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  • Computer Introduction Hindi me


    मान लीजिये, आप एक विद्यार्थी या एक अध्यापक या किसी क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं और आपसे पूछा जाता है कि कम्प्यूटर क्या है ? क्या आपके द्वारा ‘नहीं’ में उत्तर देना उचित है ? यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कोई व्यक्ति शिक्षित होते हुए भी यह न जाने कि कम्प्यूटर क्या है। यह अविश्वसनीय प्रतीत होता है। आजकल हर जगह कम्प्यूटर विद्यमान है और पृथ्वी पर रहने वाला कोई भी व्यक्ति इस के अस्तित्व के सत्य को नकार नहीं सकता। जब आप किसी डिपार्टमेन्टल स्टोर में जाते हैं तो देखते हैं कि एक बार कोड रोडर आपके द्वारा खरीदे गये सामान पर बने बार कोड को जाँचता है और एक कम्प्यूटर से जुड़ा हुआ प्रिन्टर आपको बिल बनाकर देता है।

    एक बुद्ध बक्से जैसी दिखने वाली मशीन ने हमारी पूरी जीवन शैली को बदल दिया है।

    पोस्टकार्डस का स्थान ई-मेल ने ले लिया है। बैंकिंग ने नये आयाम ग्रहण कर लिये हैं टिकट लेने या देने की प्रक्रिया ने नया स्वरूप ले लिया है। सब-कुछ ऐसा दिखता है कि मानो कोई अदृश्यशक्ति आदेश दे रही हो-“तथास्तु’ अर्थात् जैसा आप चाहते हैं वैसा ही हो। जब यह मशीन हमारी जीवन शैली को बदल चुकी है, तो क्या हमारी यह जिम्मेदारी नहीं है कि हम इस दिव्य रचना (कम्प्यूटर) की छोटी-बड़ी प्रत्येक बात को जानें में व्यक्तिगत रूप से इसे एक मानवीय रचना के बजाय दिव्य रचना कहता हूँ जिसका विचार मानवीय मस्तिष्क में हमारे जीवन को सुखद बनाने हेतु आया। इस अध्याय में आपको कम्प्यूटर के बारे में अधिकाधिक जानकारी देने का प्रयास किया गया है।

  • Database Management System ke Components kya hai

    DBMS के मेजर कम्पोनेन्ट्स या सॉफ्टवेयर मॉड्युल्स इस प्रकार है।

    1. क्वेरी प्रोसेसर डेटाबेस युजर डेटाबेस के सात प्रदान की गई डेटा मैनिप्युलेशन लैग्वेज में क्वेरी को फॉम्यूलेट • करके डेटा रिट्राइव करता है। क्वेरी प्रोसेसर का उपयोग आन-लाइन युजर की क्वेरी को इंटरप्रिंट करने के लिए किया है तथा इसके एक्जिक्युशन के लिए डेटा मैनेजर को भेजने के लिए कैपेबल फॉर्म में आपरेशन्स की इफिशिएंट सीरिज में कन्वर्ट किया जाता है। क्वेरी प्रोसेसर डेटाबेस के रिलेवेन्ट पोर्शन के स्ट्रक्चर को ढूंढने के लिए डेटा डिक्शनरी का उपयोग करता है तथा इस इन्फॉर्मेशन का उपयोग क्वेरी को मोडिफाए करने तथा डेटाबेस को एक्सेस करने हेतु आप्टिमल प्लान बनाने के लिए करता है।

