आपका बहुत-बहुत स्वागत है, हमारे इस Blog पर और आज हम सीखने वाले हैं, VSAT? के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर अथवा वेबसाइट सीखना चाहते हैं.
आज के इस Article में आपको बहुत ही आसान भाषा में VSAT के बारे में जानने को मिलेगा और कैसे काम करते हैं आपको सभी जानकारी आज पढ़ने को मिलेगी.
What is VSAT?
Very Small Aperture Terminal (VSAT) : VSAT वैरी स्मॉल पचर टर्मिनल (Very small Aperture Teminal) का संक्षिप्त रूप है। इसको एक उधमान भू-स्टेशन के रूप में वर्णन किया जा सकता है जो जियो सिन्क्रोनस उपग्रह (geo synchronous satellite) से जुड़ा होता है तथा द्वि-मार्गी दूर संचार (two-wal telecommunication) तथा सूचना सेवाओं जैसे- ध्वनि, डाटा तथा वीडियो को सपोर्ट करने के लिए उपयुक्त होता है।
यह छोटे टर्मिनल एक मीटर के एंटिना रखते हैं तथा लगभग एक वाट के होते हैं। अपलिक सामान्यतः 19.2 kilo bite per second के लिये बढ़िया होता है। लेकिन डाउन GNK प्रायः 512 किलो बाइट प्रति सेकण्ड (kbps) से अधिक होता है। बहुत से VSAT प्रणाली के अन्तर्गत माइक्रो-स्टेशन किसी और स्टेशन से (satellite) के द्वारा सीधे जुड़ने की क्षमता नहीं रखते हैं।
वह एक विशेष प्रकार ग्राउण्ड स्टेशन जो कि बहुत बड़े एंटीना रखते हैं, जिनके द्वारा VSAT, के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। इस प्रकार की क्रियाओं में सूचना भेजने वाले (sender) और प्राप्त करने वाले (receiver) के पास बहुत बड़े एंटीना तथा अत्यधिक क्षमता वाले एम्पलीफायर (Amplifier) होते हैं। इन प्रक्रियाओं में user तक सूचना पहुँचने में अधिक समय लगता है।
FQA:-
Vsat full form
इस का फुल फॉर्म (Very Small Aperture Terminal) (VSAT) : VSAT वैरी स्मॉल पचर टर्मिनल (Very small Aperture Teminal) का संक्षिप्त रूप है
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Telnet यह protocol remote login की सुविधा प्रदान करता है। यह क्लाइट system पर user को ऐसी सुविधा प्रदान करता है जिसके माध्यम से वह remote पर login कर सकता है जब एक बार login हो जाता है तब user के द्वारा भेजी गयी रिक्वेस्ट या data सर्वर तक पहँचता है।
आपका बहुत-बहुत स्वागत है, हमारे इस Blog पर और आज हम सीखने वाले हैं, Telnet? के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं.
आज के इस Article में आपको बहुत ही आसान भाषा में Telnet के बारे में जानने को मिलेगा और कैसे काम करते हैं आपको सभी जानकारी आज पढ़ने को मिलेगी.
Telnet क्या है?
यह (Telnet) program भी FTP का तरह protocol का प्रयोग करता है। इसका standard RFC854 [ postel और Reynolds 1983] है।
टेलनेट की अवधारणा– Remote login के लिये Internetstandard, Telnet नाम के एक protocol में पाया जाता है। इसको विनिदेशTCP/IP दस्तावेजीकरण का हिस्सा होते हैं।
Telnet protocol इस बात का सटीक विवरण देता है कि कैसे एक दूरस्थ लॉगइन क्लाइंट तथा दूर स्थित login server आपस में संवाद स्थापित करते हैं। यह मानक इस बात का विवरण देता है कि जब उदाहरण के लिए, क्लाइंट किस तरह सर्वर से संबंध स्थापित करता है। कैसे क्लाइंट सर्वर को संप्रेषण के लिये Keystroke को दूर करता है।
चूंकि, दोनों Telnet क्लाइंट तथा सर्वर program एक ही विनिदेशन का पालन करते हैं। वो communication detail पर सहमत हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, यद्यपि अधिकांश computer कुंजी पटल की एक कुंजी की व्याख्या, चल रहे program पर विचलित कर देने के आग्रह के रूप में करते हैं। सभी computer प्रणालियाँ एक ही कुंजी का प्रयोग नहीं करती कुछ computer ATTN Level वाली एक कुंजी इस्तेमाल करती है। जबकि कुछ अन्य DEL Level वाली कुंजी telnet bits की उस कड़ी (sequence) के बारे में बताती है जिसका प्रयोग एक user abort कुंजी represent करने के लिए करता है। जब एक user local कुंजी पटल पर abort कुंजी को दबाता है तो telnet क्लाइंट program, कुंजी को विशेष कड़ी के रूप में अनूदित कर देता है। इस प्रकार telnet user को दूरस्थ program का abort करने के लिए उसी कुंजी को दबाने की अनुमति दे देता है, जिसका प्रयोग वह स्थानीय program को abort करने के लिए करता है।
दूर स्थित होस्ट से संयोजन (Connection to a remote host)-
Telnet program जो Windows-98 और 95 के साथ आता है, Telnet कहलाता है। वह Windows-98 और 95 के साथ आने वाले built in telnet program को संचालित करता है। हालांकि Windows–XP में टेलनेट पूरी तरह वही है जो 95 तथा 98 में है, Windows 98 में Telnet का प्रयोग करने के लिये निम्न पदों का अनुसरण करना चाहिये।
(1) Start पर click करें एवं Run का चयन करें telnettype करें तथा OK पर click करें telnet windows वैसे ही प्रकट है।
(2)Internet पर HOST computer से संयोजन करने के लिये connect पर click करें और Remote computer का चयन करें।
(3) HOST name box में computer का HOST नाम type करें जिससे आप जुड़ना चाहते हैं।
(4) Port, box set को telnet पर छोड़ देते हैं। दूसरे option भिन्न internet सेवाओं को प्रयोग करने के लिए HOST computer से जुड़ते हैं जो सिर्फ debugging के लिए उपयोगी होता है।
(5) दूरस्थ computer को भेजने के लिए term type box, the string of character को set करें यदि यह आपसे पूछता है कि किस प्रकार के Terminal का आप प्रयोग कर रहे हैं।
(6) Connect पर click करें यदि आपका computer intermet से संयोजित नहीं है, तो आप Dial up Networking विण्डो देखेंगे जो आपको संयोजन के लिये तत्पर करेगी; एक बार online होने पर connect बटन पर click करें। telnet HOST computer से जुड़ जाता है। telnet windows में एक terminal विण्डो होता है जो आपके द्वारा HOST computer से प्राप्त text तथा आपके प्रत्युत्तर को प्रदर्शित करता है।
(7) Login करें तथा HOST computer द्वारा चाहे गए निर्देशों को type करते हुए HOST computer का प्रयोग करें। आप windows के दाहिनी तरफ वाले scroll bar का प्रयोग करके विण्डो के ऊपरी किनारे से भी ऊपर सरक गए text की lines को देख सकते हैं।
(8) जब आपका HOST computer का प्रयोग समाप्त हो जाए logout करें। telnet भी disconnect हो जाता है। यदि आपको disconnect करने में परेशानी होती है तो connect click करें तथा Disconnect का चयन करे ताकि telnet को sign up करने के लिए निर्देशित किया जा सके।
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Data transmission protocol होते हैं जो कि सूचनाए, संदेशों को data के रूप में computer या network के बादान-प्रदान करने का कार्य करते हैं। data transmission protocol निम्न हैं.
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Data Transmission Protocol क्या है
Data transmission protocol होते हैं जो कि सूचनाए, संदेशों को data के रूप में computer या network के बादान-प्रदान करने का कार्य करते हैं। data transmission protocol निम्न हैं.
TCP/IP (TransmissionControl Protocol/Internet Protocol)DIporotocol 1980 में बनाया गया था, इसे TCP/IP सूईट भी कहते हैं, क्योंकि यह Protocol से मिलकर बना होता है। जैसा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक protocol की प्रत्येक परत में एक या एक से अधिक protocol होते हैं। TCP/IP protocol को चार परतों में बांटा गया है। TCP/IP एक इंटरनेट protocol है.
(ii) इसका प्रयोग local Area Network तथा Wide Area Network दोनों में होता
(iv) इसका प्रयोग कई सरकारी तथा व्यावसायिक साइटें कर रही हैं।
(v) यदि दो computer एक कमरे से internet के माध्यम से जुड़े हैं तो वे दोनों computer भी TCP/IP protocol का प्रयोग करके ही सूचनाओं का आदान प्रदान कर सकते हैं।
संचार नियंत्रण प्रोटोकॉल (TCP – Transmission Control Protocol)-
यह Protocol Connection ओरिऐन्ट प्रोटोकॉल हो जो यूजर process के लिए विश्वसनीय, full duplex तथा data को साइट stream में ट्रांसमिट करता है। अधिकतर इंटरनेट Application program TCP protocol का प्रयोग करते हैं। क्योंकि TCP protocol IP protocol का प्रयोग करते हैं। अतः इस protocol सूट को TCP/IP protocol कहते हैं।
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File Transfer Protocol : FTP सर्वर एक ऐसा कम्प्यूटर होता है जो अपनी डिस्क पर सूचना एकत्रित करके रखता है। इस कम्प्यूटर पर एकत्रित सूचनिा यूजर्स के लिये उपलब्ध होती हैं,
आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम सीखने वाले हैं, File Transfer Protocol (FTP) के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं. यह Internet का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है जो की Website के निर्माण के दौरान इसकी आवश्यकता पड़ती है.
