Category: Computer

  • File Operations फाइलों का संचालन किस प्रकार किया जाता है?

    File Operations फाइलों का संचालन किस प्रकार किया जाता है?

    file operations

    फाइलों का संचालन करना- एम.एस. एक्सेल में फाइलों के संचालन में फाइलों को खोलना, फाइलें बनाना, फाइलों को सुरक्षित करना, उसका नाम बदलना एवं बन्द करना आता है।

    (A) नई फाइल/वर्कबुक बनाना-

    नयी फाइल या वर्कबुक बनाने के लिये कोई एक विधि का प्रयोग करें.

    • File मैन्यू से New का चयन करे। या Ctrl+N दबायें। या स्टैन्डर्ड टूलबार से न्यू बटन को क्लिक करें।

    • न्यू डायलॉग बॉक्स में वर्कबुक पर क्लिक करें।

    • OK बटन का चयन करें।

    (B) फाइल या वर्कबुक खोलना-

    फाइल या वर्कबुक खोलने के लिये.

    • फाइल मैन्यू से ओपन का चयन करें।

    या, Ctrl + 0 दबायें और इच्छित फाइल का चयन करें। या, स्टैन्डर्ड टूलबार से ओवन बटन पर क्लिक करें और इच्छित फाइल को चुनें।

    • Look in उस ड्राइव तथा फोल्डर का चयन करें जिसमें फाइल संगृहीत है।
    • इच्छित फाइल के नाम पर क्लिक करें।
    • Open बटन पर क्लिक करे। 

    (C) फाइल या वर्कबुक सुरक्षित करना-

    फाइल या वर्कबुक सुरक्षित करने के लिये

    • File मैन्यू से Save पर क्लिक करें। या Ctrl+S दबायें। या स्टैन्डर्ड टूलबार से सेब बटन को क्लिक करें.
    • Save As डायलॉग बॉक्स में Save in से उस ड्राइव तथा फोल्डर का चयन करें जिसमें फाइल को संगृहीत करना है.
    • फाइल का इच्छित नाम टाइप करें.
    • OK बटन दबायें। Save As.

    फाइलों की प्रतिलिपि बनाने के पद लिखिये।

    • फाइल को क्लिक करें तथा Open का चयन करें या, Ctrl+0 की-बोर्ड से एक साथ दबायें। या फिर ओपन बटन को स्टैन्डर्ड टूलबार से क्लिक करें।
    • Look in बॉक्स में, उस ड्राइव या फोल्डर को क्लिक करें, जिससे फाइल को कॉपी करना है।
    • जिस फाइल को कॉपी करना है उसका दायाँ क्लिक करें तथा शॉट-कट मैन्यू से कॉपी का चयन करें।
    • इसके बाद, Look in बॉक्स में उस ड्राइव या फोल्डर को क्लिक करें जिसमें कॉपी किये गये फाइल को पेस्ट करना है।
    • फोल्डर लिस्ट में दायाँ क्लिक करें तथा शॉट-कट मैन्यू से Paste को क्लिक करें। 

    अब फाइल को एक और विधि से भी कॉपी कर सकते हैं। इसके लिये निम्न पदों का अनुसरण करें-

    • आप फाइल को खोले जिसका प्रतिलिपि बनाना है। 
    • File मैन्यू से Save As का चुनाव करें या Ctrl+A की-बोर्ड से दबायें। 
    • File name में डॉक्यूमेन्ट का नया नाम टाइप करें। 
    • Save बटन पर क्लिक करें या एन्टर की दबायें।

    फाइल के नाम किस प्रकार बदले जाते हैं?

    फाइल के नाम को बदलना- फाइल के नाम को बदलने के लिये ऐसा करें.

    • फाइल को क्लिक करें तथा Open का चयन करें। या Ctrl+O की-बोर्ड से एक साथ दबायें। या फिर Open बटन को स्टैन्डर्ड टूलबार से क्लिक करें।
    • Look in बॉक्स में उस ड्राइव या फोल्डर को क्लिक करें जिसमें वह फाइल है जिसका नाम बदलना है।
    • उस फाइल पर दायां क्लिक करें जिसका नाम बदलना है।
    • शॉट-कट मेन्यू से Rename को चुनें।
    • इच्छित नाम टाइप करें।

    कुछ महत्वपूर्ण आर्टिकल

  • किसी Document को Edit किस प्रकार करेंगे?

    किसी Document को Edit किस प्रकार करेंगे?

    आज हम सीखने वाले हैं कि किस प्रकार किसी भी Document को Edit किस प्रकार किया जाता है तो मित्रों पढ़ते रहिए हमारे Article को और सीखे किस तरह से यह कार्य करता है.

    Document

    एम.एस. वर्ड के अन्तर्गत एडिटिंग (editing) से जुड़े सभी कार्य एम.एस. वर्ड एडिट मीनू द्वारा सम्पन्न करते हैं। किसी भी डॉक्यूमेन्ट को एडिट करने के लिये निम्न का आवश्यक हैं

    (1) सर्वप्रथम डॉक्यूमेन्ट में सही स्थान का चुनाव करना।

    (2) न्यू टैक्स्ट (New text) को इन्टर (Enter) करना।

    (3) अनचाहे टैक्स्ट को हटाना।

    (1) सर्वप्रथम डॉक्यूमेन्ट में सही स्थान का चुनाव करना (Choose a right place in a document)-

    माउस के द्वारा डॉक्यूमेन्ट में सही स्थान चुनने या खोजने के लिये scrollbar का उपयोग करते हैं। वर्ड के अन्दर टैक्स्ट का सिलेक्शन माउस और की बोर्ड की सहायता से आसानी से किया जा सकता है।

    माउस के द्वारा टैक्स्ट को चुनने के दो तरीके हैं

    (i) क्लिक और ड्रेग तरीके का उपयोग- इसके उपयोग के निम्नलिखित स्टैप्स (steps)

    (a) जहाँ से आप सिलेक्ट करना चाहते हैं, उस वर्ड के बायें कार्नर (Left comer) पर क्लिक करें तथा माउस बटन को दबाकर रखें।

    (b) टैक्स्ट के चुने जाने पर वह टैक्स्ट सिलेक्ट हो जायेगा तब माउस का बटन छोड़ देते हैं।

    (ii) क्लिक और शिफ्ट तरीके का उपयोग- इसके उपयोग के निम्नलिखित स्टैप्स (steps) हैं.

    (a) जिस वर्ड (word) को चुनना चाहते हैं उसके लेफ्ट साइड (Left side) के फर्स्ट कैरेक्टर (First character) पर क्लिक करें।

    (b) टैक्स्ट को आप जहाँ तक चुनना चाहते हैं। वहाँ तक स्क्रॉल बार की सहायता से स्क्रॉल करें।

    (c) जहाँ तक चुनना चाहते हैं, उसके अन्त में क्लिक करें। स्टार्ट (Start) से लेकर क्लिक करने वाले स्थान तक का सारा टैक्स्ट हाईलाइट (Highlight) हो जाये।

    यदि हम चाहें तो की-बोर्ड के द्वारा भी टैक्स्ट को चुन सकते हैं। इसके लिये टैक्स्ट को सिलैक्ट करने के लिये शिफ्ट की को प्रेस कर Insertion प्वाइन्ट को चलाने वाली किसी भी की (kev) जैसे- Arrow key का उपयोग करके सिलेक्ट कर सकते हैं।

    (2) न्यू टैक्स्ट को एन्टर करना (Enter of New text)-

    न्यू टैक्स्ट को इन्सर्ट कराने के लिये की-बोर्ड से टाइप करते हैं ऐसा करते हुये इन्सर्शन प्वाइन्ट (Insertion point) आगे-आगे व अक्षर (character) पीछे दिखायी देते हैं।

    (3) अनचाहे टैक्स्ट को हटाना (Delete of Unusable text)-

    Insertion point या कर्सर (cursor) के लेफ्ट साइड स्थित अक्षर (character) को हटाने के लिये Delete की का उपयोग करते हैं तथा left side के अक्षर को मिटाने के लिये बैकस्पेस-की (backspacekevl का उपयोग करते हैं। तेजी से मिटाने के लिये दो तरीके हैं। जिसमें पहला तरीका यह कन्टोल + डिलीट-की को दबाने से text में Insertion point से वर्ड के last का पार्ट मिट जाता है तथा कन्ट्रोल + बेकस्पेस की (ctrl + backspace key) दबाने से Insertion point से वर्ड के स्टार्ट तक का पार्ट मिट जाता है।


    कुछ महत्वपूर्ण आर्टिकल

    हम आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी प्राप्त कर अच्छा लगा होगा और आपको लगता है कि हमसे किसी प्रकार की जानकारी छूट गई है तो कृपया कर हमें उसकी जानकारी कमेंट के जरिए दे सकते हैं

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  • What is Computer Virus? Computer Virus क्या है

    What is Computer Virus? Computer Virus क्या है

    Computer Virus– कम्प्यूटर वाइरस भी एक प्रकार के विनाशकारी प्रोग्राम होते हैं जो हमारे डाटा व प्रोग्रामों को, बिना हमारी अनुमति के हमारे कम्प्यूटर में घुस कर कुछ भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

    what is computer virus

    आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम सीखने वाले हैं, Computer Virus के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं. अगर आपको कंप्यूटर वायरस के बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो यह वायरस आपके कंप्यूटर को नुकसान पहुंचा सकते हैं यही कारण है कि हमें कंप्यूटर के वायरस के बारे में जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है अगर आप computer में Internet का प्रयोग करते हैं तो.

    आज के इस Article में आपको बहुत ही आसान भाषा में Computer Virus क्या है  के बारे में जानने को मिलेगा और कैसे काम करते हैं आपको सभी जानकारी आज पढ़ने को मिलेगी.

    Computer Virus क्या है?

    Computer Virus– कम्प्यूटर वाइरस भी एक प्रकार के विनाशकारी प्रोग्राम होते हैं जो हमारे DATA व प्रोग्रामों को, बिना हमारी अनुमति के हमारे कम्प्यूटर में घुस कर कुछ भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

    एक बार Computer में घुसने के बाद ये अपनी स्थिति सुदृढ़ बना लेते हैं, और फिर संक्रामक रोग की तरह फैलना प्रारम्भ कर देते हैं। ये किसी भी अछूती फ्लॉपी डिस्क या हार्ड डिस्क के सम्पर्क में आते ही घुस जाते हैं। बाद में उस वाइरस वाली फ्लॉपी डिस्क को यदि किसी दूसरे कम्प्यूटर पर चलाने का प्रयास किया जाये तो ये उसकी Hard Disk में घुसकर बैठ जाते हैं, और संक्रामक रोग की तरह यह बीमारी फैलती रहती है।

    Virus की पहचान व उससे छुटकारा पाना बहुत महंगा पड़ सकता है। – वाइरस के प्रोग्राम उन लोगों द्वारा लिखे जाते हैं जो Computer के Program लिखने में अत्यन्त कुशल हैं और जिन्हें दूसरों को क्षति पहुँचाने में आनन्द का अनुभव होता है। अब सैकड़ों प्रकार के वाइरस पहचाने जा चुके हैं।

    वाइरस प्रोग्रामों के विकास के साथ बचाव के लिये कुछ Hardware तथा Software का भी विकास हुआ है। ऐसे हार्डवेअर कार्ड कम्प्यूटर में लगा देने से यदि कोई वाइरस अनाधिकार प्रवेश की चेष्ट करता है, तो कम्प्यूटर एक चेतावनी देता है।

    इस प्रकार के कुछ सॉफ्टवेअर भी मिलने लगे हैं। कुछ Software हमारे Computer System की जाँच करके बता सकते हैं कि उसमें Virus है या नहीं, और यदि हैं तो उन्हें निकाला भी जा सकता है। प्रोग्रामों को virus detection and cleaning प्रोग्राम कहा जाता है। परन्तु ये प्रोग्राम हमेशा सफल नहीं होते क्योंकि समय के साथ नये-नये वाइरस आते रहते हैं और वाइरस से विनाश का संदेह बना ही रहता है।

    वाइरस का प्रवेश-

    हमारे Computer में वाइरस अनेक प्रकार से प्रवेश कर सकता है।

    किसी भी वाइरस वाली Floppy, Disk, Hard Drive में लगाते ही सबसे पहले वाइरस अपने आप को कम्प्यूटर की RAM में प्रविष्ट करता है, फिर वह हार्ड डिस्क पर स्थायित्व जमा लेता है, और उसके पश्चात् हम जितनी भी शुद्ध फ्लॉपी डिस्कों का प्रयोग करेंगे, वाइरस उन सब में चला जायेगा। उन दूषित फ्लॉपियों के द्वारा वह अन्य कम्प्यूटरों में चला जायेगा और वही क्रिया दोहराई जाती रहेगी।

     प्रतिबन्ध-

    वाइरसों से सुरक्षा का सर्वोत्तम उपाय तो यही है कि उन्हें प्रवेश ही न करने दिया जाये. इसके लिये कुछ सावधानियाँ अपनाना चाहिये जो कि निम्न हैं.