    2. रन टाइम डेटाबेस मैनेजर: रन टाइम डेटाबेस मैनेजर, DBMS का सेंट्रल सॉफ्टवेयर कम्पोनेन्ट है। यह युजर द्वारा सबमिट किए गए एप्लिकेशन प्रोग्राम्स तथा क्वेरीज के साथ इंटरफेस करता है। यह रनटाइम पर डेटाबेस के एक्सेस को हैंडल करता है। यह प्रत्यक्ष रूप से क्वेरी प्रोसेसर के माध्यम से आने वाली युजर की क्वेरीज में या फिजिकल फाइल सिस्टम के लिए युजर के लॉजिकल व्यू से अप्रत्यक्ष रूप से एप्लिकेशन प्रोग्राम के माध्यम से आपरेशन्स में कन्वर्ट करता है। डेटाबेस मैनेजर, डेटा की कन्सिस्टेन्सी तथा इन्टिग्रिटी को मेन्टेन करने के लिए जिम्मेदार होता है। रन टाइम डेटाबेस मैनेजर को डेटाबेस कंट्रोल सिस्टम भी कहा जाता है। इसके निम्नलिखित कम्पोनेन्ट्स हैं

    (1) अथोराइज्ड कंट्रोल: यह मॉड्युल चैक करता है कि युजर के पास रिक्वायर्ड ऑपरेशन को करने के लिए आवश्यक अथोराइजेशन है या नहीं।

    (11)कमांड प्रोसेसरः यह कम्पोनेन्ट अथोराइजेशन कंट्रोल मॉड्यूल द्वारा पास की गई क्वेरीज को प्रोसेस करता है।।

    (III) इन्टिग्रिटी चैकरः यह कम्पोनेन्ट डेटाबेस को चेन्ज करने वाले रिक्वेस्ट कि गए सभी आपरेशन्स के लिए

    आवश्यक इन्टिग्रिटी कन्स्ट्रेन्ट्स को चैक करता है।

    (iv) क्वेरी आप्टिमाइजर : यह कम्पोनेन्ट क्वेरी के एक्जिक्युशन के लिए ऑप्टिमल स्ट्रेटेजी को डिटरमाइन करने

    हेतु जिम्मेदार है। यह क्वेरी को इवैल्युएट करने के लिए एक इफिशिएंट एक्जिक्युशन प्लान बनाने के लिए कैसे डेटा स्टोर

    किया जाता है, इसकी इन्फॉर्मेशन का उपयोग करता है।

    (v) ट्रांजेक्शन मैनेजर : ट्रांजेक्शन मैनेजर ट्रांजेक्शन्स से प्राप्त किए जाने वाले आपरेशन्स की आवश्यक प्रोसेसिंग परफॉर्म करता है। यह निम्नलिखित दो बाते सुनिश्चित करता है।

    (a) एक उपयुक्त लॉकिंग प्रोटोकॉल के अनुसार टूजिक्शन रिक्वेस्ट तथा रीलिज लॉक्स

    (b) ट्रांजेक्शन्स के एक्जिक्युशन के लिए शेड्युल्स (vi) शेड्युलर यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि डेटाबेस पर कॉन्करंट आपरेशन्स एक दूसरे को कॉन्फ्लिक्ट किए बिना कितना आगे बढ़ते हैं। यह उस रिलेटिव आर्डर को कंट्रोल करता है जिसमें ट्रांजेक्शन आपरेशन्स एक्जिक्यूट किए जाते हैं। दो कम्पोनेन्ट्स होते हैं:

    (b) बफर मैनेजर : बफर मैनेजर को कैशे मैनेजर भी कहा जाता है। यह मेन मेमोरी तथा सेकंडरी स्टोरेज जैसे

    (vii) डेटा मैनेजर : डेटा मैनेजर डेटाबेस में डेटा की एक्युअल हँडलिंग के लिए जिम्मेदार हैं। इस मॉड्युल में (a) रिकवरी मैनेजर : रिकवरी मैनेजर यह सुनिश्चित करता है कि डेटाबेस, फैल्योर्स की प्रेजेन्स में कन्सिस्टेन्ट

    डिस्क या टेप के बीच डेटा ट्रांसफर के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है।

    3. DML प्रोसेसर : DML कम्पाइलर का उपयोग करके DDL प्रोसेसर एक एप्लिकेशन प्रोग्राम में एम्बेडेट DML स्टेटमेन्ट को होस्ट लैंग्वेज में स्टैंडर्ड फंक्शन कॉल्स में कन्वर्ट करता है। DML कम्पाइलर होस्ट प्रोग्रामिंग लँग्वेज में लिखें गए DML स्टेटमेन्ट्स को डेटाबेस एक्सेस के लिए आब्जेक्ट कोड में कन्वर्ट कर देता है.