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File Transfer Protocol क्या है
जो Internet पर उपस्थित फाइल ट्रांसफर प्रोटोकाल (FTP) के द्वारा किया जाता है। जिसमें फाइल ट्रांसफर प्रोटोकाल (FTP) इन्टरनेट से जुड़े किसी एक कम्प्यूटर की फाइल्स को इन्टरनेट से जुड़े किसी अन्य कम्प्यूटर पर ट्रांसफर करता है। FTP, TCP/IP प्रोटोकाल समूह का ही एक सदस्य है।
FTP का मख्य प्रतियोगी HTTP है। HTTP दिन प्रतिदिन लोकप्रिय होता जा रहा है, क्योंकि यह वे सभी कार्य तो कर ही सकता है, जो FTP कर सकता है, साथ ही वह अनेक ऐसे कार्य भी कर सकता है जो FTP नहीं कर सकता। लेकिन उल्लेखनीय है कि FTP को फाइल ट्रांसफर के लिये उपयोग में लिया जाता है। Internet से जुड़े हुये यूजर्स को फाइल ट्रांसफर करने की सुविधा प्रदान करने के लिये बहुत सारे FTP सर्वर्स पूरे विश्व में स्थापित किये गये हैं।
FTP की कार्यविधि-
FTP क्लाइन्ट/सर्वर तकनीक का ही पालन करता है। कोई यूजर अपने Computer पर FTP प्रोग्राम चलाता है, उसे रिमोट कम्प्यूटर से कनैक्ट करने के लिये निर्देश देता है तथा उसके बाद एक या अधिक फाइल्स को स्थानान्तरित करने का निर्देश देता है।
स्थानीय कम्प्यूटर पर चल रहा FTP प्रोग्राम किसी क्लाइंट के समान कार्य करता है जो FTP सर्वर प्रोग्राम से सम्पर्क बनाने के लिये TCP का उपयोग करता है।
जब User किसी Files को Transfer करना चाहता है तो क्लाइंट प्रोग्राम तथा सर्वर Program आपस में मिलकर Internet के माध्यम से उस फाइल की एक कॉपी स्थानान्तरित कर देते हैं। जिस फाइल को यूजर ने माँगा है, उस फाइल को FTP सर्वर ढूँढता है और फाइल के सारे कन्टेन्टस की कापी को TCP के द्वारा इन्टरनेट के माध्यम से क्लाइंट तक पहुँचा देता है। जब क्लाइंट प्रोग्राम के पास डाटा आ जाता है तो वह यूजर के कम्प्यूटर की डिस्क पर उस फाइल के डाटा को लिख देता है। FTP के मुख्य दो कार्य निम्नलिखित हैं.
(1) फाइल अपलोड करना- (File Upload)
Internet पर जब User अपने कम्प्यूटर से किसी रिमोट कम्प्यूटर पर File Transfer करता है तो यह प्रक्रिया FileUploading कहलाती है। हम फाइल्स को केवल तभी अपलोड कर सकते हैं जब हम FTP सर्वर के प्रमाणिक यूजर हों।
(2) फाइल डाउनलोड करना- (File Download)
यह FileDownloading के विपरीत प्रक्रिया Downloading है। इसमें फाइलों को किसी रिमोट Computer से अपने कम्प्यूटर पर File किया जाता है। इसके लिये यूजर को FTP Server पर किसी विशेष एकाउंट की आवश्यकता नहीं होती.
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Computer Virus– कम्प्यूटर वाइरस भी एक प्रकार के विनाशकारी प्रोग्राम होते हैं जो हमारे डाटा व प्रोग्रामों को, बिना हमारी अनुमति के हमारे कम्प्यूटर में घुस कर कुछ भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम सीखने वाले हैं, Computer Virus के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं. अगर आपको कंप्यूटर वायरस के बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो यह वायरस आपके कंप्यूटर को नुकसान पहुंचा सकते हैं यही कारण है कि हमें कंप्यूटर के वायरस के बारे में जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है अगर आप computer में Internet का प्रयोग करते हैं तो.
आज के इस Article में आपको बहुत ही आसान भाषा में Computer Virus क्या है के बारे में जानने को मिलेगा और कैसे काम करते हैं आपको सभी जानकारी आज पढ़ने को मिलेगी.
Computer Virus क्या है?
Computer Virus– कम्प्यूटर वाइरस भी एक प्रकार के विनाशकारी प्रोग्राम होते हैं जो हमारे DATA व प्रोग्रामों को, बिना हमारी अनुमति के हमारे कम्प्यूटर में घुस कर कुछ भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
एक बार Computer में घुसने के बाद ये अपनी स्थिति सुदृढ़ बना लेते हैं, और फिर संक्रामक रोग की तरह फैलना प्रारम्भ कर देते हैं। ये किसी भी अछूती फ्लॉपी डिस्क या हार्ड डिस्क के सम्पर्क में आते ही घुस जाते हैं। बाद में उस वाइरस वाली फ्लॉपी डिस्क को यदि किसी दूसरे कम्प्यूटर पर चलाने का प्रयास किया जाये तो ये उसकी Hard Disk में घुसकर बैठ जाते हैं, और संक्रामक रोग की तरह यह बीमारी फैलती रहती है।
Virus की पहचान व उससे छुटकारा पाना बहुत महंगा पड़ सकता है। – वाइरस के प्रोग्राम उन लोगों द्वारा लिखे जाते हैं जो Computer के Program लिखने में अत्यन्त कुशल हैं और जिन्हें दूसरों को क्षति पहुँचाने में आनन्द का अनुभव होता है। अब सैकड़ों प्रकार के वाइरस पहचाने जा चुके हैं।
वाइरस प्रोग्रामों के विकास के साथ बचाव के लिये कुछ Hardware तथा Software का भी विकास हुआ है। ऐसे हार्डवेअर कार्ड कम्प्यूटर में लगा देने से यदि कोई वाइरस अनाधिकार प्रवेश की चेष्ट करता है, तो कम्प्यूटर एक चेतावनी देता है।
इस प्रकार के कुछ सॉफ्टवेअर भी मिलने लगे हैं। कुछ Software हमारे ComputerSystem की जाँच करके बता सकते हैं कि उसमें Virus है या नहीं, और यदि हैं तो उन्हें निकाला भी जा सकता है। प्रोग्रामों को virus detection and cleaning प्रोग्राम कहा जाता है। परन्तु ये प्रोग्राम हमेशा सफल नहीं होते क्योंकि समय के साथ नये-नये वाइरस आते रहते हैं और वाइरस से विनाश का संदेह बना ही रहता है।
वाइरस का प्रवेश-
हमारे Computer में वाइरस अनेक प्रकार से प्रवेश कर सकता है।
किसी भी वाइरस वाली Floppy, Disk, Hard Drive में लगाते ही सबसे पहले वाइरस अपने आप को कम्प्यूटर की RAM में प्रविष्ट करता है, फिर वह हार्ड डिस्क पर स्थायित्व जमा लेता है, और उसके पश्चात् हम जितनी भी शुद्ध फ्लॉपी डिस्कों का प्रयोग करेंगे, वाइरस उन सब में चला जायेगा। उन दूषित फ्लॉपियों के द्वारा वह अन्य कम्प्यूटरों में चला जायेगा और वही क्रिया दोहराई जाती रहेगी।
प्रतिबन्ध-
वाइरसों से सुरक्षा का सर्वोत्तम उपाय तो यही है कि उन्हें प्रवेश ही न करने दिया जाये. इसके लिये कुछ सावधानियाँ अपनाना चाहिये जो कि निम्न हैं.
(1) Internet पर E-Mail के साथ क्लिक की हुई फाइलों को सन्देह की दृष्टि से देखें और किसी अपरिचित द्वारा भेजी गई ऐसी फाइल को अपने कम्प्यूटर पर नहीं खोलें।
(2) किसी भी अपरिचित या माँगी हुई फ्लॉपी डिस्क से अपने कम्प्यूटर को बूट न करें।
(3) अपनी Hard Disk के सभी Program व मूल्यवान DATA का पूरी Backup रखें ताकि यदि उपयोगी बना कर अपना कार्य आरम्भ कर सकें। Hard Disk को Format करना पड़ जाये तो हम थोड़े समय में ही उसे पुनः
(4) अपनी Floppy Disk को अन्य कम्प्यूटरों पर प्रयोग करते समय उन्हें राइट प्रोटेक्ट करके उपयोग में लेने से उस कम्प्यूटर में यदि कोई Virus हो तो भी वह वाइरस हमारी फ्लॉपी डिस्क में प्रवेश नहीं कर सकेगा।
(5) अपनी Hard Disk पर वाइरस पकड़े जाने पर उसे फोरमेट आदेश द्वारा Format करना ही वाइरस को नष्ट करने की सर्वोत्तम विधि है.
हम आशा करते हैं कि आपको यह Article पढ़ के मजा आया होगा इस आर्टिकल में हमने Computer Virus क्या है? के बारे में आपको जानकारी दी है, अगर आपको लगता है कि कोई जानकारी हमसे छूट गई हो तो कृपया कर उसे Comment में हमसे साझा करें.
अगर आपको यह Article Helpful लगता है तो आप इस आर्टिकल को अपने मित्रों के साथ और घर के सदस्यों के साथ Share कर सकते हैं और उन्हें भी कंप्यूटर की जानकारी दे सकते हैं.
आप हमारे Blog से Computer के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं एस Blog पर कंप्यूटर की सभी जानकारी के बारे में बताया जाता है वह भी बहुत आसान भाषा में धन्यवाद आपका इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए.
स्मार्टफोन– What is Smartphone? एक प्रकार का Mobile कम्प्यटिंग उपकरण करने जैसी बुनियादी सुविधा के साथ-साथ E-Mail के लेनदेन ऑफिस दस्ताव करना Films देखना, Books पडना. गाने सनना तथा चैट करने जैसी आधुनिक भी होती हैं। यह एक प्रकार का MobilePhone ही है परन्तु साधारण Mobile का इसमें मोबाइल Operating System के साथ-साथ अनेक अत्याधुनिक कम कनेक्टिविटी वाली सुविधाएँ भी होती हैं।
आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम सीखने वाले हैं Smartphone के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं. क्योंकि मोबाइल फोन में जो Software Install किया जाता है वह Computer or Laptop की मदद से ही किया जाता है, बिना इसकी कोई जानकारी आप स्मार्ट फोन पर Software को Install नहीं कर सकते हैं.
आज के इस Article में आपको बहुत ही आसान भाषा में Smartphone के बारे में जानने को मिलेगा और कैसे काम करते हैं आपको सभी जानकारी आज पढ़ने को मिलेगी.
Smartphone क्या है और यह कैसे काम करता है?