    (1) Internet पर E-Mail के साथ क्लिक की हुई फाइलों को सन्देह की दृष्टि से देखें और किसी अपरिचित द्वारा भेजी गई ऐसी फाइल को अपने कम्प्यूटर पर नहीं खोलें।

    (2) किसी भी अपरिचित या माँगी हुई फ्लॉपी डिस्क से अपने कम्प्यूटर को बूट न करें।

    (3) अपनी Hard Disk के सभी Program व मूल्यवान DATA का पूरी Backup रखें ताकि यदि उपयोगी बना कर अपना कार्य आरम्भ कर सकें। Hard Disk को Format करना पड़ जाये तो हम थोड़े समय में ही उसे पुनः

    (4) अपनी Floppy Disk को अन्य कम्प्यूटरों पर प्रयोग करते समय उन्हें राइट प्रोटेक्ट करके उपयोग में लेने से उस कम्प्यूटर में यदि कोई Virus हो तो भी वह वाइरस हमारी फ्लॉपी डिस्क में प्रवेश नहीं कर सकेगा।

    (5) अपनी Hard Disk पर वाइरस पकड़े जाने पर उसे फोरमेट आदेश द्वारा Format करना ही वाइरस को नष्ट करने की सर्वोत्तम विधि है.


    कुछ महत्वपूर्ण Post:

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  • Computer के विभिन्न क्षेत्रों में क्या उपयोग है।

    Computer के विभिन्न क्षेत्रों में क्या उपयोग है।

    uses of computer

    भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आगमन हो रहा है। वहीं हमारे उद्योगपति विदेशों में अपने कार्य-क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं। यह युग प्रतिस्पर्धा का युग है। वही बाजा में खडा रह पायेगा जो सर्वोत्तम सुविधायें प्रदान करेगा। जबकि हमारे प्रतिस्पर्डी पी कम्प्यूटरीकृत हैं तो हमारे लिये भी यह आवश्यक है कि हम इस दिशा में पिछडे न Computer के द्वारा कार्य की गति में वृद्धि से उत्पादन लागत कम हो जाती है, अतः प्रतिस्पी हेतु हमें भी अपनी सेवायें उसी स्तर पर रखनी होंगी। इसलिये हमें Computerization करना ही होगा। इसके प्रभावों का विवेचन निम्न प्रकार से है.

    (A) ग्राहक सेवा पर प्रभाव-

    Computer के प्रयोग से ग्राहक सेवा का स्तर बढ़ता है। बाजार में ग्राहक की सन्तुष्टि ही मूल मन्त्र है।

    (1) Computer द्वारा कार्य करने की गति बढ़ती है। ग्राहक को अधिक देर तक लाइन में प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। अतः समय की बचत होती है।

    (2) Computer द्वारा गणनायें पूर्णतः सही एवं विश्वसनीय होती हैं। इससे ग्राहक को अनावश्यक गणना नहीं करनी पड़ती है। साथ ही वह गलतियों को सही कराने के लिये चक्कर लगाने से बच जाता है।

    (3) Computer एक मशीन है। यह कभी थकती नहीं है। अतः ग्राहक को कभी भी कार्य हेतु टरकाती नहीं है।

    (4) Computer द्वारा विवरण तुरन्त ही तैयार हो जाते हैं, जिससे उपभोक्ता अपना मिलान कर सकता है।

    (B) डाटा ट्रांसमिशन-

    परम्परागत रूप में डाटा पेपर पर प्रिन्ट करके डाक द्वारा भेजा जाता था। Electronic के विकास के साथ ही डाटा ट्रांसमिशन हेतु टैलेक्स तथा फैक्स का प्रयोग होने लगा है। Computer ने इस प्रक्रिया को अति आसान कर दिया है। वहीं संचार क्रांति के साथ डाटा-प्रेषण के अन्य साधन भी उपलब्ध हो गये हैं, जिन्हें Computer के साथ जोड़कर चमत्कारिक परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

    (1) टैलेक्स को Computer के साथ जोड़ा जा सकता है। कम्प्यूटर स्वतः ही डायल करता है तथा सन्देश प्रेषित कर देता है। इस प्रकार हम एक ओर से सन्देश फीड कर सकते हैं दूसरी ओर उसी समय में प्रेषण भी होता रहता है।

    (2) Computer में मॉडेम लगाकार टेलीफोन लाइन के माध्यम से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार Electronic Mail द्वारा सन्देश एक Computer से दूसरे कम्प्यूटर पर प्रेषित हो जाता है। इसमें सन्देश इतना शीघ्र प्रेषित होता है कि पूरी की पूरी किताब Telephone की एक काल में भेजी जा सकती है।

    (3) Internet के द्वारा हम विश्व के किसी भाग में सीधे ही सन्देश, चित्र आदि भेज सकते हैं। इसमें उपभोक्ता satellite के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। प्रत्येक उपभोक्ता का एक सैटेलाइट एड्रेस होता है, जिसके द्वारा उससे सम्पर्क किया जाता है।

    (4) Data को Floppy पर Copy करके फ्लॉपी को कोरियर अथवा डाक द्वारा भेजा जा सकता है। इसमें लागत कम आती है तथा काफी मात्रा में DATA एक लिफाफे में ही आ जाता है।

    (C) स्टोरेज डिवाइस-

    Computer ने Data का Store (संग्रह) बड़ा ही आसान कर दिया है। कागज पर रिकॉर्ड रखने में हमने बहुत-सी फाइलें अलग-अलग व्यवस्थित करनी पड़ती थीं, पहेत स्थान की आवश्यकता होती थी। दूसरे लागत भी बहुत बढ़ जाती थी। साथ ही अधिक दल में से अपने उपयोग की Files ढूंढना भी कठिन कार्य था। कम्प्यूटर में डाटा संचय तथा फाइल प्रबन्धन उच्च कोटि का है।

    (1) DATA को Hard Disk में Store किया जा सकता है। आजकल काफी अधिक शक्ति की Hard Disk बाजार में प्रचलित हैं, जिनमें डाटा किलोबाइट में न होकर Megabyte में आता है। इसमें बहुत-सी किताबें एक साथ आ सकती हैं।

    (2) Computer की कार्य कुशलता बढ़ाने हेतु हम Data को Computer से अलग डिवाइस में भी स्टोर कर सकते हैं, जहाँ से आवश्यकता पड़ने पर पुनः प्रयोग किया जा सकता है। इससे हार्ड डिस्क की मेमोरी की समस्या ही नहीं रहती है।

    (i) डाटा को फ्लॉपी डिस्क में स्टोर कर सकते हैं। ये 1.2 MB तथा 1.44MB के आकार में उपलब्ध हैं। हम अलग-अलग प्रकार के डाटा के लिये अलग-अलग फ्लॉपी प्रयोग कर सकते हैं।

    (ii) डाटा को मेग्नेटिक टेप पर एकत्र कर सकते हैं। इसमें डाटा सिक्वेन्सियल रूप में जमा होता है। जब भी कोई डाटा आवश्यक हो टेप को कम्प्यूटर में नकल करके वाँछित डाटा निकाला जा सकता है.

    (iii) आजकल मार्केट में कैसिट के आकार की मैग्नेटिक टेप उपलब्ध हैं जिन पर प्रतिदिन का बैकअप लिया जा सकता है। इसे कभी भी दुर्घटना की स्थिति में प्रयोग किया जा सकता है।

    (iv) आजकल डाटा स्टोर की नई विधि ऑप्टीकल रिकॉरिंग भी आ गयी है जिसमें डाटा लेसर किरण की सहायता से एक प्लेट पर स्टोर कर लिया जाता है जिसे लेसर की सहायता से पुनः पढ़ा जा सकता है।

    (D) व्यापार पर प्रभाव-

    व्यापारिक क्षेत्र को कम्प्यूटर ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। आज के प्रतिस्पर्धी युग में प्रत्येक व्यापारी के लिये कम्प्यूटर का प्रयोग अनिवार्य है.

    (1) कम्प्यूटर द्वारा अंकगणितीय कार्य अत्यधिक कुशलता एवं विश्वसनीयता से सम्पन्न किये जाते हैं। अतः व्यापार में बिल जारी करने तथा खातों के रख रखाव में यह अत्यन्त आवश्यक है।

    (2) बढ़ती प्रतियोगिता के युग में यह आवश्यक है कि हम अपनी उत्पादन लागत को कम से कम रखें। कम्प्यूटर के द्वारा यूनिट लागत की गणना सही की जा सकती है ताकि प्रतिस्पर्धी कीमतें निर्धारित की जा सकें।

    (3) कम्प्यूटर द्वारा बिना थके लगातार कार्य किया जा सकता है। अतः उत्पादन की मात्रा बढ़ती है तथा लागत में कमी आती है।

    (4) आज का युग सूचना क्रान्ति का युग है। वर्तमान में व्यापारी को विश्व में घट रहा है? इसकी जानकारी रखनी होती है जो कम्प्यूटर के माध्यम सारी को विश्व में कहाँ क्या सके माध्यम से ही सम्भव पकता है कि उसका मता का विस्तार होता है.

    (5) कम्प्यटर के प्रयोग के द्वारा व्यापारी यह विश्लेषण कर सकता है, कि उसका उत्पादन निष्पादन क्या है? यह बढ़ रहा है अथवा घट रहा है? उसी कार्य-कशलता हेतु प्रयास कर सकता है। अतः प्रबन्धन क्षमता काल है।

    कम्प्यूटर का विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग

    (1) औद्योगिक क्षेत्र-

    उद्योगों में निर्माण-प्रणाली को कम्प्यूटर द्वारा नियन्त्रित जाने लगा है। निर्माण कार्य पर नियन्त्रण हेतु कई चीजों जैसे तापमान, हवा द्रव्य के बहने की गति आदि की पूरी जानकारी कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त होती रहती है। कम्प्यूटर निम्नलिखित कार्य करता है

    (i) सभी चीजों की मात्रा नापना।

    (ii) नापी गई मात्रा का निर्धारित मात्रा से तुलना करना।

    (iii) प्रणाली को इस प्रकार नियन्त्रित करना जिससे यह अन्तर कम से कम हो।मानवीय रूप से कार्य करने पर प्रत्येक स्तर पर जाँच नहीं हो पाती है तथा श्रम लागत भी बढ़ जाती है।

    (2) रिमोट कन्ट्रोल से-

    कम्प्यूटर के एक छोटे रूप का उदाहरण है- टीवी-वीसीआर का रिमोट। यह यन्त्र इन्फ्रारेज द्वारा बटन दबाने का सन्देश टीवी में लघु कम्प्यूटर सिस्टम को प्रेषित करता है। कम्प्यूटर उन संदेशों को समझकर टीवी या वीसीआर की टयूनिंग उसी के अनुसार कर देता है। हमें अब बार-बार उठकर टीवी, वीसीआर तक नहीं आना पड़ता है जिससे समय की बचत होती है।

    (3) रोबोट में-

    कई घातक कार्य जैसे गर्म वस्तुओं का इधर-उधर रखना, रेडियोधर्मी पदार्थों का लाना, खदानों के अन्दर खुदाई करना रोबोट द्वारा आसानी से किये जा सकते हैं। यह जरूरी नहीं है कि रोबोट मनुष्य की तरह हो बल्कि किसी भी मशीन को उसकी आवश्यकतानुसार निर्मित कम्प्यूटराइज्ड संचालन प्रणाली लगाई जा सकती है। यह कार्य बुद्धिमानीपूर्वक कर सकती हैं। इस प्रकार अब घातक कार्यों से होने वाली मानवीय क्षति कम की जा सकती है।

    (4) खगोल विद्या के क्षेत्र में-

    प्रारम्भ में सूर्य एवं चन्द्रमा की गति का अध्ययन करके मौसम की गणना की जाती थी। भारत में प्राचीन राजाओं ने जन्तर-मन्तर भवन का भी निर्माण कराया था। कम्प्यूटरों ने इस गणना को एक नई दिशा प्रदान की है। सूर्य एवं चन्द्रमा के साथ-साथ आकाश गंगा के अन्य ग्रहों की उत्पत्ति तथा गति का सटीक अध्ययन किया जा रहा है। इसमें मौसम की अधिक सटीक भविष्यवाणी करना सम्भव हुआ है।