    4. DDL प्रोसेसर : DDL कम्पाइलर का उपयोग करके DDL प्रोसेसर DDL स्टेटमेन्ट्स को मेटाडेटा वाली टेबल्स के एक सेट में कन्वर्ट करता है। इन टेबल्स में डेटाबेस से संबंधित मेटाडेटा होता है और यह एक ऐसे रूप में होता है, जिसका उपयोग DBMS के अन्य कम्पोनेन्ट्स द्वारा किया जा सकता है।

    5. फिजिकल डेटाबेस : रनटाइम डेटाबेस मैनेजर फिजिकल सिस्टम इम्प्लिमेन्टेशन के एक भाग के रूप में विभिन्न डेटा स्ट्रक्चर्स को इम्प्लिमेन्ट करता है।

    (i) डेटा फाइल्स : डेटा फाइल्स डेटाबेस को स्टोर करती हैं। (ii) डेटा डिक्शनरी : डेटा डिक्शनरी डेटाबेस की विशेष स्किमा में डेटाबेस के स्ट्रक्चर के बारे में मेटाडेटा स्टोर करती है।

    (iii) इन्डाइसेस : इन्डाइसेस या इंडेक्स फाइल्स उन डेटा आइटम्स को तेजी से एक्सेस प्रदान करती हैं, जो विशेष वैल्यूज रखते हैं।

  • Database Management System Kya Hai?

    डेटाबेस मैनेजमेन्ट सिस्टम की विशेषताएँ

    1. डेटा को टेबल्स में स्टोर किया जाता है : डेटा कभी भी सीधे तौर पर डेटाबेस में स्टोर नहीं किया जाता है। डेटा को टेबल्स, में स्टोर किया जाता है, जिन्हें डेटाबेस के भीतर क्रिएट किया जाता है। DBMS टेबल्स के बीच रिलेशनशिप्स की अनुमति भी प्रदान करता है, जो डेटा को और अधिक मिनिंगफुल तथा कनेक्टेड बनाती हैं। आप डेटाबेस में क्रिएट की गई टेबल्स को देखकर आसानी से समझ सकते हैं कि किस प्रकार का डेटा स्टोर किया गया है।
    2. रिड्यूस्ड रिडन्डेन्सी : आज के युग में, हार्ड ड्राइव्स बहुत सस्ती हो चुकी हैं, लेकिन जब हार्ड ड्राइव्स महँग हुआ करती थीं, तब डेटाबेस में डेटा का अनावश्यक रिपिटिशन बहुत बड़ी समस्या थी। लेकिन DBMS नॉर्मलाइजेशन का अनुसरण करता है, जो डेटा को इस प्रकार विभाजित करता है कि पार्टिशन मिनिमम होता है।
    3. डेटा कन्सिस्टेन्सी : लाइव डेटा के केस में, डेटा निरंतर अपडेट तथा एड होता है, इस डेटा की कन्सिस्टेन्स को मेन्टेन करना चुनौतिपूर्ण हो जाता है। लेकिन DBMS इसे स्वयं ही हैंडल कर लेता है।
    4. मल्टिपल युजर तथा कॉन्करंट एक्सेस को सपोर्ट करता है : DBMS एक ही समय पर मल्टिपल युजर्स को कार्य (अपडेट, इन्सर्ट, डिलिट डेटा) करने की अनुमति प्रदान करता इसके साथ ही डेटा कन्सिस्टेन्सी मेन्टेन करना भी मैनेज करता है।
    5. क्वेरी लैंग्वेज : DBMS युजर्स को सिम्पल क्वेरी लैंग्वेज प्रदान करता है, जिसका उपयोग करके डेटा को आसानी से डेटाबेस में फेच, इन्सर्ट, डिलिट तथा अपडेट किया जा सकता है।
    6. सिक्योरिटी : DBMS डेटा की सिक्योरिटी का ध्यान रखता है और अनआथोराइज्ड एक्सेस से डेटा को प्रोजेक्ट भी करता है। DBMS में विभिन्न आथोराइज्ड एक्सेस के साथ युजर अकाउंट्स क्रिएट कर सकते हैं, जिनका उपयोग करके हम युजर एक्सेस को रेस्ट्रिक्ट करके हमारे डेटा को आसानी से सिक्योर कर सकते हैं।
    7. ट्रांजेक्शन्स : DBMS ट्रांजेक्शन्स को सपोर्ट करता है, जो रियलं वर्ल्ड एप्लिकेशन्स में डेटा को बेहतर रूप से हैंडल करने तथा मैनेज करने की अनुमति प्रदान करता है, जहाँ मल्टिथ्रेडिंग का एक्सरेन्सिव रूप से उपयोग किया जाता है। mant Sustem)
  • File systems kya hai?