टैबलेट– टैबलेट एक प्रकार का छोटा कम्प्यूटर होता है। इस उपकरण में उपभोक्ता टच स्क्रीन या फिर स्टाइलस द्वारा कम्प्यूटर को संचालित करता है। इसके साथ-साथ इसमें ऑनस्क्रीन आभासी की-बोर्ड होता है जोकि आवश्यकता पड़ने पर स्क्रीन पर दिखाई देता है। टैबलेट आकर में स्मार्टफोन से बड़े होने के कारण ही इसे अलग वर्ग में रखा गया है।
इसे Mobile ओ.एस. भी कहते हैं। यह एक DATA एवं Program का सेट होता है क्योंकि Smartphone, Tablet या अन्य Mobile उपकरणों को नियंत्रित करता है। यह मोबाइल के Hardware तथा Application Software को नियंत्रित करके मोबाइल उपकरण की क्षमता को बढ़ाता है।
कुछ प्रचलित ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित हैं
एंड्राइड (गूगल) (Android Google)
आई.ओ.एस. (एप्पल) (iOS Apple)
विंडोज (माइक्रोसॉफ्ट)(Windows Microsoft)
ब्लैकबेरी (आर.आई.एम) (BlackBerry IIM)
(2) एप्प- (App)
App अथवा Application एक सरल, छोटा एवं किसी विशिष्ट कार्य को करने वाला Software होता है। हर छोटे-से-छोटे कार्य को करने के लिए एक एप्प होता है। Chating के लिए, Games खेलने के लिए, पुस्तक पढ़ने के लिए, गाना चुनने के लिए हर किसी कार्य के लिए एप्प उपलब्ध है।
(3) इंटरनेट कनेक्शन- (Internet Connection)
आज के युग में Tablet और Smartphone उपकरणों में (3G/4G अथवा WIFI-जैसी तकनीकों द्वारा) InternetSignal प्राप्त करने की सुविधा होना अनिवार्य है। परन्तु इंटरनेट एक्सेस की सुविधा मुफ्त नहीं होती।
(4) QWERTY की-बोर्ड-
Smartphone अथवा Tablet में टाइप करते समय उपभोक्ता को अलग सा महसूस न हो इसलिए इन उपकरणों में भी एक साधारण Keyboard के समान Qwerty की-बोर्ड दिया जाता है जिसमें ‘की’ एक पूर्व निर्धारित रूप से लगी होती हैं। या तो वह की-बोर्ड टच स्क्रीन पर प्रकाशित होता है या फिर फोन के नम्बर वाले बटनों पर ही दिखाई देता है।
Smartphone और Tablet के मुख्य घटक
(1) टच स्क्रीन- (Touchscreen)
Tablet या Smartphone पतले, वजन में हलके एवं कीमत में कम होते हैं, इसलिए इनमें Keyboard, TouchScreen पर ही प्रकाशित होते हैं। इन टच-स्क्रीनों की यह भी विशेषता होती है कि यह बहुरंगी तस्वीरों तथा H.D. गुणवत्ता वाले वीडियो को बहुत सुन्दरता से दिखाते हैं।
(A) टच स्क्रीन के प्रकार– Mobile उपकरणों में मुख्य रूप से दो प्रकार की टच स्क्रीन तकनीकों का प्रयोग होता है- रेजिसटिव और कैपेसिटिव। – रेजिसटिव- इस प्रकार की स्क्रीन में कई परतें होती हैं। जब उपभोक्ता इसके किसी हिस्से को दबाता है तो प्रत्येक परत अपने नीचे वाली परत को ठीक उसी जगह पर दबाती है जिससे एक Electronic सर्किट पूरा होता है और उपकरण को यह पता चल जाता है कि स्क्रीन के कौन से हिस्से को छुआ गया है और उसे क्या कार्य करना है?
कैपेसिटिव– इस प्रकार की स्क्रीन में उपभोक्ता के स्पर्श का पता लगाने के लिए एलेक्ट्रोड का प्रयोग होता है जो कि अपनी प्रवाहकीय गुणों की वजह से उपभोक्ता की उंगलियों के स्पर्श को पता लगा लेता है। कैपेसिटिव स्क्रीन रेजिसटिव स्क्रीन से बेहतर होती है, यह स्क्रीन पर एक ही समय में एक से अधिक जगह पर छुए जाने का भी पता लगा लेती है, टच के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है। इसी कारण कैपेसिटिव स्क्रीन-युक्त उपकरण महंगा भी होता है। आजकल लगभग सभी उपकरणों में कैपेसिटिव स्क्रीन पाई जाती है।
(B) टच स्क्रीन के आकार- (Touchscreen Sizes)
Tablet में मुख्य रूप से दो प्रकार के आकार वाली स्क्रीन का प्रयोग होता है-7 इंच एवं 10 टच। 7 इंच का टैबलेट 10 इंच वाले टैबलेट की तुलना में अधिक सुविधाजनक है मगर 10 इंच वाले Tablet में E–Book पड़ना, Films देखना, Games खेलना, आदि अधिक मनोरंजनीय है।
सारणी- मुख्य रूप से प्रयोग होने वाली स्क्रीनों के आकार टैबलेट ब्राण्ड स्क्रीन साइज स्मार्टफोन ब्राण्ड
स्मार्टफोन में कई प्रकार की स्क्रीन के आकर का प्रयोग किया जाता है। यह 3 इंच से लेकर 6 इंच तक की हो सकती हैं। स्क्रीन के बड़े होने के कारण इसके लिए बड़ा प्रोसेसर एवं बड़ी बैटरी भी चाहिये जिसकी वजह से यह महंगा होता है और अधिक जगह घेरता है।
(2) प्रोसेसर चिप- (Processor Chip)
Processor एक प्रकार का ElectronicChip होता है जोकि मोबाइल उपकरण के अन्दर लगा होता है जैसे किसी DesktopComputerके CPU में लगा होता है। यह सैकड़ों गणनाएँ प्रत्येक मिनट करके सभी कार्य को पूरा करता है। प्रोसेसर की कार्यक्षमता दो गुणों पर निर्भर करती है-
प्रोसेसिंग की गति और प्रोसेसर को कितने कोर्स में विभाजित किया है ?
एक से अधिक कोरं के होने से सैंकड़ों कार्यों को बाँटा जा सकता है जिससे कार्य और गतिमय हो जाता है। इस हिसाब से एक ड्यूल कोर प्रोसेसर सिंगल कोर प्रोसेसर से अच्छा होता है और क्वैड कोर प्रोसेसर ड्यूल कोर Processor से अच्छा होता है। परन्तु बैटरी भी जल्दी खर्च होती है।
(3) बैटरी पॉवर- (Battery Power)
Tablet या Smartphone खरीदते समय हमें Battery की क्षमता का विशेष ध्यान रखना चाहिये। बैटरी की क्षमता उपकरण के भार तथा उसकी कार्यक्षमता पर निर्भर करती है, जैसे कि किसी बहुत पतले उपकरण वाली बैटरी में कम क्षमता और किसी बड़े एवं भारी उपकरण की बैटरी में अधिक क्षमता हो सकती है।
अनेक वर्षों से निकिल-कैडियम बैटरियों का प्रयोग हो रहा है। निकिल-कैडमियम बैटरियों को केवल पूरी तरह से डिस्चार्ज होने के बाद ही चार्ज किया जा सकता है जबकि लिथियम-इओन बैटरियों को किसी भी समज चार्ज किया जा सकता है। लिथियम-इओन बैटरियाँ, निकिल-कैडमियम बैटरियों की तुलना में महंगी होती हैं।
(4) आन्तरिक स्टोरेज- (Internal Storage)
किसी भी उपकरण में आज के समय में कम से कम 2GBInternalMemory होनी चाहिए क्योंकि सभी App स्थापित होने के लिए जगह घेरती हैं।
(5) रैम- (RAM)
Desktop और Laptop के समान Mobile उपकरणों में भी RAM उपस्थित होती है। मोबाइल उपकरण मे कितनी एप्प और प्रोग्राम पर एक साथ पावेंगे ये रैम की कार्यक्षमता पर निर्भर करता है। रैम कम से कम 1GB की होनी चाहिए।
(6) डिस्प्ले पैनेल- (Display Panel)
Mobile उपकरण पर छपने वाली तस्वीर अथवा चित्र या Video की क्वालिटी (रंगों की तीव्रता, स्पष्टता, गहराई) DisplayPanel के गुणों पर निर्भर करती है। डिस्प्ले पैनल के दो मुख्य गुण हैं.
(क) स्क्रीन की सघनता (Screen)– यह Screen की चौड़ाई और ऊँचाई में कितने पिक्सल हैं, जैसे800 x 600, 1386×768, 1280 x 800, 2048 x 1536 आदि। ज्यादा सघनता स बेहतर चित्र आते हैं.
(ख) डिस्प्ले तकनीक (Display)-Display तकनीक डिस्प्ले पैनेल का दूसरा मुख्य घटक है। स्क्रीन पर डिस्प्ले होने वाली तस्वीर की quality इस बात पर भी निर्भर करती है कि वह LCD (क्वालिटी क्रिस्टल डिस्प्ले) या OLED (आर्गेनिक लाइट एमीटिंग डायोड) पर डिस्प्ले की जा रही है। LCD स्क्रीन सस्ती होती है परन्तु इसकी पिक्चर क्वालिटी OLED की तुलना में। अच्छी नहीं होती.
(7) रिमूवेबल स्टोरेज- (Removal Storage)
सिक्योर डिजिटल काई-2GB की InternalMemory उपभोक्ता की सारी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होती है, इसलिए अधिकांश उपकरणों में एक्सटर्नल मेमोरी (SD कार्ड) को लगाने के लिए ‘रिमूवेबल स्लॉट’ दिया जाता है। सामान्यतः पर SDCard की Memory 4GB से 32GB तक की हो सकती है.
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यदि आप एक Smartphone का उपयोग करते हैं और आप इन Features के बारे में नहीं जानते हैं, तो कृपया Comment दें.
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Personal Computer का वर्गीकरण- पर्सनल कम्प्यूटर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं- Desktop और पोर्टेबल।
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आज के इस Article में आपको बहुत ही आसान भाषा में Personal Computer के बारे में जानने को मिलेगा और कैसे काम करते हैं आपको सभी जानकारी आज पढ़ने को मिलेगी.
Personal Computer के प्रकार
(1) डेस्क टॉप पी.सी.-
अधिकतर विद्यालयों, घरों और व्यवसायों में उपयोग किये जाने वाले PC. डेस्क Desktop पी.सी. होते हैं। डेस्क टॉप पी.सी. के बाजार में उपलब्ध मॉडल हैं- IBM PC, IBM PS/2; Apple II Ile, IIc और Macintosh Line; Tandy 1000, 2000, 3000, 4000, Compaq Deskpro 286 और 386 Pentium, Pentium PII, Pentium PIII आदि। डेस्क टॉप पी.सी. को हम दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं- सिंगल यूजर सिस्टम और मल्टी यूजर सिस्टम। सिंगल यूजर सिस्टम एक बार में एक व्यक्ति द्वारा उपयोग किये जाने वाला पी.सी. होता है.
Multiuser System पी.सी. हैं, जिन्हें अनेक व्यक्ति एक बार में काम ले सकते हैं, ऐसे पी.सी. नेटवर्क पर लगाये जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग Computer पर कार्य करता है। लेकिन ये सभी कम्प्यूटर परस्पर जुड़े रहते हैं.