    (5) ज्योतिष के क्षेत्र में-

    ज्योतिष विज्ञान पूर्णतः गणित पर आधारित विज्ञान है। अब कम्प्यूटर के आधार पर गणनायें अधिक विश्वसनीय रूप से की जा सकती हैं। हाथ से गणना में केवल दशमलव के बाद दो अंकों तक ही गणना की जाती थी। इससे ग्रहों की चाल में काफी अन्तर आ जाता था, परन्तु Computer द्वारा स्थान, सूर्योदय आदि को ध्यान में रखते हुये बिल्कुल सटीक गणना की जाती है। इससे भविष्यफल बताने में सत्यता की सम्भावना अधिक हो गयी है। आजकल बाजार में बने हुये ज्योतिष सॉफ्टवेयर भी उपलब्ध हैं।

    (6) व्यापारिक क्षेत्र में-

    पाश्चात्य देशों में बाजार में मिलने वाले पैकेटों, पुस्तकों व अन्य वस्तुओं पर एक लेबल बना होता है जिसमें कुछ मोटी व पतली लकीरें बनी होती हैं। यह एक प्रकार की गुप्त संकेत भाषा है जिसमें उस वस्तु की गुणवत्ता तथा मूल्य के विषय में जानकारी होती है। कम्प्यूटर इन बार कोड को एक विशेष प्रकार के पैन जिसे ऑप्टीकल बाण्ड कहा जाता है, के द्वारा पढ़ता है तथा रसीद जारी करता है एवं स्टॉक रजिस्टर को भी अद्यतन कर देता है।

    (7) कला एवं भवन-निर्माण में-

    कम्प्यूटर पर पैन अथवा माउस की सहायता से चित्र अथवा वास्तचित्र बनाया जा सकता है। कम्प्यूटर की सहायता से हम उसे तरहतरह के परिवर्तन करके उसका वास्तशिल्प देख सकते हैं तथा सर्वोत्तम मॉडल का चयन कर सकते हैं, जबकि मानवीय रूप से केवल कुछ ही विकल्प उपलब्ध कराये जा सकते हैं।

    (8) मनोरंजन में-

    कम्प्यूटर पर हम टीवी प्रोग्राम चला सकते हैं। गेम खेल सकते हैं।अपनी तर्क-क्षमता तथा सामान्य ज्ञान बढ़ा सकते हैं। आजकल बाजार में बहुत से कम्प्यूटर गेम उपलब्ध हैं जो जटिलता को हल करना सिखाते हैं। पूरा इनसाइक्लोपीडिया सीडी पर उपलब्ध है जिसे हम मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्धन कर सकते हैं।

    (9) फिल्म एवं कार्टून निर्माण में-

    कम्प्यूटर में ध्वनि यन्त्र लगाकर विभिन्न एनीमेशन फिल्म का निर्माण किया जा सकता है। इसमें महंगे सेट तथा व्यस्त कलाकारों की आवश्यकता नहीं होती। बल्कि हम अपनी कल्पना का कोई भी कलाकार लेकर मनचाहे एक्शन करा सकते हैं। ध्वनि कंट्रोल द्वारा आवाज नियन्त्रित कर सकते हैं तथा बदल सकते हैं। आजकल बाल मनोरंजन फिल्मों में, विज्ञापन के क्षेत्र में इनका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है।

    (10) बैंकिंग में- बै

    ंकिंग क्षेत्र में कम्प्यूटर का प्रयोग विस्तृत रूप से हो रहा है। खातों में लेन-देन में कम्प्यूटरीकृत शाखाओं का प्रादुर्भाव हुआ है। धन के प्रेषण हेतु इलेक्ट्रॉनिक मेल की सुविधा प्रदान की गई है तथा चेकों के समाशोधन में माइकर पद्धति का प्रयोग किया गया है। 24 घण्टे बैंकिंग के लिये एटीएम लगाये गये हैं। ग्राहक को साख-सुविधा हेतु क्रेडिट कार्ड का चलन प्रारम्भ हुआ है। साथ ही कुछ बैंकों ने होम बैंकिंग तथा टैली बैंकिंग जैसी सुविधा भी प्रदान की है। मानवीय कार्य की स्थिति में जब बाहरी चेकों का निस्तारण 20-25 दिनों में होता था, अब 3 से 5 दिन में होने लगा है। खातों की विवरणी तुरन्त ही उपलब्ध है। साथ ही कार्य समय भी एक घण्टा बढ़ गया है.

    (11) प्रशासन में-

    प्रशासनिक क्षेत्र में अब बाढ़, सूखा, मौसम, फसल, कराधान तथा अपराधों के आँकड़े कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं। इससे प्रशासन के नीति-निर्धारकों को अपनी योजना तैयार करने में सहायता मिलती है। लिपिकीय लापरवाही के कारण होने वाले भ्रष्टाचार तथा विलम्ब पर नियन्त्रण सम्भव हुआ है। रेलवे में आरक्षण की सही स्थिति ज्ञात रहती है। अपराधियों के विरुद्ध रणनीति बनाई जा सकती है।

    (12) आयध निर्माण में-

    आज नवीनतम हथियार तैयार किये जा रहे हैं। यह हाइडोजन तथा न्यूट्रॉन का युग है। इनका मैदान में परीक्षण करने में काफी लागत आती है। तथा विरोध का सामना भी करना पड़ता है। कम्प्यूटर के द्वारा यह सम्भव हुआ है कि हम प्रयोगशाला में मॉनीटर पर ही डिजायन बनायें तथा उसका विस्फोट करायें। पूर्णतः निर्माण होने पर इसका वास्तविक परीक्षण किया जा सकता है। देश में बहुत-सी मिसाइलों तथा परमाणु बम परीक्षण में इसका प्रयोग किया गया है।

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    हम आशा करते हैं कि आपको यह Article पढ़ के मजा आया होगा इस आर्टिकल में हमने Computer के विभिन्न क्षेत्रों में क्या उपयोग है।(Computer Utility) के बारे में आपको जानकारी दी है, अगर आपको लगता है कि कोई जानकारी हमसे छूट गई हो तो कृपया कर उसे Comment में हमसे साझा करें.

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    आप हमारे Blog से Computer के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं एस Blog पर कंप्यूटर की सभी जानकारी के बारे में बताया जाता है वह भी बहुत आसान भाषा में धन्यवाद आपका इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए.

  • कंप्यूटर के प्रकार | Types of Computer

    कंप्यूटर के प्रकार | Types of Computer

    Computer के प्रकार-तकनीकी रूप से और सैद्धान्तिक रूप से कम्प्यूटर निम्न तीन | प्रकार के होते हैं.

    types of computer

    आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम सीखने वाले हैं Computer के  प्रकार के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं.

    आज के इस Article में आपको बहुत ही आसान भाषा में  Computer के  प्रकार के बारे में जानने को मिलेगा और कैसे काम करते हैं आपको सभी जानकारी आज पढ़ने को मिलेगी.

    एनालॉग, डिजिटल और हाइब्रिड। जब कम्प्यूटर का विकास अपने प्रारम्भिक काल में था तब कुछ समय तक एनालॉग कम्प्यूटरों का चलन रहा। क्योंकि इनमें मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल तकनीक का प्रयोग किया गया था। पोलैंड में बना ELWAT नामक एनालॉग कम्प्यूटर इसी तकनीक से बनाया गया था।

    इसके पश्चात् Digital तकनीक का विकास हुआ। जब डिजिटल तकनीक का विकास अपने शुरूआती दौर में था तो एनालॉग और डिजिटल तकनीक को मिलाकर हाइब्रिड कम्प्यूटरों का विकास हुआ।

    कम्प्यूटर की तीसरी पीढ़ी में इस हा था। धीरे-धीरे Digital तकनीक का विकास होता गया और सत्तर के तकनीक को कम्प्यूटरों में प्रयोग किया जाने लगा। वर्तमान समय के समस्त कर तकनीक पर आधारित हैं। इसीलिये इन्हें Digital Computer भी कहा जाता PC हो, Laptop हो या फिर Super Computer, ये सभी Digital Computer कम्प्यूटर हैं।

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    कंप्यूटर के प्रकार | Types of Computer

    डिजिट कम्प्यूटरों को हम अपनी सुविधा, प्रयोग और कम्प्यूटर की कार्य क्षमता के अनुसार चार भागों में विभाजित सकते हैं.

    (1) माइक्रो कम्प्यूटर

    (2) मिनी कम्प्यूटर

    (3) मनफ्रम कम्प्यूटर

    (4) सुपर कम्


    (1) माइक्रो कम्प्यूटर- Mircro Computer

    इन कम्प्यूटरों का विकास सन् 1970 में Computer ऑन के सिद्धान्त के आधार पर हुआ। माइक्रोप्रोसेसर से युक्त होने के कारण इन्हें माइक्रो कम्य कहते हैं। इस तकनीक से युक्त कम्प्यूटर आकार में छोट, कीमत में कम, कार्यक्षमता शक्तिशाली तथा प्रयोग में अत्यन्त सरल होते हैं। वर्तमान में प्रचलित समस्त पीसी इसी श्रेणी अन्तर्गत आते हैं।

    micro computer in hindi

    Personal Computer का निर्माण 1981 में IBM द्वारा किया गया, लेकिन प्रारम्भ में इसमें सिर्फ 8084 से 8087 तक के माइक्रोप्रोसेसर, 256 किलोबाइट रैम तथा 180 किलोबाइट से लेकर 360 किलोबाइट (2D) क्षमता वाली फ्लॉपी डिस्क ड्राइव तथा इसमें DOS के प्रारम्भिक संस्करणों का प्रयोग किया जाता था। इसे सीमित एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर्स के लिये प्रयोग किया जाता था जैसे वर्ड प्रोसेसिंग और BASIC प्रोग्रामिंग इत्यादि। इसके अतिरिक्त इस कम्प्यूटर में प्रयोग की जाने वाली फ्लॉपी डिस्क का आकार आजकल की तरह 51/4″ न होकर 81/2″ हुआ करता था। ___ PC-XT (एक्सटेंडेड टेक्नोलॉजी) कम्प्यूटर तथा इससे पूर्व प्रचलित PC में मात्र इतना अंतर था कि इसमें 8088 प्रोसेसर का प्रयोग किया गया और इसमें 1 मेगाबाइट से लेकर 40 मेगाबाइट तक की हार्डडिस्क तथा 1 मेगाबाइट तक रैम का प्रयोग किया। बाद में तकनीक में सुधार होने के पश्चात् इसमें 360 किलोबाइट Floppy Drive के स्थान पर 1-2 Megabyte की Floppy Disk Drive का प्रयोग किया जाने लगा। इसके अतिरिक्त इसमें एक साथ दो फ्लॉपी डिस्क तथा दो Hard disk का प्रयोग सम्भव हो सका। तकनीक में परिवर्तन होने के कारण इसमें अनेक आधुनिक तथा विशाल Application Software का प्रयोग सम्भव हो सका।

    PC-AT (Advanced Technology) कम्प्यूटरों का विकास 1985 तक पूरा हो पाया। इस तकनीक से युक्त कम्प्यूटरों तथा इससे पूर्व प्रचलित इसी श्रेणी के कम्प्यूटरों में जो आधारभूत अंतर था वह केवल इतना था कि यह 16 बिट कम्प्यूटर थे तथा इसमें पूर्व प्रचलित 8-बिट कम्प्यूटर । इस श्रेणी के कम्प्यूटरों का आज विश्व के 80 प्रतिशत पर्सनल कम्यूटर माकट पर अपना आधिपत्य है। इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले समस्त कम्प्यूटर 16-बिट से लेकर 64 बिट तक के होते हैं। वर्तमान समय में 80586 माइक्रोप्रोसेसर से युक्त पेंटियम नामक कम्प्यूटर सबसे शक्तिशाली तथा आधुनिक हैं।

    (2) मिनी कम्प्यूटर- Mini Computer

    mini computer in hindi

    यह Computer मेनफ्रेम कम्प्यूटरों से छोटे तथा PC कम्प्यूटरों से बड़े होते हैं अर्थात् यह बीच के कम्प्यूटर होते हैं। यह कम्प्यूटर भी दो प्रकार के होते हैं, पहला स्माल Mini Computer कम्प्यूटर तथा दूसरा सुपर मिनी कम्प्यूटर। इन कम्प्यूटर की processing शक्ति PC कम्प्यूटरों से अधिक लेकिन मेनफ्रेम कम्प्यूटरों से कम होती है। यह कीमत में माइक्रो कम्प्यूटर से अत्याधिक महंगे होते हैं, इसलिये व्यक्तिगत रूप से इनका प्रयोग सम्भव नहीं है। इन कम्प्यूटरों का सर्वाधिक प्रयोग सरकारी संस्थायें तथा बड़ी व्यापारिक संस्थायें ही करती हैं।