    फाइल सिस्टम कैसे कार्य करते हैं? (How file systems work?)
    एक फाइल सिस्टम डेटा के स्टोर तथा आर्गेनाइज करता है और स्टोरेज डिवाइस में मौजूद डेटा के लिए एक प्रकार
    के इन्डेक्स के रूप में विचारणीय है। इन डिवाइसेस में हार्ड ड्राइव्स, ऑप्टिकल ड्राइव्स तथा फ्लैश ड्राइव्स सम्मिलित हो सकती है। फाइल सिस्टम्स, नेमिंग फाइल्स के लिए कन्वेन्शन्स को स्पेसिफाए करते हैं। यह किसी नाम में कैरेक्टर्स की अधिकतम संख्या को सम्मिलित करता है, साथ ही यह स्पेसिफाए करता है कि किन कैरेक्टर्स का उपयोग किया जा सकता है तथा कुछ सिस्टम्स में किसी फाइल नेम का सफिक्स कितना लम्बा हो सकता है। कई फाइल सिस्टम में फाइल नेम्स
    केस सेन्सिटिव नहीं होते हैं। फाइल के साथ ही, फाइल सिस्टम्स में फाइल की साइज, साथ ही मेटाडेटा में डायरेक्ट्री के अंतर्गत इसके एट्रिब्युट्स, लोकेशन तथा हायराक जैसी इन्फॉर्मेशन होती है। मेटाडेटा, ड्राइव पर उपलब्ध स्टोरेज के फ्री ब्लॉक्स और उपलब्ध स्पेस को आइडेन्टिफाय करता है।

    एक फाइल सिस्टम में डायरेक्ट्रीज के स्ट्रक्चर के माध्यम से फाइल का पाथ स्पेसिफाय करने के लिए फॉर्मेट भी
    सम्मिलित होना है। फाइल को ट्री स्ट्रक्चर में वांछित स्थान पर विडोज आपरेटींग सिस्टम या सब- डायरेक्ट्री में एक डायरेक्ट्री या फोल्डर में रखा जाता है। पर्सनल कम्प्युटर्स (PCs) तथा मोबाइल आपरेटिंग सिस्टम्स में भी फाइल सिस्टम्स होते है, जिनमें फाइल्स को हायरार्किकल ट्री स्ट्रक्चर में रखा जाता है।


    स्टोरेज मीडियम पर फाइल्स था डायरेक्ट्रीज बनाने से पहले पार्टिशन्स किए जाना चाहिए। एक पार्टिशन हार्ड डिस्क
    या अन्य स्टोरेज का ऐसा क्षेत्र है, जिसे आपरेटिंग सिस्टम अलग से मैनेज करता है। फाइल सिस्टम प्राइमरी पार्टिशन में
    निहित होता हैं और कुछ आपरेटिंग सिस्टम्स एक डिस्क में कई पार्टिशन्स की अनुमति प्रदान करते हैं। इस स्थिति में, यदि
    एक फाइल सिस्टम करप्ट हो जाता है, तो अन्य पार्टिशन का डेटा सेफ रहेगा।
    मैनिप्युलेट करने के लिए रूल्स भी डिफाइन करता है।