(2) पोर्टेबल पी.सी.-
इसके अन्तर्गत वैसे PCs आते हैं जो सुविधाजनक तरीके से एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरित किये जा सकते हैं। मुख्यतः दो प्रकार के Portable पी.सी. होते हैं जो निम्नलिखित हैं
(i) लैप टॉप पी.सी.-
ऐसे PC. जिनका वजन लगभग 1 से 4 किलोग्राम के बीच होता है और एक व्यक्ति इन्हें अपनी गोद में रखकर इन पर कार्य कर सकता है, Laptop पी.सी. कहलाते हैं। इनकी संरचना इतनी सरल होती है कि वे ब्रीफकेस की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाये तथा ले जाए जा सकते हैं.
इनकी Screen चपटी होती है, Keyboard में बटन छोटे होते हैं अतः यह जगह कम घेरते हैं. इन्हें बैटरी से चलाया जा सकता है इसलिए LaptopPC यात्रा के समय रेलगाड़ी में बैठकर, शेयर बाजार में या अन्य स्थान पर उपयोग किया जा सकते है.
(ii) पाम टॉप पी.सी.-
हथेली के आकार के पी.सी. को पाम टॉप पी.सी. कहते हैं। यह छोटा-सा पी.सी. एक व्यक्ति की शर्ट या पैंट की जेब में रखा जा सकता है। आजकल सेल्यूलर Phone में पी.सी. को समाहित करके इसका उपयोग बहुआयामी कर दिया गया है। यह पाम टॉप पी.सी. Electronic डायरी के रूप में हमें विभिन्न सूचनायें एकत्रित करके देता है, जैसेविभिन्न शहरों के मानचित्र, शेयर बाजार की वर्तमान स्थिति, Telephone डायरेक्ट्री, विभिन्न टैक्सों की सारणी. होटलों के पते आदि। इस पी.सी. में calculator के समान छोटे बटनों वाला की-बोर्ड होता है, एक छोटी सी स्क्रीन होती है और इसे बैटरी से चलाया जाता है.
(3) PC (Personal Computer)-
प्रारम्भ में विकसित किये गये पी.सी. में Intel पनी द्वारा आविष्कृत Microprocess INTEL 8086 लगा हुआ था। यह 8 bit प्रोसेसर था जो IBM-PC के मापदण्ड को पूरा करता था।
इस माइक्रोप्रोसेसर का आन्तरिक कार्य DATA Memory एड्रेस तथा निर्देश-बिन्दुओं को स्टोर यानी संग्रहीत करना है। इस माइको में यह सविधा प्रदान करने के लिये यानी डाटा हस्तांतरण व DATA प्रोसेसिंग के लिये रजिस्टर लगे थे। इसकी संचय-क्षमता 128 से 640KB तक थी तथा इसके पार ड्राइवों की संख्या 1 या 2 थी।
इस प्रकार के Computer में Hard Disk नहीं होती थी तथा गणना गति 8 मेगाहर्टज थी। इसकी मेमोरी 1MB तक होती थी। डाटा बेस का आकार 8 बिट तथा इन्ड्रेस बस का आकार 20बिट होता था।
(4) PC-XT-
इसमे 8088 नामक माइक्रोप्रोसेसर लगा हुआ था। इस प्रकार Computer की संचय-क्षमता 640KB थी तथा माइक्रोप्रोसेसर 8 बिट का था। इसमें Floppy ड्राइवों की संख्या 1 या 2 तक थी। लेकिन इस प्रकार के कम्प्यूटरों में Hard Disk होती थी. तथा गणना गति 10-12 मेगाह में होती थी। इसकी Memory1MB तक होती थी तथा इसमें DATABASE का आकार 8 बिट तथा एड्रेस बेस का आकार 20 बिट होता था।
(5) PC-AT-
इस प्रकार के Computer में 80286 नामक माइक्रोप्रोसेसर लगा हुआ था। इसमें कुछ अतिरिक्त गुण थे जिनमें एक था- Program प्रोसेसिंग की गति तेज होना। इसकी गति 8086 की अपेक्षा अधिक थी। इस प्रकार के Computer की संग्रह-क्षमता 1MB से 2MB तक थी। इसमें Floppy ड्राइवों की संख्या 1 या 2 थी। इस प्रकार के Computer में HardDisk होती थी तथा इसकी गणना गति 16-20 मेगाहर्ज होती थी। इसकी अधिकतम मेमोरी 16MB तक होती है तथा इसमें Database बेस का आकार 16 बिट तथा एड्रेस बेस का आकार 24 बिट तक होता है.
हम आशा करते हैं कि आपको यह Article पढ़ के मजा आया होगा इस आर्टिकल में हमने Personal Computer(Types of Computer) के बारे में आपको जानकारी दी है, अगर आपको लगता है कि कोई जानकारी हमसे छूट गई हो तो कृपया कर उसे Comment में हमसे साझा करें.
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भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आगमन हो रहा है। वहीं हमारे उद्योगपति विदेशों में अपने कार्य-क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं। यह युग प्रतिस्पर्धा का युग है। वही बाजा में खडा रह पायेगा जो सर्वोत्तम सुविधायें प्रदान करेगा। जबकि हमारे प्रतिस्पर्डी पी कम्प्यूटरीकृत हैं तो हमारे लिये भी यह आवश्यक है कि हम इस दिशा में पिछडे न Computer के द्वारा कार्य की गति में वृद्धि से उत्पादन लागत कम हो जाती है, अतः प्रतिस्पी हेतु हमें भी अपनी सेवायें उसी स्तर पर रखनी होंगी। इसलिये हमें Computerization करना ही होगा। इसके प्रभावों का विवेचन निम्न प्रकार से है.
(A) ग्राहक सेवा पर प्रभाव-
Computer के प्रयोग से ग्राहक सेवा का स्तर बढ़ता है। बाजार में ग्राहक की सन्तुष्टि ही मूल मन्त्र है।
(1) Computer द्वारा कार्य करने की गति बढ़ती है। ग्राहक को अधिक देर तक लाइन में प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। अतः समय की बचत होती है।
(2) Computer द्वारा गणनायें पूर्णतः सही एवं विश्वसनीय होती हैं। इससे ग्राहक को अनावश्यक गणना नहीं करनी पड़ती है। साथ ही वह गलतियों को सही कराने के लिये चक्कर लगाने से बच जाता है।
(3) Computer एक मशीन है। यह कभी थकती नहीं है। अतः ग्राहक को कभी भी कार्य हेतु टरकाती नहीं है।
(4) Computer द्वारा विवरण तुरन्त ही तैयार हो जाते हैं, जिससे उपभोक्ता अपना मिलान कर सकता है।
(B) डाटा ट्रांसमिशन-
परम्परागत रूप में डाटा पेपर पर प्रिन्ट करके डाक द्वारा भेजा जाता था। Electronic के विकास के साथ ही डाटा ट्रांसमिशन हेतु टैलेक्स तथा फैक्स का प्रयोग होने लगा है। Computer ने इस प्रक्रिया को अति आसान कर दिया है। वहीं संचार क्रांति के साथ डाटा-प्रेषण के अन्य साधन भी उपलब्ध हो गये हैं, जिन्हें Computer के साथ जोड़कर चमत्कारिक परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
(1) टैलेक्स को Computer के साथ जोड़ा जा सकता है। कम्प्यूटर स्वतः ही डायल करता है तथा सन्देश प्रेषित कर देता है। इस प्रकार हम एक ओर से सन्देश फीड कर सकते हैं दूसरी ओर उसी समय में प्रेषण भी होता रहता है।
(2) Computer में मॉडेम लगाकार टेलीफोन लाइन के माध्यम से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार Electronic Mail द्वारा सन्देश एक Computer से दूसरे कम्प्यूटर पर प्रेषित हो जाता है। इसमें सन्देश इतना शीघ्र प्रेषित होता है कि पूरी की पूरी किताब Telephone की एक काल में भेजी जा सकती है।
(3) Internet के द्वारा हम विश्व के किसी भाग में सीधे ही सन्देश, चित्र आदि भेज सकते हैं। इसमें उपभोक्ता satellite के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। प्रत्येक उपभोक्ता का एक सैटेलाइट एड्रेस होता है, जिसके द्वारा उससे सम्पर्क किया जाता है।
(4) Data को Floppy पर Copy करके फ्लॉपी को कोरियर अथवा डाक द्वारा भेजा जा सकता है। इसमें लागत कम आती है तथा काफी मात्रा में DATA एक लिफाफे में ही आ जाता है।
(C) स्टोरेज डिवाइस-
Computer ने Data का Store (संग्रह) बड़ा ही आसान कर दिया है। कागज पर रिकॉर्ड रखने में हमने बहुत-सी फाइलें अलग-अलग व्यवस्थित करनी पड़ती थीं, पहेत स्थान की आवश्यकता होती थी। दूसरे लागत भी बहुत बढ़ जाती थी। साथ ही अधिक दल में से अपने उपयोग की Files ढूंढना भी कठिन कार्य था। कम्प्यूटर में डाटा संचय तथा फाइल प्रबन्धन उच्च कोटि का है।
(1) DATA को HardDisk में Store किया जा सकता है। आजकल काफी अधिक शक्ति की HardDisk बाजार में प्रचलित हैं, जिनमें डाटा किलोबाइट में न होकर Megabyte में आता है। इसमें बहुत-सी किताबें एक साथ आ सकती हैं।
(2) Computer की कार्य कुशलता बढ़ाने हेतु हम Data को Computer से अलग डिवाइस में भी स्टोर कर सकते हैं, जहाँ से आवश्यकता पड़ने पर पुनः प्रयोग किया जा सकता है। इससे हार्ड डिस्क की मेमोरी की समस्या ही नहीं रहती है।
(i) डाटा को फ्लॉपी डिस्क में स्टोर कर सकते हैं। ये 1.2 MB तथा 1.44MB के आकार में उपलब्ध हैं। हम अलग-अलग प्रकार के डाटा के लिये अलग-अलग फ्लॉपी प्रयोग कर सकते हैं।
(ii) डाटा को मेग्नेटिक टेप पर एकत्र कर सकते हैं। इसमें डाटा सिक्वेन्सियल रूप में जमा होता है। जब भी कोई डाटा आवश्यक हो टेप को कम्प्यूटर में नकल करके वाँछित डाटा निकाला जा सकता है.