    (3) मेनफ्रेम कम्प्यूटर- Mainframe Computer

    मेनफ्रेम computer in hindi

    इस Computer की Data processing शक्ति मिनी कम्प्यूटर से अत्याधिक होती है तथा इनकी कीमत भी बहुत अधिक होती है। इन कम्प्यूटरों का प्रयोग बड़ी सरकारी संस्थायें तथा व्यापारिक संस्थायें किया करती हैं। इन कम्प्यूटरों को एक साथ कई व्यक्ति अलग-अलग कार्यों के लिये प्रयोग कर सकते हैं।

    (4) सुपर कम्प्यूटर- Super Computer

    super computer in hindi

    अभी तक विकसित समस्त कम्प्यूटरों में यह सबसे शक्तिशाली Computer है। इसका प्रयोग स्पेस साइंस में अत्यन्त सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इसकी डाटा प्रोसेसिंग गति अत्यन्त तीव्र होती है, यह एक सेकेंड में अरबों गणनायें करने में सक्षम होता है। इसका प्रयोग अत्यन्त उच्चकोटि की एनीमेशन में भी किया जाता है। उक्त समस्त विशेषताओं के कारण यह अत्यन्त महंगा है। भारत में पुणे (महाराष्ट्र) स्थित सीडॅक (CDAC) नामक संस्था ने परम-10000 नामक Super Computer का निर्माण किया है जो दुनिया के किसी भी सुपर कम्प्यूटर से कम नहीं है।

    कम्प्यूटर प्रणाली स्थापित करने के उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटर के प्रकार

    कम्प्यूटर प्रणाली की स्थापना दो उद्देश्यों के लिये हो सकती है- व्यापक या सामान्य तथा कार्य विशेष। इस प्रकार Computer उद्देश्य के आधार पर इनके निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं.

    (1) सामान्य-उद्देश्यीय कम्प्यूटर (2) विशिष्ट-उद्देश्यीय कम्प्यटर।

    (1) सामान्य-उद्देश्यीय कम्प्यूटर-

    ऐसे Computers जिनमें अनेक प्रकार के कार्य करने की क्षमता होती है लेकिन ये कार्य अधिकतर प्रयोक्ताओं द्वारा किये जाते हैं और सामान्य होते हैं, जैसे- किसी पत्र एवं दस्तावेज को टाइप करके कम्प्यूटर में संग्रहीत करना, दस्तावेजों को छापना, सारणीबद्ध आँकड़ों का संकलन या Database बनाना आदि। सामान्य उद्देशीय कम्प्यूटर के आन्तरिक परिपथ में लगे माइक्रोप्रोसेसर की कीमत भी कम होती है।

    इन कम्प्यूटरों में हम किसी विशिष्ट कार्य या अनुप्रयोग हेतु अलग से डिवाइस नहीं जोड माइक्रोप्रोसेसर की क्षमता सीमित होती है और सी.पी.यू. का अनविन्यासक नहीं होता है.

    2) विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटर-

    आजकल किसी अपराधी द्वारा झूठ बोले जाने के जैसे विशिष्ट कार्य कम्प्यूटर तकनीक की सहायता से ही किये जाते हैं। कि कम्प्यटर ऐसे कम्प्यूटर हैं जिन्हें किसी विशेष कार्य के लिये तैयार किया जाना माइक्रोप्रोसेसर की क्षमता उस कार्य के अनुरूप होती है जिसके लिये इन्हें तैयार की है।

    इनमें यदि अनेक माइक्रोप्रोसेसरों की आवश्यकता हो तो इनकी अनविन्यास अनेक माइक्रोप्रोसेसर वाली कर दी जाती है। ___ Multimedia में Music-संपादन करने हेतु किसी Studio में लगाया जाने वाला कर विशिष्ट उद्देशीय Computer होगा। इसमें संगीत से सम्बन्धित उपकरणों को जोड़ा जा सकता और संगीत को विभिन्न प्रभाव देकर इसका संपादन किया जा सकता है।

    इंटरनेट की सा में कम्प्यूटर को टेलीफोन लाइन से जोड़कर हम दूरस्थ कम्प्यूटर से सम्पर्क स्थापित कर सकर हैं। फिल्म उद्योग में फिल्म संपादन के लिये विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटरों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटर निम्नलिखित क्षेत्रों में भी उपयोगी हैं.

    (i) जनगणना

    (ii) मौसम विज्ञान

    (ii) युद्ध के समय प्रक्षेपास्त्रों का नियन्त्रण

    (iv) उपग्रह प्रक्षेपण व संचालन

    (V) भौतिक व रसायन विज्ञान में शोध

    (vi) चिकित्सा, यातायात-नियन्त्रण, समुद्र-विज्ञान व तेल खनन

    (vii) कृषि विज्ञान व अनुसंधान

    (viii) अभियांत्रिकी, अन्तरिक्ष-विज्ञान, इंटरनेट और मोबाइल सेवा।

    प्रणाली की कार्य-पद्धति या अनुप्रयोग के आधार पर कम्प्यूटर के प्रकार-

    आजकल Computer का सभी क्षेत्रों में व्यापक प्रयोग किया जाता है। विभिन्न प्रणालियों में कम्प्यूटर के अनेक अनुप्रयोग हैं जिनमें से कार्य-पद्धतियों के आधार पर कम्प्यूटरों के पाँच वर्ग होते हैं.

    types-of-computer

    (1) अंकीय कम्प्यूटर

    (2) अनुरूप या एनालॉग कम्प्यूटर

    (3) संकर या हाइब्रिड कम्प्यूटर

    (4) प्रकाशीय कम्प्यूटर

    (5) परमाणवीय या एटॉमिक कम्प्यूटर।।

    (1) अंकीय कम्प्यूटर-

    अधिकतर Computer डिजीटल कम्प्यूटर होते हैं। Digital का अर्थ यह है कि कम्प्यूटर में सूचना को इस प्रकार की चर राशियों द्वारा व्यक्त किया जाता है, जिनमें डिस्क्रीट निश्चित अंकों को निरूपित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, 7 दशमलव अंक दस प्रकार के मान निश्चित मान प्रदान करते हैं। 1940 के दशक का सबसे पहला कम्प्यूटर प्रमुख रूप से अंकीय गणनाओं को सम्पन्न करने के लिये प्रयुक्त होता था।

    इसी कारण Computer को Digital Computer का नाम दिया गया। प्रयोगात्मक रूप से केवल दो अंकों का प्रयोग करने पर Digital Computer की क्रियायें अधिक सटीक तथा विश्वसनीय होती हैं। मानव, सूचना की अभिव्यक्ति अनेक गतिविधियों से करता है। इन गतिविधियों में से सत्य और असत्य को व्यक्त करना भी एक अभिव्यक्ति है। किसी पुर्जे में दो भौतिक गुण।

    स्पष्ट रूप से उपस्थित हो सकते हैं, वे हैं- सक्रियता एवं निष्क्रीयता। सक्रिय अवस्था, सत्य को और निष्क्रिय अवस्था, असत्य को व्यक्त करती है। डिजिटल कम्प्यूटर डाटा और प्रोग्राम्स को 0 से 1 के संकेतों में परिवर्तित करके उनको इलेक्ट्रॉनिक रूप में ले आता है।

    (2) अनुरूप या एनालॉग कम्प्यूटर-

    एनालॉग शब्द का अर्थ है- दो राशियों में अनुरूपता। ये वे Computer होते हैं जिनमें भौतिक राशि (जैसे दाब, तापमान, लम्बाई आदि) को इलेक्ट्रॉनिक परिपथों की सहायता से विद्युत संकेतों में रूपान्तरित किया जाता है। ये कम्प्यूटर किसी राशि का परिमाप तुलना के आधार पर करते हैं। जैसे कि एक थर्मामीटर कोई गणना नहीं करता है अपितु यह पारे के सम्बन्धित प्रसार की तुलना करके शरीर के तापमान का स्तर व्यक्त करता है।

    विद्युत स्पन्दों एनालॉग कम्प्यूटर मुख्य रूप से विज्ञान और engineering के क्षेत्र में प्रयोग किये जाते हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में मात्राओं का अधिक उपयोग होता है। ये कम्प्यूटर केवल अनुमानित परिमाप ही देते हैं। उदाहरणार्थ, एक पेट्रोल पम्प में लगा एनालॉग Computer, पम्प से निकले पेट्रोल की मात्रा को मापता है और लीटर में दिखाता है तथा उसके मूल्य की गणना करके स्क्रीन पर दिखाता है।

    (3) संकर या हाइब्रिड कम्प्यूटर-

    वे Computer जिनमें एनालॉग कम्प्यूटर और Digital Computer, दोनों के गुणों का सम्मिश्रण हो, संकर या हाइब्रिड कम्प्यूटर कहलाते हैं। हाइब्रिड का अर्थ है- संकरित अर्थात् अनेक विशेषताओं का सम्मिश्रण। उदाहरणार्थ- Computer की एनालॉग Device किसी रोगी के लक्षणों- तापमान, रक्तचाप आदि को मापती है। ये परिमाप बाद में डिजिटल भाग के द्वारा अंकों में बदले जाते हैं। इस प्रकार रोगी के स्वास्थ्य में आये उतार-चढ़ाव का तत्काल प्रेक्षण किया जा सकता है।

    (4) प्रकाशीय कम्प्यूटर-

    आधुनिक युग के कम्प्यूटरों के रूप में इस प्रकार के कम्प्यूटर बनाये जा रहे हैं जिनमें एक पुर्जे (अवयव) को दूसरे से जोड़ने का कार्य ऑप्टीकल फाइबर के तारों से किया जाता है। इनके गणना करने वाले अवयव या डिवाइस प्रकाशीय पद्धति पर आधारित बनाये गये हैं। विद्युत संकेतों की गति 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकण्ड की कोटि की होती है लेकिन इतनी गति से भी 1 मीटर के तार में विद्युत संकेत को 3.3 नानो सेकण्ड का समय लगाता है। प्रकाशन के संवहन के लिये तार जैसे माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। जिससे प्रकाश की गति, विद्युत से अधिक होती है इसलिये बिना तार के प्रकाशीय पद्धति आधारित कम्प्यूटर विकसित किये जा रहे हैं।

    (5) परमाणवीय या एटॉमिक कम्प्यूटर-

    ये ऐसा विकासशील Computer है जिसमें कुछ विशेष प्रोटीन अणुओं को एकीकृत परिपथ में बदला जाये और इसमें इतनी अधिक स्मृति क्षमता आ जाये कि यह आज के कम्प्यूटरों से 10,000 गुना अधिक क्षमता वाला हो।


    हम आशा करते हैं कि आपको यह Article पढ़ के मजा आया होगा इस आर्टिकल में हमने कंप्यूटर के प्रकार (Types of Computer) के बारे में आपको जानकारी दी है, अगर आपको लगता है कि कोई जानकारी हमसे छूट गई हो तो कृपया कर उसे Comment में हमसे साझा करें.

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  • Generation of Computer in Hindi | कम्प्यटर की पीढ़ियां

    Generation of Computer in Hindi | कम्प्यटर की पीढ़ियां

    कम्प्यटर की पीढ़ियां- सन् 1942 से कम्प्यूटर युग की शुरूआत हुई के प्रारम्भिक काल में इस मशीन का प्रयोग केवल बड़ी-बड़ी सरकारी संस्थायें ही था, लेकिन इसके विकास के साथ-साथ यह मशीन सामान्य जन के सिर गई। इसे सरलता से समझने के लिये हम निम्न भागों में बाँट सकते हैं।

    Generation of computer

    आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम पढ़ने वाले हैं Generation of compute के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं.