  • Database Kya hai? Introduction


    डेटाबेस (DB) डेटा का एक आर्गेनाइज्ड कलेक्शन है। संक्षिप्त रूप से, डेटाबेस एक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम है, जो
    डेटा को आसानी से एक्सेस, मैनिप्युलेट तथा अपडेट करने की अनुमति प्रदान करता है। अन्य शब्दों में, डेटाबेस का उपयोग किसी आर्गेनाइजेशन द्वारा इन्फॉर्मेशन को स्टोर मैनेज तथा रिट्राइव करने के रूप म किया जा सकता है। मॉडर्न डेटाबेसेस
    को डेटाबेस मैनेजमेन्ट सिस्टम (DBMS) द्वारा मैनेज किया जाता है। डेटाबेस का मुख्य उद्देश्य डेटा को स्टोर, रिट्राइव तथा मैनेज करके इन्फॉर्मेशन की बड़ी मात्रा को ऑपरेट करना होता है।


    सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स ओरेकल, SQL सर्वर तथा MySQL इत्यादि जैसे रिलेशनल डेटाबेसेस के माध्यम से डेटाबेस कॉन्सेप्टस से परिचित होते हैं। साधारण तौर पर, एक डेटाबेस स्ट्रक्चर डेब्युलर फॉर्मेट में डेटा स्टोर करता है। डेटाबेस का आर्किटेक्चर एक्सटर्नल, इन्टर्नल या कॉन्सेप्चुअल हो सकता है। एक्सटर्नल लेवल वह तरीका स्पष्ट करता है, जिसमें प्रत्येक एन्ड युजर डेटाबेस में रेलेवेन्ट डेटा के करस्पॉन्डिंग इसके आर्गेनाइजेशन की समझ रखता है। इन्टर्नल लेवल परफॉर्मेन्स,
    स्कैलेबिलिटी, कॉस्ट तथा अन्य ऑपरेशनल मैटर्स के साथ डील करता है। कॉन्सेप्चुअल लेवल एक डिफाइन्ड तथा ग्लोबल
    व्यु में विभिन्न एक्सटर्नल व्यूज को सही तरह से युनिफाए करता है। इसमें प्रत्येक एन्ड युजर के लिए आवश्यक जैनेरिक
    डेटा सम्मिलित होता है।

  • Chatting क्या है ? इसके प्रकार क्या है

    Chatting क्या है ? इसके प्रकार क्या है

    Chatting : Chat का अर्थ सामान्यतः बातचीत करना होता है। जिस प्रकार हम आमने-सामने खड़े रहकर या टेलीफोन पर बातें करते हैं उसी प्रकार इंटरनेट पर चैटिंग की परिकल्पना है। इंटरनेट पर chat कई रूप में उपलब्ध है.

    जिसमें दो प्रमुख एवं प्रचलित:

    (1) Text chatting, (2) Voice chatting

    Text Chatting

    Text chatting– Text chatting में keyboard के द्वारा संदेश Input किए जाते हैं तथा दूसरी तरफ बैठा व्यक्ति हमारे प्रेसित message को पढ़ता है तथा इसका उत्तर इसी fom और process के द्वारा देता है। हम एक या एक से अधिक व्यक्तियों के साथ chat कर सकते हैं। चैट पूरी तरह से इंटर एक्टिव है तथा इसमें तत्काल message प्रेसित किया जाता है या प्राप्त होता है। इसके लिये दोनों तरफ के व्यक्तियों का Online होना। आवश्यक है। Text chatting के लिए कई website उपलब्ध हैं.

