कमाण्ड का प्रारूप क्या है?

    dos

    आज हम सीखेंगे कि Dos कमाण्ड प्रारूप क्या है? और यह कैसे काम करता है, तो आप इस Article को पढ़ते रहें.

    1. XCOPY
    2. DISKCOPY
    3. DISKCOMP
    4. ATTRIB
    5. MOVE

    1. XCOPY– यह कमाण्ड copy कमाण्ड से ज्यादा अच्छी है, यह कमाण्ड बहत तेज है जो सारी डारेक्ट्री व उप डायरेक्ट्री तथा उनकी फाइलों को कॉपी करने में मदद करती है.

    प्रारूप (Syntax)- xcopy < source file >< Target file 
    उदाहरण: C:\Rahul > xcopy * * A:/s 

    2. DISCOPY– इस कमाण्ड के द्वारा केवल एक प्रकार की प्लॉपी से उसी प्रकार का फ्लापी की अन्य प्रतिलिपि बनाई जा सकती है.

    प्रारूप (Syntax)-A:/> Diskcopy < Source Disk > <Target Disk > 
    उदाहरण: A:/>DiscopyA: A: - 

    यहाँ फ्लॉपी ड्राइव ही सोर्स और लक्ष्य ड्राइव है। इसके बाद हमें निम्न संदेश प्राप्त होंगे, Enter source disk is drive A and press any key कॉपी करने वाली फ्लॉपी को इन्सर्ट करके एण्टर ‘की’ दबायें, अब निम्न संदेश प्राप्त होगा- Enter Target disk in drive Aand press any key जिस फ्लॉपी में कॉपी करना है, उसे इन्सर्ट करके कोई भी ‘की’ दबायें.

    3. DISKCOMP– दो डिस्कों की तुलना करने के लिये इस कमाण्ड का प्रयोग किया जाता है.

    प्रारूप (Syntax)-C:\> Diskcomp < source disk > < Target disk >

    इस कमाण्ड का प्रयोग इसलिये करते हैं ताकि हम पता कर सकें कि डिस्क की कॉपी बनाने में कोई गलती न रह गई हो.

    4. ATTRIB COMMAND– यह डॉस की बाहरी कमाण्ड है, जिसका प्रयोग फाइल के attribute को बदलने के लिये किया जाता है.

    प्रारूप- C:\> ATTRIB/ < Switch > 

    इस कमाण्ड में निम्न स्विचों का प्रयोग किया जाता है.

    +R- फाइल को Read only बनाने के लिये 
    -R- फाइल के Read only गुण को समझने के लिये 
    +A- फाइल का archive attribute को set करने के लिये 
    -A- फाइल के archive attribute को समाप्त करने के लिये
    +H- फाइल को Hidden करने के लिये 
    -H- Hide file को देखने के लिये

    5. MOVE– इस कमाण्ड का प्रयोग display output देखने के लिये किया जाता है.

    प्रारूप: C:\>MOVE | PATH < file name >

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  • Dos की System Files कौनसी हैं? Booting process

    Dos की System Files कौनसी हैं? Booting process

    dos system files

    MS DOS की कुछ मुख्य फाइलें कुछ विशेष कार्य जैसे Booting Process इनपुट/आउटपुट के लिये डिवाइसेस निर्धारित करना, Operating System के समस्त निर्देशों को मेमोरी में स्टोर करना आदि के लिये प्रयोग की जाती है, इन सभी फाइलों के विस्तारक नाम भी विशेष होते हैं, जैसे-sys, exe, com आदि ये फाइलें निम्न हैं.

    1. IO.SYS व MS-DOS.SYS फाइल
    2. COMMAND.COM फाइल
    3. AUTOEXEC.BAT फाइल
    4. CONFIG.SYS फाइल

    1. IO.SYS व MS DOS.SYS फाइल– इन फाइलों को सिस्टम फाइल भी कहते है, इसीलिये इनका विस्तारक नाम होता है, ये दोनों सिस्टम Files Booting के समय अपने आप ही कम्प्यूटर की मेमोरी में लोड हो जाती है, ये फाइलें DOS कर्नल का प्रतिनिधित्व करती है, इन फाइलों का मुख्य कार्य इनपुट आर आउटपट डिवाइसों को ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ जोड़ना है, ये फाइल इनपुट/आउटपुट डिवाइसों की जानकारी अपने पास रखती हैं, इन फाइलों को हम फाइलों की सूची में नहीं देख सकते क्योंकि ये फाइलें छुपी रहती हैं.

    2. COMMAND COM– MS DOS के अन्दर एक command इन्टरप्रीटर होता है जो तीनों फाइलों IO. sys, MS DOS.sys तथा COMMAND.COM का एक समूह होता है, ये IO. sys तथा MS DOS.sys छिपी हुई फाइलें होती हैं जबकि COMMAND.COM एक प्रोग्राम फाइल है, जब कम्प्यूटर वूट होता है तो ये तीनों फाइल स्वतः ही मेमोरी में लोड हो जाती हैं, COMMAND.COM फाइल यूजर का कम्प्यूटर से सम्पर्क स्थापित करती है, उसमें ऑपरेटिंग सिस्टम की विभिन्न Intermal Command स्टोर रहती है, जिसे user डॉस प्राम्पट पर टाइप करके प्रयोग कर सकता है.

    3. AUTOEXEC.BAT– बूटिंग के बाद ऑपरेटिंग सिस्टम इस फाइल को ढूंढ़ता है, और इसे Execute कर देता है. यह क्रिया कम्प्यूटर को ऑन करने पर होती है, यह एक बैच फाइल है इसीलिये इसका Extension. BAT होता है. प्रोग्राम फाइल के समान ही इसमें लिखे निर्देशों को अपने आप Execute किया जाता है इसीलिये इसका नाम AUTOEXEC है.

    4. CONFIG.SYS- यह एक टैक्सट फाइल होती है, जिसमें ऐसे प्रोग्राम होते हैं, जो कम्प्यूटर के हार्डवेयर मेमोरी, Keyboard, printer आदि को configure करता है, जिससे डॉस और एप्लिकेशन प्रोग्राम इनका प्रयोग कर सक CONFIG.SYS फाइल डिस्क पर मूल डायरेक्ट्री में स्टोर रहती है.

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  • Disk, Directory तथा Files का व्यवस्थापन किस प्रकार किया जाता है?

    Disk, Directory तथा Files का व्यवस्थापन किस प्रकार किया जाता है?

    disk, directory, files

    Operating System प्रोग्राम, मेमोरी और फाइल को मैनेज करता है और सभी इनपुट, आऊटपुट डिवाइसेस को चैक करता है, कम्प्यूटर हार्डवेयर सीधा यूजर से नहीं जुड़ सकता, इसे एक माध्यम की आवश्यकता होती है, यह माध्यम इसे ऑपरेटिंग सिस्टम प्रदान करता है, MS-DOS का पूरा नाम माइक्रोसॉफ्ट डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम है. इसे अगस्त, 1981 ई. में माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन ने तैयार किया था, MS-DOS कम्प्यूटर पर सारा नियन्त्रण विभिन्न कमाण्ड्स के द्वारा करता है. जिस प्रकार मनुष्य का मस्तिष्क उसके पूरे शरीर पर नियन्त्रण करता है उसी प्रकार MS-DOS कम्प्यूटर की प्रणाली पर नियन्त्रण करता है, वर्तमान समय में दो प्रकार के डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम प्रचलित हैं.

    1. माइक्रोसॉफ्ट डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (MS-DOS)
    2. पर्सनल कम्प्यूटर डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (PC-DOS)

    Dos Computer हार्डवेयर एवं विभिन्न एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के मध्य सम्बन्ध स्थापित करता है, डॉस के बिना कम्प्यूटर अधूरा है, डॉस को कम्प्यूटर की आत्मा भी कहा जा सकता है.