    Generation of computer in Hindi | कम्प्यटर की पीढ़ियां

    (1) कम्प्यूटर की प्रथम पीढ़ी (1942-55)-

    इस युग का प्रारम्भ जून, 19 माना जाता है, जब एक सरकारी अमेरिकन संस्था द्वारा UNIVAC-I नामक कम गया। यह मशीन ENIAC नामक Computer से आधुनिक तथा शक्तिशाली थी। इस पर प्रयोग पेयबल प्रोसेसिंग में किया जाता था। यह इस प्रकार से दिखाई पड़ती थी

    इस मशीन के प्रयोग का प्रारम्भ सन् 1951 में हुआ था, लेकिन इसमें निराला विकास किया जाता रहा, तथा सन् 1959 में यह कम्प्यूटर काफी विकसित हो चुका था

    और इसमें निर्वात वाल्वों का प्रयोग काफी मात्रा में किया जाने लगा था। ___ इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में मैग्नेटिक ड्रम-युक्त Internal Memory को प्रयोग किया जाने लगा था। इसके द्वारा कम्प्यूटर पंच कार्ड से Data व Programs को Read करके ड्रम में Store कर लेते थे। इन सबके अतिरिक्त इस पीढी के कम्प्यूटरों Machine लैंग्वेज का प्रयोग भी किया जाने लग था। यह मशीन लैंग्वेज निम्न प्रकार की होती थी

    0101100011000001001001 इस प्रकार इस पीढ़ी से programming का प्रारम्भ हो गया था। 1952 में पेनसिलविया विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. ग्रेस हॉपर द्वारा असेम्बली लैंग्वेज का आविष्कार किया गया और इस लैंग्वेज का प्रयोग प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों में सफलतापूर्वक किया गया।

    Generation of computer

    (2) द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1956-1964)-

    इस पीढी के Computer तकनीकी रूप से प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों से एकदम भिन्न थे, क्योंकि इनमें वैक्यूम ट्यूब्स के स्थान पर ट्रांजिस्टर्स का प्रयोग किया गया था, जिसका परिणाम यह हुआ कि कम्प्यूटरों का आकार एकदम छोटा हो गया तथा यह अति अल्प मात्रा में विद्युत का प्रयोग करने लगे। ABC, ENIAC, EDSAC, EDVAC, UNIVAC I इत्यादि कम्प्यूटर इसी पीढ़ी के अन्तर्गत आते हैं.

    (3) तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1965-1975)-

    तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों में IBM न अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा इंटीग्रेटेड सर्किट से युक्त कम्प्यूटरों की एक नई श्रृंखला को कम्प्यूटर बाजार में प्रस्तुत किया, जो अति शीघ्र ही लोकप्रिय हो गई तथा इसका प्रयोग कार्यालयों में किया जाने लगा। मेनफ्रेम और मिनी कम्प्यूटर इसी पीढ़ी में आते हैं। इस श्रृंखला के प्रमुख कम्प्यूटर थे-360/Model 195, सिस्टम/360 तथा 360/Model 10.

    यह समस्त कम्प्यूटर IC पर आधारित होने के कारण द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों से आकार में अत्यन्त छोटे थे तथा इनका रखरखाव अत्यन्त आसान था क्योंकि इसमें प्रयुक्त होने वाली समस्त IC एक PCB पर लगी होती थीं। इसके अतिरिक्त इस पीढ़ी से Computer फैमिली का विचार प्रचलन में आया।

    क्या आप कंप्यूटर उपकरणों के बारे में जानना चाहते हैं Computer उपकरण क्या है

    (4) चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर (1976-1989)-

    सन् 1976 से चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटरों का युग प्रारम्भ होता है। इस पीढ़ी में Computer उद्योग ने प्रवेश किया। माइक्रोप्रोसेसर के युग में इस युग में कम्प्यूटर का आकार एक मेज पर आकर स्थिर हो गया।

    Microprocessor का विकास- वास्तविक रूप में माइक्रो कम्प्यूटर्स की कहानी का जन्म सन् 1969 में हुआ। इस सन् में एक जापानी कम्पनी इंटेल कॉरपोरेशन से एक समझौता हुआ। इस समय तक Intel अमेरिका के कैलीफोर्निया राज्य में स्थित एक अत्यन्त छोटी कम्पनी थी, तथा calculator बनाने का कार्य करती थी। इस समझौते पर हस्ताक्षर करके उसे क्रियान्वित करने वाले व्यक्ति थे- मैरी ई. टेड हॉफ। इस व्यक्ति को अब हम इंजीनियरों के engineer के नाम से जानते हैं।

    टेड हॉफ ने एक जनरल परपज लॉजिक चिप का विकास किया, जिसे इंटेल 4004 के नाम से कम्प्यूटर बाजार में प्रस्तुत किया गया। इसे ही प्रथम Microprocessor के नाम से जाना गया। इसके विकास के पश्चात् Intel Corporation विश्व में माइक्रोप्रोसेसर के सबसे बड़े निर्माता के रूप में उभर कर आया। आज भी इंटेल इस क्षेत्र में सर्वप्रथम है। इसके पश्चात् सन् 1970 में एक अन्य अमेरिकन कम्पनी MITS द्वारा Altair 8800 के नाम से माइक्रोप्रोसेसर पर आधारित कम्प्यूटर को कम्प्यूटर बाजार में प्रस्तुत किया गया, वास्तव में यह ही विश्व का प्रथम माइक्रोप्रोसेसर पर आधारित कम्प्यूटर था।

    Bill Gates का पदार्पण- Micro Computer को अधिक से अधिक प्रचलित करने के लिये MITS ने बिल गेट्स नामक एक Software engineer को BASIC नाम की एक हाईलेवल लैंग्वेज का निर्माण कार्य सौंपा। बिल गेट्स ने इसको अपने अंजाम तक पहुँचाया, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक कार्य के लिये Application Software का निर्माण सम्भव व सहज हो सका। कुछ समय पश्चात् बिल गेट्स ने MITS से अलग होकर Software बनाने की एक नई कम्पनी की आधारशिला रखी, यह कम्पनी Microsoft Corporation थी। आज सारे विश्व के 90 प्रतिशत कम्प्यूटरों में इसी कम्पनी द्वारा बनाये गये Software कार्य करते हैं।

    Apple Mac का उदय- सन् 1977 में Steve Job और स्टीव जोनेक नामक दो युवा इंजीनियरों ने Apple Computer के नाम से एक माइक्रोप्रोसेसर युक्त कम्प्यूटर की Kit को कम्प्यूटर के बाजार में प्रस्तुत किया। इस किट के बनाने के पश्चात् कुछ ही वर्षों में Apple विश्व में कम्प्यूटर बनाने में अग्रणी हो गई।

    वर्कशीट का जन्म- इस कम्पनी ने अपने उत्पाद को मशहूर तथा प्रचलित करने के लिये दो युवा Software इंजीनियरों ब्रिकलिन और फ्रैंकस्टन की मदद से Visi Calc नामक एक कैलकुलेशन सॉफ्टवेयर को Software बाजार में प्रस्तुत किया, वास्तव में यह प्रथम स्प्रेडशीट सॉफ्टवेयर था। इस सॉफ्टवेयर के कारण एपल Micro Computer के प्रयोग में बढोत्तरी हुई और Apple Computers का आधार अत्यन्त मजबूत हो गया।

    PC का आगमन-सन् 1981 में IBM ने भी Micro Computer के बाजार में कदम रखा. जिसे उसने IBM (PC) के नाम से प्रस्तुत किया। IBM द्वारा प्रस्तुत किये गये उत्पाद ने कम्प्यूटर बाजार में क्रांति उत्पन्न कर दी और इसके कारण Apple माइक्रो कम्य की बिक्री अत्यन्त कम हो गई। इस उत्पाद को और अधिक प्रचलित करने के लिये लोट्स Development Corporation द्वारा लोट्स 1-2-3 नामक एक स्प्रेडशीट Software को Software बाजार में प्रस्तत किया गया, इस सॉफ्टवेयर के आते ही IBM-PC का प्रयोग एवं बिक्री अत्याधिक बढ़ गई। यह सॉफ्टवेयर पूर्व प्रचलित Visi Calc नामक सॉफ्टवेयर से अधिक शक्तिशाली था। कुछ समय पश्चात् लोट्स और IBM ने मिलकर एक व्यापारिक समझौते के अंतर्गत अपने-अपने उत्पादों की कीमत अत्यन्त कम कर दी. जिससे इस कम्प्यूटर तक सामान्यजन की पहुँच सम्भव हो सकी।

    चौथी पीढ़ी की मुख्य विशेषतायें- चौथी पीढ़ी के कम्प्यूटर माइक्रो-प्रोसेसर युक्त अत्यन्त शक्तिशाली कम्प्यूटरों के रूप में Computer बाजार में आये, यह सेमी कंडक्टर, आंतरिक मेमारा तथा VLSI तकनीक से युक्त थे।

    (i) सूक्ष्मीकरण– इस पीढ़ी के कम्यूटरों का उत्पादन करते समय इस बात पर अधिक से अधिक बल दिया गया कि इनका साईज अत्यन्त छोटा हो तथा यह अधिक शक्तिशाली हो। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु इन कम्प्यूटरों में VLSI तकनीक का प्रयोग किया गया। कुछ समय पश्चात् इनका साईज और कम करने के लिये VLSI का प्रयोग किया गया, जिसके परिणामस्वरूप यह कम्प्यूटर साईज में अत्यन्त छोटे तथा कार्य में अत्यन्त शक्तिशाली हो गये।

    (1) सेमीकंडक्टर इंटरनल मेमोरी– इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में MOS मेमोरी का प्रयोग किया गया। यह मेमोरी पूर्व प्रचलित मेमोरी से अधिक शक्तिशाली तथा तीव्र गति से कार्य करती थी और इसका आकार अत्यन्त छोटा हो गया। इस मेमोरी को हम अपनी आवश्यकता के अनुसार कम्प्यूटर में प्रयोग किये जा रहे मेमोरी बोर्ड में कम या अधिक भी कर सकते हैं।

    (ii) ताकतवर सॉफ्टवेयर– इस पीढ़ी में Computer Hardware के साथ-साथ Computer Software के विकास में भी आश्चर्यजनक रूप में विकास हुआ, तथा सॉफ्टवेयर मार्केट में अनेक लैंग्वेज पदार्पण हुआ जिनमें BASIC, FORTRAN, COBOL, RPG, C, PASCAL इत्यादि प्रमुख हैं.

    इसके अलावा इनसे पीढ़ी में ही पैकेज सॉफ्टवेयरों का प्रचलन प्रारम्भ हुआ, जिससे Computer का प्रयोग अति सामान्य हो गया। इसके अतिरिक्त इसी पीढ़ी में DSS का भी विकास हुआ, जिसके फलस्वरूप कार्यालयों में कम्प्यूटर के प्रयोग का प्रचलन अत्याधिक बढ़ गया।

    (5) पाँचवी पीढ़ी के कम्पयूटर (1989-1994)-

    वर्तमान समय में हमें पाँचवी पीढ़ी के कम्प्यूटरों के साथ कार्य कर रहे हैं। इसलिये हम यह बात अत्यन्त स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं, कि इस पीढ़ी के कम्प्यूटर अपने पूर्वज से कितने अधिक शक्तिशाली तथा आधुनिक हैं.

    इस पीढ़ी में IBM द्वारा 80286-386-486-586 इत्यादि Personal Computers की श्रृंखला ने सारे विश्व के Computer Market पर अपना अधिकार कर लिया है। इसी पीढ़ी के अंदर Super Computer कम्प्यूटर का विकास सम्भव हो सका है। इसी पीढ़ी के अंतर्गत कम्प्यूटरों में एक नई तकनीक का विकास हुआ जिसे हम रोबोटिक्स के नाम से जानते हैं। इसके अलावा सॉफ्टवेयरों में अनेक मूलभूत परिवर्तन हुये तथा कृत्रिम ज्ञान क्षमता वाले सॉफ्टवेयरों का विकास हुआ। नये-नये operating system विकसित किये तथा Application Software में भी अत्यधिक अर्थपूर्ण सॉफ्टवेयर मार्केट में आ गये, जिनमें विंडोज 95 अग्रणी है।

    इस पीढ़ी के कम्प्यूटर चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर से साईज में एक चौथाई रह गये, इनका प्रयोग हम अपनी गोद में अथवा हाथ पर रखकर कर सकते हैं। इन कम्प्यूटरों में हम अपनी आवश्यकता के अनुसार Memory (RAM) को कितना भी अधिक घटा या बढ़ा सकते हैं तथा IDE और स्कैजी हार्डडिस्क का विकास भी इसी पीढ़ी के अंतर्गत हुआ जिससे DATA Store स्टोर करने की समस्या हल हो सकी। इस प्रकार हम यह बात सरलतापूर्वक समझ सकते हैं कि इस पीढ़ी के Computer कितने आधुनिक हैं। अब केवल एक बात की ही कमी है कि कम्प्यूटरों को मनुष्य की भाँति इस प्रकार बनाये जाये कि वह भी अधिक से अधिक शक्तिशाली कम्प्यूटरों का निर्माण कर सकें।

    अवश्य पढ़ें: कंप्यूटर के प्रमुख कार्य

    (6) छठी पीढ़ी के कम्प्यूटर (1995-1999)-

    Pentium प्रो, Pentium– II, Pentium प्रोसेसर वास्तव में छठी पीढ़ी के प्रोसेसर हैं। जिन कम्प्यूटरों में इनका प्रयोग किया जाता है वे कम्प्यूटरों की छठवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

    (7) सातवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर (2000-2004)-

    आज हम जिस Pentium-4 प्रोसेसर को प्रयोग करते हैं वह वास्तव में सातवीं पीढ़ी का माइक्रोप्रोसेसर है। जिन कम्प्यूटरों में इसे प्रयोग में किया जाता है वह सभी सातवीं पीढ़ी के अन्तर्गत आते हैं.