    1. www.yahoo.com
    2. www.sify.com
    3. www.hotmail.com

    Voice Chatting

    Voice chatting– जिस प्रकार टेलीफोन से अपने मित्रों तथा रिश्तेदारों के साथ बातचीत करते हैं ठीक उसी प्रकार voice chatting के द्वारा हम इंटरनेट पर किसी भी व्यक्ति से बात कर सकते हैं। बॉइस chat टेलीफोन की तुलना में सस्ती सेवा है। इसमें दूरी के आधार पर शुल्क नहीं देना होता है। voice chat के माध्यम से हम एक समय में केवल एक ही व्यक्ति के साथ सम्पर्क बना सकते हैं, परन्तु यदि हमारे पास full duplex sound card है तो हम दो व्यक्तियों के साथ एक साथ बात कर सकते है। इसके लिए हमारे पास एक माइक्रोफोन, एक स्पीकर तथा इसके लिए प्रयोग होने वाला विशेष प्रोग्राम होना चाहिए। इंटरनेट पर इंटरनेट फोन नाम का शेयरवेयर www.vocaltec.com पर उपलब्ध है, जिसका प्रयोग voice chatting software के रूप में कर सकते हैं।

  • Portals क्या है? यह किस प्रकार कार्य करता है

    Portals क्या है? यह किस प्रकार कार्य करता है

    Portals क्या है?

    Portals: यह एक इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल (Portal) होता है। वह वेब साइट जो हमें सामान की खरीद-बिक्री से सम्बन्धित जानकारी या E-commerce की सुविधा प्रदान करती है, E-portal या portal कहलाती है। जैसे- Yahoo.com एक पोर्टल है जो Email. Chat, News, Advertisement आदि की सुविधा देती है। इसके अलावा हवाई यात्रा के लिए आरक्षण व किसी वस्तु की नीलामी में भागीदारी तक की सुविधा देती है। E-portal के माध्यम से कोई भी यूजर घर बैठे कुछ भी खरीद व बेच सकता है।

    आजकल कई कम्पनियों की websites इस concept को अपना रही है। इस तरीके के अपनाने के कारण किसी यूजर को कुछ खरीदने व बिक्री करने के लिए किए गए अन्य खों से छुटकारा मिल जाता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति कोई वाहन खरीदना चाहता है, तो E-portals की सहायता से वह अपना वाहन घर बैठे खरीद सकता है, इसके लिए उसे केवल वेब साइट पर लिखी प्रविष्टियाँ भरनी होंगी, व कम्पनी को अपना Address देना होगा ताकि वह अपने ऐजेंट के माध्यम से आपको वाहन उपलब्ध करा सके।

  • SMTP क्या है? Full-Form of SMTP

    SMTP क्या है? Full-Form of SMTP

    Image Credit: educba.com

    S.M.T.P. का आशय सिम्पल मेल ट्रान्सफर प्रोटोकाल (Simple Mail Transfer Protocol) है। E-mail system के लिए यह एक main प्रोटोकॉल है। इस प्रोटोकॉल की सहायता से ही इलेक्ट्रॉनिक mail एक computer से दूसरे computer पर पहुँचती है। यह TCP/IP परिवार का प्रोटोकॉल है। SMTP किसी मेल को एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम तक पहुंचने का विवरण देता है। इंटरनेट पर हजारों-लाखों सिस्टम S.M.T.P. की सहायता से B. mail भेजते व प्राप्त करते हैं।