(iii) आजकल मार्केट में कैसिट के आकार की मैग्नेटिक टेप उपलब्ध हैं जिन पर प्रतिदिन का बैकअप लिया जा सकता है। इसे कभी भी दुर्घटना की स्थिति में प्रयोग किया जा सकता है।
(iv) आजकल डाटा स्टोर की नई विधि ऑप्टीकल रिकॉरिंग भी आ गयी है जिसमें डाटा लेसर किरण की सहायता से एक प्लेट पर स्टोर कर लिया जाता है जिसे लेसर की सहायता से पुनः पढ़ा जा सकता है।
(D) व्यापार पर प्रभाव-
व्यापारिक क्षेत्र को कम्प्यूटर ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। आज के प्रतिस्पर्धी युग में प्रत्येक व्यापारी के लिये कम्प्यूटर का प्रयोग अनिवार्य है.
(1) कम्प्यूटर द्वारा अंकगणितीय कार्य अत्यधिक कुशलता एवं विश्वसनीयता से सम्पन्न किये जाते हैं। अतः व्यापार में बिल जारी करने तथा खातों के रख रखाव में यह अत्यन्त आवश्यक है।
(2) बढ़ती प्रतियोगिता के युग में यह आवश्यक है कि हम अपनी उत्पादन लागत को कम से कम रखें। कम्प्यूटर के द्वारा यूनिट लागत की गणना सही की जा सकती है ताकि प्रतिस्पर्धी कीमतें निर्धारित की जा सकें।
(3) कम्प्यूटर द्वारा बिना थके लगातार कार्य किया जा सकता है। अतः उत्पादन की मात्रा बढ़ती है तथा लागत में कमी आती है।
(4) आज का युग सूचना क्रान्ति का युग है। वर्तमान में व्यापारी को विश्व में घट रहा है? इसकी जानकारी रखनी होती है जो कम्प्यूटर के माध्यम सारी को विश्व में कहाँ क्या सके माध्यम से ही सम्भव पकता है कि उसका मता का विस्तार होता है।.
(5) कम्प्यटर के प्रयोग के द्वारा व्यापारी यह विश्लेषण कर सकता है, कि उसका उत्पादन निष्पादन क्या है? यह बढ़ रहा है अथवा घट रहा है? उसी कार्य-कशलता हेतु प्रयास कर सकता है। अतः प्रबन्धन क्षमता काल है।
कम्प्यूटर का विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग
(1) औद्योगिक क्षेत्र-
उद्योगों में निर्माण-प्रणाली को कम्प्यूटर द्वारा नियन्त्रित जाने लगा है। निर्माण कार्य पर नियन्त्रण हेतु कई चीजों जैसे तापमान, हवा द्रव्य के बहने की गति आदि की पूरी जानकारी कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त होती रहती है। कम्प्यूटर निम्नलिखित कार्य करता है
(i) सभी चीजों की मात्रा नापना।
(ii) नापी गई मात्रा का निर्धारित मात्रा से तुलना करना।
(iii) प्रणाली को इस प्रकार नियन्त्रित करना जिससे यह अन्तर कम से कम हो।मानवीय रूप से कार्य करने पर प्रत्येक स्तर पर जाँच नहीं हो पाती है तथा श्रम लागत भी बढ़ जाती है।
(2) रिमोट कन्ट्रोल से-
कम्प्यूटर के एक छोटे रूप का उदाहरण है- टीवी-वीसीआर का रिमोट। यह यन्त्र इन्फ्रारेज द्वारा बटन दबाने का सन्देश टीवी में लघु कम्प्यूटर सिस्टम को प्रेषित करता है। कम्प्यूटर उन संदेशों को समझकर टीवी या वीसीआर की टयूनिंग उसी के अनुसार कर देता है। हमें अब बार-बार उठकर टीवी, वीसीआर तक नहीं आना पड़ता है जिससे समय की बचत होती है।
(3) रोबोट में-
कई घातक कार्य जैसे गर्म वस्तुओं का इधर-उधर रखना, रेडियोधर्मी पदार्थों का लाना, खदानों के अन्दर खुदाई करना रोबोट द्वारा आसानी से किये जा सकते हैं। यह जरूरी नहीं है कि रोबोट मनुष्य की तरह हो बल्कि किसी भी मशीन को उसकी आवश्यकतानुसार निर्मित कम्प्यूटराइज्ड संचालन प्रणाली लगाई जा सकती है। यह कार्य बुद्धिमानीपूर्वक कर सकती हैं। इस प्रकार अब घातक कार्यों से होने वाली मानवीय क्षति कम की जा सकती है।
(4) खगोल विद्या के क्षेत्र में-
प्रारम्भ में सूर्य एवं चन्द्रमा की गति का अध्ययन करके मौसम की गणना की जाती थी। भारत में प्राचीन राजाओं ने जन्तर-मन्तर भवन का भी निर्माण कराया था। कम्प्यूटरों ने इस गणना को एक नई दिशा प्रदान की है। सूर्य एवं चन्द्रमा के साथ-साथ आकाश गंगा के अन्य ग्रहों की उत्पत्ति तथा गति का सटीक अध्ययन किया जा रहा है। इसमें मौसम की अधिक सटीक भविष्यवाणी करना सम्भव हुआ है।
(5) ज्योतिष के क्षेत्र में-
ज्योतिष विज्ञान पूर्णतः गणित पर आधारित विज्ञान है। अब कम्प्यूटर के आधार पर गणनायें अधिक विश्वसनीय रूप से की जा सकती हैं। हाथ से गणना में केवल दशमलव के बाद दो अंकों तक ही गणना की जाती थी। इससे ग्रहों की चाल में काफी अन्तर आ जाता था, परन्तु Computer द्वारा स्थान, सूर्योदय आदि को ध्यान में रखते हुये बिल्कुल सटीक गणना की जाती है। इससे भविष्यफल बताने में सत्यता की सम्भावना अधिक हो गयी है। आजकल बाजार में बने हुये ज्योतिष सॉफ्टवेयर भी उपलब्ध हैं।
(6) व्यापारिक क्षेत्र में-
पाश्चात्य देशों में बाजार में मिलने वाले पैकेटों, पुस्तकों व अन्य वस्तुओं पर एक लेबल बना होता है जिसमें कुछ मोटी व पतली लकीरें बनी होती हैं। यह एक प्रकार की गुप्त संकेत भाषा है जिसमें उस वस्तु की गुणवत्ता तथा मूल्य के विषय में जानकारी होती है। कम्प्यूटर इन बार कोड को एक विशेष प्रकार के पैन जिसे ऑप्टीकल बाण्ड कहा जाता है, के द्वारा पढ़ता है तथा रसीद जारी करता है एवं स्टॉक रजिस्टर को भी अद्यतन कर देता है।
(7) कला एवं भवन-निर्माण में-
कम्प्यूटर पर पैन अथवा माउस की सहायता से चित्र अथवा वास्तचित्र बनाया जा सकता है। कम्प्यूटर की सहायता से हम उसे तरहतरह के परिवर्तन करके उसका वास्तशिल्प देख सकते हैं तथा सर्वोत्तम मॉडल का चयन कर सकते हैं, जबकि मानवीय रूप से केवल कुछ ही विकल्प उपलब्ध कराये जा सकते हैं।
(8) मनोरंजन में-
कम्प्यूटर पर हम टीवी प्रोग्राम चला सकते हैं। गेम खेल सकते हैं।अपनी तर्क-क्षमता तथा सामान्य ज्ञान बढ़ा सकते हैं। आजकल बाजार में बहुत से कम्प्यूटर गेम उपलब्ध हैं जो जटिलता को हल करना सिखाते हैं। पूरा इनसाइक्लोपीडिया सीडी पर उपलब्ध है जिसे हम मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्धन कर सकते हैं।
(9) फिल्म एवं कार्टून निर्माण में-
कम्प्यूटर में ध्वनि यन्त्र लगाकर विभिन्न एनीमेशन फिल्म का निर्माण किया जा सकता है। इसमें महंगे सेट तथा व्यस्त कलाकारों की आवश्यकता नहीं होती। बल्कि हम अपनी कल्पना का कोई भी कलाकार लेकर मनचाहे एक्शन करा सकते हैं। ध्वनि कंट्रोल द्वारा आवाज नियन्त्रित कर सकते हैं तथा बदल सकते हैं। आजकल बाल मनोरंजन फिल्मों में, विज्ञापन के क्षेत्र में इनका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है।
(10) बैंकिंग में- बै
ंकिंग क्षेत्र में कम्प्यूटर का प्रयोग विस्तृत रूप से हो रहा है। खातों में लेन-देन में कम्प्यूटरीकृत शाखाओं का प्रादुर्भाव हुआ है। धन के प्रेषण हेतु इलेक्ट्रॉनिक मेल की सुविधा प्रदान की गई है तथा चेकों के समाशोधन में माइकर पद्धति का प्रयोग किया गया है। 24 घण्टे बैंकिंग के लिये एटीएम लगाये गये हैं। ग्राहक को साख-सुविधा हेतु क्रेडिट कार्ड का चलन प्रारम्भ हुआ है। साथ ही कुछ बैंकों ने होम बैंकिंग तथा टैली बैंकिंग जैसी सुविधा भी प्रदान की है। मानवीय कार्य की स्थिति में जब बाहरी चेकों का निस्तारण 20-25 दिनों में होता था, अब 3 से 5 दिन में होने लगा है। खातों की विवरणी तुरन्त ही उपलब्ध है। साथ ही कार्य समय भी एक घण्टा बढ़ गया है.
(11) प्रशासन में-
प्रशासनिक क्षेत्र में अब बाढ़, सूखा, मौसम, फसल, कराधान तथा अपराधों के आँकड़े कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं। इससे प्रशासन के नीति-निर्धारकों को अपनी योजना तैयार करने में सहायता मिलती है। लिपिकीय लापरवाही के कारण होने वाले भ्रष्टाचार तथा विलम्ब पर नियन्त्रण सम्भव हुआ है। रेलवे में आरक्षण की सही स्थिति ज्ञात रहती है। अपराधियों के विरुद्ध रणनीति बनाई जा सकती है।
(12) आयध निर्माण में-
आज नवीनतम हथियार तैयार किये जा रहे हैं। यह हाइडोजन तथा न्यूट्रॉन का युग है। इनका मैदान में परीक्षण करने में काफी लागत आती है। तथा विरोध का सामना भी करना पड़ता है। कम्प्यूटर के द्वारा यह सम्भव हुआ है कि हम प्रयोगशाला में मॉनीटर पर ही डिजायन बनायें तथा उसका विस्फोट करायें। पूर्णतः निर्माण होने पर इसका वास्तविक परीक्षण किया जा सकता है। देश में बहुत-सी मिसाइलों तथा परमाणु बम परीक्षण में इसका प्रयोग किया गया है।
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आप हमारे Blog से Computer के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं एस Blog पर कंप्यूटर की सभी जानकारी के बारे में बताया जाता है वह भी बहुत आसान भाषा में धन्यवाद आपका इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए.