    (8) आठवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर (2005-2006)-

    आज हम जिस Intel कोर ड्यू प्रोसेसर को प्रयोग करते हैं वह वास्तव में आठवीं पीढ़ी का माइक्रोप्रोसेसर है। जिन कम्प्यूटर में इसे प्रयोग किया जाता है वह सभी आठवीं पीढ़ी के अन्तर्गत आते हैं.


    हम आशा करते हैं कि आपको यह Article पढ़ के मजा आया होगा इस आर्टिकल में हमने (History of Computer) Generation of computer के बारे में आपको जानकारी दी है, अगर आपको लगता है कि कोई जानकारी हमसे छूट गई हो तो कृपया कर उसे Comment में हमसे साझा करें.

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  • Computer का आविष्कार कब और किसने किया था?

    Computer का आविष्कार कब और किसने किया था?

    अगर आप जानना चाहते हैं कंप्यूटर का आविष्कार किसने किया था तो आप बिल्कुल सही जगह पर आ गए हैं क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम कंप्यूटर के अविष्कार के बारे में जानेंगे कि कंप्यूटर की खोज किसने की थी और यह कब हुई थी.

    Computer का आविष्कार कब और किसने किया था?

    कंप्यूटर एक प्रकार के नहीं होते हैं कंप्यूटर कई प्रकार के होते हैं जैसे कि Mini Computer, Micro Computer, Super Computer कंप्यूटर माइक्रो कंप्यूटर सुपर कंप्यूटर इत्यादि.

    आप सभी जानते हैं कि कंप्यूटर क्या है और यह कैसे कार्य करता है साथी साथ आप जानते होंगे यह मानव द्वारा निर्मित एक Electronic Machine है जो कि घंटों का काम मिनटों में कर देती है.

    कंप्यूटर का आविष्कार कब और किसने किया था?

    कंप्यूटर का आविष्कार Charles Babbage (चार्ल्स बैबेज) द्वारा किया गया है जिससे Computer का जनक भी कहा जाता है यह बहुत ही लोकप्रिय programmer Computer designer थे.

    चार्ल्स बैबेज ने सन् 1822 में एक Machine का निर्माण किया जिसका व्यय ब्रिटिश सरकार ने उठाया। इस मशीन का नाम डिफरेन्स इंजिन (Defense engine) रखा गया.

    कंप्यूटर विज्ञान के जनक

    (1) ऐबेकस

    प्राचीनतम गणना मशीन, जिसे हम Digital Computer की श्रेणी में रखते हैं, ऐबेकस है। ऐबेकस को सोरोबेन भी कहा जाता है। Abacus तारों का एक फ्रेम होता है, जिसके चारों ओर प्रायः लकड़ी का बाहरी फ्रेम होता है। इसके तारों में मोती पिरोये होते हैं। ये मोती पक्की मिट्टी के गोल छिद्रयुक्त टुकड़े होते हैं। ऐबेकस स्थानीय मान अंकन पद्धति के सिद्धान्त पर कार्य करता है। यह विभिन्न पंक्तियों में मोतियों का स्थान व उनका मान निश्चित करता है। मोतियों को एक दिशा में सरका कर गिना जाता है। सरल संगणनायें, जैसे- जोड़ना और घटाना, मोतियों को इधर-उधर सरका कर की जाती हैं।

    ऐबेकस का आविष्कार चीन में हुआ, जहाँ इसे स्पून पेन कहा जाता है, जिसका मतलब गणना-पटल होता है। वैसे तो ऐबेकस का आविष्कार 600 बी.सी. में हुआ था, परन्तु इसकी तीव्रगति और सरलता के कारण आज भी कई देश इसका उपयोग कर रहे हैं।

    computer ki khoj kisne ki

    (2) नेपियर्स बोन्स-

    1617 ई. में सर जॉन नेपियर ने जोड़ने, घटाने, गुणा और भाग आदि के लिये एक यन्त्र का निर्माण किया। यह यन्त्र 11 आयताकार छड़ों के समूह से निर्मित था। प्रत्येक छड़ 10 वर्गों में विभक्त थी। ऊपरी वर्ग में 0 से 9 तक की संख्यायें होती

     थीं। नीचे के वर्गों में उन संख्याओं के गुणज लिखे होते थे। छड़ों को पंक्तियों में विशेष प्रकार से व्यवस्थित कर, बड़ी संख्याओं को तीव्र गति से गुणा किया जाता था। नेपियर्स बोन्स को कार्डबोर्ड गुणन Calculator भी कहा जाता है।

    (3) स्लाइड रूल-

    स्लाइड रूल का आविष्कार विलियम ऑर्टड ने किया। स्लाइड रूल मे संगणनायें लघुगणक द्वारा की जाती थीं।

    (4) पास्कल तथा लेबनीज (Pascal and Leibniz)-

    सन् 1642 में ब्लेज पास्कल ने सबसे पहले यांत्रिक गणना यंत्र (Mechanical Calculating Machine) का आविष्कार किया था। यह मशीन केवल जोडने व घटाने की क्रिया करने में सक्षम थी, इसी कारण इसे एडिंग मशीन (Adding Machine) का नाम दिया गया। यह मशीन घड़ी (Watch) और ओडोमीटर (Odometer) के सिद्धान्त पर कार्य करती थी।

    computer ka invention

    इसमें कई दाँतेयुक्त चकरियाँ थीं जो घूमती रहती थीं। चकरियों के दाँतों पर 0 से 9 तक के अंक छपे रहते थे। प्रत्येक चकरी (Wheel) का एक स्थानीय मान (Positional/Place Value) था, जैसे- इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि। इसमें प्रत्येक चकरी स्वयं से पिछली चकरी के एक चक्कर लगाने पर एक अंक पर घमती थी। ब्लेज पास्कल की इस ऐडिंग मशीन (Adding Machine) को पास्कलाइन (Pascaline) कहते हैं जो सबसे पहला यांत्रिकीय गणना यंत्र (Mechanical Calculating Machine) था। आज भी कार व स्कूटर के स्पीडोमीटर में यही सिस्टम कार्य करता है। इस आविष्कार के लिये उसे प्रेरणा 19 वर्ष की आयु में ही मिल गई थी। इसके बाद सन् 1673 में जर्मन गणितज्ञ व दार्शनिक गॉटफ्रेड वॉन लेबनीज (1646-1716) (Gottfried von Leibniz) ने पास्केलाइन का विकसित रूप तैयार किया जिसे रेकनिंग मशीन (Reckoning Machine) कहते हैं। यह मशीन अंकों के जोड़ व बाकी के अलावा गण व भाग की क्रिया भी कर सकती थी।

    (5) जोसेफ जेकार्ड (Joseph Jacquard)-

    सन् 1801 में फ्रांसीसी बुनकर (Weaver) जोसेफ जेकार्ड (Joseph Jacquard) ने कपड़े बुनने के ऐसे लूम का आविष्कार किया जो कपड़ों में डिजाइन या पैटर्न स्वतः देता था। इस लूम की विशेषता यह थी कि यह कपड़े के पैटर्न को कार्डबोर्ड के छिद्रयुक्त पंचकाडों से नियन्त्रित करता। की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति द्वारा धागों को निर्देशित किया जाता था। जेल ने दो विचारधारायें दी जो आगे कम्प्यूटर के विकास में उपयोगी सिद्ध हुई।

    पहली सूचना को पंचकार्ड पर कोडित किया जा सकता है। दूसरी विचारधारा यह थी कि पर संग्रहीत सूचना, निर्देशों का समूह है जिससे पंचकार्ड को जब भी काम में लिया जा निर्देशों का यह समूह एक प्रोग्राम के रूप में कार्य करेगा।

    (6) बैबेज और उसके इंजिन (Babbage and His Engines)-

    अंग्रेज गणितल चार्ल्स बैबेज ने एक यांत्रिक गणना मशीन विकसित करने की आवश्यकता तब अनभव जबकि गणना के लिये बनी हुई सारणियों में त्रुटि आती थी। चूंकि ये सारणियाँ हस्त-निर्मित थीं इसलिये इनमें त्रुटि आ जाती थी। कम्प्यूटर के इतिहास में उन्नीसवीं शताब्दी का प्रारम्भिक समय स्वर्णिम काल माना जाता है। चार्ल्स बैबेज ने सन् 1822 में एक Machine का निर्माण किया जिसका व्यय ब्रिटिश सरकार ने उठाया। इस मशीन का नाम डिफरेन्स इंजिन रखा गया। इस मशीन में गियर और शाफ्ट लगे थे और यह भाप से चलती थी। चार्ल्स बैबेज ने डिफरेंस Engine का विकसित रूप एक शक्तिशाली मशीन एनालिटिकल इंजिन सन् 1833 में तैयार किया।

    Computer ka aveshkar

    डिफरेंस इंजिन कई प्रकार के गणना कार्य करने में सक्षम था। यह पंचकार्डों पर संग्रहीत निर्देशों के समूह द्वारा निर्देशित होकर कार्य करती थी। इसमें निर्देशों को संग्रहीत करने की क्षमता थी और इसके द्वारा स्वचालित रूप से परिणाम भी छापे जा सकते थे।

    बैबेज का Computer के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा। बैबेज का एनालिटिकल इंजन आधुनिक कम्प्यूटर का आधार बना और यही कारण है कि चार्ल्स बैबेज को कम्प्यूटर विज्ञान का जनक कहा जाता है।

    उन्होंने अपना सर्वस्व एनालिटिकल इंजिन के विकास में लगाया लेकिन वे इस मशीन के क्रियाशील मॉडल को देख नहीं पाये। बाद में उनकी सहयोगिनी एडा ऑगस्टा ने इस कार्य को आगे बढ़ाया और उन्हें दुनियाँ की सबसे सर्वप्रथम प्रोग्रामर कहा जाने लगा क्योंकि उनका कार्य एनालिटिकल इंजिन में निर्देशों को संग्रहीत करना और इस मशीन को चलाना था। एडा ऑगस्टा ने ही द्वि-आधारी संख्याओं का आविष्कार किया।

    (7) हर्मन होलेरिथ, जनगणना और पंचकार्ड-

    Computer के इतिहास में सन् 1890 में एक और महत्वपूर्ण घटना हुई, वह थी America की जनगणना का कार्य। इससे पूर्व जनगणना का कार्य पारम्परिक तरीकों से किया जाता था।

    सन् 1880 में शुरू की गई जनगणना में 7 वर्ष लगे थे। कम समय में जनगणना के कार्य का सम्पन्न करने के लिये हर्मन होलेरिथ ने एक मशीन बनाई जिसमें पंचकाओं को विद्युत द्वारा संचालित किया गया। इस मशीन की सहायता से जनगणना का कार्य केवल तीन वर्ष में पूरा हो गया।

    – सन 1896 में होलेरिथ ने पचकार्ड यंत्र बनाने का एक कम्पनी टेबुलेटिंग मशीन कम्पनी स्थापित की। सन् 1911 में इस कम्पनी का अन्य कम्पनी के साथ मिलकर परिवर्तित नाम कम्प्यूटर टेबुलेटिंग रेकॉर्डिंग कम्पनी हो गया। सन् 1924स कम्पनी का नाम पुनः बदलकर इंटरनेशनल बिजनेस मशीन हो गया। अब कम्प्यूटर विद्युत यांत्रिकी के युग में आ गये। क्योंकि होलेरिथ की मशीन यांत्रिक एवं विद्युत से संचालित थी।

    8) आइकेन, आई.बी.एम., और मार्क-

    1-आई.बी.एम. के चार शीर्ष इंजीनियरों व डॉ. हॉवर्ड आईकेन ने सन् 1944 में एक मशीन को विकसित किया और इसका आधिकारिक नाम ऑटोमेटिक सिक्वेन्स कन्ट्रोल्ड केल्कलेटर रखा। बाद में इस मशीन का नाम मार्क- रखा गया। यह विश्व का सबसे पहला विद्यत यांत्रिकी कम्प्यूटर था। इसम 500 मील लम्बाई के तार व 30 लाख विद्युत संयोजन थे। यह 6 सेकण्ड में एक गुणा आर 12 सेकण्ड में एक भाग की क्रिया कर सकता था। इस प्रकार अब विद्युत यांत्रिक कंप्यूटिंग शिखर पर पहुंच चुकी थी