    Dos के कार्य

    1. डॉस हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के मध्य सम्बन्ध स्थापित करता है.
    2. डॉस इनपुट डिवाइसेज जैसे की-बोर्ड या माउस द्वारा दिये गये निर्देशों को कम्प्यूटर के समझने योग्य भाषा में अनुवादित करके सी.पी.यू. में प्रेषित करता है.
    3. डॉस कम्प्यूटर में फाइलों को नियन्त्रित करता है.
    4. डॉस कम्प्यूटर व उसके विभिन्न अंगों को नियन्त्रित करता है.
    5. डॉस कम्प्यूटर के साथ वार्तालाप को सम्भव बनाता है.

    सिस्टम बूट करना

    कम्प्यूटर में MS-DOS होने पर कम्प्यूटर के ऑन होते ही MS-DOS मेमोरी में संग्रहीत हो जाता है, MS-DOS के मेमोरी में संगृहीत होने की क्रिया को बूटिंग कहते हैं, बूटिंग के बाद कम्प्यूटर की स्क्रीन पर MS-DOS प्रोम्ट आ जाता है, MS-DOS में की-बोर्ड से निर्देश टाइप करते हैं तथा एण्टर-की दबाते हैं. एण्टर की दबाने के बाद MS-DOS निर्देश सम्पन्न हो जाता है.

    Disk, Directory एवं Files– कम्प्यूटर का संयोजन अत्यन्त व्यवस्थित रूप से किया गया है, डिस्क, डायरेक्ट्री एवं फाइलों को समझने के लिये एक अलमारी की कल्पना कीजिये, डिस्क उस अलमारी की भाँति है, जिसकी विभिन्न दराजों में विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण दस्तावेज सुरक्षित रहते हैं.

    Disk– डिस्क को मूल डायरेक्ट्री भी कहा जा सकता है, A एवं B फ्लॉपी ड्राइवों को निरूपित करता है तथा C, D….. हार्डडिस्क को, यदि हार्डडिस्क में विभाजन किया हुआ है तो यह ड्राइव नहीं, केवल मूल डायरेक्ट्री कहलाती है.

    Directory एवं उप Directory– यदि किसी अलमारी की दराज के दो अथवा दो से अधिक भाग हों तो दराज डायरेक्ट्री और उसके हिस्से उप-डायरेक्ट्री कहलायेंगे, जिन्हें Back Slash द्वारा अलग करते है.

    C: RAM RAMI> 
    यहाँ पर C: मूल डायरेक्ट्री राम डायरेक्ट्री एवं सम 1 उप-डायरेक्ट्री है.

    Cursor– बूट होने पर मॉनीटर पर प्रदर्शित, प्रोम्प्ट के आगे एक टिटिमाता डैश होता है, यही कर्सर कहलाता है.

    Files का नाम– जिस प्रकार दराजों में रखी फाइलों अथवा फोल्डरों पर अलग नाम लिखे जाते हैं, उसी प्रकार कम्प्यूटर की फाइलों को भी नाम दिया जाता है.

    किसी भी फाइल के नाम को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है.

    1. नाम 2. विस्तारित नाम

    Note– फाइलों में अधिकतम आठ अक्षर एवं विस्तारित नाम से अधिकतम तीन अक्षर होते हैं, नाम एवं विस्तारित नाम को डॉट ‘.’ द्वारा जोड़ा जाता है एवं डांट से पहले अथवा बाद में कोई स्थान रिक्त नहीं छोड़ा जाता है. जैसे- Config.Sys, Autoexec. Bat.

    फाइलों का नाम– फाइलों का नामकरण करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है.

    1. फाइल के नाम में A से Z तक (Capital or Small or Both) के अक्षर, 0 से 9 तक के अंक एवं विशेष चिन्ह जैसे- ), $, &, #, -, ._ @,.,% का प्रयोग किया जा सकता है.
    2. फाइल के नाम के मध्य रिक्त स्थान नहीं होना चाहिये.
    3. फाइल के नाम में ये चिन्ह .,?, <, >, [,],/,\, : नहीं होने चाहिये.
    4. फाइल के नाम में निम्नलिखित ग्यारह शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता परन्तु अन्य अक्षर, अंक अथवा चिन्हों के साथ इनका प्रयोग किया जा सकता है Com1, Com2, Com3, Com4, Lpt1, Lpt2, Avx, Con, Pm Bir Nul.
    5. डॉट ‘.’ का प्रयोग केवल एक बार मात्र फाइल के नाम और विस्तारित नाम को जोड़ने के लिये ही किया जाता है.

    DOS Prompt

    DOS– के कम्प्यूटर में लोड होने के बाद स्क्रीन पर एक प्रॉम्प्ट दिखता है जिसका मतलब है कि यह यूजर के आदेश लेने के लिये तैयार है, – अगर हम हार्डडिस्क पर काम करते हैं तब Prompt C कॉलन करके दिखाता हैं.

    C:\> 

    अगर हम फ्लॉपी डिस्क पर काम करते हैं तब Prompt A कॉलन करके दिखाता है.

    A: >

    इस प्रॉम्प्ट पर यूजर अपने आदेश लिखता है, ये आदेश निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं.

    1. आन्तरिक आदेश- ये डॉस के वे कमाण्ड्स हैं, जिनके लिये केवल डॉस का कम्प्यूटर में स्थान ही पर्याप्त होता है, इनके लिये विशेष फाइलों का होना आवश्यक नहीं है, इन कमाण्ड्स का सम्बन्ध डॉस की बूटिंग के समय लोड हुई फाइल Command.com से होता है, इस प्रकार की कमाण्ड्स को आन्तरिक कमाण्ड्स कहतें हैं, जैसे- COPY, DEL, DIR, CD, MD, DATE, TIME आदि.
    2. बाहरी आदेश- Dos की कुछ कमाण्ड्स इस प्रकार की होती हैं जिनके कार्यान्वयन के लिये उनके कार्यान्वयन से सम्बन्धित फाइल को कम्प्यूटर में विशेष डायरेक्ट्री में होना आवश्यक होता है. इस प्रकार की कमाण्ड्स को बाहरी कमाण्ड्स (Extermal Commands) कहते हैं, जैसे- FORMAT, PRINT,XCOPY आदि.

    Note– Dos द्वारा कोई भी कार्य सम्पन्न कराने के लिये डॉस प्रॉम्प्ट पर कमाण्ड को टाइप करके एण्टर- Key को दबाया जाता है, यदि हमने कमाण्ड को सही प्रकार टाइप किया है तो वाछित कार्य पूर्ण हो जाता है और यदि कमाण्ड टाइप करने में कोई त्रुटि रह जाती है तो डॉस स्क्रीन पर निम्नलिखित सन्देश प्रदर्शित करता है.

    Also Read: Dos Batch files kya he?

    Dos के आदेश-

    डॉस के मेमोरी में लोड होने के बाद सबसे पहले तारीख और समय माँगता है, जैसे-

    Current Date is The 15-09-2019
    Enter New Date :

    इसमें या तो नई तारीख दे सकते हैं या सीधे ही एण्टर की दबा सकते हैं, तब वह अगली सूचना देगा, जैसे

    Current Time is : 7:05:20
    Enter New Time: 

    इसमें भी या तो नया टाइम दे सकते हैं या सीधे ही एण्टर-की दबा सकते हैं, इसके बाद डॉस C कॉलन पर आ जाता है, जिसका मतलब है हम आगे कमाण्ड लिख सकते हैं, डॉस के प्रमुख आदेश इस प्रकार हैं.