Computer के प्रकार-तकनीकी रूप से और सैद्धान्तिक रूप से कम्प्यूटर निम्न तीन | प्रकार के होते हैं.
आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम सीखने वाले हैं Computerके प्रकार के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं.
आज के इस Article में आपको बहुत ही आसान भाषा में Computerके प्रकार के बारे में जानने को मिलेगा और कैसे काम करते हैं आपको सभी जानकारी आज पढ़ने को मिलेगी.
एनालॉग, डिजिटल और हाइब्रिड। जब कम्प्यूटर का विकास अपने प्रारम्भिक काल में था तब कुछ समय तक एनालॉग कम्प्यूटरों का चलन रहा। क्योंकि इनमें मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल तकनीक का प्रयोग किया गया था। पोलैंड में बना ELWAT नामक एनालॉग कम्प्यूटर इसी तकनीक से बनाया गया था।
इसके पश्चात् Digital तकनीक का विकास हुआ। जब डिजिटल तकनीक का विकास अपने शुरूआती दौर में था तो एनालॉग और डिजिटल तकनीक को मिलाकर हाइब्रिड कम्प्यूटरों का विकास हुआ।
कम्प्यूटर की तीसरी पीढ़ी में इस हा था। धीरे-धीरे Digital तकनीक का विकास होता गया और सत्तर के तकनीक को कम्प्यूटरों में प्रयोग किया जाने लगा। वर्तमान समय के समस्त कर तकनीक पर आधारित हैं। इसीलिये इन्हें Digital Computer भी कहा जाता PC हो, Laptop हो या फिर Super Computer, ये सभी Digital Computer कम्प्यूटर हैं।
डिजिट कम्प्यूटरों को हम अपनी सुविधा, प्रयोग और कम्प्यूटर की कार्य क्षमता के अनुसार चार भागों में विभाजित सकते हैं.
(1) माइक्रो कम्प्यूटर
(2) मिनी कम्प्यूटर
(3) मनफ्रम कम्प्यूटर
(4) सुपर कम्
(1) माइक्रो कम्प्यूटर- Mircro Computer
इन कम्प्यूटरों का विकास सन् 1970 में Computer ऑन के सिद्धान्त के आधार पर हुआ। माइक्रोप्रोसेसर से युक्त होने के कारण इन्हें माइक्रो कम्य कहते हैं। इस तकनीक से युक्त कम्प्यूटर आकार में छोट, कीमत में कम, कार्यक्षमता शक्तिशाली तथा प्रयोग में अत्यन्त सरल होते हैं। वर्तमान में प्रचलित समस्त पीसी इसी श्रेणी अन्तर्गत आते हैं।
Personal Computer का निर्माण 1981 में IBM द्वारा किया गया, लेकिन प्रारम्भ में इसमें सिर्फ 8084 से 8087 तक के माइक्रोप्रोसेसर, 256 किलोबाइट रैम तथा 180 किलोबाइट से लेकर 360 किलोबाइट (2D) क्षमता वाली फ्लॉपी डिस्क ड्राइव तथा इसमें DOS के प्रारम्भिक संस्करणों का प्रयोग किया जाता था। इसे सीमित एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर्स के लिये प्रयोग किया जाता था जैसे वर्ड प्रोसेसिंग और BASIC प्रोग्रामिंग इत्यादि। इसके अतिरिक्त इस कम्प्यूटर में प्रयोग की जाने वाली फ्लॉपी डिस्क का आकार आजकल की तरह 51/4″ न होकर 81/2″ हुआ करता था। ___ PC-XT (एक्सटेंडेड टेक्नोलॉजी) कम्प्यूटर तथा इससे पूर्व प्रचलित PC में मात्र इतना अंतर था कि इसमें 8088 प्रोसेसर का प्रयोग किया गया और इसमें 1 मेगाबाइट से लेकर 40 मेगाबाइट तक की हार्डडिस्क तथा 1 मेगाबाइट तक रैम का प्रयोग किया। बाद में तकनीक में सुधार होने के पश्चात् इसमें 360 किलोबाइट Floppy Drive के स्थान पर 1-2 Megabyte की Floppy Disk Drive का प्रयोग किया जाने लगा। इसके अतिरिक्त इसमें एक साथ दो फ्लॉपी डिस्क तथा दो Hard disk का प्रयोग सम्भव हो सका। तकनीक में परिवर्तन होने के कारण इसमें अनेक आधुनिक तथा विशाल Application Software का प्रयोग सम्भव हो सका।
PC-AT (Advanced Technology) कम्प्यूटरों का विकास 1985 तक पूरा हो पाया। इस तकनीक से युक्त कम्प्यूटरों तथा इससे पूर्व प्रचलित इसी श्रेणी के कम्प्यूटरों में जो आधारभूत अंतर था वह केवल इतना था कि यह 16 बिट कम्प्यूटर थे तथा इसमें पूर्व प्रचलित 8-बिट कम्प्यूटर । इस श्रेणी के कम्प्यूटरों का आज विश्व के 80 प्रतिशत पर्सनल कम्यूटर माकट पर अपना आधिपत्य है। इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले समस्त कम्प्यूटर 16-बिट से लेकर 64 बिट तक के होते हैं। वर्तमान समय में 80586 माइक्रोप्रोसेसर से युक्त पेंटियम नामक कम्प्यूटर सबसे शक्तिशाली तथा आधुनिक हैं।
(2) मिनी कम्प्यूटर- Mini Computer
यह Computer मेनफ्रेम कम्प्यूटरों से छोटे तथा PC कम्प्यूटरों से बड़े होते हैं अर्थात् यह बीच के कम्प्यूटर होते हैं। यह कम्प्यूटर भी दो प्रकार के होते हैं, पहला स्माल Mini Computer कम्प्यूटर तथा दूसरा सुपर मिनी कम्प्यूटर। इन कम्प्यूटर की processing शक्ति PC कम्प्यूटरों से अधिक लेकिन मेनफ्रेम कम्प्यूटरों से कम होती है। यह कीमत में माइक्रो कम्प्यूटर से अत्याधिक महंगे होते हैं, इसलिये व्यक्तिगत रूप से इनका प्रयोग सम्भव नहीं है। इन कम्प्यूटरों का सर्वाधिक प्रयोग सरकारी संस्थायें तथा बड़ी व्यापारिक संस्थायें ही करती हैं।
(3) मेनफ्रेम कम्प्यूटर- Mainframe Computer
इस Computer की Data processing शक्ति मिनी कम्प्यूटर से अत्याधिक होती है तथा इनकी कीमत भी बहुत अधिक होती है। इन कम्प्यूटरों का प्रयोग बड़ी सरकारी संस्थायें तथा व्यापारिक संस्थायें किया करती हैं। इन कम्प्यूटरों को एक साथ कई व्यक्ति अलग-अलग कार्यों के लिये प्रयोग कर सकते हैं।
(4) सुपर कम्प्यूटर- Super Computer
अभी तक विकसित समस्त कम्प्यूटरों में यह सबसे शक्तिशाली Computer है। इसका प्रयोग स्पेस साइंस में अत्यन्त सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इसकी डाटा प्रोसेसिंग गति अत्यन्त तीव्र होती है, यह एक सेकेंड में अरबों गणनायें करने में सक्षम होता है। इसका प्रयोग अत्यन्त उच्चकोटि की एनीमेशन में भी किया जाता है। उक्त समस्त विशेषताओं के कारण यह अत्यन्त महंगा है। भारत में पुणे (महाराष्ट्र) स्थित सीडॅक (CDAC) नामक संस्था ने परम-10000 नामक Super Computer का निर्माण किया है जो दुनिया के किसी भी सुपर कम्प्यूटर से कम नहीं है।
कम्प्यूटर प्रणाली स्थापित करने के उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटर के प्रकार
कम्प्यूटर प्रणाली की स्थापना दो उद्देश्यों के लिये हो सकती है- व्यापक या सामान्य तथा कार्य विशेष। इस प्रकार Computer उद्देश्य के आधार पर इनके निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं.
ऐसे Computers जिनमें अनेक प्रकार के कार्य करने की क्षमता होती है लेकिन ये कार्य अधिकतर प्रयोक्ताओं द्वारा किये जाते हैं और सामान्य होते हैं, जैसे- किसी पत्र एवं दस्तावेज को टाइप करके कम्प्यूटर में संग्रहीत करना, दस्तावेजों को छापना, सारणीबद्ध आँकड़ों का संकलन या Database बनाना आदि। सामान्य उद्देशीय कम्प्यूटर के आन्तरिक परिपथ में लगे माइक्रोप्रोसेसर की कीमत भी कम होती है।
इन कम्प्यूटरों में हम किसी विशिष्ट कार्य या अनुप्रयोग हेतु अलग से डिवाइस नहीं जोड माइक्रोप्रोसेसर की क्षमता सीमित होती है और सी.पी.यू. का अनविन्यासक नहीं होता है.
2) विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटर-
आजकल किसी अपराधी द्वारा झूठ बोले जाने के जैसे विशिष्ट कार्य कम्प्यूटर तकनीक की सहायता से ही किये जाते हैं। कि कम्प्यटर ऐसे कम्प्यूटर हैं जिन्हें किसी विशेष कार्य के लिये तैयार किया जाना माइक्रोप्रोसेसर की क्षमता उस कार्य के अनुरूप होती है जिसके लिये इन्हें तैयार की है।
इनमें यदि अनेक माइक्रोप्रोसेसरों की आवश्यकता हो तो इनकी अनविन्यास अनेक माइक्रोप्रोसेसर वाली कर दी जाती है। ___ Multimedia में Music-संपादन करने हेतु किसी Studio में लगाया जाने वाला कर विशिष्ट उद्देशीय Computer होगा। इसमें संगीत से सम्बन्धित उपकरणों को जोड़ा जा सकता और संगीत को विभिन्न प्रभाव देकर इसका संपादन किया जा सकता है।
इंटरनेट की सा में कम्प्यूटर को टेलीफोन लाइन से जोड़कर हम दूरस्थ कम्प्यूटर से सम्पर्क स्थापित कर सकर हैं। फिल्म उद्योग में फिल्म संपादन के लिये विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटरों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटर निम्नलिखित क्षेत्रों में भी उपयोगी हैं.