  • Web-based तथा Pop based E-mail में अन्तर

    Web-based तथा Pop based E-mail में अन्तर

    Pop based E-mail

    Web-based E-mail

    Web based E-mail- वेब आधारित E-mail द्वारा हम E-mail प्रदाता की साइट पर पहुँचने के लिए Intemet Browser का प्रयोग कर सकते हैं और इसके बाद user name तथा password की सहायता से Login कर सकते हैं। E-mail provider हमारे सभी संदेशों को हमारे लिए संग्रहित करके रखता है। अधिकांश विशालकाय free Email provider (प्रदाता) वेब बेस्ड E-mail व्यवसाय के अन्तर्गत कार्य करते हैं। क्योंकि इस प्रकार की service सरलता से कार्यान्वित हो जाती है तथा यह साइट पर visitors को बार-बार आने के लिए invite करता है। कई सेवाएँ अतिरिक्त कार्य जैसे- ऑनलाइनबर्तनी जाँच, Personal Address book, Index आदि को भी करती है।

    Pop based E-mail Services

    Pop based E-mail Services– पॉप आधारित ई-mail services हमारे Email को किसी Remote server पर store करती है। हम इस server से किसी भी समय जुड़ सकते हैं तथा अपने E-mail को पसंदीदा E-mail software पैकेज में डाउनलोड कर सकते हैं। साधारणतः Pop E-mail के साथ अपने-अपने स्थानीय कम्प्यूटर पर एक बार में ही सभी नए संदेशों को डाउनलोड कर सकते हैं। Pop based (Pop) mail service हमारे आने वाले messages को तब तक server पर store रखता है, जब तक हम इसे store करने के लिए तैयार नहीं हो जाते, इन्हें E-mail Download software जैसे- युडोरा (Eudora) आउटलुक आदि की सहायता से Download कर सकते हैं। एक बार जब हम message को Download कर लेते हैं तो वे अधिकांश इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) में Pop-mail ही उपलब्ध रखता है। इसलिए हमारे पास पहले से ही संभवतः कम से कम एक कम एक Pop-mail एकाउण्ट होना चाहिये।

    आप पढ़ सकते हैं:

  • Word Processor और Text Editor में क्या अन्तर है?

    Word Processor और Text Editor में क्या अन्तर है?

    Word Processor और Text Editor में क्या अन्तर है?

    Word Processor

    Word Processor- वर्ड प्रोसेसिंग के अन्तर्गत किसी भी डॉक्यूमेन्ट को टाइप करना, सुरक्षित करना तथा प्रिंट करना आदि कार्य आते है। वड प्रातात सहायता देने वाले सिस्टम को वर्ड प्रोसेसर कहते हैं। वर्ड प्रोसेसर ऐसे सिस्टम को कहा जाता है जो Document टाइप करने में परिवर्तित करने में. सरक्षित करने में सहायता करता है। इसके द्वारा अनेक कार्य जैसे लेटर ड्रॉफ्टिंग, मेलिंग लिस्ट निकालना, रिपोर्ट तैयार आदि किये जाते हैं।

    वर्ड प्रोसेसिंग के लिये कई सॉफ्टवेयर बाजार में उपलब्ध हैं। जैसे Word-97, Word2000 आदि जिन्हें माइक्रो सॉफ्ट कार्पोरेशन ने विकसित किया है। माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन के ऑफिस-2000 में एक सुविधाजनक बात यह है कि इसके सभी उपयोगों में समानता होती है सभी उपयोगों में एकसमान स्क्रीन एलीमेन्ट (Screen Element), मेन्यू बार (Menu bar), टूलबार (Tool bar) और डायलॉग बॉक्स (DialogBox) का उपयोग होता है।

    इन सॉफ्टवेयरों का उपयोग करने के लिये Keyboard के अलावा Mouse का उपयोग भी बहुत ज्यादा किया जाता है।

    World Processor जैसे- Word-97, Word-2000 को उपयोग करने के लिये स्टार्ट बटन (Start Button) दबाते हैं ऐसा करते ही एक लिस्ट प्रदर्शित होती है। जिसमें कई विकल्प मौजूद होते हैं। यहाँ से प्रोग्राम विकल्प का चुनाव करते हैं, तब एक अन्य सूची प्रदर्शित होती है जहाँ से इन सॉफ्टवेयरों को क्लिक करके Open किया जा सकता है।