    Note– लिखने की शैली में <Enter> को – से भी प्रदर्शित करते हैं, पुस्तक में आगे आप जहाँ भी इस चिन्ह – का प्रयोग देखें,वहाँ <Enter> को दबाना ही समझें.

    1. Directory में उपस्थित फाइलों एवं उप-डायरेक्ट्री की सूची देखना– इस कमाण्ड की सहायता से कम्प्यूटर की वर्तमान डिस्क की वर्तमान क्रियाशील डायरेक्ट्री में उपस्थित फाइलों एवं उपडायरेक्ट्री की सूची तथा उसे सम्बन्धित सूचनाओं को मॉनीटर स्क्रीन पर देखा जा सकता है.

    DIRJ

    2. फाइल कॉपी करना– इस कमाण्ड का प्रयोग फाइल की प्रतिलिपि, वर्तमान डायरेक्ट्री से किसी अन्य ड्राइव अथवा डायरेक्ट्री में उसी नाम से अथवा किसी अन्य नाम से तैयार करने एवं कई फाइलों को एक साथ जोड़ने के लिये किया जाता है, यह एक आन्तरिक कमाण्ड है.

    COPY <Source File- Name> <Target Drive> - जैसे-C:\> Copy Ram.Doc A:\ Raml.DocVd

    फाइल में कॉपी होते ही मॉनीटर स्क्रीन पर एक फाइल कॉपी आदेश प्रदर्शित होगा, इस प्रकार Ram.doc जो C ड्राइव की मूल डायरेक्ट्री में है, इसकी प्रतिलिपि A: फ्लॉपी ड्राइव में स्थित फ्लॉपी पर Ram.doc के नाम से तैयार हो जायेगी.

    3. फाइल को मिटाना- इस कमाण्ड का प्रयोग किसी फाइल को कम्प्यूटर की स्मृति से मिटाने के लिये किया जाता है. यह एक आन्तरिक कमाण्ड है, इस कमाण्ड का सूत्र निम्नानुसार है.

    Del < File-Name>

    मान लीजिये, हमें C: ड्राइव की मूल डायरेक्ट्री में स्थित फाइल Ram.doc को मिटा तो इसके लिये हम निम्नानुसार कमाण्ड देंगे-

    C:\Del Ram.doc - 

    DEL कमाण्ड के साथ /P स्विच का प्रयोग किया जा सकता है, इस स्विच का प्रयोग करने पर DEL कमाण्ड फाइल को समाप्त करने से पूर्व कन्फमेशन चाहता है, यदि हम की को दबा देते हैं तो फाइल मिट जाती है और यदि N की को दबाते हैं तो कमाण्ड ए को समाप्त किये बिना आगे बढ़ जाती है.

    4. फाइल का नाम परिवर्तित करना– इस कमाण्ड का प्रयोग फाइल का नाम बदलने के लिये किया जाता है, कभी-कभी त्रुटिवश हम फाइल का नाम गलत रख देते हैं, तब दस कमाण्ड द्वारा हम फाइल का नाम परिवर्तित कर सकते हैं.

    REN<Source FileName><New-Name>

    5. नयी उप-डायरेक्ट्री बनाना- MD अथवा MKDIR कमाण्ड का प्रयोग नई उप डायरेक्ट्री बनाने के लिये किया जाता है, इस कमाण्ड का सूत्र निम्नलिखित है.

    MD<Directory-Name>

    अथवा

    MKDIR <Directory-Name> 

    यदि हमें Jay नाम की उप-डायरेक्ट्री, मूल डायरेक्ट्री में बनानी है तो इसके लिये हम निम्नानुसार कमाण्ड देंगे-

    C:\>MD Jay 

    इस प्रकार ड्राइव की मूल डायरेक्ट्री में एक नई उप-डायरेक्ट्री Jay बन जायेगी.

    6. दिनांक बदलना– इस कमाण्ड का प्रयोग कम्प्यूटर की दिनांक देखने एवं यदि हम चाहें तो कम्प्यूटर द्वारा प्रदर्शित दिनांक को बदलने के लिये किया जाता है.

    DATE

    इस कमाण्ड को देने के लिये डॉस प्रॉम्प्ट पर डेट लिखकर एण्टर-की दबाने से पहले तो कम्प्यूटर मे संचित डेट प्रदर्शित होती है, इसके बाद हम कम्प्यूटर से नयी दिनांक, (जो भी हम देना चाहते हैं), इनपुट करने के लिये सन्देश स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है.

    यदि हम कम्प्यूटर की दिनांक बदलना चाहते हैं तो [MM-DD-YY] फॉरमेट में दिनांक इनपुट कर सकते हैं, अन्यथा केवल <Enter> की दबाकर इस कमाण्ड को कैन्सिल कर सकते हैं, (MM-DD-YY) में MM का अर्थ है दो अंकों का महीना अर्थात् जनवरी के लिये 01तथा नवम्बर के लिये 11 लिखा जायेगा, DD का अर्थ है दो अंकों का दिनांक अर्थात् 01 से 31 तक एवं YY का अर्थ है दो अंकों का वर्ष अर्थात् 2006 के लिये 06, 2007 के लिये 07 लिखा जायेगा.

    7. समय (टाईम) बदलना– इस कमाण्ड का प्रयोग कम्प्यूटर में सुरक्षित समय (टाईम) को स्क्रीन पर देखने एवं यदि हम चाहें तो कम्प्यूटर द्वारा प्रदर्शित समय को बदलने के लिये किया जाता है.

    TIME इस कमाण्ड को देने के लिये Dos Prompt पर टाइम लिखकर एण्टर की दबाने से पहले तो कम्प्यूटर टाईम प्रदर्शित होता है एवं बाद में कम्प्यूटर हा से टाईम इनपुट करने के लिये कहता है, यदि हम कम्प्यूटर के टाईम को बदलना चाहते हैं तो हम [Hours : Minutes : Seconds] फॉरमेट में समय (टाईम) इनपुट कर सकते हैं, अन्यथा हम एण्टर-की दबाकर कमाण्ड को निरस्त करके डॉस प्रॉम्प्ट पर आ सकते हैं.

    8. CLS आदेश- CLS आदेश स्क्रीन पर उपस्थित सभी अवयवों को मिटा देता है.

     C:\CLSI  

    9. डायरेक्ट्री को बदलने का आदेश– यदि यूजर एक डायरेक्ट्री से दूसरी डायरेक्ट्री में जाना चाहता है, तो इस कमाण्ड का उपयोग करता है.

    C:\>Cd <Directory-Name> 

    10. COPY Con आदेश- डॉस में नयी फाइल बनाने के लिये COPY Con कमाण्ड का प्रयोग किया जाता है जिसका सूत्र निम्नानुसार है.

    C:\>COPY Con-< File Name>

    यदि हमें RAJA नाम की फाइल बनानी है तो सूत्र निम्नानुसार होगा.

    C:\Copy Con- RAJA

    नोट– डॉस में फाइल का नाम देने के बाद उसे कण्ट्रोल (^z) जेड या ‘F6’ से सुरक्षित किया जाता है.

    11. TYPE आदेश– इस कमाण्ड के द्वारा फाइल में उपलब्ध सूचनाओं को स्क्रीन पर देखा जा सकता है, इसका सूत्र निम्नानुसार है.

    C:> TYPE-<File Name> - 

    यदि हमें RAJA फाइल देखनी है तो हमारा सूत्र निम्नानुसार होगा.

    C:\TYPE-RAJA 

    एन्टर की दबाने के बाद रवि फाइल से सम्बन्धित सभी सूचनायें स्क्रीन पर दिखाई देंगी.