(i) जनगणना
(ii) मौसम विज्ञान
(ii) युद्ध के समय प्रक्षेपास्त्रों का नियन्त्रण
(iv) उपग्रह प्रक्षेपण व संचालन
(V) भौतिक व रसायन विज्ञान में शोध
(vi) चिकित्सा, यातायात-नियन्त्रण, समुद्र-विज्ञान व तेल खनन
(vii) कृषि विज्ञान व अनुसंधान
(viii) अभियांत्रिकी, अन्तरिक्ष-विज्ञान, इंटरनेट और मोबाइल सेवा।
प्रणाली की कार्य-पद्धति या अनुप्रयोग के आधार पर कम्प्यूटर के प्रकार-
आजकल Computer का सभी क्षेत्रों में व्यापक प्रयोग किया जाता है। विभिन्न प्रणालियों में कम्प्यूटर के अनेक अनुप्रयोग हैं जिनमें से कार्य-पद्धतियों के आधार पर कम्प्यूटरों के पाँच वर्ग होते हैं.
(1) अंकीय कम्प्यूटर
(2) अनुरूप या एनालॉग कम्प्यूटर
(3) संकर या हाइब्रिड कम्प्यूटर
(4) प्रकाशीय कम्प्यूटर
(5) परमाणवीय या एटॉमिक कम्प्यूटर।।
(1) अंकीय कम्प्यूटर-
अधिकतर Computer डिजीटल कम्प्यूटर होते हैं। Digital का अर्थ यह है कि कम्प्यूटर में सूचना को इस प्रकार की चर राशियों द्वारा व्यक्त किया जाता है, जिनमें डिस्क्रीट निश्चित अंकों को निरूपित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, 7 दशमलव अंक दस प्रकार के मान निश्चित मान प्रदान करते हैं। 1940 के दशक का सबसे पहला कम्प्यूटर प्रमुख रूप से अंकीय गणनाओं को सम्पन्न करने के लिये प्रयुक्त होता था।
इसी कारण Computer को Digital Computer का नाम दिया गया। प्रयोगात्मक रूप से केवल दो अंकों का प्रयोग करने पर Digital Computer की क्रियायें अधिक सटीक तथा विश्वसनीय होती हैं। मानव, सूचना की अभिव्यक्ति अनेक गतिविधियों से करता है। इन गतिविधियों में से सत्य और असत्य को व्यक्त करना भी एक अभिव्यक्ति है। किसी पुर्जे में दो भौतिक गुण।
स्पष्ट रूप से उपस्थित हो सकते हैं, वे हैं- सक्रियता एवं निष्क्रीयता। सक्रिय अवस्था, सत्य को और निष्क्रिय अवस्था, असत्य को व्यक्त करती है। डिजिटल कम्प्यूटर डाटा और प्रोग्राम्स को 0 से 1 के संकेतों में परिवर्तित करके उनको इलेक्ट्रॉनिक रूप में ले आता है।
(2) अनुरूप या एनालॉग कम्प्यूटर-
एनालॉग शब्द का अर्थ है- दो राशियों में अनुरूपता। ये वे Computer होते हैं जिनमें भौतिक राशि (जैसे दाब, तापमान, लम्बाई आदि) को इलेक्ट्रॉनिक परिपथों की सहायता से विद्युत संकेतों में रूपान्तरित किया जाता है। ये कम्प्यूटर किसी राशि का परिमाप तुलना के आधार पर करते हैं। जैसे कि एक थर्मामीटर कोई गणना नहीं करता है अपितु यह पारे के सम्बन्धित प्रसार की तुलना करके शरीर के तापमान का स्तर व्यक्त करता है।
विद्युत स्पन्दों एनालॉग कम्प्यूटर मुख्य रूप से विज्ञान और engineering के क्षेत्र में प्रयोग किये जाते हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में मात्राओं का अधिक उपयोग होता है। ये कम्प्यूटर केवल अनुमानित परिमाप ही देते हैं। उदाहरणार्थ, एक पेट्रोल पम्प में लगा एनालॉग Computer, पम्प से निकले पेट्रोल की मात्रा को मापता है और लीटर में दिखाता है तथा उसके मूल्य की गणना करके स्क्रीन पर दिखाता है।
(3) संकर या हाइब्रिड कम्प्यूटर-
वे Computer जिनमें एनालॉग कम्प्यूटर और Digital Computer, दोनों के गुणों का सम्मिश्रण हो, संकर या हाइब्रिड कम्प्यूटर कहलाते हैं। हाइब्रिड का अर्थ है- संकरित अर्थात् अनेक विशेषताओं का सम्मिश्रण। उदाहरणार्थ- Computer की एनालॉग Device किसी रोगी के लक्षणों- तापमान, रक्तचाप आदि को मापती है। ये परिमाप बाद में डिजिटल भाग के द्वारा अंकों में बदले जाते हैं। इस प्रकार रोगी के स्वास्थ्य में आये उतार-चढ़ाव का तत्काल प्रेक्षण किया जा सकता है।
(4) प्रकाशीय कम्प्यूटर-
आधुनिक युग के कम्प्यूटरों के रूप में इस प्रकार के कम्प्यूटर बनाये जा रहे हैं जिनमें एक पुर्जे (अवयव) को दूसरे से जोड़ने का कार्य ऑप्टीकल फाइबर के तारों से किया जाता है। इनके गणना करने वाले अवयव या डिवाइस प्रकाशीय पद्धति पर आधारित बनाये गये हैं। विद्युत संकेतों की गति 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकण्ड की कोटि की होती है लेकिन इतनी गति से भी 1 मीटर के तार में विद्युत संकेत को 3.3 नानो सेकण्ड का समय लगाता है। प्रकाशन के संवहन के लिये तार जैसे माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। जिससे प्रकाश की गति, विद्युत से अधिक होती है इसलिये बिना तार के प्रकाशीय पद्धति आधारित कम्प्यूटर विकसित किये जा रहे हैं।
(5) परमाणवीय या एटॉमिक कम्प्यूटर-
ये ऐसा विकासशील Computer है जिसमें कुछ विशेष प्रोटीन अणुओं को एकीकृत परिपथ में बदला जाये और इसमें इतनी अधिक स्मृति क्षमता आ जाये कि यह आज के कम्प्यूटरों से 10,000 गुना अधिक क्षमता वाला हो।
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कम्प्यटर की पीढ़ियां- सन् 1942 से कम्प्यूटर युग की शुरूआत हुई के प्रारम्भिक काल में इस मशीन का प्रयोग केवल बड़ी-बड़ी सरकारी संस्थायें ही था, लेकिन इसके विकास के साथ-साथ यह मशीन सामान्य जन के सिर गई। इसे सरलता से समझने के लिये हम निम्न भागों में बाँट सकते हैं।
आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस Blog पर और आज हम पढ़ने वाले हैं Generation of compute के बारे में जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है, अगर आप कंप्यूटर सीखना चाहते हैं.
Generation of computer in Hindi | कम्प्यटर की पीढ़ियां
(1) कम्प्यूटर की प्रथम पीढ़ी (1942-55)-
इस युग का प्रारम्भ जून, 19 माना जाता है, जब एक सरकारी अमेरिकन संस्था द्वारा UNIVAC-I नामक कम गया। यह मशीन ENIAC नामक Computer से आधुनिक तथा शक्तिशाली थी। इस पर प्रयोग पेयबल प्रोसेसिंग में किया जाता था। यह इस प्रकार से दिखाई पड़ती थी
इस मशीन के प्रयोग का प्रारम्भ सन् 1951 में हुआ था, लेकिन इसमें निराला विकास किया जाता रहा, तथा सन् 1959 में यह कम्प्यूटर काफी विकसित हो चुका था
और इसमें निर्वात वाल्वों का प्रयोग काफी मात्रा में किया जाने लगा था। ___ इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में मैग्नेटिक ड्रम-युक्त Internal Memory को प्रयोग किया जाने लगा था। इसके द्वारा कम्प्यूटर पंच कार्ड से Data व Programs को Read करके ड्रम में Store कर लेते थे। इन सबके अतिरिक्त इस पीढी के कम्प्यूटरों Machine लैंग्वेज का प्रयोग भी किया जाने लग था। यह मशीन लैंग्वेज निम्न प्रकार की होती थी
0101100011000001001001 इस प्रकार इस पीढ़ी से programming का प्रारम्भ हो गया था। 1952 में पेनसिलविया विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. ग्रेस हॉपर द्वारा असेम्बली लैंग्वेज का आविष्कार किया गया और इस लैंग्वेज का प्रयोग प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों में सफलतापूर्वक किया गया।
(2) द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1956-1964)-
इस पीढी के Computer तकनीकी रूप से प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों से एकदम भिन्न थे, क्योंकि इनमें वैक्यूम ट्यूब्स के स्थान पर ट्रांजिस्टर्स का प्रयोग किया गया था, जिसका परिणाम यह हुआ कि कम्प्यूटरों का आकार एकदम छोटा हो गया तथा यह अति अल्प मात्रा में विद्युत का प्रयोग करने लगे। ABC, ENIAC, EDSAC, EDVAC, UNIVAC I इत्यादि कम्प्यूटर इसी पीढ़ी के अन्तर्गत आते हैं.
(3) तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1965-1975)-
तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों में IBM न अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा इंटीग्रेटेड सर्किट से युक्त कम्प्यूटरों की एक नई श्रृंखला को कम्प्यूटर बाजार में प्रस्तुत किया, जो अति शीघ्र ही लोकप्रिय हो गई तथा इसका प्रयोग कार्यालयों में किया जाने लगा। मेनफ्रेम और मिनी कम्प्यूटर इसी पीढ़ी में आते हैं। इस श्रृंखला के प्रमुख कम्प्यूटर थे-360/Model 195, सिस्टम/360 तथा 360/Model 10.