    इस प्रकार के वर्ड प्रोसेसर सॉफ्टवेयर पर यूजर्स जो कि कम्प्यूटर का थोड़ा-सा ज्ञान रखते हैं। आसानी से कार्य कर सकते हैं। आजकल के आधुनिक ऑफिसों में डॉक्यूमेन्ट को इन्हीं सॉफ्टवेयरों की मदद से निर्मित किया जाता है।

    Text Editor

    Text Editor-टैक्स्ट एडिटर निम्न कार्य करता है

    • नये टैक्स्ट को प्रविष्ट करना (Inserting a test)
    • अनचाहे टैक्स्ट को मिटाना (Deletinga test)
    • टैक्स्ट को कॉपी या मूव करना (Moving and Copying a text)

    1. नये टैक्स्ट को प्रविष्ट करना (Inserting a test)– नये टैक्स्ट को इन्सर्ट करने की लिये जहाँ पर टैक्स्ट को प्रविष्ट कराना है वहाँ पर इन्सर्शन बिन्दु यानि कर्सर को ऐरी का (Arrow key) की सहायता से ले जाते हैं। उसके बाद टैक्स्ट को टाइप करते हैं। इन्सर्शन बिन्द के आगे चलने के साथ-साथ टैक्स्ट स्क्रीन पर प्रकट होता जाता है।

    2. अनचाहे टैक्स्ट को मिटाना (Deleting a test)– टैक्स्ट को मिटाने की निम्न विधियाँ हैं.

    (i) इन्सर्शन बिन्दु या कर्सर (cursor) के दायें तरफ स्थिर कैरेक्टर्स (characters) को मिटाने के लिये डिलीट कुंजी (Delete key) का प्रयोग करते हैं तथा बायें तरफ के कैरेक्टर्स को मिटाने के लिये बेकस्पेस (Backspace) कुंजी का प्रयोग करते हैं। ये विधि सबसे ज्यादा प्रभावी तब होती है जब यूजर (user) टाइप कर रहा होता है तथा कुछ अक्षर या लाइन मिटानी हो।

    (ii) अधिक लाइनों को मिटाने के लिये उन लाइनों को चुना जाता है जिन्हें मिटाना होता है तथा डिलीट कुंजी (Delete key) दबाने पर उक्त लाइनें डिलीट हो जाती हैं।

    (iii) तेज गति से मिटाने के लिये कन्ट्रोल + डिलीट कुंजी दबाने से टैक्स्ट में इन्सर्शन बिन्दु से शब्द के अन्त तक का भाग मिट जाता है। तथा कन्ट्रोल + बेकस्पेस कुंजी को दबाने पर इन्सर्शन बिन्दु से शब्द शुरू तक का भाग मिट जाता है यह विधि उस समय बहुत प्रभावी होती है, जब पहले से बने हुये बॉक्स में कोई नाम शब्द डालना चाहते हैं।

    3. टैक्स्ट को कॉपी या मूव करना (Moving and Copying a text)- टैक्स्ट को एक स्थान से दूसरे स्थान पर कॉपी व मूव (move) करने के लिये दो विधियाँ हैं

    • कट तथा पेस्ट विधि (Cut and Paste Method)
    • ड्रेग तथा ड्रॉप विधि (Drag and Drop Method)

    (i) कट तथा पेस्ट विधि (Cut and Paste Method)- यह विधि दो चरण में परी होती है पहले चुने हुये टैक्स्ट को कट (cut) या कॉपी (copy) कहते हैं। जिससे टैक्स्ट क्लिप बोर्ड पर स्थित हो जाता है तत्पश्चात् पेस्ट करने पर टैक्स्ट उचित स्थान पर मूव हो जाता है।

    (ii) ड्रेग तथा ड्रॉप विधि (Drag and Drop Method)- इस विधि में सम्बन्धित टैक्स्ट को माउस की सहायता से ड्रेग करके, उचित जगह पर ड्रॉप करके मूव कराया जाता है।