    12. PROMPT आदेश– इस कमाण्ड का प्रयोग डॉस प्रॉम्प्ट को बदलने के लिये किया जाता है, सामान्यतः जब हम कम्प्यूटर ऑन करते हैं तो स्क्रीन पर C Prompt (C:\>) आता है. यदि हमें इसका नाम बदलकर ‘NISHA करना हो तो इस कमाण्ड का प्रयोग निम्नानुसार करेंगे.

    C:\>PROMPT - NISHA

    एन्टर की दबाते ही कम्प्यूटर स्क्रीन निम्न प्रकार हो जायेगी.

    NISHA:\>

    13. RD आदेश- RD से तात्पर्य है- Remove directory जब किसी डायरेक्ट्री को समाप्त करना होता है, तो यह कमाण्ड प्रयोग किया जाता है.

    C:\> RD- <Directory Name> 

    हम आशा करते हैं कि आपको Disk, Directory, तथा Files के बारे में समझ आ गया होगा अगर आपको कोई सुझाव है, तो आप हमें उसे कमेंट के जरिए पहुंचा सकते हैं.

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    (FAT) का पूरा नाम File Allocation Table है, इसका प्रयोग कम्प्यूटर में हार्ड डिस्क में फाइल को भण्डारण (store) करने एवं भण्डारण किये गये डाटा फाइलों को प्राप्त करने में किया जाता है. FAT वास्तव में हार्ड डिस्क को बाइट्स के गुच्छों में बाट देता है। और फिर उनमें Bit By Bit फाइलों को store करता है। इसे क्लस्टर (cluster) कहते हैं। फाइल के store होने के समय जो पहला क्लस्टर प्रयोग किया जाता है वह Root Directory से लिया जाता है.

    और यदि फाइल का आकार क्लस्टर से ज्यादा हो तो भण्डारण अगले क्लस्टर की ओर बढ़ा दिया जाता है, किन्तु पिछले वाले क्लस्टर में आगे वाले क्लस्टर का पता होता है, जिससे उसे पहचाना जाता है। FAT ही इन क्लस्टर को जोड़कर एक फाइल का निर्माण करता है.

    यदि FAT में Entry Zero है तो क्लस्टर free है, और इसके अलावा यदि अन्य कोई अंक है तो इसका तात्पर्य है कि वह अभी प्रयोग में है। Windows 98 से पूर्व FAT 16 प्रणाली का प्रयोग किया जाता था किन्तु अब FAT 32 प्रणाली का प्रयोग किया जाता है.

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    Batch File Executable file (करणीय फाइल) होती है, जिसका तात्पर्य है कि यह क्रियान्वित (Execute) करने के लिये प्रयोग की जाती है। बैच फाइल का Extension. BAT होता है, Dos के लिये एक विशेष बैच फाइल होती है, जिसे AUTOEXECUTE.BAT कहते हैं? चूँकि यह स्वतः क्रियान्वित होती है। इसलिये इसे autoexecute file की संज्ञा दी गई है। इसके अन्दर डॉस के सभी निर्देश होते हैं, जब कम्प्यूटर बूट होता है। हर बार यह डिस्क पर इस file को ढूंढ़ता है और इसके अन्दर लिखे निर्देशों को स्वतः क्रियान्वित करता है.

    Dos के अन्दर बैच फाइल का निर्माण करने के लिये कम्प्यूटर की एक विशेष कमाण्ड copy.con का प्रयोग करते हैं। तथा Extension के लिये BAT जोड़ते हैं.

    इसका syntax निम्न प्रकार है

    Syntax- C:\> copycon TEST.BAT 
    PATH = C:\>WINDOS

    इसके बाद ctrl + ‘z’ की (key) एक साथ दबाकर इसे save कर लेते हैं.

    इसे execute करने के लिये इसका नाम (Test_BAT) लिखकर ENTER key दबाते हैं.

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    Dos के Directory और File में क्या अन्तर है?

    Directory– डायरेक्ट्री फाइलों का एक कलेक्शन है, जिसमें विशेष प्रकार की कई काइलें एक साथ रखी जाती हैं। उदाहरण के लिये जिस प्रकार ऑफिस में विभिन्न प्रकार के पत्र, लेख, दस्तावेज, ऑर्डर, फार्म इत्यादि अलग-अलग प्रकार की फाइलों में सुरक्षित रखे जाते हैं। और फिर इन फाइलों को आसानी से प्राप्त करने के लिये किसी ड्रावर या कैबिनेट में रखते हैं। उसी प्रकार डॉस में इन फाइलों को सुरक्षित रखते हैं, जिसे डायरेक्ट्री कहते हैं.

    Files– जब हम किसी एप्लिकेशन प्रोग्राम की सहायता से किसी Document को तेयार करते हैं तो उसे सुरक्षित करने के लिये एक विशेष Extension देना होता है। जैसे MSWord में तैयार की गई फाइलों का Extension.doc होता है। फोटोशॉप में तैयार फोटो का Extension.psd होता है। इन अलग-अलग प्रकार के document को फाइलें कहते हैं.

    Rules For Creating a Filename

    1. फाइलों के नाम को बनाने के निम्न भाग होते हैं.
    (A) फाइल का आइडेन्टिकल (पहचान वाला) नाम.
    (B) फाइल का विस्तारित नाम (Extension) डॉट-ऑपरेटर के द्वारा इन दोनों नामों को जोड़ा जाता है।.

    2. एक्सटेंशन छोड़कर फाइल के नाम में 1-8 तक अक्षर हो सकते हैं.

    3.एक्सटेंशन नाम में 0-3 अक्षर हो सकते हैं.

    4. डॉट-ऑपरेटर के बाद में और पहले खाली जगह नहीं छोड़ी जाती है.

    5. फाइलों के नाम में symbols (विशेष चिन्ह) जैसे-&, $, [, ], <, >, इत्यादि का प्रयोग नहीं कर सकते हैं.

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    Operating System की परिभाषा और कार्य/ उद्देश्य/ उपयोग

    operating system

    Operating System सिस्टम विभिन्न प्रकार की फाइलों का एक सुव्यवस्थित संगठन होता है, जिसे सामान्य भाषा में Software कहते हैं यह वह सॉफ्टवेयर होता है जो कि कंप्यूटर तैयार करते समय सबसे पहले कंप्यूटर पर लोड किया जाता है, बिना इसकी सहायता के हम किसी भी कार्य को संपन्न नहीं कर सकते हैं, इसको लोड करने के बाद ही हम अन्य प्रोग्राम Computer पर लोड कर सकते हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर पटर पेरीफेरल, Input, Output Devices, CPU, Memory इत्यादि को संचालित करता है। और इनके द्वारा किये गये कार्यों को नियंत्रित करता है। बाजार में डॉस. विण्डोज (98, 2000, 12000, Me, NT/4.0, XP और Vista), Linux इत्यादि ऑपरेटिंग सिस्टम प्रचलन में है.

    ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य.

    1. इसका मुख्य कार्य की-बोर्ड से प्राप्त इनपुट की पहचान करना है और आउटपुट को मोनिटर स्क्रीन पर भेजना है.

    2. ऑपरेटिंग सिस्टम प्रोसेस करने के लिये इकट्ठे हुये कार्यों का उनकी प्राथमिकता के आधार पर प्रबंधन करता है.

    3. ऑपरेटिंग सिस्टम, हार्ड डिस्क में स्टोर डेटा को प्रोसेस करने के लिये आगे बढ़ाता है। और आउटपुट को आवश्यकतानुसार हार्ड डिस्क पर स्टोर करता है.

    4. ऑपरेटिंग सिस्टम, विशेष कार्यों के लिये मेमोरी का मेनेजमेन्ट करता है जो कि कार्यों के आधार पर मेमोरी की क्षमता को कम या ज्यादा भी करता है.

    5. ऑपरेटिंग सिस्टम, एप्लिकेशन प्रोग्रामों के संचालन के लिये प्रबंधन करता है और प्राप्त होने वाले निर्देशों के अनुसार कम्प्यूटर पेरीफेरल को व्यवस्थित रूप से तैयार करता है.