यह समस्त कम्प्यूटर IC पर आधारित होने के कारण द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों से आकार में अत्यन्त छोटे थे तथा इनका रखरखाव अत्यन्त आसान था क्योंकि इसमें प्रयुक्त होने वाली समस्त IC एक PCB पर लगी होती थीं। इसके अतिरिक्त इस पीढ़ी से Computer फैमिली का विचार प्रचलन में आया।
सन् 1976 से चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटरों का युग प्रारम्भ होता है। इस पीढ़ी में Computer उद्योग ने प्रवेश किया। माइक्रोप्रोसेसर के युग में इस युग में कम्प्यूटर का आकार एक मेज पर आकर स्थिर हो गया।
Microprocessor का विकास- वास्तविक रूप में माइक्रो कम्प्यूटर्स की कहानी का जन्म सन् 1969 में हुआ। इस सन् में एक जापानी कम्पनी इंटेल कॉरपोरेशन से एक समझौता हुआ। इस समय तक Intel अमेरिका के कैलीफोर्निया राज्य में स्थित एक अत्यन्त छोटी कम्पनी थी, तथा calculator बनाने का कार्य करती थी। इस समझौते पर हस्ताक्षर करके उसे क्रियान्वित करने वाले व्यक्ति थे- मैरी ई. टेड हॉफ। इस व्यक्ति को अब हम इंजीनियरों के engineer के नाम से जानते हैं।
टेड हॉफ ने एक जनरल परपज लॉजिक चिप का विकास किया, जिसे इंटेल 4004 के नाम से कम्प्यूटर बाजार में प्रस्तुत किया गया। इसे ही प्रथम Microprocessor के नाम से जाना गया। इसके विकास के पश्चात् Intel Corporation विश्व में माइक्रोप्रोसेसर के सबसे बड़े निर्माता के रूप में उभर कर आया। आज भी इंटेल इस क्षेत्र में सर्वप्रथम है। इसके पश्चात् सन् 1970 में एक अन्य अमेरिकन कम्पनी MITS द्वारा Altair 8800 के नाम से माइक्रोप्रोसेसर पर आधारित कम्प्यूटर को कम्प्यूटर बाजार में प्रस्तुत किया गया, वास्तव में यह ही विश्व का प्रथम माइक्रोप्रोसेसर पर आधारित कम्प्यूटर था।
Bill Gates का पदार्पण- Micro Computerको अधिक से अधिक प्रचलित करने के लिये MITS ने बिल गेट्स नामक एक Softwareengineer को BASIC नाम की एक हाईलेवल लैंग्वेज का निर्माण कार्य सौंपा। बिल गेट्स ने इसको अपने अंजाम तक पहुँचाया, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक कार्य के लिये Application Software का निर्माण सम्भव व सहज हो सका। कुछ समय पश्चात् बिल गेट्स ने MITS से अलग होकर Software बनाने की एक नई कम्पनी की आधारशिला रखी, यह कम्पनी MicrosoftCorporation थी। आज सारे विश्व के 90 प्रतिशत कम्प्यूटरों में इसी कम्पनी द्वारा बनाये गये Software कार्य करते हैं।
AppleMac का उदय- सन् 1977 में Steve Job और स्टीव जोनेक नामक दो युवा इंजीनियरों ने Apple Computer के नाम से एक माइक्रोप्रोसेसर युक्त कम्प्यूटर की Kit को कम्प्यूटर के बाजार में प्रस्तुत किया। इस किट के बनाने के पश्चात् कुछ ही वर्षों में Apple विश्व में कम्प्यूटर बनाने में अग्रणी हो गई।
वर्कशीट का जन्म- इस कम्पनी ने अपने उत्पाद को मशहूर तथा प्रचलित करने के लिये दो युवा Software इंजीनियरों ब्रिकलिन और फ्रैंकस्टन की मदद से Visi Calc नामक एक कैलकुलेशन सॉफ्टवेयर को Software बाजार में प्रस्तुत किया, वास्तव में यह प्रथम स्प्रेडशीट सॉफ्टवेयर था। इस सॉफ्टवेयर के कारण एपल Micro Computer के प्रयोग में बढोत्तरी हुई और Apple Computers का आधार अत्यन्त मजबूत हो गया।
PC का आगमन-सन् 1981 में IBM ने भी Micro Computer के बाजार में कदम रखा. जिसे उसने IBM (PC) के नाम से प्रस्तुत किया। IBM द्वारा प्रस्तुत किये गये उत्पाद ने कम्प्यूटर बाजार में क्रांति उत्पन्न कर दी और इसके कारण Apple माइक्रो कम्य की बिक्री अत्यन्त कम हो गई। इस उत्पाद को और अधिक प्रचलित करने के लिये लोट्स Development Corporation द्वारा लोट्स 1-2-3 नामक एक स्प्रेडशीट Software को Software बाजार में प्रस्तत किया गया, इस सॉफ्टवेयर के आते ही IBM-PC का प्रयोग एवं बिक्री अत्याधिक बढ़ गई। यह सॉफ्टवेयर पूर्व प्रचलित Visi Calc नामक सॉफ्टवेयर से अधिक शक्तिशाली था। कुछ समय पश्चात् लोट्स और IBM ने मिलकर एक व्यापारिक समझौते के अंतर्गत अपने-अपने उत्पादों की कीमत अत्यन्त कम कर दी. जिससे इस कम्प्यूटर तक सामान्यजन की पहुँच सम्भव हो सकी।
चौथी पीढ़ी की मुख्य विशेषतायें- चौथी पीढ़ी के कम्प्यूटर माइक्रो-प्रोसेसर युक्त अत्यन्त शक्तिशाली कम्प्यूटरों के रूप में Computer बाजार में आये, यह सेमी कंडक्टर, आंतरिक मेमारा तथा VLSI तकनीक से युक्त थे।
(i) सूक्ष्मीकरण– इस पीढ़ी के कम्यूटरों का उत्पादन करते समय इस बात पर अधिक से अधिक बल दिया गया कि इनका साईज अत्यन्त छोटा हो तथा यह अधिक शक्तिशाली हो। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु इन कम्प्यूटरों में VLSI तकनीक का प्रयोग किया गया। कुछ समय पश्चात् इनका साईज और कम करने के लिये VLSI का प्रयोग किया गया, जिसके परिणामस्वरूप यह कम्प्यूटर साईज में अत्यन्त छोटे तथा कार्य में अत्यन्त शक्तिशाली हो गये।
(1) सेमीकंडक्टर इंटरनल मेमोरी– इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में MOS मेमोरी का प्रयोग किया गया। यह मेमोरी पूर्व प्रचलित मेमोरी से अधिक शक्तिशाली तथा तीव्र गति से कार्य करती थी और इसका आकार अत्यन्त छोटा हो गया। इस मेमोरी को हम अपनी आवश्यकता के अनुसार कम्प्यूटर में प्रयोग किये जा रहे मेमोरी बोर्ड में कम या अधिक भी कर सकते हैं।
(ii) ताकतवर सॉफ्टवेयर– इस पीढ़ी में Computer Hardware के साथ-साथ Computer Software के विकास में भी आश्चर्यजनक रूप में विकास हुआ, तथा सॉफ्टवेयर मार्केट में अनेक लैंग्वेज पदार्पण हुआ जिनमें BASIC, FORTRAN, COBOL, RPG, C, PASCAL इत्यादि प्रमुख हैं.
इसके अलावा इनसे पीढ़ी में ही पैकेज सॉफ्टवेयरों का प्रचलन प्रारम्भ हुआ, जिससे Computer का प्रयोग अति सामान्य हो गया। इसके अतिरिक्त इसी पीढ़ी में DSS का भी विकास हुआ, जिसके फलस्वरूप कार्यालयों में कम्प्यूटर के प्रयोग का प्रचलन अत्याधिक बढ़ गया।
(5) पाँचवी पीढ़ी के कम्पयूटर (1989-1994)-
वर्तमान समय में हमें पाँचवी पीढ़ी के कम्प्यूटरों के साथ कार्य कर रहे हैं। इसलिये हम यह बात अत्यन्त स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं, कि इस पीढ़ी के कम्प्यूटर अपने पूर्वज से कितने अधिक शक्तिशाली तथा आधुनिक हैं.
इस पीढ़ी में IBM द्वारा 80286-386-486-586 इत्यादि Personal Computers की श्रृंखला ने सारे विश्व के Computer Market पर अपना अधिकार कर लिया है। इसी पीढ़ी के अंदर Super Computer कम्प्यूटर का विकास सम्भव हो सका है। इसी पीढ़ी के अंतर्गत कम्प्यूटरों में एक नई तकनीक का विकास हुआ जिसे हम रोबोटिक्स के नाम से जानते हैं। इसके अलावा सॉफ्टवेयरों में अनेक मूलभूत परिवर्तन हुये तथा कृत्रिम ज्ञान क्षमता वाले सॉफ्टवेयरों का विकास हुआ। नये-नये operating system विकसित किये तथा Application Software में भी अत्यधिक अर्थपूर्ण सॉफ्टवेयर मार्केट में आ गये, जिनमें विंडोज 95 अग्रणी है।
इस पीढ़ी के कम्प्यूटर चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर से साईज में एक चौथाई रह गये, इनका प्रयोग हम अपनी गोद में अथवा हाथ पर रखकर कर सकते हैं। इन कम्प्यूटरों में हम अपनी आवश्यकता के अनुसार Memory (RAM) को कितना भी अधिक घटा या बढ़ा सकते हैं तथा IDE और स्कैजी हार्डडिस्क का विकास भी इसी पीढ़ी के अंतर्गत हुआ जिससे DATA Store स्टोर करने की समस्या हल हो सकी। इस प्रकार हम यह बात सरलतापूर्वक समझ सकते हैं कि इस पीढ़ी के Computer कितने आधुनिक हैं। अब केवल एक बात की ही कमी है कि कम्प्यूटरों को मनुष्य की भाँति इस प्रकार बनाये जाये कि वह भी अधिक से अधिक शक्तिशाली कम्प्यूटरों का निर्माण कर सकें।
Pentium प्रो, Pentium– II, Pentium प्रोसेसर वास्तव में छठी पीढ़ी के प्रोसेसर हैं। जिन कम्प्यूटरों में इनका प्रयोग किया जाता है वे कम्प्यूटरों की छठवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
(7) सातवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर (2000-2004)-
आज हम जिस Pentium-4 प्रोसेसर को प्रयोग करते हैं वह वास्तव में सातवीं पीढ़ी का माइक्रोप्रोसेसर है। जिन कम्प्यूटरों में इसे प्रयोग में किया जाता है वह सभी सातवीं पीढ़ी के अन्तर्गत आते हैं.
(8) आठवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर (2005-2006)-
आज हम जिस Intel कोर ड्यू प्रोसेसर को प्रयोग करते हैं वह वास्तव में आठवीं पीढ़ी का माइक्रोप्रोसेसर है। जिन कम्प्यूटर में इसे प्रयोग किया जाता है वह सभी आठवीं पीढ़ी के अन्तर्गत आते हैं.
हम आशा करते हैं कि आपको यह Article पढ़ के मजा आया होगा इस आर्टिकल में हमने (History of Computer) Generation of computer के बारे में आपको जानकारी दी है, अगर आपको लगता है कि कोई जानकारी हमसे छूट गई हो तो कृपया कर उसे Comment में हमसे साझा करें.
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