    (9) एटानासॉफ-बेरा कम्पयूटर : ए.बी.सी.-

    सन 1939 मे एटानासॉफ ने लोवा स्टेट विश्वविद्यालय से 650 डॉलर का अनुदान प्राप्त किया है। इस अनुदान से एटानासॉफ ने स्लिफॉर्ड बेरी की पार्ट टाइम सेवाओं को प्राप्त किया। सन 1945 में एटानासाफ ने एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन को विकसित किया जिसका नाम ए.बी.सी. रखा गया। ए.बी.सी. शब्द Atanasoff-Berry Computer का संक्षिप्त रूप है। ए.बी.सी. सबसे पहला इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर था।

    आइकेन और आई.बी.एम. के मार्क- की तकनीक, नई इलेक्ट्रॉनिक्स तकनीक के आने से पुरानी हो गई। नई इलेक्ट्रॉनिक तकनीक में कोई यांत्रिक पुर्जा संचालित करने की आवश्यकता नहीं थी जबकि मार्क-1 एक विद्युत मशीन थी। नई इलेक्ट्रॉनिक तकनीक मशीनों में विद्युत की उपस्थिति और अनुपस्थिति का सिद्धान्त था। चूँकि इसमें कोई चलायमान पुर्जा नहीं था। इसलिये यह विद्युत यांत्रिक मशीन से तेज गति की मशीन हो गई।

    (10) प्रथम बृहद स्तर का सामान्य उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर-

    एनिएक- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकन सेना को युद्ध के समय शस्त्रों को लक्ष्य की ओर स्थित करने के लिये जटिल गणनायें करनी पड़ती थीं। उसी समय विद्युत अभियंता जे.पी. एकर्ट और जॉन मुचली ने सेना के लिये एक Electronic Computer बनाकर देने का प्रस्ताव रखा।

    सन् 1946 में एकर्ट और मुचली ने एक कम्प्यूटर बनाया जिसका नाम था- एनिऐक। यह दुनियाँ का सबसे पहला वृहद् स्तर का जनरल पर्पज Electronic Computer था। यह 100 फीट लम्बा व 10 फीट ऊँचा था। इसमें 18000 वैक्यूम ट्यूब थीं और यह 140 किलोवाट विद्युत से चलता था। इसका वजन 30 टन था।

    (11) EDSAC और EDVAC-

    ENIAC के प्रयोग में एक मुख्य समस्या यह थी कि प्रत्येक नई गणना के लिये इसके ऑपरेटर्स को गणनाओं की नई विधि की आवश्यकता होती थी। ऑपरेटर्स को पुनः नये परिपथों को लिखना पड़ता था और नये अनुविन्यास में समायोजित करना आवश्यक था।

    इस प्रक्रिया में समय बेकार जाता था। इसके समाधान के लिये गणितज्ञ जॉन वॉन न्यूमान ने सन् 1946 में ईकेन, मेस्चली, गोलस्मिथ एवं वर्क्स के साथ मिलकर एक Computer तैयार किया जिसमें क्रियाओं के लिये निर्देशों के समूह Program को संग्रहीत किया जा सकता था और इसके बाद नई क्रिया के लिये नया प्रोग्राम संग्रहीत किया जा सकता था।

    अतः नई गणनाओं के लिये Computer में तारों के संयोजन बदलने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस प्रकार संग्रहीत प्रोग्राम के सिद्धान्त का जन्म हुआ। सबसे पहला संग्रहीत प्रोग्राम कम्प्यूटर सन 1949 में इंग्लैण्ड के केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विल्कस ने एडसेक के रूप में तैयार किया। इसके अलावा वॉन न्यूमान ने सन् 1950 में एडवेक विकसित किया।

    वाणिज्यिक कम्प्यूटिंग की शुरूआत सन् 1951 में तब हुई जब जनगणना के लिये अमेरिकन ब्यूरो ने UNIVAC कम्प्यूटर खरीदा। यह कम्प्यूटर ENIAC का विकसित रूप था.

    Helpful Article :-


    हम आशा करते हैं कि आपको यह Article पढ़ के मजा आया होगा इस आर्टिकल में हमने Computer का आविष्कार कब और किसने किया था? (Computer Invention) के बारे में आपको जानकारी दी है, अगर आपको लगता है कि कोई जानकारी हमसे छूट गई हो तो कृपया कर उसे Comment में हमसे साझा करें.

    अगर आपको यह Article Helpful रखता है तो आप इस आर्टिकल को अपने मित्रों के साथ और घर के सदस्यों के साथ Share कर सकते हैं और उन्हें भी कंप्यूटर की जानकारी दे सकते हैं.

    आप हमारे Blog से Computer के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं एस Blog पर कंप्यूटर की सभी जानकारी के बारे में बताया जाता है वह भी बहुत आसान भाषा में धन्यवाद आपका इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए.

  • Computer उपकरण क्या है | Computer Output

    Computer उपकरण क्या है | Computer Output

    Computer Output

    क्या आप जानते हैं Computer का आविष्कार Charles Babbage द्वारा किया गया है जिसे कंप्यूटर का जनक भी कहा जाता है.

    आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम सीखने वाले हैं Computer के कुछ भौतिक स्वरूप उपकरणों के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं.

    आज के इस Article में आपको बहुत ही आसान भाषा में Computer के उपकरणों के बारे में जानने को मिलेगा जैसे कि मॉनिटर कीबोर्ड माउस या सिस्टम यूनिट और प्रिंटर यह क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं आपको सभी जानकारी आज पढ़ने को मिलेगी

    Computer के विभिन्न उपकरण

    Computer की आंतरिक संरचना के बारे में विस्तार से जानने और समय इसके भौतिक रूप से परिचित होते हैं। वर्तमान समय में आम बोलचाल की भाषा कम्प्यूटर को PC या Personal Computer कहा जाता है। जब हमारी नजर पहली बार पड़ती है तो इसके निम्न भाग हमें दिखाई देते हैं।

    (1) Monitor-

    Computer का वह अनिवार्य भाग जिसकी Screen या पटल पर यह देता है कि काम क्या हो रहा है? यह भाग Computer की Output यति अन्तर्गत आता है।

    monitor kya he

    यह कंप्यूटर का मुख्य भाग होता है जिसकी मदद से आपको यह जानने को मिलता है कि कंप्यूटर Software पर क्या Run हो रहा है और यह कैसे काम करता है बिना Monitor के Computer को चलाना लगभग नामुमकिन है

    (2) Keyboard-

    कम्प्यूटर का वह अनिवार्य भाग जिसके द्वारा हम Computer को काम करने के आदेश और डाटा इनपुट करते हैं। यह भाग Computer Unit के अन्तर्गत आता है।

    keyboard kya he

    आप इस Keyboard की मदद से Data Entry, Application Type, कर सकते हैं Email लिख सकते हैं और भी बहुत सारे Typing वर्क आप कर सकते हैं.

    (3) System Unit-

    कम्प्यूटर का वह अनिवार्य भाग जिसमें कार्य की प्रोसेसिंग, उसके परिणामों यानी पूरे PC को चलाने के अंदरूनी Hardware संसाधन लगे होते हैं। Memory (प्राइमरी और सेकेण्डरी) और कम्युनिकेशन Port जैसे समस्त कम्पोनेन्ट इसी के अन्तर्गत आते हैं। Keyboard, Monitor, Printer, – इत्यादि को इसी से जोड़ा जाता

    System Unit Hindi

    (4) Mouse-

    वर्तमान समय में Computer का वह अनिवार्य भाग जिसके द्वारा Screen पर मनचाही जगह प्वाइंटर को ले जाकर कमांड क्रियान्वित करते हैं। इन कमांडों को iCon के कहा जाना है। विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम को इसके बिना संचालित नहीं किया जा सकता है।

    mouse kya he

    (5) Printer-

    यह एक वैकल्पिक भाग होता है। इससे अपने काम और दस्तावेज की छपी कॉपी निकालते हैं। इसे सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट में बनी कम्युनिकेशन पोर्ट से जोड़ा जाता है। इसे वर्तमान समय में USB और LPT1 से जोडते हैं।

    Printer kya he

    नये आवश्यक उपकरण

    नये आवश्यक उपकरण– इन दिनों Computer के साथ और कई उपयोगी उपकरण लगे होते हैं जिनसे इसकी कार्य-क्षमता में बढोत्तरी तो होती ही है और इसके साथ ही यह बहुआयामी भी हो जाता है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं

    (1) CD, DVD Driver –

    फ्लॉपी की जगह अब इसी ड्राइव का अधिक उपयोग हो रहा है। इसके द्वारा जहाँ बड़े-बड़े सॉफ्टवेयरों को इन्सटॉल करते हैं वहीं इसमें Data Backup भी लिया जाता है। आज Computer को Boot भी इसी से किया जाता है।

    (2) Speaker-

    वर्तमान समय में Multimedia तकनीक की वजह से इसका प्रयोग लगभग अनिवार्य हो गया है। इससे कम्प्यूटर में स्टोर आवाज को सुना जा सकता है। इन्हें सीपीय में लगी लाउंड पोट से जोड़ा जाता है।

    (3) Mic-

    वर्तमान समय में Multimedia तकनीक की वजह से इसका प्रयोग भी लगभग अनिवार्य हो गया है। इससे कम्प्यूटर आवाज को इनपूट किया जा सकता है। इंटरनेट से फोन करने में इसका प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। यदि हम Headphone का प्रयोग करते हैं तो यह हैडफोन में लगा होता है। स्पीच रिकग्नीशनं के लिये इसका कम्प्यूटर से जुड़ना अनिवार्य है।

    (4) Modem-

    इस उपकरण का प्रयोग फोन लाइन से संदेश लेन-देन और इंटरनेट से जुड़ने के लिये किया जाता है। यदि हमारे पास इंटरनेट का डॉयल-अप कनेक्शन है तो इसका कम्प्यूटर में लगा होना जरूरी है। इसे सीपीयू के अन्दर भी लगाया जा सकता है।

    (5) LAN card-

    वर्तमान समय में पर्सनल Computer की जगह Network कम्प्यूटरों का चलन बढ़ रहा है। इसी वजह से इस कार्ड का प्रयोग भी बढ़ गया है। यह कार्ड आज के प्रत्येक कम्प्यूटर में किसी न किसी रूप में लगा होता है। इसके द्वारा एक कम्प्यूटर को एक तार के जरिये दूसरे कम्प्यूटर से जोड़ सकते हैं। इसके अलावा इससे Broadband Internet को प्रयोग किया जाता है।

    (6) Scanner, Digital Camera-

    इन उपकरणों का प्रयोग Computer में Image को Input करने के लिये किया जाता है। Scanner जहाँ कागज पर छपी इमेज को स्कैन करके कम्प्यूटर में इनटपुट करता है वहीं डिजिटल कैमरा इमेज खींचकर उसे एक फाइल के रूप में कम्प्यूटर में इनपुट कर सकता है।

    (7) UPS-

    इस उपकरण का प्रयोग बिजली के उतार-चढ़ावों के नुकसान से पीसी को बचाने और लगातार बिजली की आपूर्ति के लिये किया जाता है।

    आपने अक्सर देखा होगा कि, जब कभी भी हम Computer Desktop पर अपना कार्य करते हैं और अचानक से अगर बिजली चली जाती है तो हमारा कंप्यूटर का सारा Work का नुकसान हो जाता है, लेकिन इसके समाधान के लिए UPS बनाया गया है जो कि आपको 15 से 20 मिनट की बिजली दे देता है जब कभी भी बिजली चली जाती है.


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  • Computer की कमियां और सीमाएं | Limitation of Computer

    Computer की कमियां और सीमाएं | Limitation of Computer

    Limitation of computer

    आप तो जानते ही हैं कि कंप्यूटर एक बहुत ही ज्यादा Powerful और इंटेलिजेंट मशीन है जो कि मानव द्वारा निर्मित की गई है.

    आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम पढ़ने वाले हैं Computer के कुछ Limitation  के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं. यह कुछ कमियां हैं जो कि Computer में हमें देखने को मिल जाती हैं.