    6. ऑपरेटिंग सिस्टम, एक साथ प्रयोग किये जाने वाले कई एप्लिकेशन प्रोग्रामों को एक्सेस और एक-दूसरे में दखल अंदाजी से बचाता है.

    7. ऑपरेटिंग सिस्टम, का मुख्य कार्य कार्यों की सुरक्षा करना और उनका प्रबंधन करना भी है ताकि अनाधिकृत यूजर उसे एक्सेस न कर सकें.

    Also Read: Mobile Operating System क्या है और यह कितने प्रकार के होते हैं?

     विभिन्न प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम की विवेचना

    ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेअर का वह संगठन/समूह होता है जो कम्यर के सभी ऑपरेशन को नियन्त्रित करता है, ऑपरेटिंग सिस्टम एक प्रोग्राम होता है, जो कम्प्यूटर चलाने वाले को कम्प्यूटर हार्डवेयर से जोड़ता है। ऑपरेटिंग सिस्टम में मूल निर्देश (Instructions) होते हैं। यह हार्डवेयर का प्रयोग करता है.

    एप्लीकेशन प्रोग्राम के अनुसार हम कम्प्यूटर को निम्नलिखित चार भागों में बाँट सकते हैं.

    1. Hardware
    2. Operating System
    3. Application Program
    4. User

    चित्र के अनुसार कम्प्यूटर हार्डवेअर को प्रयोग करने के लिये ऑपरेटिंग सिस्टम माध्यम का काम करता है.

    Operating System के उद्देश्य

    1. सुविधा– ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर को उपयोग करने के लिये और सरल बनाता है, जिससे यूजर सीधे हार्डवेअर से जुड़ जाता है और स्वयं निर्देश नहीं लिखन पड़ते.
    2. क्षमता– ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर के द्वारा सारे रिसोर्सेज प्रिंटर तथा स्कैनर को अधिक अच्छे प्रकार से उपयोग कर सकते हैं.

    Operating System के कार्य

    1. प्रोग्राम को चलाना– प्रोग्राम को चलाने से पहले कई कार्य करने आवश्यक होते हैं जैसे उसका मेमोरी में लोड होना इनपुट आउटपुट डिवाइस को जोड़ना और अन्य सारी डिवाइसों को जोड़ना ऑपरेटिंग सिस्टम यह सभी कार्य करता है.
    2. प्रोग्राम– बनाना ऑपरेटिंग सिस्टम बहुत सी सुविधाएं और सेवाएं प्रदान करता है तथा प्रोग्राम बनाने में प्रोग्रामर की मदद करता है.
    3. इनपट और आउटपुट डिवाइसेस का उपयोग करना– कम्प्यूटर को उपयोग वाला, इनपुट और आउटपुट डिवाइसस को आपरेटिंग सिस्टम की मदद उपयोग कर सकता है। प्रत्येक डिवाइस का एक स्पेशल सिग्नल होता है. जिया डिवाइस चुनी जाती है। इन सिग्नल की जानकारी ऑपरेटिंग सिस्टम ही रखता है.

    Operating System सिस्टम का कम्प्यूटर में उपयोग

    1. सुरक्षा प्रदान करना– ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर को सुरक्षा प्रदान करता है। जब बहुत से यूजर्स एक ही कम्प्यूटर को उपयोग करते हैं तो आपरेटिंग सिस्टम के Id और पासवर्ड देता है, जिससे कोई अज्ञात यूज़र इस कम्प्यूटर का उपयोग नहीं कर सकता है। सारे यूजर्स जो ID और Password रखते हैं, का भी अलग-अलग परमिशन दी जाती है। जैसे- कोई एक यूजर किसी भी प्रोग्राम में कुछ लिख नहीं सकता तो इसे रीड ऑनली मिशन कहते हैं.
    2. त्रुटि को ढूँढना– जब कम्प्यूटर चलता है तो इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हो सकती हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम इन्हें ढूँढ़ता है.

    Operating System का विकास

    ऐसी मान्यता है कि पहला ऑपरेटिंग सिस्टम 1950 ई. के लगभग IBM-700 कम्प्यूटर्स के लिये तैयार किया गया था। यह ऑपरेटिंग सिस्टम बहुत साधारण और सरल था। उस ऑपरेटिंग सिस्टम की क्षमता आज के ऑपरेटिंग सिस्टम की क्षमता के समक्ष लगभग नगण्य है। ऑपरेटिंग सिस्टम के विकास के समय शोधकर्ताओं का एक मुख्य लक्ष्य था कि कम्प्यूटर के खाली समय को कैसे काम किया जा सके तथा कैसे कम्प्यूटर को अधिक से अधिक कार्यक्षमता तथा और मितव्ययी प्रकार से उपयोग में लाया जा सके?

    कम्प्यूटर्स के प्रारम्भ के दिनों में एक कार्य से दूसरे कार्य पर जाना स्वचालित नहीं था। इस समस्या के निदान के लिये नये ऑपरेटिंग सिस्टम का विकास हुआ जो स्वतः ही हाऊस कीपिंग जॉब कर सकता था। ऑपरेटिंग सिस्टम के विकास में अगला प्रयास था कि कैसे CPU तथा I/O Devices के बीच की गति-असमानता को दूर किया जा सके जिससे कि एक समय में कई प्रोग्राम चलाय जा सकें। इसी तरह से बहुत सारे सुधार होने के बाद आज का आधुनिकतम ऑपरेटिंग सिस्टम हमारे सामने प्रस्तुत है। ऑपरेटिंग सिस्टम के विकास के फलस्वरूप जो महत्वपूर्ण ऑपरेटिंग सिस्टम सामने आये, वे इस प्रकार हैं.

    साधारण बैच प्रणाली (Simple Batch System)- बहुत पहले जब कम्प्यूटर की मेमोरी कम होती थी, तब प्रोग्राम के रन होने की रफ्तार बढ़ाने के लिये एक समान (Similar) जॉब प्रोग्राम्स का एक बैच बना देते थे और उसको रन करते थे, जिससे सॉफ्टवेयर, जिस पर वह प्रोग्राम रन होना है, बार-बार लोड नहीं करना पड़ता था। उदाहरण के लिये- अगर हम पहले C का प्रोग्राम फिर COBOL का प्रोग्राम तथा फिर C का प्रोग्राम रन करते हैं तो मेमोरी कम होने के कारण पहले C को लोड करना पड़ेगा, फिर C का हटाकर COBOL को लोड करना पड़ेगा और फिर अन्तिम बार C को फिर से लोड करना पड़ेगा। पर बैच सिस्टम में जो प्रोग्राम C में है, हम उस प्रोग्राम को साथ में रख देंगे तथा पहले C को लोड करके पहला और तीसरा प्रोग्राम रन कर देंगे और बाद में COBOL लोड करेंगे, जिससे इसका टाइम बच जायेगा। इसलिये बैच सिस्टम में प्रोग्रामर उसी प्रकार की आवश्यकता के जॉब्स का बैच बना लेते हैं, जिससे कम्प्यूटर की स्पीड बढ़ जाती है.

    मल्टी प्रोग्राम्ड बैच प्रणाली (Multiprogrammed Batch System)- बैच सिस्टम के बाद कम्प्यूटर में और विकास हुआ तथा डिस्क टेक्नोलॉजी आयी, जिससे मेमोरी बहुत अधिक बढ़ गयी। अब एक ही साथ कई जॉब्स मेमोरी में रखे जा सकते थे। परन्तु जब कोई जॉब चल रहा हो तब बीच में उसको कुछ इनपुट या आउटपुट की आवश्यकता भी पड़ती है जिससे उस समय में प्रोसेसर सुस्त हो जाता है। इसलिये इस ऑपरेटिंग सिस्टम में जब जॉब को I/O की आवश्यकता पड़ती है, तब उसे हटाकर दूसरे जॉब को चलाने लगते हैं। जब पहले वाले जॉब को सारा इनपुट मिल जाता है या वह आउटपुट दे देता है, तब उसे फिर से रन करते हैं, जिससे कम्प्यूटर का प्रोसेसर लगातार उपयोग होता रहता है और कम्प्यूटर की स्पीड और बढ़ जाती है.

    टाईम शेरिंग प्रणाली (Time Sharing System)- अभी तक के ऑपरेटिंग सिस्टम में यूजर अपने जॉब के साथ जुड़ा नहीं था। वह एक बार Job Submit करके I/O की प्रतीक्षा करता था, बीच में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता था। परन्तु Time Sharing Operating System, Multiprogrammed Batch System का ही विकसित रूप है। इसमें जॉब को बदलने के साथ साथ यूजर को Time Slot दिया जाता है, जिससे वह अपने जॉब से Interact कर सकता है और बीच में प्रोग्राम को कन्ट्रोल कर सकता है। अतः इस ऑपरेटिंग सिस्टम में टाईम पीरियड बाँट दिये जाते हैं। पहले पीरियड में पहला जॉब, दूसरे में दूसरा और सारे जॉब्स के बाद फिर पहला Job Execute होता है.

    वास्तविक समय प्रणाली (Real Time System)– Real-Time System वे सिस्टम होते हैं, जो सीधे ही वातावरण से इनपुट लेते हैं और निश्चित समय पर आउटपुट दे देते हैं। जैसे- रेलवे रिजर्वेशन में जो यात्री होता है, उसका नाम, आयु, इनपुट की तरह जाता है और तभी टिकिट बनकर आउटपुट की तरह आ जाता है.

    कुछ प्रसिद्ध Operating System जो PC’s में अक्सर प्रयोग में लाये जाते हैं.

    CPM/80 (Control Programmes/Microprocessor)– CPM/80 डिजिटल रिसर्च द्वारा विकसित अक्सर प्रयोग होने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है। यह 0.5.8 Bit सिस्टम पर प्रयोग किया जाता है और इसके लिये कई एप्लीकेशन सॉफ्टवेअर भी तैयार किये गये हैं। इसकी अत्यन्त उपयोगिता होने के कारण, 8Bit मशीन में CPM/80 का प्रयोग हुआ। CPM/86, CPM/80 का ही विकसित रूप है, जिसे 16 Bit मशीन के लिये तैयार किया गया है.

    MS-DOS– MS-DOS का विकास माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन ने 16 Bit तथा 32 • bit मशीनों के लिये किया। MS-DOS उन मशीनों के लिये स्टैण्डर्ड 0.S. है, जिनमें इन्टेल माइक्रोप्रोसेसर्स होते हैं। IBM ने भी अपने PC’s के लिये MS-DOS को ही चुना। इसी कारण MS-DOS प्रसिद्धि की चरम सीमा तक पहुँचा.

    UNIK– UNIK Multiuser वह ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिस आधक क्षमता वाली 16Bit तथा 32 Bit की मशीन के साथ प्रयोग किया जाता है। UNIK का निर्माण AT &T’s Bell Laborataries ने किया। काफी समय तक Mutiuser O.S. मार्केट में UNIK का एकाधिकार रहा। सर्वप्रथम UNIX को एसेम्बली लैंग्वैज में लिखा गया। बाद में, 1973 ई.में इसको पुनः सी लैंग्वैज में लिखा गया, जिसकी वजह से इसे विभिन्न प्रकार की मशीनों पर प्रयोग किया जा सका.

    Windows– विन्डोज़ एक अत्यन्त लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम है। विन्डोज़ का निर्माण Microsoft Corporation ने किया। विन्डोज़ चित्र आधारित इण्टरफेस O.S. है.

    हम आशा करते हैं कि आपको ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में जानकारी प्राप्त हुई होगी, इस जानकारी को आप उन दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं जो कि Operating System के बारे में हिंदी भाषा में सीखना चाहते हैं.

  • Mobile Operating System क्या है और यह कितने प्रकार के होते हैं?

    Mobile Operating System क्या है और यह कितने प्रकार के होते हैं?

    Mobile Operating System एक सॉफ्टवेयर है, जो कि मोबाइल फोन के अंदर इंस्टॉल किया जाता है, जिसकी मदद से यूजर मोबाइल फोन के सभी फीचर का उपयोग करने में सक्षम होता है जैसे कि किसी को कॉल लगाना या मैसेज करना इस प्रकार के सभी कार्य OS की मदद से किए जाते हैं, OS कई प्रकार के होते हैं आज के इस आर्टिकल में हम सीखेंगे मोबाइल फोन के सभी OS के बारे में.

    कोई भी ऑपरेटिंग सिस्टम हार्डवेयर के साथ मिलकर कार्य करता है और प्रोग्राम को चलाने की अनुमति देता है.

    Mobile Operating System के प्रकार

    No.Operating SystemBy
    1.iOSApple
    2.AndroidGoogle
    3.WindowsMicrosoft
    4.BackBerryRim

    1. Apple iOS

    यह Apple द्वारा विकसित एक मोबाइल OS है, जिसे 2007 में iPhone और iPad के लिए बनाया गया था बाद में इसे एप्पल के टीवी में स्थापित किया गया. इसका इलेक्ट्रानिक डिजाइन बहुत ही आसानी से प्रयोग किया जाने वाला तथा तेज गति से चलने से चलने वाला iOS है.

    गुण-

    1. iOS यजर इंटरफेस किसी अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम की तुलना में सबसे अच्छा और आसानी से एवं तेजी से अपडेट होता है.
    2. Apple से डाउनलोड की गई Apps दूसरी एप्प की तुलना में सबसे बेहतर है.
    3. एप्पल उपभोक्ता को अपने आईफोन और आईपोड का डाटा डेस्कटॉप कम्प्यूटर के साथ स्क्रिोनाइज करने में सहायता देता है। यह सुविधा एंड्राइड में उपलब्ध नहीं है.

    दोष-

    1. यह सख्त नियंत्रण रखता है और केवल उत्तम की एप्प को ही एप्प-स्टोर पर डालने की अनुमति देता है.
    2. एप्पल और आईट्यून सॉफ्टवेयर के द्वारा ही उपभोक्ता को अपने आईफोन और आईपैड को डेस्कटॉप कम्प्यूटर के साथ सिंक्रोनाइज करने की अनुमति देता है.
    3. आई.ओ.एस. प्रयोग करने वाले उपकरण अन्य स्मार्ट फोन या टैबलेट से महंगे होते हैं.

    2. Android OS

    Android एक लाइनेक्स सॉफ्टवेयर पर आधारित गूगल द्वारा विकसित मोबाइल Operating System है, यह ऑपरेटिंग सिस्टम ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है, यानि कि इस ऑपरेटिव सिस्टम का कोड मुफ्त में उपलब्ध होता है और कोई भी प्रोग्रामर इसका कोड लेकर अपने अनुसार कोड में बदलाव करके ला सकता है.

    गुण-

    1. एंड्राइड ओ.एस. के कोड में बदलाव लाकर कोई भी इसे अपने अनुकूल बना सकता है.
    2. यह कई एप्प एक साथ चलाने की सुविधा देता है इसलिए अन्य ओ.एस. की तुलना में बेहतर है.
    3. एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम ईमेल नोटिफिकेशन, एप्लीकेशन अपडेट, सोशल नेटवर्किंग, आदि से जुड़ी एप्प में बेहतर कार्य करता है.
    4. एंड्राइड स्टोर (गूगल प्ले) पर असंख्य ऐप्प उपलब्ध हैं.
    5. एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम के ओपन सोर्स होने के कारण यह कई प्रकार के हार्डवेयर उपकरणों के साथ आसानी से तालमेल कर पाता है.