    Computer की कमियां और सीमाएं

    Computer की सीमायें अथवा असार्थता- कम्प्यूटर एक मशीन हैं जिसे मानव द्वारा नामत किया गया है इससे बहत से कार्य सम्पन्न कराये जाते हैं, परन्तु इसकी भी कछ सीमायें

    (1) गति

    Computer की गणना करने की गति अत्यन्त तीव्र होती है, परन्तु इसमें और वृद्धि की आवश्यकता निरन्तर अनुभव की जाती रही है। प्रारम्भ में कम्प्यूटर द्वारा 10 लाख गणनायें प्रति सेकण्ड की जाती थीं, परन्तु अब लगभग 30 नानो सेकण्ड अर्थात् 3 करोड़ गणनायें प्रति सेकण्ड की जाती हैं। इसमें और वृद्धि के प्रयास अभी जारी हैं।

    (2) भण्डारण क्षमता-

    Computer एक Machine है जिसे विभिन्न अवयवों को जोड़कर निर्मित किया गया है। इसके प्रत्येक अवयव की एक निश्चित सीमा है। अतः प्रत्येक भण्डारण उपकरण जैसे- Memory, Floppy, टेप तथा CDROM प्रत्येक की संग्रह क्षमता निश्चित है। उसके पश्चात् हमें संग्रह हेतु एक दूसरे उपकरण की आवश्यकता होती है।

    (3) संवेदनहीनता-

    Computer एक मशीन है अतः उससे किसी संवेदनशील व्यवहार की आशा नहीं की जा सकती है। वह केवल पूर्व-निर्देशित प्रोग्रामों के अन्तर्गत ही स्वागत आदि प्रदर्शित करता है। संगीत का प्रसारण करता है तथा Picture आदि बनाता है परन्तु इसे अनुभव नहीं करता है।

    (4) तार्किकता-

    कम्प्यूटर पूर्व निर्देशित प्रोग्रामों के अनुसार कार्य करता है। इसमें अपनी ओर से कोई भी तर्क प्रयोग करने की क्षमता नहीं है, जबकि मनुष्य परम्परागत आँकडों से वांछित परिणाम प्राप्त न होने पर अन्य संभावनाय बतलाता है तथा कार्य सम्पन्न करता है।


    कम्प्यूटर का प्रयोग-

    आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भागमभाग मची हुई है। मनुष्य के पास समय नहीं है। प्रत्येक कार्य को वह कम से कम समय में सम्पन्न करना चाहता है। इसके लिये उसने विभिन्न उपकरणों का निर्माण भी किया है.

    monitor kya he

    जैसे Calculator, Typewriter, Computer, Telephone आदि। परन्तु जब हमारे पास अन्य मिलते-जलते उपकरण कम लागत में उपलब्ध है तो हम कम्प्यूटर का प्रयोग ही करते हैं, जिसके निम्नलिखित कारण हैं.

    (1) जब कार्य की गति बढ़ानी हो-

    कम्प्यूटर किसी भी कार्य को त्वरित गति से सम्पन्न करता है। गणना का कार्य जिसमें बहुत से व्यक्ति लगाये गये हों, कम्प्यूटर द्वार तुरन्त ही सम्पन्न किया जा सकता है। जब हमें शीघ्र ही गणना के प्रिंट चाहिये तो हाई Speed प्रिन्टर के द्वारा इसकी बहुत-सी प्रतियाँ शीघ्र ही तैयार की जा सकती हैं। अतः हम कार्य की गति बढ़ाना चाहते हैं तो हमें कम्प्यूटरीकरण का प्रास करना होगा।

    (2) जब आँकड़ों की शुद्धता निश्चित करनी हो-

    मानवीय गणना करने की सीमायें हैं। केलकुलेटर द्वारा भी एक सीमा तक ही गणनायें की जाती हैं। कम्प्यूटर द्वारा दशमलव के बाद चार से आठ संख्या तक गणना की जा सकती है। इस आधार पर निकाले गये निष्कर्ष अधिक विश्वसनीय होते हैं. अतः जब हमें ज्यादा सटीक गणनायें करनी हों तो कम्प्यूटर का प्रयोग करना चाहिये।

    (3) जब अधिक मात्रा में आँकड़ों का प्रयोग करना हो-

    कम्प्यूटर में आँकड़ों को संग्रह करने तथा उनके पुनर्निर्गमन की क्षमता है। यदि हमें अधिक संख्या में आँकड़ों का संग्रह करना हो तो वर्तमान पेपर संग्रहण में जो कार्य एक किताब में आता है, जिस डाटा से एक पूरी अलमारी भर जाती है उसे केवल एक टेप में संग्रह किया जा सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर पूरी अलमारी में खोजने के स्थान पर पुनर्निर्गमन किया जा सकता है।

    (4) श्रमिक संगठनों के दबाव को कम करने हेतु-

    जब हम एक बड़े औद्योगिक समूह का संचालन करते हैं तो हमें अपने खातों के रख-रखाव तथा आंकड़ों के संचालन हेतु अधिक स्टाफ की आवश्यकता होती है। अधिक मात्रा में श्रमिक होने पर वे अपना संगठन बना लेते हैं तथा विभिन्न समस्यायें पैदा करते रहते हैं। कम्प्यूटर के प्रयोग से श्रमिकों की संख्या सीमित की जा सकती है।

    (5) मितव्ययता एवं आधुनिकता-

    अगर संस्था में प्रारम्भ में ही नियोजित रूप से कम्प्यूटर लगाये जायें तो हमारी लागत काफी कम हो जाती है। फाइलों में रखरखाव हेतु अधिक स्थान की आवश्यकता नहीं रहती है। कम संचालनकर्ताओं का आवश्यकता होती है। इससे लागत में कमी हो जाती है। वहीं ऑफिस भी आधुनिक एवं सुसज्जित रहता है। यह प्रत्येक लेन-देन करने वाले को निश्चित ही प्रभावित करता है।



    हम आशा करते हैं कि आपको यह Article पढ़ के मजा आया होगा इस आर्टिकल में हमने Computer के सभी कमियां के बारे में आपको जानकारी दी है, अगर आपको लगता है कि कोई जानकारी हमसे छूट गई हो तो कृपया कर उसे Comment में हमसे साझा करें.

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  • Computer के प्रमुख कार्य और 6 विशेषतायें

    Computer के प्रमुख कार्य और 6 विशेषतायें

    आप तो जानते ही हैं कि Computer एक बहुत ही ज्यादा Powerful और इंटेलिजेंट मशीन है जो कि मानव द्वारा निर्मित की गई है.

    आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog Computer-Hindi.com पर और आज हम पढ़ने वाले हैं Computer के कुछ Limitation  के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं. यह कुछ कमियां हैं जो कि Computer में हमें देखने को मिल जाती हैं.

    Computer के प्रमुख कार्य- कम्प्यूटर को जानकारी का इंजन कहा जाता है। जिस प्रकार इंजन में कोयला डालकर उससे ऊर्जा उत्पन्न की जाती है उसी प्रकार कम्प्यूटर में भी आँकड़ों को डालकर इस प्रकार से संशोधित किया जाता है कि उसका जीवन में प्रयोग किया जा सके। कम्प्यूटर में ज्ञान राशि के आँकड़ों को परिमार्जित, संशोधित, व्यवस्थित तथा संगृहीत किया जाता है जिससे वे जीवन में उपयोग किये जा सकें। अतः कम्प्यूटर के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

    (1) ऑकड़ों का संकलन

    (2) आँकड़ों का संचयन।

    (3) आँकड़ों का परिमार्जन तथा व्यवस्थितिकरण।

    (4) आँकड़ों का पुनर्निगमन।

    Computer की क्षमतायें अथवा विशेषतायें– आज कम्प्यूटर ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को इतना प्रभावित किया है कि हम बिना कम्प्यूटर के बहुत से कार्यों की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। यह सम्भव हुआ है उसमें प्रयुक्त किये जाने वाले उच्च क्षमता के माइक्रोचिप आदि के प्रयोग से। इसने मानव के द्वारा तैयार किये निर्देशों के आधार पर ही त्रुटिरहित परिणाम इतनी त्वरित गति से तैयार किये हैं कि जन-सामान्य आश्चर्यचकित रह जाये। इसकी क्षमतायें किसी भी अन्य गणक मशीन से श्रेष्ठ हैं। इन्हें हम निम्न प्रकार से विभाजित कर सकते हैं

    Computer के प्रमुख कार्य और विशेषतायें

    (1) गति-

    कम्प्यूटर का सबसे बड़ा गुण ही उसकी गणना करने की तीव्र गति है। कम्प्यूटर द्वारा गणनायें इतनी तीव्र गति से की जाती हैं कि हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। एक साधारण कम्प्यूटर एक सेकण्ड में एक करोड़ गणनायें कर सकता है।

    वहीं आधुनिकतम कम्प्यूटर तीन करोड़ तक गणनायें कर सकता है। कम्प्यूटर का समय माइक्रो सेकण्ड तथा नानो सेकण्ड में मापा जाता है। इस गति के कारण ही कम्प्यूटर हमारे लिये महत्वपूर्ण हो गया है। पहले हम जिस कार्य को दिनों तथा महीनों में पूरा करते थे, कम्प्यूटर कुछ ही समय में पूरा कर देता है।

    (2) संचय क्षमता-

    कम्प्यूटर में बहुत अधिक मात्रा में डाटा भंडारण की क्षमता होती है। एक सामान्य फ्लॉपी डिस्क में कई हजार टाइप पेज के बराबर जानकारी एकत्र की जा सकती है। एक लेसर डिस्क में चार करोड़ शब्दों का भंडारण किया जा सकता है।

    एक पूरी की पूरी डिक्शनरी एक सीडी रोम में संचय की जा सकती है। जानकारी का संग्रह तो एक बात है,परन्तु कम्प्यूटर में यह सुविधा होती है कि उक्त जानकारी को तुरन्त ही निकाल कर प्रयोग किया जा सके।

    कम्प्यूटर की इसी विशेषता ने इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण बना दिया है, क्योंकि उच्च स्तरीय विश्लेषण हेतु आंकड़ों का उपलब्ध होना भी आवश्यक है। कम्प्यूटर सभी सम्बन्धित आंकड़े एकत्र करता है, उन्हें निर्देशित प्रोग्रामों के आधार पर पूर्व के आँकड़ों के साथ विश्लेषित करता है तथा परिणाम प्रदर्शित करता है। इस प्रकार रेलवे आरक्षण, मौसम विज्ञान, आयुध संचालन में कम्प्यूटर का प्रयोग अधिक हो गया है।

    (3) विश्वसनीयता एवं निर्भरता-

    कम्प्यूटर द्वारा की गई डाटा प्रोसेसिंग विश्वसनीय होती है। इसमें गलती की कोई सम्भावना नहीं रहती है। इसकी गुणवत्ता इतने उच्च-स्तर की होती है कि उस पर निर्भर रहा जा सकता है। अंकीय कम्प्यूटर में यथार्थता शत-प्रतिशत होती है। यह एक दिये हुये प्रोग्राम के अन्तर्गत दिये गये डाटा को बिना किसी अशुद्धि के बार-बार सम्पन्न कर सकता है।

    (4) स्वचालन-

    कम्प्यूटर की गणनायें स्वचालित होती हैं। इसको एक बार कोई प्रोग्राम दे दिया जाये तथा उसमें सम्बन्धित आँकड़े उपलब्ध करा दिये जायें तो यह स्वतः ही प्रोग्राम डालने पर गणना कर सकता है। इसीलिये यन्त्र मानव आदि का कम्प्यूटर द्वारा संचालन सम्भव हुआ है। मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणियाँ भी कम्प्यूटर उपलब्ध आँकड़ों तथा पिछले को मिलाकर स्वतः ही करता है।

    (5) उपयोगिता-

    हमारे अधिकांश कार्य तर्क पर आधारित होते हैं। कम्प्यूटर एक तार्किक मशीन है। हम किसी भी प्रोग्राम के द्वारा कम्प्यूटर को कार्य करने हेत निर्देशित करते हैं। ये निर्देश उस प्रोग्राम में दिये जाते हैं। कम्प्यूटर उक्त निर्देशों के अन्तर्गत कार्य का सम्पादन करता है। वह किसी भी कार्य को कर सकता है। यदि हम उसे प्रोग्राम द्वारा उक्त कार्य को करने की प्रक्रिया समझा सकें।

    6) सक्षमता-

    कम्प्यूटर एक मशीन है। मनुष्य की कार्य करने की सीमायें होती हैं। एक सीमा के बाद व्यक्ति थक जाता है, परन्तु कम्प्यूटर कभी नहीं थकता। उससे हम एक ही प्रकार की अथवा विभिन्न प्रकार की गणनायें निरन्तर करवा सकते हैं। उसे कभी कार्य से नीरसता अथवा बोरियत नहीं होती। What is PC?

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