    दोष-

    1. एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम बहुत ज्यादा बैटरी खाता है.
    2. कुछ ही समय के अन्तराल में गूगल ने एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम के बहुत सारे संस्करण बाजार में उतार दिये हैं, जिसके कारण बाजार में एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम पर आधारित उपकरणों में उलझन बढ़ गयी है.
    3. एंड्राइड आपरीटिंग सिस्टम को सही से इस्तेमाल करने के लिए Google के प्रकार लाग इन करना जरूरी होता है जोकि सविधाजनक नहीं है.
    4. एंड्राइड उपकरणों तथा Computer के बीच डाटा को सिंक करने के लिए कोई भी तरीका उपलब्ध नहीं है.

    3. Windows 8 OS

    Windows 8 ऑपरेटिंग सिस्टम को माइक्रोसॉफ्ट के डेस्कटॉप एवं लैपटॉप के लिए बनाया था, इसके अन्य प्रकार “विंडोज फोन 8” और “विंडोज आर.टी.” क्रमशः स्मार्टफोन और टैबलेट के लिए बनाये गए हैं.

    गुण-

    1. विंडोज 8 ऑपरेटिंग सिस्टम का यूजर इंटरफेस बहुत सुविधाजनक है, जिसमें हर एक एप्लीकेशन टाइल की तरह प्रदर्शित होती है.
    2. कुछ एप्लीकेशन जैसे सोशल नेटवर्किंग, सर्च, माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस, आदि तथा मैप (मानचित्र) से जुड़ी एप्प बहुत आसानी से चलती हैं.

    दोष-

    1. एक साथ कई कार्य करने के लिए उपभोक्ता को कई स्क्रीन खोलनी पड़ती हैं जोकि कभी-कभी बहुत परेशानी पैदा कर देता है.
    2. गूगल प्ले स्टोर और एप्पल के ऐप्पस्टोर की तुलना में विंडोज स्ट्रोर में काफी कम ऐप्प हैं.
    3. बहुत कम हार्डवेयर की कम्पनियाँ जैसे कि नोकिया और डेल विंडोज ओ.एस. को अपने फोन के साथ जोड़ती हैं क्योंकि यह इतना प्रचलित नहीं है.

    4. BlackBerry OS

    यह RIM (रिसर्च इन मोशन) कंपनी द्वारा विकसित ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिसे BlackBerry अपने ही ब्राण्ड के स्मार्टफोन और टैबलेट उपकरणों के लिए बनाता है.

    गुण-

    1. ब्लैकबेरी उपकरण ‘पुश ई-मेल’ तकनीक के साथ आसानी से तालमेल बना लेता है, जिससे उपभोक्ता अपनी ई-मेल अपने उपकरण पर तुरन्त पढ़ सकते हैं जोकि कुछ सेकण्ड के अन्तराल पहले ही उन्हें भेजी गई है.
    2. ब्लैकबेरी फोन डाटा को लगभग 50 प्रतिशत कॉम्प्रेस कर सकता है जिससे ई-मेल भेजने या डाटा Sharing के दौरान बैंडविड्थ कम खर्च होती है, इसके साथ-साथ यह एन्क्रिप्टेड फॉर्म में डाटा को ई-मेल करने की सुविधा देता है.
    3. ब्लैकबेरी अन्य ओ.एस. की तुलना में सबसे अच्छा ‘बैटरी मैनेजमेंट’ उपलब्ध कराता है, जिससे यह फोन कम से कम बैटरी खर्च करता है.

    दोष-

    1. ब्लैकबेरी का एप्प स्टोर ‘एप्लीकेशन प्रोग्रामरस’ को आकर्षित करने में असमर्थ दिखाई पड़ता है, और इसमें उपलब्ध एप्प की संख्या अधिक नहीं है.
    2. ब्लैकबेरी में दूसरे ओ.एस. की तुलना में इंटरनेट की गति कम होती है.
    3. ब्लैकबेरी उपकरण एक आम आदमी के प्रयोग हेतु फोन न लगाकर एक ‘कॉर्पोरेट 100 प्रायोजित उपकरण’ ज्यादा दिखाई पड़ता है.

    जैसे कि हमने आपको बताया यह चार ऑपरेटिंग सिस्टम दुनियाभर में बहुत ही ज्यादा प्रचलित है जिसमें एंड्राइड और आईफोन के ऑपरेटिंग सिस्टम सबसे ऊपर आते हैं, हम आशा करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल पढ़ कर मजा आया होगा और कुछ जानकारी प्राप्त हुई होगी Operating System सिस्टम के बारे में अगर आपका कोई सुझाव हो तो उसे आप हमें कमेंट के जरिए पहुंचा सकते हैं.

  • WhatsApp कैसे चलाएं कंप्यूटर में स्कैनर की मदद से?

    WhatsApp कैसे चलाएं कंप्यूटर में स्कैनर की मदद से?

    WhatsApp कैसे चलाएं कंप्यूटर में स्कैनर की मदद से?

    क्या आप अपने मोबाइल फोन पर WhatsApp को run करते हैं, और चाहते हैं कि आप आपके Computer पर भी व्हाट्सएप चला पाए आपके मोबाइल फोन के Scanner की मदद से तो आज आप इस आर्टिकल को पढ़ते रहिए, आज हम आपको बहुत सरल भाषा में समझाएंगे कि आप किस तरह व्हाट्सएप को अपने कंप्यूटर तथा लैपटॉप पर चला सकते हैं वह भी बिना किसी सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल किए.

    आज के दौर में यह बहुत ही आसान हो गया है, कि किसी भी व्यक्ति से हम कभी भी बात कर सकते हैं, उसे Message कर सकते हैं, Call कर सकते हैं Video Calling कॉल कर सकते हैं, अपनी Photos भेज सकते हैं और भी इत्यादि कार्य किए जा सकते हैं, व्हाट्सएप जैसी एप्लीकेशंस की मदद से हमारी जिंदगी को बहुत ही आसान बना देती है, बस आपको अपने मोबाइल फोन में एक एप्लीकेशन डाउनलोड करना है और आप भी पूरी दुनिया से कनेक्ट हो जाएंगे जब मन करे जब आप मैसेज कर सकते हैं और इसके लिए आपको ₹1 भी देने की आवश्यकता नहीं होती.

    WhatsApp Kya he?

    WhatsApp एक Messanger है, जिसकी मदद से आप मैसेज कर सकते हो साथ ही साथ यह बिल्कुल Free एप्लीकेशन है, जो कि Computer, Laptop, Android, iPhone, Windows Phone, JioPhone के लिए उपलब्ध है, यह कंपनी अमेरिका में स्थित है और ऐसे कुछ वर्ष पहले Facebook द्वारा खरीद लिया गया है, यह एप्लीकेशन दुनियाभर में बहुत ही प्रचलित है जिसके कई कारण हैं, यह बिल्कुल फ्री मैं अपनी Service इस्तेमाल करने का मौका देती है, आप HD क्वालिटी में किसी को भी कहीं पर भी वीडियो कॉल कर सकते हो Free Call कॉल कर सकते हो Free Messages भेज सकते हो साथ ही साथ आप Documents फाइल PDF फाइल, व्हाट्सएप के जरिए Send कर सकते हो.

    कैसे चलाएं Computer में WhatsApp?

    WhatsApp को कंप्यूटर तथा लैपटॉप पर चलाना बहुत ही ज्यादा आसान है इसके लिए आपको नीचे दिए हुए कुछ Steps को Follow करना पड़ेगा.

    Step 1. सबसे पहले आपको अपने Mobile Phone में WhatsApp को ओपन कर लेना है.

    Whatsapp web computer

    Step 2. अब आपको “3dot” नजर आएंगे जिस पर आपको क्लिक कर देना है, और तीसरे नंबर के ऑप्शन WhatsApp Web पर क्लिक करना है.

    Step 3. अब आपको यहां पर “+” का साइन दिख रहा होगा जिस पर आपको Click कर WhatsApp का Scanner खोल लेना है.

    Step 4. Scanner खोलने के बाद अब आपको कंप्यूटर में Web.whatsapp.com साइट को ओपन करना है और यहां पर दिख रहा है क्यूQR CODE को आप को Scan करना है जो कि हमने अभी मोबाइल फोन में Scanner खोला था, अगर आप Apple Computers इस्तेमाल करते हैं चाहे Windows Computer इस्तेमाल करते हैं यह प्रोसेस सभी प्लेटफार्म के लिए सामान्य होगी.

    whatsapp web scanner

    Note: जब कभी भी आप व्हाट्सएप को अपने कंप्यूटर पर चलाएं तो आपको यह ख्याल रखना होगा कि आपका कंप्यूटर और मोबाइल फोन एक ही इंटरनेट के साथ कनेक्ट होना चाहिए अन्यथा आप व्हाट्सएप को कंप्यूटर पर इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे जिसके लिए आप सबसे बढ़िया अपने मोबाइल फोन का HotSpot ऑन कर कंप्यूटर पर कनेक्ट कर सकते हैं या फिर आप USB Tethering का इस्तेमाल कर सकते हैं, अपने इंटरनेट को Share करने के लिए.

    WhatsApp में कैसे Phone Number जोड़ते हैं?

    अगर आप किसी भी मित्र या घर के सदस्यों से WhatsApp के जरिए बात करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको अपने व्हाट्सएप अकाउंट में उस व्यक्ति का मोबाइल नंबर ऐड करना होगा जिससे आप वार्तालाप करना चाहते हैं, उसके बाद ही आप उसे मैसेज और कॉल कर पाएंगे जिसके लिए आपको नीचे दिए हुए कुछ Steps को Follow करना होगा.

    Step 1. सबसे पहले आपको व्हाट्सएप एप्लीकेशन अपने SmartPhone में ओपन कर लेनी है.

    Step 2. अब आपको यहां पर नीचे राइट साइड में मैसेजिंग का आइकन दिख रहा होगा जिस पर आपको क्लिक कर देना है.

    Step 3. अब आपको यहां पर दो ऑप्शन दिख रहे होंगे New Group और New Contact आपको दूसरे नंबर के ऑप्शन पर क्लिक कर आपके उस व्यक्ति का फोन नंबर यहां पर एंटर कर ऐड कर सकते हैं, जिससे आप बात करना चाहते हैं व्हाट्सएप के जरिए.

    कुछ ही पल में मोबाइल फोन नंबर आपके व्हाट्सएप में ऐड हो जाएगा और आप उसे मैसेज तथा कॉल कर सकते हैं बिल्कुल फ्री.

    मुझे कंप्यूटर में व्हाट्सएप चलाना है फिर ये स्कैनर का क्या मतलब है?

    कंप्यूटर पर व्हाट्सएप चलाने के लिए हमें Whatsapp एप्लीकेशन के अंदर एक फीचर देखने को मिल जाता है, जिसे WhatsApp Scanner स्कैनर कहते हैं, जिसकी मदद से आप तत्काल अपने कंप्यूटर पर व्हाट्सएप इस्तेमाल कर सकते हैं इस स्केनर की मदद से आप का संपूर्ण व्हाट्सएप का डाटा आपके कंप्यूटर स्क्रीन पर पहुंच जाता है, जिससे भी आप मोबाइल फोन पर Chat करते हो या Video Call करते हो आप सभी की जानकारी प्राप्त कर पाएंगे अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर, इस व्हाट्सएप स्कैनर की मदद से यह व्हाट्सएप का बहुत ही महत्वपूर्ण विचार है.

    हम आशा करते हैं कि हमारा यह आर्टिकल पढ़कर आपको मजा आया होगा और कुछ सीखने को मिला होगा कि किस तरह से Whatsapp को Computer पर चलाया जाता है अगर आप अभी भी अपने कंप्यूटर पर व्हाट्सएप को चलाने में असमर्थ है तो कृपया कर हमें नीचे कमेंट कर दीजिए हम आपकी समस्या का समाधान जरूर करेंगे.

  • DOS क्या है? Boot होने की प्रोसेस

    DOS क्या है? Boot होने की प्रोसेस

    dos kya he

    आज हम सीखेंगे Dos के बारे में कि Dos क्या होता है और यह किस प्रकार कार्य करता है साथ ही साथ इसको प्रोसेस करने की विधि को भी जानेंगे तो पढ़ते रहिए हमारी इस आर्टिकल को

    माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन (Microsoft corporation) ने अगस्त, 1981 में MS-DOS नाम का ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित किया था, जिसका पूरा नाम Microsoh Disk Operating System है। इसे version 1.0 के साथ बाजार में उतारा गया था, जिसे IBM के पर्सनल कम्प्यूटर (IBM PC) के लिये बनाया गया था। इसके बाद DOS के कई version बाजार में आये, जिनमें से आज 6.22 उपलब्ध है। DOS कम्प्यूटर के माइक्रो प्रोसेसर को नियन्त्रित करता है। और कार्य करने के लिये निर्देश देता है। इसकी सहायता से ही कम्प्यूटर फ्लॉपी डिस्क और हार्ड डिस्क को प्रयोग करता है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा एक ही डिस्क पर अनेक फाइलों को संग्रहित करने की सुविधा मिल चुकी थी। इसके पश्चात् ही फाइल और डायरेक्टरी के सिद्धान्त का चलन हुआ.

    Booting of DOS- इस डिस्क का सबसे पहला भाग Boot area होता है, जो Boot record को store करता है। जब हम कम्प्यूटर का प्रारम्भ (Switch on) करते हैं तो एक “step by step process” शुरू होता है, जिसके अन्तर्गत प्रोसेसर सबसे पहले ROM में store निर्देशों को भेजकर अपना कार्य शुरू करता है। ये सभी निर्देश ROM में स्थायी रूप से store रहते हैं, जिन्हें ROM BIOS routines कहते हैं। जब कम्प्यूटर शुरू किया जाता है तो हर बार ये रुटीन्स activate होते हैं। इसमें सबसे पहले यह पता करना होता है कि कम्प्यूटर ठीक प्रकार से कार्य कर रहा है या नहीं अथवा उसमें जुड़े सभी peripheral कार्यरत है या नहीं.

    कम्प्यूटर को इस प्रकार जाँचने को POST (Power On Self Test) कहते हैं। यह Start up routines के अन्तर्गत कार्य करता है। ROM BIOS routines का अगला step “Boot strap process” होता है, जो उस ऑपरेटिंग सिस्टम को मेमोरी में लोड करता है। यदि Boot area कई partition में विभाजित है तो वह Master Boot Record (MBR) को पढ़ता है। यदि ROM BIOS Boot Record को पढ़ने में सफल हो जाता है, तो इसे Boot program को सौंप दिया जाता है। इसके बाद यह दो फाइलों IO.sys और MSDOS. sys को एक्सेस करता है, जो data area में store होता है। जब यह दोनों फाइलें मेमोरी में लोड हो जाती हैं तो कम्प्यूटर config.sys फाइल को ढूंढ़ता है। Boot strap process का Last step COMMAND.COM को Load करना है जो यूजर के लिये Command Intepreter का कार्य करता है.